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बच्चे परबिटू ,पल्लवी पर कविता

 एक औरत को मातृत्व सुख देते है ,बच्चे, एक औरत को माँ की गौरवशाली पदवी देते है, बच्चे जिंदगी की नियामत बच्चे ही तो है  वृद्धावस्था  की लाठी बच्चे ही तो है बच्चों से ही  तो माँ  होती है वजूद हमारा तुम से ही है बच्चों आबाद रहो  हमेशा हमारे साथ भी  हमारे  बाद भी    कभी जिंदगी में   तुम्हारी ,ख़त्म न हो  सिलसिला खुशी का प्यार का । वो लम्हा कभी  बेजार नहीं होता जिस लम्हे में शामिल हो तुम मेरीदुनिया को रोशन करने के लिए  चिराग  चाहा मैंने रब ने जिसेअदा फ़रमाया  वो हो तुम भले ही मेरी गोद तुम्हारे लिए छोटी है लेकिन मेरे दिल में समाए हो पूरे तुम मेरी जिंदगी  में सबसे ज्यादा बेशकीमती हो। तुम हर दिन  हमारे चेहरे पर मुस्कान  और हमारे दिल को खुशी देते हो तुम तुम्हें होंठों की हंसी मुबारक हो, तुम्हें जन्मदिन की खुशी मुबारक हो, ...  तेरा नाम लिखूं नीले आसमान पे, ...  विपुल यह जन्मदिन मुबारक हो तुम्हारा, ...  निकली दिल से ये दुआ हमारी, ...  दुनिया में जहां भी रहो,  खुशियों से भर जाए जीवन ये तुम्हारा, ..तुम्हें,.  औऱ मिल जाए सफलता की एक कुँजी चतुर चंचल चपल हो तुम लब पर प्यारी मुस्कान हरदम रखतेहो महफ़िल सी स

50 वी शादी की सालगिरह

*प* द चाप  कहाँ सुनी   कब वर्ष बीत गए वर्षों में *चा* चाहत के रंग औऱ खिले उत्तरोत्तर मधु मासों में *स* संयुक्ताक्षर  से जिंदगी में    भर दिये सुमधुर सबंधो के छंद *वी* विश्वास ,वचन बद्धता वरियता इक दूजे के प्रति  हर हाल में सदारहे सँग *सा* साझेदारी  समझदारी से जो संजोया घर परिवार *ल* लबालब प्रेम का स्त्रोत  बहता  जाए युगो तक स्नेह से सरोबार ********* उत्खनित स्वर्ण से कुंदन बनाना   एक षोडशीऔऱ युवान से स्वर्ण जयंती  की यात्रा  औऱ इस रूप मे निखर आना कुछ  आसान नहीं होता कई परीक्षा से गुजरा आज कुंदन बन निखरा है  50 सिर्फ एक नंबर नहीं है बल्कि यह ढेर सारी यादों, मुश्किलों और प्यार का  जखीरा है। नाजुक-सी रिश्ते की डोर, एक दूजे की थामे हाथ, हुए पूरे कुछ सपने, रह गए कुछ अधूरे, कम न हुआ जो आप दोनों का प्यार, आती रहे यूं ही आपके जीवन में बहार नीले गगन से दिनकर भी पूछे कैसी हैं फ़िज़ा  नीले गगन में मेंघों की गर्जन खुशियाँ बिखेरे तबस्सुम  मुर्तजा ( उत्तम, अनुकूल, मनभावन, लोकप्रिय, रोचक, मनोवांछित, पसंदीदा) यही शुभकामनाएंआज इस मुबारक दिन पर है जीवन की नौका मचलती रहे प्रेम की माँझी में नित संवरती रहे

अशोक जी की तपस्या पर कविता

 *अशोक जी ने किया अपनी शक्ति का  आभास* *धर्म का किया अद्भुत विकास* *जता दिया तप् ही जीवन का स्रोत है*  *वही नवजीवन की गलियों की पावक प्रकाशित ज्योत हैं*  *तभी तो तप् से स्वयं के जीवन का किया स्वयं ने कितना सात्विक श्रृंगार है*  *इस अनुपम,श्रृंगार की  सराहना बारम्बार है* *आओ देखे ये  सम्यक्त्व  का अनोखा श्रृंगार*⤵️ *तेरह द्रव्य, महा विग्रह का त्याग कर तन  निष्कलुष  निर्जर किया*  *पूर्ण मौन  नवकारसी तीन मौन सामयिक  साबुन से कर्म मेल को छुड़ा संवर का आह्वान किया*  *पूर्ण सचित,जमीन कंद ब्रह्मचर्य व्रत से तन चरित्र को दीप्त किया*  *12 व्रत के उज्जवल वसन तन पर धार लिए है* *औऱ भी कई छोटे बड़े आभूषण से  सजा लिये है* *आपके   इस तजोमय ओजतप की*   *देव भी जय जयकार किए हैं* *औऱ देखो* *तिस पर*  *स्वंय -  ही स्वयं के लिए  पिरो ली-1 से 11 उपवास रत्नावली माला* *जिसका पेंडेंट   बना15 उपवास का उजाला*  *और अभी तक आत्म बल से देव गुरु व धर्म की कृपा से वर्षी तप की कठिन तपस्या से*  *फैलाई सुवास हैं*,  *औऱ तप की निरन्तरता  की जगाई स्वंय के भीतर*  *अदभुत प्यास है*, *अंगद पाँव रख दिया  मोक्ष मार्ग पर*  *अनुत्तर