वाणी संयम

 🧿🧿🧿🧿🧿🧿🧿🧿🧿🧿🧿🧿

*तारीख,11-09-2022*

        श्रावक जीवन के 36 कर्तव्य

🧿🧿🧿🧿🧿🧿🧿🧿🧿🧿🧿🧿

2️⃣9️⃣बोलना सीखें - भाषा समिति

📚📚📚📚📚📚📚📚📚📚📚 


शब्द शब्द तूं क्या करे, शब्द के हाथ न पाँव । 

एक शब्द औषध करे, एक शब्द करे घाव ।। 


इन सब बातों को ध्यान में रखकर ही हमारे ज्ञानियों ने भाषा समिति का उपदेश देते हुए कहा-हितं मित-पथ्यं सत्यम् । 


पहले तोलो फिर बोलो- माँ कहना सम्मान जनक शब्द है जबकि पिता की बहु कहना अर्थ एक ही होते हुए भी निन्दनीय शब्द हैं। ऐसा वचन बोलो जो कि हितकारी हो, पथ्य वाला हो और बोलना ही पड़े तो सत्य वचन हो। 


बाकी एक बात उतनी ही सच है जिस सत्य के कारण जीवहिंसादि अनर्थ  होता हो, वह सत्य भी न बोलें क्योंकि वह सत्य भी वर्द्धमान भगवान ने असत्य ही कहा हैं। दूसरे व्रत या महाव्रत में भी इसी कारण सदा सच बोले न कहते हुए कहा झूठ मत बोलो। 


न सत्यमपि भाषेत पर पीडाकरं वचः । 

लोकेऽपि श्रूयते यस्मात् कौषिको नरके गतः ।। 


कौशिक नामक एक सन्यासी हो गया। वह सारी दुनिया में सत्य रूप में प्रसिद्ध था। 


एक दिन वह अपने आश्रम में ही था तब अचानक वहाँ से एक हिरनों का टोला - झुण्ड गुजरा एवं सामने वाली झाड़ी में जाकर छुप गया। इतने में वहाँ  शिकारी आए एवं कौशिक सन्यासी से पूछा 'आप तो सत्यवादी हो अतः जल्दी बताओ कि वह हिरन का झुण्ड किस तरफ गया? कौशिक ने सोचा-यदि मैं ऐसा कहूँ कि मुझे मालूम नहीं हैं तो वह झूठ होगा, असत्य होगा। जब ये लोग सत्य जानना चाहते हैं तो मुझे बता देना चाहिए। 


कौशिक सन्यासी ने कहा- 'उस सामने वाली झाड़ी में छुपा हैं हिरण का टोला।' 


शिकारी झाड़ी के पास गए। चारों ओर से झाड़ी को घेर ली एवं शिकार प्रारंभ किया। हिरन जान बचाने भागे किंतु एक भी न बचा। शिकारियों ने सभी हिरन मार डाले। 


सत्यवादी कौशिक उन हिरनों की हिंसा का निमित्त बना और सत्यवादी होने पर भी नरक में गया। 


यही कारण है कि 'सत्यमपि न भाषेत' यदि पर को पीड़ा होती हो तो ऐसा सत्य भी न बोलें। वहाँ मौन का आश्रय लें। 


एक जगह पढ़ा था 'वाणी का श्रेष्ठ उपयोग मौन हैं।' शायद इसी संदर्भ में होगा। 


कांच के महल में नीचे पानी समझकर दुर्योधन कपड़े ऊंचे कर चलते देख द्रौपदी ने टोन में कहा 'अंधे के बेटे अंधे ही होते हैं' दुर्योधन के पिता जरूर अंधे थे पर दुर्योधन नहीं उक्त वचनों द्वारा महाभारत का जन्म हुआ। एक सूरदास अंधा रोड़ पर चल रहा था राजा की सवारी उधर से निकली सर्वप्रथम सेनापति आगे-आगे निकले ऐ अन्धे रास्ते से हट जा हाँ सेनापति जी फिर पीछे राजा पधारे उन्होंने कहा सूरदास जी थोड़े साइड में हट जाइए हाँ राजाजी सूरदास ने कहा इतने में मंत्री जी आये पूछा प्रज्ञाचक्षु आगे कौन-कौन गये हैं। कहा मंत्री जी सर्वप्रथम सेनापति फिर राजाजी अपने सेवकों के साथ गये। आपने कैसे पहचाना, भाषा के आधार पर उच्च कोटि के व्यक्ति की भाषा भी उच्च होती हैं हृदय आह्लादित होता है नीच हल्के व्यक्ति की भाषा ही उसका परिचय देती हैं। 


अमेरिका के एक श्रीमंत मृत्यु के पूर्व बिल (वसियत) में लिखा था कि मेरी मृत्यु के बाद मेरी पत्नी सभी अखबारों में यह छपावे तो मेरी सभी संपत्ति उसे प्रदान की जावे- 'मैंने अपनी जीभ नियंत्रण में रखी होती तो मेरे पति दस वर्ष अधिक जीये होते।' इसी से आप समझ सकते हैं कि भाषा किस प्रकार की होनी चाहिए। 


'एक दिन तो दूर की बात है एक बार भी मेरी पत्नी मेरे से मिठे शब्दों से बोली होती तो उसके स्मरण मात्र से भी मैं जीवन भर आनन्द प्राप्त कर सकता था। 


- टालस्टोय 


मौन रखना भी आसान हैं। पर जरूरत बिना का नहीं बोलना बड़ा 


कठिन हैं। 


कल का जबाब : योग 


आज का सवाल : वाणी का श्रेष्ठ उपयोग क्या है ? 


     ✒✒  संकलनकर्ता :

शैलेन्द्र कुमार जैन

 *ग्रुप एडमिन कल्याण मित्र*

 *जैन उत्तम पी कानुंगा*

 *अहमदाबाद*

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भगवान पार्श्वनाथ प्रश्नोत्तरी

जैन प्रश्नोत्तरी

सतियाँ जी 16