अशोक जी की तपस्या पर कविता
*अशोक जी ने किया अपनी शक्ति का आभास*
*धर्म का किया अद्भुत विकास*
*जता दिया तप् ही जीवन का स्रोत है*
*वही नवजीवन की गलियों की पावक प्रकाशित ज्योत हैं*
*तभी तो तप् से स्वयं के जीवन का किया स्वयं ने कितना सात्विक श्रृंगार है*
*इस अनुपम,श्रृंगार की सराहना बारम्बार है*
*आओ देखे ये सम्यक्त्व का अनोखा श्रृंगार*⤵️
*तेरह द्रव्य, महा विग्रह का त्याग कर तन निष्कलुष निर्जर किया*
*पूर्ण मौन नवकारसी तीन मौन सामयिक साबुन से कर्म मेल को छुड़ा संवर का आह्वान किया*
*पूर्ण सचित,जमीन कंद ब्रह्मचर्य व्रत से तन चरित्र को दीप्त किया*
*12 व्रत के उज्जवल वसन तन पर धार लिए है*
*औऱ भी कई छोटे बड़े आभूषण से सजा लिये है*
*आपके इस तजोमय ओजतप की*
*देव भी जय जयकार किए हैं* *औऱ देखो*
*तिस पर*
*स्वंय - ही स्वयं के लिए पिरो ली-1 से 11 उपवास रत्नावली माला*
*जिसका पेंडेंट बना15 उपवास का उजाला*
*और अभी तक आत्म बल से देव गुरु व धर्म की कृपा से वर्षी तप की कठिन तपस्या से*
*फैलाई सुवास हैं*,
*औऱ तप की निरन्तरता की जगाई स्वंय के भीतर*
*अदभुत प्यास है*,
*अंगद पाँव रख दिया मोक्ष मार्ग पर*
*अनुत्तर विमान से मोक्ष मार्ग पायेंगे*
*मनुष्य जीवन को टॉस्क बना लिया*
*पल्योपम सागरोपम का देव यान प्रबुद्ध किया*
*धन्य धन्य तप की जो अलख जगाई हैं*
*जैसे आप्त विष भौतिक लोक*
*को दो घूंटअमृत पिलाई है*
*सतत मार्ग पर निरोगी काया से*
*निर्बाध चलते रहो।*
*तत्व बोध को गहते चलो*
*हे ,तपस्वी*
*अनुमोदन के साथ साथ शुभ काँक्षा यही हमारी-*
*समकित धारण करे*
*कर्मो का आप क्षय करे*
*हाथों में आपके सुरभित तपचंदन है*
*जोड़े कर, से सब कर रहे वंदन हैं*
*इक्षु रस से मधुरिमा लिए तरल सहज प्रवाहित सा द्रव -तरल सा बहते चलो*
*तप की क्लिष्ट*
*राह जो चुनी अथक चलते रहो*
*तप पथिक अनुमोदना हमारी*
*लेते रहो*
*यहीसदा दुआ हैं*
*अशोक नाम अनुरूप शोक तुमसे दूर रहे* ,
*जो भी निकट तुम्हारे उनका भी*
*क्लेश हरे*
*तप शिखर पर केतन बन लहराओ*
*औऱ एक धन्ना अणगार सी ख्याति पाओ*
*फिर फिर अनुमोदना लेते जाओ*
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