भागीरथ ओर गंगा

आज भागीरथ आ गए  जमी पे , बहुत खुश मन से गए  वे गंगा के तट पे  पर उनको वो गंगा नहीं दिखी   जिसे वो गए थे छोड़कर , वो बार बार पता पूछ रहे थे,पर हर बार उतर ये ही आया येही तो गंगा है ,कई कई तो हंसे उनकी नादानी पर कैसा है ये मानव गंगा के तट पे खड़ा गंगा का पता पूछ  रहा है .भागीरथ भी सोच रहे है क्या सच येही मेरी भागीरथी है ,हाँ येही होगी नहीं तो देवदूत मुझे यहाँ क्यों छोड़ जाता  बहुत  असमंजंस  में थे खड़े  ,
यह क्या? मेरी गंगा है  नहीं हो रहा विश्वास मुझे
, हे !गंगे देवी,हे ! गंगे बोल- बोल तू ही बता
 क्या ? तू ही मेरी आहवान की गई गंगे है।
सब कह रहे है तू ही मेरी गंगे है
मौन खड़ी हे कहती क्योँ नहीं मैं,तेरी गंगे नहीं हूँ,
बोल न बोल सब्र का बाँध टुटा जा रहा है
तू नहीं बोल सकती क्यों की तू तो
कचरे की कोई धार है
 तुझमें  मेरी गंगा सा नहीं कोई सार है ,
मेरी गंगा स्वर्ग से आई देवी हैl क्या अनुपम रूपहै, क्या अनुपम तेज़  है
प्रखंड तेजस्वनी ,रूप गर्विता दुग्ध सी लहरे, प्रचंड मारती उच्छवास शिवशिरोधारिणी
स्वर्ग वासनी, हजारों वषों की मेरी तपस्या के फल स्वरुप बनी वो अधोगामिनि
क्या बताऊ ?तुझे क्या थी वो निर्मल- पियूष  जल वाहिनी, पर बता भी रहा हूँ क्यों ?
क्योँ में तुझ से बात कर वक़्त अपना बर्बाद करूँ ,स्वर्ग से आया मैं अपनी अवतरित गंगा से मिलने
पर वह कहीं नहीं दिख तो जा रहा हूँ मैं,

तभी नेपथ्य से आती है क्षीण सी घुटी घुटी आवाज  -रुको खुद स्वर्गारोही  होकर मुझको नरक में धकेलने वाले निर्मोही ,
मुड़ कर देखा भगीरथ ने,
आवाज भी कितनी बदल गई है
बस बोलने का लहजा कुछ शेष था।
उसी से अनुमानित हुआ
अरे ये ही तो मेरी गंगे है,
ये ही है येही तो है,
मन जितना आतुर था मिलने को
उतना ही क्षोभित हुआ
मन मे चित्कार हुई
जिस गंगा को भू पर उतारा था,
स्वर्ग वाहिनी बनाकर
उसे ही नारकीय वेदना झेलनी पड़ रही है
गंगे माफ करदे येही स्वरलहरी निकलती रही

भगीरथ कोसता रहा
अपने स्वार्थ वश स्वर्गवाहिनी को भू पर लाकर
बहुत बड़ा पाप किया ।
बस मालुम चल गया गंगे ये देव आयुष पूरा कर कहाँ जाऊंगा में
पर नारकीय वेदना भोग कर
अपना प्रयायश्चित पूरा करूँगा मैं।
तुम्हारा कोसना व्यर्थ नहीं जायेगा
ये भगीरथ बहुत कष्ट पायेगा
पीड़ा तुम्हारी ले जाऊंगा
पर जाते 2 भू वासियो को धिक्कारता हूँ
धरती पर तुम्हें स्वर्ग जाने किस रास्ता दिया
वैतरणी को तुम्हारे हवाले किया
पर हे मानव¡ तुम अपनी थाती सम्भाल नहीँ पाया
तुम्हें कोसने का कोष खत्म हो जायेगा,
 पर कोसना बाकी रह जायेगा
फिर ठिठक कर सिर झुका कर
ढहरे हुए हताश हो कर
पाप मैंने किये ,तुम भोग रही हो प्यारी गंगे
कुपात्र दान दिया उसका दोष किसे दूँ गंगे
किसे दूँ गंगे
स्वरचित








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