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महत्वकांक्षा

सोचती हूँ, सूरज ने भी एक दिन ऊँचाई की चाह  में महत्वकांक्षा की सीढियों  चढ़ी  होगी  ऊंचाई की चाह में कितनी बार गिरते हैं इंसान  फिर किस -किस पर पैर रख का ऊपर चढ़ते है क्या वहां पहुँच कर ऊँचे बहुत ऊँचे  वह खुश रहे पाते होंगे  शायद ,बिलकुल तनहा रह जाते होंगे क्योंकि  सूरज के सामने सिर  तो सब झुकाते हैं    पर करीब कोई नहीं जाता  क्योंकि उसकी महत्वकांक्षा की तपिश सबको झुलसा देती हैं  दोस्ती विश्वास सबको मुरझा देती हैं  बचना ऐ दोस्त ,ऐसी ऊँचाइयों से  जो तुम्हें तन्हा छोड़ दें , भरी भीड़ में 

भागीरथ ओर गंगा

आज भागीरथ आ गए  जमी पे , बहुत खुश मन से गए  वे गंगा के तट पे  पर उनको वो गंगा नहीं दिखी   जिसे वो गए थे छोड़कर , वो बार बार पता पूछ रहे थे,पर हर बार उतर ये ही आया येही तो गंगा है ,कई कई तो हंसे उनकी नादानी पर कैसा है ये मानव गंगा के तट पे खड़ा गंगा का पता पूछ  रहा है .भागीरथ भी सोच रहे है क्या सच येही मेरी भागीरथी है ,हाँ येही होगी नहीं तो देवदूत मुझे यहाँ क्यों छोड़ जाता  बहुत  असमंजंस  में थे खड़े  , यह क्या? मेरी गंगा है  नहीं हो रहा विश्वास मुझे , हे !गंगे देवी,हे ! गंगे बोल- बोल तू ही बता  क्या ? तू ही मेरी आहवान की गई गंगे है। सब कह रहे है तू ही मेरी गंगे है मौन खड़ी हे कहती क्योँ नहीं मैं,तेरी गंगे नहीं हूँ, बोल न बोल सब्र का बाँध टुटा जा रहा है तू नहीं बोल सकती क्यों की तू तो कचरे की कोई धार है  तुझमें  मेरी गंगा सा नहीं कोई सार है , मेरी गंगा स्वर्ग से आई देवी हैl क्या अनुपम रूपहै, क्या अनुपम तेज़  है प्रखंड तेजस्वनी ,रूप गर्विता दुग्ध सी लहरे, प्रचंड मारती उच्छवास शिवशिरोधारिणी स्...