भिक्षु स्वामी पर कविताए

 भिक्षु के  जन्मोत्सव पर

चंद लकीरों को खिंच भावों की 

श्रद्धांजलि दी है।

हत प्रभ सी हूं, उनके व्यक्तित्व से

अंजुगोलछा का 

 🙏 *नमन नमन नमन* 🙏


- *जब धरा पर* 

*विकल रागिनी बजी*

*औऱ हाहाकार स्वरों में*

*घोर वेदना थी छाई* 

*तब सिंह का स्वप्न माँ को दिया दिखाई ,औऱ भिक्षु जैसे पुत्र की पाई बधाई*


  भिक्षु स्वामी  ने सब को धर्म की सच्ची

राह दिखाई

जब

छोटे छोटे जीवों की हिंसा

को इस अहिसंक धर्म  में

वैध बताया जाता था।

एक घड़ी भी शुद्ध साधुपन

नहीं पाला जा सकता

ये धर्म आचार्य नेफरमाया था

तब शुद्ध धर्म का  उदघोष

ले 

 अपने पूरे जीवन कोभिक्षु जी ने धर्म मय बनाया था

जैन धर्म के पुनरुद्धारक

बन आगम सम्मतजैन धर्म समझाया था।

कंटकाकीर्ण थी राह बहुत

विरोधियों ने  विरोध का जाल बिछाया था।

अपने भी विमुख पराए बन

आंखों के आगे आएं

पग पग पर घोर निराशा के

काले बादल छा जाएं


धर्म की जटिल समस्या

हैं बढ़ी जटा-सी  कैसी थी?

पर भी

आगम की झाड़ी धूल हृदय में

ऐसी विभूति थी उनकी


फिर सुप्त व्यथा का जगना

सुख का सपना हो जाना

पर कब तक उन्मुक्त पंछीको

असत्य के    मेघ रोका करते हैं

छिल-छिल कर छाले फोड़े

मल-मल कर मृदुल चरण से


*हे प्रभु ये तेरा पंथ* कह 

रहबर बन अथक चलते रहे

निर्झर-सा झिर झिर करता

नर हृदय में किसलय नव कुसुम बिछा कर

प्रतिमा में सजीवता-सी

बस गयी आपकी सुछवि आँखों में

अमिट लकीर बन गई लोक हृदय में

जो अलग रही लाखों में।

विद्रुम सीपी सम्पुट में

मोती के दाने जैसे

धुति मान हुआ धर्म के फलक

पर सूर्य जैसे


विकसित सरसित मुखपर दीप्त-वैभव

जल उठा सत्य धर्म दीप-

जैसे मचला अंहिसा का शैशव

जो पथ सीखा गए वो अब ना भुलाना है *296 जन्मदिवस* 

पर शपथ यह ही उठानी है

अटल रहेंगे सत्य पर डटे रहेंगे

तीर्थंकर के बताये मार्ग पर 


आपसे निशंक चलेंगे।

📚📚📚📚📚📚📚

एक विनम्र श्रद्धांजलि

भावों द्वारा

भाव उदगारिका

(स्वरचित)

 *अंजुगोलछा*



अहिंसा तप संयम केउत्कर्ष साधक थे आगमों के तलस्पर्शी  आराधक थे ।

जैन तत्व दर्शन को गहराइयों से समझे ,

गुरु रघुनाथ जी को भी  धर्म में आई शिथिलता को बहुतेरा

समझाया पर वे ना समझे।


   आधुनिक युग में सहज क्रांति  को  अंजाम दिए।

 पंचम आरे में, चौथे आरे सी दुंदुभी बजादिए।

 वीर की वाणी का ले आलंबन रामनवमी को कुरीतियों को तज ,अभि- निष्क्रमण कर गए।

 सत्य के सूरज की पहली किरण का पा परम स्पर्श कृतार्थ हो गए ।

12 साथी साथियों  के साथ तेरापंथ की स्थापना कर गए।

 अनेक परिषह  सह गए।

  पर्याप्त भोजन की कमी  में भी समता  धार  लिए   ,जतन किया

  कम भूख लगे, तो पेट पर गीला पट  बांध सूर्य की आतपना लिया ।

 मासखमन के बाद साधुओं को बासी खानेसे   किया पारणा, तो,  तो तन में विकार उठा

वमन हुआ और मर गए  ।

क्या क्या बताऊँ आखिर  क्या क्या ?

सब कुछ सहज भाव से सह गए।

मिली  ना रहने को जगह तो ,शमशान में सोगये।

रह गए  अंधेरी ओरी में , पर सोच यही की धर्म को आँच ना आ जाये।


उन कष्टो  को  सोच  हम सामान्य की तो रूह  ही कांप  जाए। 


अवर्णनीय कष्ट सह कर भी शुद्व आचार 

  पर आंच ना  आने दी।

 शुद्ध आचार  को  प्रथम प्राथमिकता ही सदैव दी।

  *जन-जन में चेतना  दी  यही कि--* 

मन वचन काया   से हो शुद्ध व्यवहार।

 आत्म कल्याण है यही, औऱ यही है जीवन सार है ।

पांच/12 (महाव्रत ,अणुव्रत)अपने नस-नस मेंबसा लो, 

  यही जीवन आधार बना लो।

 धर्म की कसौटी जीवन का व्यवहार है। धर्मस्थ स्थान नहीं  केवल वरन धर्म ही जीवन का विचार है।


जीव अजीव को समझले ,बंधन का कारण यही, ।

अहिंसा धर्म अपनाने  से हो

 स्वरूप आत्मा की शुद्धि, और कर्मों का नाश  यही    हैं, मोक्ष का मार्ग  सही


एकता में बल है अपार ,संघ रहे सुधीर।

 नियम पालन कर सदा बनो सच्चा वीर।

लौकिक औऱ लोकोत्तर का सबक सिखा गए

जो  पाठ पढ़ाने आये थे पढ़ा गए 



 विपरीत परिस्थिति में जब सहज कलम कॉपी मिलना था दुष्कर।

कई ग्रंथ  रच, जन जन को आगम ज्ञान का दिया आधार।  

 38000 श्लोक का भिक्षु  ग्रंथ रत्नाकर  का दो भागों में किया सृजन 

दे दे कर अपना सब कुछ सबको बांध लिया। जीवन के अंत में बस दो जोड़ी कपड़ों का अर्जन किया।

 

 तेरापंथ धर्म की जो आज  प्रमुख पहचान *अनुशासन*हैं  (जो आज तक है )वह  जिसकी नींव  आचार्य भिक्षु की ही देन है ।

 ।

आज उनका अभिनिष्क्रमण दिवस हमारे लिए आत्मनिरीक्षण का दिवस हैं। सोचो  एक बार 

 छोड़ गए थे,जिस मार्ग पर ---क्या आज हम उस पर अबाध खड़े  हैं, आओ अपने जीवन का पूरा अवलोकन करें। जहां दिखे त्रुटियां उन्हें स्वीकार कर सुधार करें।


माँ  दीपां जी ने जो देखा स्वप्न मेरा बेटा सिंह  सा दहाडेगा, स्वप्न हुआ साकार पुत्र तो दहाड़कर अधर्म को   पछाड़ दिया  औऱ आज  उनका चलाया  तेरापंथ भी निर्भीक   खड़ा है।

  266 वर्ष  बाद भी सुगुरूओ के शासन में खूब फल फूल रहा है।

आज सभी अन्य जैन  पंथों  में अनेक आचार्यों की टोली है।

आज सिंह सा एक गुरु के सिद्धांत पर चल रहा है,  तेरापन्थ और 

 सबकी एक ही बोली हैं, 

दिया जो मर्यादा पथ भिखु जी , आज तक संघ  उसी पर कायम हैं  ।  आज जन जन का उदघोष है

तेरापन्थ की क्या पहचान एक गुरु एक विधान


सुपथ दिखा गए ,सबक आगम का पढ़ा गए, नस नस में बस गए हो भिक्षु सदियों याद रहोगे , तेरापन्थ के देदीप्यमान सितारे तुम्हें ना भुला पायेंगे।जैन तेरापंथ क्षितिज पर आप अविराम अभिराम चमकते सरताज हो


 


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