रिश्ते
रिश्ते
रिश्तों के पैमाने ,आदर्श वाक्य, परिभाषाऐ अलग है
पर व्यवहारिक जिंदगी की कसौटी एकदम विलग है रिश्ते दिल के मिलने से नहीं ,आज कहते है सब यही
आर्थिक मानकों के मिलने से रहते है सही
रिश्ते रिसते है,भावातिरेक उन्माद में
जब गरीब दोस्त ,बचपन की दोस्ती केउत्साह में
मिल जाता हैं ,अपने अमीर बने दोस्त से
तब निरीह सा अपमान के घूँट पी सोच लेता है
दोस्ती ख़र्च होगई ,वस्तु विनिमय के बाजार में
दोस्ती बराबर वालों के साथ होती हैं
और उन्ही के साथ निभती है
कई अनुभवदारों ने समझाया था
पर उस वक़्त कहाँ समझ पाया था
वो तो सुदामा -कृष्ण का पाढ़ पढ़आया था।
दोस्ती निर्मल ,पाक निस्वार्थ की बात लिखने वाले
सुनो, इस हकीकत से वाकिफ हो जाओगे
तो संभल जाओगे,
आज ,विभीषण ही मिलेंगे
कोई कृष्ण आज दोस्त की खातिर राजा से सारथी नही बनता ,ना ही कोई कर्ण दोस्त पे जान लुटाते है सोच समझ कर रहना ,चिकनी मीठी तलवार से
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