काली पट्टी

मैं देख रही थी बच्चे,खेल रहे थे खेल ,
एक की आँख में बांधनी थी पट्टी ,
औऱ उसे ढूंढ़ना था,
पर भी कोई तैयार नहीं था बांधने पट्टी,
बड़ी मुश्किल से किया तैयार ,
सिक्का उछाल कर ,
तभी मेरे को ख्याल आया , कि कोई नहीं चाहता ये बांधना काली पट्टी ,
क्योंकि जिसके   पट्टी बँधी हो उसे सब चिढ़ाते
है,
वे भी हवा में हाथ झूलाते है
बड़े अजीब दिखते हैं।
तो न्याय मुर्ति के आँख पर पट्टी किसने बांधी,
अपने मन से ,या जबरदस्ती किसीने बाँध दी ,
एक दिन मिलूंगी तो कहूंगी
हे!न्याय की देवी ,उतार दो ये काली पट्टी, न्याय बच्चों का खेल नहींहै
आज तुम्हारी  इस पट्टी का फायदा हर कोई उढ़। रहा है।
नेता से लेकर अभिनेता तक,
साधु से लेकर शैतान तक ।
नोंच डालो ये काली पट्टी
औऱ पूरी खुली आँखों से न्याय दो ,
रोक लो
ये बम बारी, ये निर्भया कांड ,ये आंतकवाद औऱ जाति वाद
कब तक आंख मूंद कर ,
सच से दूर रह कर  न्याय करोगी
कब तक सच को झूठलाती रहोगी,
तुम्हारा तराजू भी अब संतुलन खो चुका है
पैसों की तरफ झुक चुका है,
एक बार खुली आंख से देख ,तुम्हारी बंद आंख ने कितनी तबाही मचाई है  याद कर एक बार औऱ एक स्त्री ने बाँधी थी ऐसे ही एक पट्टी
गांधारी ने , औऱ महाभारत हुआ,
आज क्या ? विश्व युद्ध करवाएगी, थाम ले अन्याय के घोड़े  अभी भी वक़्त है, लगाम लग जायेगी अन्यथा

विश्व तबाह हो जायेगा
पट्टी खोल ,पट्टी खोल न्यायमूर्ति पट्टी खोल
मैं बुदबुदाती रही
क्या कोई हिम्मत जुटा पायेगा न्याय मूर्ति को
 रोशनी दे पाएगा

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