समणी विदाई 2

 बहारों के मौसम अब पतझड़ ले आयेंगे।

जो आप चले जायेंगे 2


आये संग बहार लिये, जा रहे उसे ले साथ कहाँ?

पूछ रहा यह भवन ‘कमल जी’ बोलो मेरा गुलजार कहाँ?

कल ये दरों दीवारों  पुछेगी

वो मधुर वाणी  कँहा ग

वो भक्तमर के श्लोक कँहा गए

कैसे बताऊंगी

की निर्मोही नेहा तोड़ चले



आप नेहा तोड़कर बने वैरागी

आपसे ही  नेहा लगा बैढे

हम है ऐसे निपट अज्ञानी

कुछ औऱ  दिन रुक जाते

मोह तोड़ने के सबक ही सिखा जाते।

जमीन बन ही नहीं पाई

इन 6 दिनों में तो

 कैसे ज्ञान बेल लग पायेगी


ज्ञान से महकी थी फिजा

अब फिर भौतिक  गलियारों में 

गुम जाएगी


पद्म ,पंकज पुण्य पुष्कर सी

कमल जी की ,सुवासितमधुर कण्ठ कोकिला सुमनजी

मधुर भाषिणी,सुमधुर भाषिणी

ईश्वर की रहमत सी

करुणा जी

 विशेष

सानिध्य आपका और मिलता

तो भी जानते है अशेष तो नहीं होती कामना

पर विदाई का कैसे करे सामना

 जंहा लाहो तहा लोहो 

जैसे जैसे लाभ होता हैं लोभ बढता जाता कँहा इनकार करते हम।

 पर इसको समित कैसे

करें ये समझा  कर जाते

बहुत कुछ बताकर जाते 

पर जाने का मन बना ही लिया

हैं तो क्या कहें हम

लौट के फिर इन वीथिकाओ

में आना 

एक बार फिर इस फुलवारी

को  वासव-सलिल करते जाना।

यहीं आत्म शुभकामनाएं हमारी

जिस पथ पर बढ़े हो बटोही

बढते चले जाना निज-पर पे कर कल्याण उध्र्वारोही बन

निज आत्मा को तारणा

आगे

एकभवतारि बन मोक्ष मार्ग पग धरना

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