हादसे ओर जिंदगी

 कभी हादसों के बीच  से कभी

मुस्कान ले कर आंख मिचौली खेल भी आई 

तो क्या  हादसों ने मुझे ढूंढ़ ही

लेते है

बहुत सहज कर रखे हैं हादसे

दुनिया की नजर से बचा कर

पर अंदर ही अंदर हुक सी उठती हैं उसका क्या करूं

जिंदगी निर्णय लेने में ही गुजर गई 

पर बहुत समझदारी से लिये भी बहुत से निर्णय

पर समय की मार रोक न पाई

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