समणी जी के लिए दो शब्द

 समणीकमल श्री विपुल प्रज्ञा, औऱ श्री आदर्श प्रज्ञा जी,   जब बिलासपुर पधारे एक ज्ञान का अद्भुत स्त्रोत  प्रवाहित हो गया।

एक अविस्मरणीय धार्मिक वातावरण का सृजन हो गया

 उस धार्मिक मेले  सदृश छवि  आज भी सुधि में 

अक्षुण्ण पडी हैं

सच में बिना गुरु ज्ञान नहीं होता

औऱबहुत खेद के साथ कहना  पड़ता है हमारा क्षेत्र इससे सदा महरूम रहा है ,उस ज्ञान के आभाव के तप्त रेगिस्तान में आप श्री विपुल प्रज्ञा जी औऱ श्री  आदर्श प्रज्ञा जी 

आप दोनों के ज्ञान  से ओतप्रोत   गंगा यमुना  की शीतल फुहारें पड़ी तो मन  भीतर तक भक्ति भाव में तर हो गया ,भीग गया,  काश ऐसा सौभाग्य हमें सदा मिलता रहे

और हम धार्मिक भाव की भाव धारा में अनवरत डूबे रहे।

कहते है ,जँहा चाह हैं वहां राह होती है ,देखे हमारी चाह, राह की  कौनसी फुलवारी देता है ।


*गुरु कृपा बिन होते नही मंगल काम*



*गुरू बिना हम कुछ नहीं*

*गुरु जीवन आधार।* 


*खुद तप कर*

*कुंदन दूसरों को बना जाते हैं*

*जला कर अपने हाथों को भी*

*उजाला दूर तक बाँट जाते हैं*


*वो अपने ज्ञान की ज्योति से*

*घर-घर ज्ञान का दीप जलाते*

*ऐसे गुरु की*

 *महिमा अपरम्पार।*

*हम गुण सदा उनके गाते हैं*

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