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ध्यान दिवस

 पर्युषण का सातवां दिन ~ *ध्यान दिवस* जैन साधना में ध्यान का वही स्थान है, जो शरीर में गर्दन का है ।  ध्यान क्या है ?  *बाहर से भीतर की ओर लौटना । *किसी एक बिंदु पर मन को स्थिर करना । *निर्विचार अन्तर्यात्रा । *प्रत्येक क्षण जागरूक रहना । *गतिमान चित्त की स्थिरता । *भीतर की तटस्थता । *जीवन की पवित्रता । *सुषुप्त-शक्ति का जागरण । *आत्म-समाधि का विश्वास । *अखण्ड निर्मल ऊर्जा । *सत्य की अनुभूति । *ध्यान किसलिए ?* *संकल्प चेतना के विकास के लिए । *चित्त की चंचलता को मिटाने के लिए । *मन के विकारों को पकड़ने के लिए । *मूर्च्छा की तेज गति को रोकने के लिए । *स्वयं का आत्म-साक्षात्कार करने के लिए । *ध्यान का परिणाम ?* *कार्य क्षमता का विस्तार होता है । *चित्त की एकाग्रता प्राप्त होती है। * मानसिक प्रसन्नता की अनुभूति होती है। तटस्थ भावों का विकास होता है। प्रतिक्रिया मुक्त चेतना जागती है।  चित्त समाधि मिलती है। *अप्पणा सच्चमेसेज्जा  मेत्तिं भूएसु  कप्प ए*     स्वयं सत्य खोजें सब के साथ मैत्री करें।        *आहंसु विज्जा चरणं पमोक्खं* ...

जैन सामान्य ज्ञान

 * 🌈 1️⃣  एक गति को ताला किसने लगाया?  🅰1️⃣  जमालीजी ने 🌈2️⃣   दो गती को ताला किसने लगाया?  🅰️2️⃣   समकित में आयुष्य कर्म काबंध करने वाले आराधक जीवोंने 9 वे से 5 अनुत्तर विमान के देवों ने 🌈3️⃣  तीन गति को ताला किसने लगाया?  🅰3️⃣ सर्वार्थ सिद्ध विमान के देवों ने, युगलिक भी एकांत देवगती में ही जाते हैं युगलिक की अपेक्षा3 गति को ताला लगा 🌈4️⃣  चार गति को ताला किसने लगाया?  🅰4️⃣ केवलीयों ने, अरिहंतोने 🌈5️⃣   सिद्ध गति को ताला किसने लगाया?  🅰5️⃣  अभवी जीवोंने  दुसरीअपेक्षा से जंबुस्वामी के बाद मोक्षगतिको भरत क्षेत्र में ताला लगा जंबुस्वामी भी सही है 🌈6️⃣   मृगालोढा़ (मृगापुत्र) का पूर्व भव का नाम क्या था?  🅰6️⃣ ईकाई राठौड़ 🌈7️⃣   उज्झितक कुमार का पुर्वभवमे क्या नाम था?  🅰7️⃣   गोत्रास 🌈8️⃣ सृष्टि का दर्शन कौन से आगमसे होता है?  🅰8️⃣ जीवाजीवाभिगम, प्रज्ञापना 🌈9️⃣पाच पदों का समावेश एक शब्दमे?  🅰9️⃣   गुरु देव 3 गुरु 2 देव=गुरु द...

वाणी संयम

 🧿🧿🧿🧿🧿🧿🧿🧿🧿🧿🧿🧿 *तारीख,11-09-2022*         श्रावक जीवन के 36 कर्तव्य 🧿🧿🧿🧿🧿🧿🧿🧿🧿🧿🧿🧿 2️⃣9️⃣बोलना सीखें - भाषा समिति 📚📚📚📚📚📚📚📚📚📚📚  शब्द शब्द तूं क्या करे, शब्द के हाथ न पाँव ।  एक शब्द औषध करे, एक शब्द करे घाव ।।  इन सब बातों को ध्यान में रखकर ही हमारे ज्ञानियों ने भाषा समिति का उपदेश देते हुए कहा-हितं मित-पथ्यं सत्यम् ।  पहले तोलो फिर बोलो- माँ कहना सम्मान जनक शब्द है जबकि पिता की बहु कहना अर्थ एक ही होते हुए भी निन्दनीय शब्द हैं। ऐसा वचन बोलो जो कि हितकारी हो, पथ्य वाला हो और बोलना ही पड़े तो सत्य वचन हो।  बाकी एक बात उतनी ही सच है जिस सत्य के कारण जीवहिंसादि अनर्थ  होता हो, वह सत्य भी न बोलें क्योंकि वह सत्य भी वर्द्धमान भगवान ने असत्य ही कहा हैं। दूसरे व्रत या महाव्रत में भी इसी कारण सदा सच बोले न कहते हुए कहा झूठ मत बोलो।  न सत्यमपि भाषेत पर पीडाकरं वचः ।  लोकेऽपि श्रूयते यस्मात् कौषिको नरके गतः ।।  कौशिक नामक एक सन्यासी हो गया। वह सारी दुनिया में सत्य रूप में प्रसिद्ध था।  एक दिन...

बीबी पर चुटकी

 इश्क के चर्चे बहुत हैं इश्क में मरते बहुत हैं हमने भी इश्क किया है लेकिन इसमें खर्चे बहुत हैं  🌹🌹🌹🌹🌹🌹 बागों में फूल खिलते रहेंगे रात में दीप जलते रहेंगे खुदा आपको सारी खुशियां दे बाकी की तकलीफ तो हम देते रहेंगे💐💐💐💐💐 छूना मना है  हाई वोल्टेज करंट हैं वह बात बात पर हो जाती रॉकेट हैं इनकम से अधिक टैक्स जो मुझसे वसूलती  वाइफ मेरी वाइफ नहीं गवर्नमेंट है।  मेंटेनेंस अधिक इन्वेस्टमेंट हैं और ब्यूटी पार्लर का धंधा इससे है बरकरार  जितना है डेंट उससे अधिक स्प्रे पेंट है 💐💐💐💐💐💐 एक सैरेमनी में होती है जूता छिपाई की  जो शादी का मतलब समझाती है । साली चुरा कर ले जाती है 500 के जूते 5000 पर पड़ते हैं महंगे भाव पडते हैं और जिंदगी भर बिना भाव पड़ते है 💐💐💐💐 पत्नी जीने नहीं देती करवा चौथ मरने नहीं देता ,💐💐💐💐💐💐 आसमान में जितने तारे हैं  समंदर में जितने किनारे हैं  आंखों में जितने इशारे हैं  उतने ही स्क्रू ढीले तुम्हारे हैं 💐💐💐💐 शादी के पहले दिन सुनिए जी- चांद कहां है ? चांद मुझसे खुद पूछ रहा है चांद कहाँ है ? शादी के 1 महीने ब...

लोक वर्णन ➡️गतांक से आगे

  लोक वर्णन ➡️गतांक से आगे अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी काल – इस तीन लोक के मध्य क्षेत्र में स्थित अढ़ाई द्वीप के भरत-ऐरावत के 10 क्षेत्रों की धुरी पर ही इस संसार का काल-चक्र हमेशा घूमता रहता है। जब काल-चक्र उत्तम से निम्न काल की तरफ जाता है तो अवसर्पिणी काल कहलाता है लेकिन जब यह नीचे से ऊपर की तरफ जाता है तो उत्सर्पिणी काल कहलाता है। साथ ही 5 भरत, 5 ऐरावत, 5 महाविदेह के 15 कर्मभूमि क्षेत्रों में ही तीर्थंकर प्रभु जन्म लेते हैं। एक एक अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी में 24-24 तीर्थंकर एक-एक भरत ऐरावत क्षेत्र में होते हैं। 10 ही भरत-ऐरावत क्षेत्रों में 24-24 तीर्थंकर ऐसे कुल 240 तीर्थंकर समकालीन होते हैं। महाविदेह क्षेत्र में समय का चक्र चलता अवश्य है। वहां रात के बाद दिन और फिर रात होती है परन्तु अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी का काल-चक्र एक सा ही रहता हुआ स्थिर रहता है अतः वहां पर अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी जैसा कुछ भी नहीं होता है। महाविदेह क्षेत्र का समय सदाकाल एक सा ही रहता है और वहां सदैव चतुर्थ आरे के प्रारम्भ काल के समान समय रहता है। अवसर्पिणी के छः काल का समय इस तरह का होता है - 1) पहला काल चार कोड़ा-कोड़ी सागर...