माँ पर कविता

माँ का होना जीवन को मिला

अनोखा उपहार


माँ के बिना जिंदगी होती जार 2

 


माँ ही, शीतल चन्दन, माँ ही नर्म

मलमल,


माँ तुम अनगिनत सुमनों का परिमल


माँ ही अदभुत धरातल, माँ ही स्नेहिल फलक ।


माँ तेरा दुलार ,जीवन मे रहता 

आदी से अंत तलक


मां तेरे, होने से सुवासित  , घर का हर  एक कोना 

तेरा ना, होना जैसे ,किसी तजुर्बे 

का खोना


दर्द के जिस्त पर  माँ, लेप राहत का 

धरती पर  माँ रूप भगवान का


माँ ही फरिश्ता, माँ ही पैगम्बर होती है

माँ दिखती है, बाहर ,पर रूह के अंदर होती है

माँ बिन ,धरा पर सब असम्भव

माँ का प्यार पाने, 

 देव , भी  छोड़ दे ,अपना देवत्व।


माँ की बाहें ,तो जन्नत की गली ,

हर जिंदगानी ,वहां सदा मौजों में पली ,

गहन अंधेरों को उजालों में बदलती है

औलाद के हर दुःख को पल में छलती है


जो काट देती दर्दों को,  माँ वो दुआ  है।

पारस हो गया वही जिसको  माँ तूने छुआ है


बचपन में यू अक्सर  लगा,अँधेरा ही मुकद्दर है.

पर माँ होसला देकर  बोली ,मैं हूं

 तुम को क्या डर है।


सारी कायनात ओ !माँ तेरे कदमों तले झुकती है

कितनी गलती करदो पर माँ 

माफ कर अंक में भर लेती है



माँ तुम जीवन कीअमुल्य धरोहर

बच्चों का हो क़ीमती जेवर


माँ नेमतों से अथाह सागर   

भर दे वो देव तुल्य वर हैं।


माँ मिली जिंदगी तुम से तुम पर 

निसार  करते है,

माँ सच मे ये सच नही बताया कभी तुमको 

आज तुम नहीँ हो साथ तो 

शिद्दत से लगता हैं कि 

माँ हम तुम से बहुत प्यार करते है।

स्वरचित अंजू गोलछा

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