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नमुत्थुणं (25 बोल ) क्लास का6

 30:4:21 निगोद के एक गोले के जीवो की तथा एक गोले से दूसरे गोले की समानता जैसेे…… अस्तित्त्व सत्ताकी समानता जन्म की समानता सुख की समानता शरीर की समानता आहार की समानता पानी की समानता श्वासोश्चास की समानता इंद्रिय की समानता संवेदना की समानता आयुष्यकर्म की समानता मिथ्यात्व मोहनीयकर्म की समानता निगोद के गोले में जीव है अतः इतनी सारी क्रियाएं होती है। एक ही शरीर में अनंता जीवों को साथ रहना है, अतः इतनी सारी समानता होती है। । ८४ के चक्कर में चार गति में कोई भी जीव, कहीं भी स्थिर- स्थाई रह नहीं सकता है। आयुष्य कर्म पूर्ण करके शरीर छोड़कर जीव दूसरी गति में चला जाता है उसी का नाम है मृत्यु। नवकार गिने बिना अथवा सुने बिना जीव चला न जाए, उसकी तैयारी आज से ही कर लेनी चाहिए।  ९ महीने तक प्रसव की पीड़ा सहन करने वाली माँ का उपकार हम चुका नहीं सकते हैे , तो अनंत काल तक निगोद के काले गर्भ से जन्म देनेवाले सिद्धात्मा का ऋण कैसे चूका पाएंगे? ऋण चूकाने हेतु “णमो सिद्धांणं “ का जप करना अनिवार्य  आवश्यक है । जिससे हम भी कर्ममुक्त होकर सिद्ध बन सके। मां-बाप का उपकार स्मरण करके उनकी आज्ञा का पालन...

तिर्यंच पूरी

 *6:4:21* *दूसरी गति* *तिर्यंच* जिन जीवों के शरीर की बनावट टेढ़ी-मेढ़ी हो, उन्हें तिर्यंच कहते है। उपपाद जन्मवाले और मनुष्यों के सिवा शेष सब जीव तिर्यंचयोनि वाले हैं। औऱ  जो मन, वचन और काय की कुटिलता को प्राप्त हैं, जिनकी आहारादि संज्ञाएँ सुव्यक्त हैं, जो निकृष्ट अज्ञानी हैं और जिनके अत्यधिक पाप की बहुलता पायी जाती हैं तिरोभाव अर्थात् नीचे रहना-बोझा ढोने के लायक। कर्मोदय से जिनमें तिरोभाव प्राप्त हो वे तिर्यग्योनि हैं। पशु, पक्षी, कीट, पतंग यहाँ तक कि वृक्ष, जल, पृथिवी, व निगोद जीव भी तिर्यंच कहलाते हैं।  एकेंद्रिय से पंचेंद्रिय पर्यंत अनेक प्रकार के कुछ जलवासी कुछ थलवासी और कुछ आकाशचारी होते हैं। इनमें से असंज्ञी पर्यंत सब सम्मूर्छिम व मिथ्यादृष्टि होते हैं। परंतु संज्ञी तिर्यंच सम्यक्त्व व देशव्रत भी धारण कर सकते हैं। अधिकतर तिर्यक्लोक ( मध्य लोक) में जो जीवन यापन करते हैं, उन्हें तिर्यंच कहते हैं। वैसे तिर्यंच गति के जीव पूरे लोक में व्याप्त हैं, किन्तु त्रस तिर्यंच अधिकतर तिर्यक्लोक में ही मिलते हैं। *तिर्यंचों का निवास*  तिर्यंचों का निवास मध्य लोक के सभी असंख्यात...