मुक्ति की क्षमता

छोड़ दे आग्रह, विग्रह, शक्ति व आसक्ति को
छोड़ के, मोह माया लोभ, प्राप्त कर  निवर्ति को
विवेचना छोड शुभ ,अशुभ योग की
चेतना जागृत कर,अपने भीतर की
इंद्रिय ,विवेक,संवेदनशीलताकी,
ज्ञान ,दर्शन ,चारित्र की।
बना मन को बली - औऱ यतना वान
साधनीहोगी ,तन  की बिगड़ी तान
समभावी चेहरे पे रहती ,सदा निश्छल मुस्कान 
सुख दुःख की जीवन में बस एक हो तान 
पृष्ठ ऋजु लचीली इतनी कर ले
कि
जिसमें शक्ति ,श्रम का नियोजन होता हैं,
 जो भेद विज्ञान का जानता है,
जो निर्जरा को मानता हैं।
जो सापेक्ष चिंतन रखता हैं
निर्भय हो जीता है, बस उसीका
भव भृमण, से निस्तार  होता है

जिसकी इच्छायें संयमित होती है,

बस उसी में ही मुक्त होने की क्षमता होती हैं।



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