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जुलाई, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जीवाजीवविभक्ति पर प्रश्न

.            ।। श्रीमहावीरायनम: ।। जीवाजीवविभक्ति पर आधारित प्रश्नोत्तरी ( प्रत्येक प्रश्न के सही उत्तर के  दो अंक है ) 🔹🔸🔹🔸🔹🔸🔹🔸🔹🔸🔹 प्रश्नपत्र–6-07-21       उत्तरपत्र–15-07-21 ➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖ .                       1️⃣ असंगत उत्तर पर ✅ का निशान लगाएं। (1) वाणव्यंतर देवों का निवास स्थान है– (अ) वनों में            (ब) वृक्षों में (स) आवासों में   ✔   (द) गुफा आदि अन्तरालों में ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ (2) सूमेरुपर्वत की निरन्तर प्रदक्षिणा करते हैं– (अ) सूर्य              (ब) चन्द्रमा (स) तारे              (द) ग्रैवेयक देव✔ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ (3) कठोर बादर पृथ्वीकाय है– (अ) रांगा             (ब) शीशा (स) वज्र               (द) पनक✔ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ (4) यह द्रव्य अनादि-अनन्त और सर्वकालिक होते हैं– (अ) धर्म                 (ब) अधर्म (स) आकाश           (द) पुद्गल✔ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ (5) संलेखना ग्रहण करना चाहिए– (अ) जब शरीर सशक्त हो और धर्मपालन में सक्षम हो।✔ (ब) जब शरीर अत्यंत अशक्त और रुग्ण हो गया हो। (स) जब धर्म-पालन करना दूभर हो गया हो। (द) जब ऐसा आभास हो गया

गुरु पूर्णिमा कथा

 🚩आषाढ़ शुक्ला गुरुपूर्णिमा, शनिवार, वी.सं.2547, दिनांक: 24जुलाई,2021 के पावन अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं। इस दिन 24 वे तीर्थंकर जगद्गुरु श्री महावीर स्वामी, उनके प्रथम गणधर शिष्य श्री गौतम स्वामी, श्रुतस्कन्ध यंत्र, श्रुतदेवी इनकी प्रतिमाओं का  अभिषेक-पूजा कर अपना जीवन सफल करें। धर्म- गुरुओं का  दर्शन-पूजन करें,  उनका प्रवचन सुने ,उनको आहारदान दे और उनकी  वैय्यावृति करें। 🌕⭐️🌕⭐️🌕⭐️🌕⭐️🌕⭐️🌕⭐️🌕⭐️🌕 🎆🎆🎆🕉️जैन धर्म में गुरु पूर्णिमा कथा🕉️🎆🎆🎆 🚩 भारत धर्म तथा संस्कृति प्रधान देश है और भारत ही क्या सारे विश्व में गुरू का स्थान ईश्वर के समान और कहीं कहीं तो ईश्वर से भी प्रथम पूज्यनीय बताया गया है। हमारी संस्कृति उन्हें केवल गुरु नहीं ‘‘ गुरू देव’’ कहती है। जैन धर्म में तो ‘‘गुरू की महिमा वरनी न जाय ‘‘ गुरूनाम जपों मन वचन काय‘‘ कहकर गुरू को पंच परमेष्ठि का स्थान दिया है। देव, शास्त्र, और गुरू की त्रिवेणी में करके ही मोक्ष महल में प्रवेश की पात्रता आती है और उसके फलस्वरूप संसार के आवागमन से मुक्ति मिलती है। गुरू हमारे जीवन से अज्ञान का अन्धकार मिटाकर एक नई दृष्टि देते हैं। उन्हीं क

तीसरा कौन

 *आज का टॉपिक*~ *साथी बताइए*   *हम दो है तो तीसरा कौन* ❓ नैगम, संग्रह---- 🅰️व्यवहार जीव शब्द, अजीव शब्द, ----- मिश्र शब्द असंयमी,---------संयमी संयमासंयमी उत्पाद,------व्यय सत के 3 लक्षण- ध्रौव्य 📚🖌📘🖋📙🖍📚🖌 मन दण्ड ,वचन दण्ड  ----- काय दंड 🅿️ 1 :--  अहिंसा , सयंम --- 🅰️  माया शल्य, -----मिथ्या शल्य। निदान शल्य ऋद्धि गौरव, रस गौरव,---- साता गौरव 🅿️ 2:-- ज्ञान ---- चारित्र 🅰️  ओज, रोम,--- 🅰️कवल मति अज्ञान, -------,श्रुत अज्ञान, विभंग अज्ञान संज्ञी ,असंज्ञी----  नोसंज्ञी , नो असंज्ञी 🅿️ 3:-- --- वचन , काया 🅰️  🅿️4:-- आधि , व्याधि --- 🅰️  🅿️ 5:--  बचपन ---- बुढापा 🅰️  🅿️ 6:-- जघन्य , मध्यम ---- 🅰️  🅿️ 7 :-- ---- द्वेष , कलह 🅰️  🅿️ 8:-- शुभ ---- मिश्र 🅰️  🅿️ 9:-- ---- अचित , मिश्र 🅰️  🅿️ 10 :-- कम खाओ ----- नम जाओ 🅰️  🅿️ 11:-- कामी , क्रोधी ---- 🅰️  🅿️ 12:-- गंगा , यमुना ---- 🅰️  🅿️13:-- चोरी , झुठ ---- 🅰️  🅿️ 14 :--  जर , जोरू ---- 🅰️  🅿️ 15 :-- जन्म , जरा ---- 🅰️  🅿️ 16 :-- अधोलोक , मध्यलोक ---- 🅰️    🅿️ 17 :--  देव ---- धर्म 🅰️  🅿️ 18 :-- ---- 

अंत में न ण

  अनिलवेग किसके हाथी का नाम था चंडप्रद्योतन  राजा तीर्थंकर के4 शाश्वत नाम में एक चन्द्रानन मान कषाय का स्थान कँहा गर्दन 1-2 गुणस्थान में कौन सा गुण पाया जाता है तमोगुण अंतरद्वीप कितने है छप्पन अप्रत्याख्यानी लोभ किसके समान खंजन निलवान वर्षधर पर्वत की नौ कूट में से एक उपदर्शन  जीव का स्वभाव ऊध्र्वगमन अग्नि का आहार ईंधन कायोत्सर्ग के 16 आगारों में एक खलिण श्री पाल जी के चाचा जी A अजित सेन (2)राजीमति महासती का जीव कहाँ से च्यव कर आया था? उ-अपराजित विमान गौतमादि 18 मुनियों ने कौनसा तप किया था? उ-गुणरत्न संवत्सर तप चौबीस तीर्थंकर की बेटियां कितनी? उ-तीन। देवकी के प्रथम पुत्र का नाम अनिक सेन/ अनेक सेन दसवे आप शब्द सुनकर पुनः संयम लेने वाले? नंदिषेण

नवतत्त्व प्रकरण प्रश्नोत्तरी

 नवतत्त्व प्रकरण प्रश्नोत्तरी    11   -   20  प्रश्न- 11 पुण्य के 9 प्रकार कौन कौन से है ?  जवाब- 11 पुण्य के 9 प्रकार निम्नोक्त है ।  अन्न पुण्य - भुखे को भोजन देना ।  पान पुण्य - प्यासे की प्यास बुझाना ।  शयन पुण्य - थके हुए निराश्रित प्राणियों को आश्रय देना ।  लयन पुण्य - पाट-पाटला आदि आसन देना ।  वस्त्र पुण्य - वस्त्रादि देकर सर्दी-गर्मी से रक्षण करना ।  मन पुण्य - हृदय से सभी प्राणीयों के प्रति सुख की भावना ।  वचन पुण्य - निर्दोष-मधुर शब्दों से अन्य को सुख पहुंचाना ।  काय पुण्य - शरीर से सेवा-वैयावच्चादि करना ।  नमस्कार पुण्य - नम्रतायुक्त व्यवहार करना ।  प्रश्न- 12 पाप किसे कहते है ?  जवाब- 12 पुण्य से विपरीत स्वभाव वाला, जिसके द्वारा अशुभ कर्मो का ग्रहण हो, जिसके द्वारा जीव को दुःख, कष्ट तथा अशांति मिले, उसे पाप कहते है ।  प्रश्न- 13 पाप कितने प्रकार का है ?  जवाब- 13 पाप 2 प्रकार का हैः- 1.पापानुबंधी पाप 2.पुण्यानुबंधी पाप ।  प्रश्न- 14 पापानुबंधी पाप किसे कहते है ?  जवाब- 14 जिस पाप कर्म को भोगते हुए नये पापकर्म का अनुबंध हो, उसे पापानुबंधी पाप कहते है । जैसे विपन्न-दुःखी, कसा

सास बहु

सास बहू की जोड़ी सातियो में आती है सास ने बहु पर शंका की * ❓ 🅰 * अंजना जी पर केतुमती जी * सास मोक्ष में ने बहु देवलोक में कुंती जी ,द्रोपदी जी भुआ भतीजी बनाम सास बहू प्रियदर्शिनी औऱ सुदर्शना जी

भिक्षु के जन्मोत्सव पर कविता

 भिक्षु के  जन्मोत्सव पर चंद लकीरों को खिंच भावों की  श्रद्धांजलि दी है। हत प्रभ सी हूं, उनके व्यक्तित्व से अंजुगोलछा का   🙏 *नमन नमन नमन* 🙏 - *जब धरा पर*  *विकल रागिनी बजी* *औऱ हाहाकार स्वरों में* *घोर वेदना थी छाई*  *तब सिंह का स्वप्न माँ को दिया दिखाई ,औऱ भिक्षु जैसे पुत्र की पाई बधाई*   भिक्षु स्वामी  ने सब को धर्म की सच्ची राह दिखाई जब छोटे छोटे जीवों की हिंसा को इस अहिसंक धर्म  में वैध बताया जाता था। एक घड़ी भी शुद्ध साधुपन नहीं पाला जा सकता ये धर्म आचार्य नेफरमाया था तब शुद्ध धर्म का  उदघोष ले   अपने पूरे जीवन कोभिक्षु जी ने धर्म मय बनाया था जैन धर्म के पुनरुद्धारक बन आगम सम्मतजैन धर्म समझाया था। कंटकाकीर्ण थी राह बहुत विरोधियों ने  विरोध का जाल बिछाया था। अपने भी विमुख पराए बन आंखों के आगे आएं पग पग पर घोर निराशा के काले बादल छा जाएं धर्म की जटिल समस्या हैं बढ़ी जटा-सी  कैसी थी? पर भी आगम की झाड़ी धूल हृदय में ऐसी विभूति थी उनकी फिर सुप्त व्यथा का जगना सुख का सपना हो जाना पर कब तक उन्मुक्त पंछीको असत्य के    मेघ रोका करते हैं छिल-छिल कर छाले फोड़े मल-मल कर मृदुल चरण से *हे प्रभ

*ब* की बारहखड़ी

  Topic -::-  *ब* की बारहखड़ी 🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚 *(34) श्री  महानंद गिरी नामों नमः* *श्री आदिनाथ भगवान के चरणों में नमन करते हैं*🙏🧎🏻‍♀️ 👉 *आज का टॉपिक ?* 💎 :~*"ब" की बारहखड़ी!*   *🦢1. जिंदगी भर सत्य बातें कौन नही  सुनता है ❓* *✍️ बहरा ❗* *🦢2. उत्तराध्ययनसूत्र के  11 वें अध्ययन का क्या नाम हैं ❓ ✍️ बहुश्रृत अध्ययन ❗ 🦢3. श्रेणिक राजा ने कौनसा मद किया था ❓ ✍️ बलमद ❗ 🦢4. तीर्थंकर प्रभु का अनंत क्या होता है ❓ ✍️ बलवीर्य ❗ 🦢5. वीरप्रभुजी ने कौनसी प्रथा बंद करवाई ❓ ✍️ बलीप्रथा ❗ 🦢6 साधुजी कितने हाथ कपडा रख सकते है ❓ ✍️ बहोत्तर हाथ ❗ 🦢7. द्वादशावर्त वंदन के टालने के दोष कितने है ❓ ✍️ बत्तीस दोष ❗ 🦢8. नववाड किसकी सुरक्षा के लिये है ❓ ✍️ ब्रह्मचर्य की ❗ 🦢9 शकेन्द्र जी की तरह संघ मे कौनसे मुनि पूजनीय होते है ❓. ✍️ बहुश्रृत मुनिजी ❗ 🦢10. त्रस जीव योनी कितनी है ❓ ✍️ बत्तीस लाख ❗ 🦢11. गणधर आदी महापुरुष किसकी अर्चना करते है ❓ ✍️ ब्रह्मचारी जी की ❗ 🦢12. साधुजी को कौनसा आहार नही लेना चाहिए ❓ ✍️ बलिपाहुडिया ❗ 🦢13. पू. हुक्मीचंदजी म.सा. कौनसा पद प्राप्त करके मोक्ष जायेगे ❓ ✍️ बल

कुल कोड़ी

 एक ही उत्पत्ति स्थान में अनेक प्रकार के जीवों के उत्पन्न होने को कुलकोड़ी कहते हैं। १ करोड ,सत्तानवे लाख,पचास हजार कुलकोडी है l नेरयिक की कुल कोड़ी  25 लाख तिर्यंच की कुल कोड़ी  1 करोड़ साढ़े 34 लाख देव की कुल कोड़ी 26 लाख मनुष्य की कुल कोड़ी  12 लाख 5 स्थावर (एकेंद्रिय) - पृथ्वीकाय, अपकाय, तेऊकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय के कुल कोड़ी 57 लाख (पृथ्वीकाय की कुल कोड़ी 12 लाख अपकाय की कुल कोड़ी  7 लाख तेऊकाय की कुल कोड़ी  3 लाख वायुकाय की कुल कोड़ी  7 लाख वनस्पतिकाय की कुल कोड़ी  28 लाख ) बेइंदिय की कुल कोड़ी  7 लाख तेइंद्रिय की कुल कोड़ी 8 लाख चउरिंद्रिय की कुल कोड़ी  9 लाख (विकलेन्द्रिय की कुल कोड़ी  24 लाख) जलचर(मछली, मगरमच्छ) की कुल कोड़ी साढ़े 12 लाख स्थलचर(शेर, गाय, कुत्ता)  की कुल कोड़ी 10 लाख खेचर (चिड़िया, कबूतर, कोवा) की कुल कोड़ी12 लाख उरपरिसर्प(सभी जाति के सांप) की कुल कोड़ी 10 लाख भुजपरिसर्प( छिपकली, चूहा )  की कुल कोड़ी 9 लाख तिर्यच पंचेंद्रिय की कुल कोड़ी  साढ़े 53 लाख त्रसकाय  की कुल कोड़ी 1 करोड़ साढ़े 40 लाख  पृथ्वीकाय का नाम और संठाण बताइए    इन्द्र/इंदि स्थावरकाय, मसूर के

देव गति पुरी2

पृथ्वी से दस योजन की ऊंचाई पर वैताढ्य पर्वत पर १० योजन चौड़ी और  वैताढ्य पर्वत के बराबर लम्बी दो विद्याधर श्रेणियां हैं। दक्षिण की श्रेणी में गगनवल्लभ आदि ५० नगर हैं और उत्तर श्रेणी में रधानुपुर चक्रवाल आदि ६० नगर हैं। इनमें रोहिणी, प्रज्ञप्ति, गगनगामिनी आदि हजारों विद्याओं के धारक विद्याधर (मनुष्य) रहते हैं। वहां से १० योजन ऊपर इसी प्रकार की दो श्रेणियां और हैं। वे आभियोग्य देवों की हैं। वहां प्रथम देवलोक के इन्द्र शकेन्द्र जी के द्वारपाल–(१) पूर्व दिशा के स्वामी सोम महाराज (२) दक्षिण दिशा के स्वामी यम महाराज (३) पश्चिम दिशा के स्वामी वरुण महाराज और (४) उत्तर दिशा के स्वामी वैश्रमण महाराज के आज्ञापालक और (१) अन्न के रक्षक अन्नजृम्भक (२) पानी के रक्षक पानजृम्मक (३) सुवर्ण आदि धातुओं के रक्षक लयनजृम्भक (४) मकान के रक्षक शयनजृम्भक (५) वस्त्र के रक्षक वस्त्रजृम्भक (६) फलों के रक्षक फलजृम्भक (७) फूलों के रक्षक फूलजृम्भक (८) साथ रहे हुए फलों और फूलों के रक्षक फल-फूलजृम्भक (९) पत्र- भाजी के रक्षक अविपतजृम्भक और (१०) बीज-धान्य के रक्षक बीजजृम्भक इन दस प्रकार के देवों के आवास हैं। ये देव अपने-