पांच क्या क्या होते है

 पाँच क्या-क्या होते हैं -



*🙏 स्वाध्याय पाँच के अंक से 🙏*

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*29-04-21        2️⃣1️⃣*


*प्रस्तुति –* सुरेश चन्द्र बोरदिया भीलवाड़ा


*126. पाँच पापों में प्रसिद्ध है –*


1. हिंसा में - धनश्री,


2. झूठ में    –    *सत्यघोष,*


3. चोरी में    –     *तापस,*


4. कुशील में   –   *यमपाल,*


5. परिग्रह में   –  *श्मश्रु नवनीत ब्राम्हण*


*127. पांच मिथ्यात्व –*


1.विपरीत मिथ्यात्व ,


2.एकान्त मिथ्यात्व , 


3.विनय मिथ्यात्व  , 


4.संशय मिथ्यात्व   , 


5.अज्ञान मिथ्यात्व ।


*128. प्राकृत भाषा के पाँच भेद –*


1.मागधी, 


2.अर्धमागधी, 


3.शौरसैनी, 


4.पैशाची, 


5.चूलिका।


*129. पाँच समझने योग्य बातें –*

1.मिथ्यात्व का  वमन,


2.सम्यक्त्व का उत्पन्न,


3.कषायों का शमन,


4.इन्द्रियों का दमन,

 

5.आत्मानुभव।


*130. पाँच त्याग्ने योग्य बातें –*


 *1. ककार–* 


1.कीर्ति,   2.कंचन,   3. कामिनी,


 4. कुटुम्ब,       5. करिश्मा।


*2. पकार–*


1. प्रदर्शन,     2. प्रतिष्ठा,   3. प्रतिस्पर्धा,

 

4. पाप,        5.पैशून्य। 


*3. मकार –*


1. मंच,      2. माला,   3. माईक,


4. मान,     5.माया।


*131. पाँच ग्रहण करने योग्य बातें–*


1. सम्यक्त्व,      2. श्रुत,    3. समता, 


4. शान्ति,      5. सुख।


.......... *क्रमशः .........

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पांच होते हैं -


💐💐*पांच होते हैं*💐💐💐

 - 1. व्रत पाँच - 1. अहिंसा, 2. सत्य, 3. अचौर्य, 4. ब्रम्हचर्य, 5. अपरिग्रह ।


2. पाप पाँच - 1. हिंसा, 2. झूठ, 3. चोरी, 4. कुशील 5. परिग्रह ।


3. शरीर पाँच - 1. औदारिक, 2. वैक्रियक, 3. आहारक 4. तैजस, 5. कार्मण


4. भाव पाँच - 1. औपशमिक भाव, 2. क्षायिक भाव, 3. क्षायोपशमिक भाव, 4. औदायिक भाव, 5. पारिणामिक भाव ।


5. समिति पांच - 1. ईर्या समिति, 2. भाषा समिति,


3. एषणा समिति, 4. आदाननिक्षेपण समिति


5. प्रतिष्ठापन (व्युत्सर्ग) समिति।


6. इन्द्रिय पांच - 1. स्पर्शन, 2. रसना, 3. घ्राण, 4. चक्षु 5.chufi


7. आचार पांच - 1. दर्शनाचार, 2. ज्ञानाचार, 3. चा रित्रचार, 4. तपाचार, 5. वीर्याचार |


8. उदम्बरुल पांच - 1. बड़, 2. पीपल, 3. पाकर, 4. गूलर 5. कठूमर ।


9. मिथ्यात्व पाँच - 1. विपरीत, 2. एकान्त, 3. संशय 4. विनय, 5. अज्ञान।


10. ज्ञान पाँच - 1. मतिज्ञान, 2. श्रुतज्ञान, 3. अवधिज्ञान, 4.मन:पर्ययज्ञान, 5.केवलज्ञान ।

11. परमेष्ठी पाँच - 1. अरहन्त, 2. सिद्ध, 3. आचार्य 4. उपाध्याय, 5. साधु ।


12. अन्तराय कर्म के पाँच भेद- 1. दान अन्तराय, 2.लाभ अन्तराय, 3.भोग अन्तराय, 4. उपभोग अन्तराय, 5. वीर्य अन्तराय ।


13. लब्धि के पांच प्रकार- 1. क्षयोपशम लब्धि, 2.विशुद्ध लब्धि, 3.देशना लब्धि, 4. प्रायोग्य लब्धि, 5.


कारण लब्धि


14. अनुत्तर विमान पाँच - 1. विजय, 2. वैजयन्त 3. जयन्त, 4. अपराजित, 5. सर्वार्थसिद्धि।


15. ज्योतिषी देव पाँच - 1. सूर्य, 2. चन्द्रमा, 3. ग्रह 4. नक्षत्र, 5. तारे ।


16. चौदहवें गुणस्थान का काल - 1. अ, 2. अ. 3. उ,


4.ऋ, 5.लृ इन पाँच हस्व स्वरों के उच्चारण काल मात्र ।


17. बाल ब्रम्हचारी तीर्थंकर पाँच हैं (पंचबालयति) - 1. वासुपूज्य, 2. मल्लिनाथ, 3. नेमिनाथ, 4. पार्श्वनाथ, 5. महावीर ।


18. मेरू पाँच - 1. सुदर्शन, 2. विजय, 3. अचल, 4. मन्दर, 5. विद्युन्माली ।


19. बन्ध के पाँच कारण - 1. मिथ्यादर्शन, 2. अविरति, 3. प्रमाद, 4. कषाय, 5. योग ।


20. मुनि के पांच प्रकार- 1. पुलाक, 2. बकुश, 3. कुशील, 4. निर्ग्रथ, 5. स्नातक ।


21. अहिंसा व्रत के पाँच अतिचार - 1. बन्ध, 2. वध, 3. छेदन, 4. अतिभारारोपण, 5. अन्नपान निरोध ।


22. सत्य व्रत के पाँच अतिचार - 1. मिथ्योपदेश, 2.रहोभ्याख्यान, 3. कूटलेखक्रिया, 4. न्यासापहार, 5. साकार मंत्र भेद |


23. अचौर्य व्रत के पाँच अतिचार - 1. स्तेनप्रयोग, 2. तदाहृतादान, 3.विरुद्धराज्यातिक्रम. 4. महीना अधिक


मान सन्मान, 5. प्रतिरूपक व्यवहार ।


24. ब्रह्मचर्य व्रत के पाँच अतिचार - 1. परविवाहकरण, 2. परगृहीतेत्वरिकागमन, 3. अपरिगृहीत्व रिकागमन, 4. अनंगक रीड़ा, 5. कामतीव्राभिनिवेश।


25. अपरिग्रह व्रत के पाँच अतिचार - 1. क्षेत्र - वास्तु प्रमाणात अतिक्रमण, 2. हिरण्य- सुवर्ण प्रमाणातिक्रम, 3.धन-धान्य प्रमाणातिक्रम, 4. दासी - दास प्रमाणातिक्रम, 5. कुप्य प्रमाणातिक्रम।


26. स्वाध्याय के पाँच भेद - 1. वाचना, 2. पृच्छना, 3. अनुप्रेक्षा, 4. आम्नाय, 5. धर्मोपदेश ।


27. समाधि मरण के पाँच अतिचार - 1. जीवितासंशा, 2.मरणासंशा, 3.मित्रानुराग, 4. सुखानुबन्ध, 5. निदान ।


28. अहिंसा व्रत की भावना पाँच - 1. वचन गुप्ति, 2. मनोगुप्ति, 3. ईर्या समिति, 4. आदाननिक्षेपण समिति, 5. आलोकित पान भोजन।


29. सत्य व्रत की भावना पाँच - 1. क्रोध का त्याग, 2. लोभ का त्याग, 3. भय का त्याग, 4. हास्य का त्याग, 5. अनुविचि भाषण ।


30. अचौर्य व्रत की भावना पाँच - 1. खाली घर में रहना, 2. किसी के छोड़े हुए स्थान में रहना, 3. अन्य को3. अन्य को अपने ठहरे स्थान में आने से रोकना नहीं, 4. शास्त्र विहित भिक्षा की विधि में न्यूनाधिक नहीं करना, 5. साधर्मी भाइयों से विसंवाद नहीं करना ।


31. ब्रह्मचर्य व्रत की भावना पाँच - 1. स्त्रियों में प्रीति उत्पन्न कराने वाली कथाओं को सुनने का त्याग। 2. स्त्रियों के मनोहर अंगों को रागसहित देखने का त्याग। 3.पूर्व काल में किये हुए विषय भोगों को स्मरण करने का त्याग। 4. काम उद्दीपन करने वाले पुष्टिकर व इन्द्रियों की लालसा उत्पन्न करने वाले रसों का त्याग। 5. शरीर के श्रृंगार युक्त करने का त्याग।


32. अपरिग्रह व्रत की भावना पाँच - 1. स्पर्शन, 2. रसना, 3. घ्राण, 4. चक्षु, 5. कर्ण इन्द्रियों के स्पर्श आदि इष्ट-अनिष्ट विषयों में रागद्वेष के भाव का त्याग।


33. समाधि मरण के पाँच प्रकार - 1. बाल-बाल मरण, 2. बाल मरण, 3. बाल पण्डित मरण, 4. पण्डित मरण, 5. पण्डित - पण्डित मरण।


34. दर्शन मोहनीय बन्ध के पाँच कारण - 1. केवली का अवर्णवाद, 2. शास्त्र का अवर्णवाद, 3. संघ का अवर्णवाद,4. धर्म का अवर्णवाद, 5. देवों का अवर्णवाद।


35. सम्यग्दर्शन के पाँच अतिचार - 1. शंका, 2. कांक्षा, 3.विचिकित्सा, 4.अन्यदृष्टि प्रशंसा, 5. अन्यदृष्टिसंस तव ।


36. दिग्व्रत के पाँच अतिचार - 1. ऊर्ध्वव्यतिक्रम, 2. अधोव्यतिक्रम, 3. तिर्यग्व्यतिकरम, 4. क्षेत्रवृद्धि, 5. स्मृत्यन्तराधान।


37. देशव्रत के पाँच अतिचार- 1. आनयन, 2. प्रेष्यप्रयोग, 3. शब्दानुपात, 4. रूपानुपात, 5. पु गलक्षेप।


38. अनर्थदण्डत्याग व्रत के पाँच अतिचार - 1. कन्दर्प, 2. कौत्कुच्य, 3. मौखर्य 4.असमीक्ष्याधिक रण,5.उपभोगपरिभोगानर्थक्य ।


39. सामायिक व्रत के पाँच अतिचार - 1. मनोदुःप्रणिधा न, 2. वाग्दुःप्रणिधान, 3. कायदुः प्रणिधान, 4. अनादर, 5. स्मृत्यनुपस्थान।


40. प्रोषधोपवास व्रत के पाँच अतिचार - 1. अप्रत्यवेक्षि ताप्रमार्जितोत्सर्ग,2.अप्रत्यवेक्षिताप्रमार्जतादान, 3. अप्रत्यवेक्षिताप्रमार्जित संस्तरोपक्रमण, 4. अनादर, 5. स्मृत्युपस्थान ।


41. उपभोग परिभोग परिमाण व्रत के पाँच अतिचार- 1. सचित्ताहार, 2. सचित्त सम्बन्धाहार, 3. सचित्त, 4. अभिषवाहार, 5.दु: पक्वाहार ।


- 42. परोक्ष मुक्ति ज्ञान के पाँच भेद - 1. स्मृति, 2. प्रत्यभिज्ञान, 3. तर्क, 4. अनुमान, 5. आगम ।


43. अतिथि संविभाग व्रत के पाँच अतिचार - 1. सचित्तनिक्षेप, 2. सचित्तापिधान, 3. परव्यपदेश, 4. मात्सर्य, 5. कालातिक्रमण।


44. विनय पाँच - 1. दर्शन विनय, 2. ज्ञान विनय,


3. चारित्र विनय, 4. तप विनय, 5. उपचार विनय ।


45. अस्तिकाय पाँच - 1. जीव, 2. पुद्गल, 3. धर्म, 4. अधर्म, 5. आकाश ।


46. रस पाँच- 1.खट्टा, 2. मीठा, 3. कड़वा, 4. कषेला, 5. चरपरा ।


47. वर्ण पाँच - 1. काला, 2. पीला, 3. नीला, 4. सफेद,


5. लाल ।


48. भूत पाँच - 1. पृथ्वी, 2. जल, 3. अग्नि, 4. वायु, 5. आकाश । (अन्य मतियों के अनुसार)


49. परावर्तन पाँच - 1. द्रव्य, 2. क्षेत्र, 3. काल, 4. भव,


5. भाव ।


50. दान पाँच - 1. दयादत्ति, 2 . पात्रदत्ति, 3. समदत्ति, 4.अन्वयदत्ति, 5. सकलदत्ति।


51. पाण्डव पाँच - 1. युधिष्ठिर, 2. भीम, 3. अर्जुन, 4. नकुल, 5. सहदेव ।


52. तीर्थंकर महावीर के बाद पाँच श्रुत केवली - 1. विश्वनन्दी, 2. नन्दीमित्र, 3. अपराजिता, 4. गोवर्धन, 5. भद्रबाहु ।


53. तीर्थंकर महावीर के बाद पाँच महामुनि - 1. नक्षत्र, 2. जयपाल, 3. पाण्डु, 4. ध्रुवसेन, 5. कंसाचार्य दशांग विद्या के पारगामी |


54. तीर्थंकरों के पाँच कल्याणक - 1. गर्भ, 2. जन्म, 3. तप, 4. ज्ञान, 5. मोक्ष ।


55. कर्म इन्द्रियाँ पाँच - 1. पैर, 2. हाथ, 3. वचन, 4. गुदा, 5. उपस्था ।


56. ओम (ॐ) में पंच परमेष्ठी सूचक पाँच अक्षर हैं - 1. अ, 2. अ, 3. आ, 4. उ, 5. म।


57. अ, सि, आ, उ, सा में पाँच अक्षर पंच परमेष्ठी सूचक हैं।


58. अभक्ष्य के पाँच भेद - 1. बहुस्थावर हिंसाकारक, 2. त्रसहिंसाकारक, 3. प्रमादकारक (नशाकारक), 4. अनिष्टकारक, 5. अनुपसेव्य ।


59. नाम कर्म की जाति अथवा शरीर प्रकृतियाँ पाँच - 1. एकेन्द्रिय, 2. द्वीन्द्रिय, 3. इन्द्रिय, 4. चतुरिन्द्रिय, 5. पंचेन्द्रिय।


60. नाम कर्म की बन्धन प्रकृतियाँ पाँच - 1. औदारिक बंधान, 2.वैक्रियिक बंधान, 3. आहारक बंधान, 4. तैजस बंधन, 5. कार्मण बंधान ।


61. पाँच संघात प्रकृतियाँ - 1. औदारिक संघात, 2.वैक्रियिक संघात, 3. आहारक संघात, 4. तैजस संघात, 5. कार्मण संघात ।


62. चारित्र के पाँच भेद - 1. सामायिक, 2. छेदोपस्थापना, 3. परिहारविशुद्ध, 4. सूक्ष्म संपराय, 5. यथाख्यात ।


63. अनऋद्धि प्राप्त आर्यों के पाँच भेद - 1. क्षेत्र आर्य, 2. जाति आर्य, 3. कर्म आर्य, 4. चरित्र आर्य, 5. दर्शन आर्य।


64. विवेक पाँच प्रकार- 1. इन्द्रिय विवेक, 2. कषाय विवेक, 3.उपाधि विवेक, 4. भक्तपान विवेक, 5. देह विवेक |


65. जिस साधु ने पंडितमरण करने का दृढ़ निश्चय कर लिया है, उसको इन पाँच शुद्धियों को धारण करना चाहिए - 1. आलोचना शुद्धि, 2. शैया संस्तर शुद्धि, 3.उपकरण शुद्धि, 4.भक्त पान शुद्धि, 5. वैयावृत्य करण शुद्धि ।


66. निर्यापकाचार्य के अन्वेषण करने के लिए विहार करने वाले की विधि के पाँच प्रकार - 1. रात्रि प्रतिमा कुशल, 2. स्वाध्याय कुशल, 3. प्रश्न कुशल, 4. स्थडिलशा यी, 5.आसक्ति रहित ।


67. तीर्थंकर की प्रथम पारणा के दिन आहारदाता के यहाँ नियम से पँच आश्चर्य होते हैं - 1. रत्न दृष्टि 125000000 उत्कृष्ट व (1,25,000) जघन्य, 2 . देव दुन्दुभि, 3. दिव्य पुष्पों की आवृत्ति, 4. जय-जय का उद्घोष, 5. शीतल सुगन्धित वायु का बहना।


68. केवलज्ञान होते ही तीर्थंकर का शरीर 5,000 धनुष प्रमाण ऊर्ध्व गमन करता है।


69. कुन्दकुन्द आचार्य गुरू की परम्परा पाँच - 1. भद्रबाहु, 2. गुप्तिगुप्त, 3. माघनन्दी, 4. जिनचन्द्र, 5. कुन्दकुन्द


70. केवल एक भव अवतार लेकर मोक्ष जाने वाले एक भवातारी पाँच - 1. पाँचवे स्वर्ग के लोकान्तिक देव, 2. दक्षिणेन्द्र, 3.इन्द्र की शचि, 4. लोकपाल, 5. पाँच अनुत्तर विमानों के देव ।


71. समवाय पाँच - 1. स्वभाव, 2. पुरूषार्थ, 3. कळ ललब्धि, 4. भवितव्य, 5. निमित्त ।


72. धर्म के पाँच अंग निम्न हैं- 1. णमोकार मन्त्र जैसा मन्त्र नहीं। 2. वीतरागी जैसे देव नहीं । 3. निर्ग्रन्थ जैसे गुरु नहीं। 4. अहिंसा जैसा धर्म नहीं। 5. आत्मध्यान जैसा ध्यान नहीं।


73. जैन धर्म की पाँच विशेषतायें हैं - 1. जैन धर्म भौतिक सम्पदा का प्रलोभन नहीं देता है। 2. जैन धर्म अवतारवाद को नहीं मानता है। 3. जैन धर्म अतिशय को नहीं मानता है। 4. जैन धर्म चमत्कार को भी नहीं मानता है। 5. जैन धर्म कर्तावाद को नहीं मानता है।


74. दाता के पाँच दूषण - 1. विलम्ब से देना, 2. विमुख होकर देना, 3. दुर्वचन, 4. निरादर, 5. देकर पश्चात्ताप करना।


75. निद्रा के पाँच भेद - 1. निद्रा, 2. निद्रा-निद्रा, 3.प्रचला, 4.प्रचला-प्रचला, 5. स्त्यानगृद्धि ।


76. अन्य दर्शन का स्वरूप - 1. न्याय वैशेषिक केवल नैगम नय के, 2. अद्वैतवादी और सांख्य केवल संग्रह नय के, 3. चार्वाक लोग केवल व्यवहार नय के, 4. बौद्ध लोग केवल ऋजु सूत्र नय के, 5. वैयाकरण केवल शब्द नय के।


77. मन के द्वारा परिणाम परिवर्तित होते हैं, उसकी पाँच भूमिकायें हैं - 1. क्षिप्त, 2. विक्षिप्त, 3. मूढ़, 4. चित्त निरोध, 5. एकाग्रता । उपरोक्त भूमिकाओं में मन घूमता रहता।


78. लब्धअपर्याप्तक के भवों की संख्या - एक इन्द्रिय में 66132 भव + दो इन्द्रिय में 80 भव + तीन इन्द्रिय में 60 भव+चार इन्द्रिय में 40 भव + पाँच इन्द्रिय में 24 भव=कुल योग66336 भव ।


79. पाँच सूना - 1. बुहारी देना, 2. अग्नि जलाना, 3. जल भरना, 4. कूटना, 5. पीसना ।


80. पैंतालीस लाख योजन विस्तार है - 1. सीमान्तक इन्द्रक बिल (प्रथम नरक), 2. ढाई द्वीप, 3. प्रथम स्वर्ग का ऋजुनामा विमान, 4. सिद्ध शिला, 5. सिद्ध क्षेत्र ।


81. जीव के साथ संबंधित मुख्य वर्गणायें पाँच प्रकार की हैं - 1. आहार वर्गणा, 2. भाषा वर्गणा, 3. मनो वर्गणा, 4. तैजस वर्गणा, 5. कार्मण वर्गणा ।


82. अर्थ व्यंजन योग संक्रान्ति - 1. अर्थ नाम ध्यान करने योग्य द्रव्य व पर्याय का है। 2. व्यंजन नाम वचन है। 3. योग नाम काय, वचन, मन की क्रिया का है। 4.संक्रान्ति नाम पलटने का है। 5. इनमें जो द्रव्य को छोड़ उसकी पर्याय को ध्याता है तथा पर्याय को छोड़कर द्रव्य को ध्याता है तो अर्थ संक्रान्ति है।


83. मोक्ष पाँच प्रकार का होता है - 1. शक्ति मोक्ष, 2. दृष्टि मोक्ष, 3. मोह मोक्ष, 4. जीवन मोक्ष, 5. विदेह मोक्ष।


84. साधु की पाँच प्रकार की आहार चर्या - 1. भ्रामरी, 2. गर्त्तपूरणी, 3. उदराग्नि प्रशमन, 4. अक्षमृक्षणी, 5. गोचरी ।


85. साध्वाभास के 5 भेद - 1. पार्श्वस्थ, 2. संस्कृत, 3 अवसन्न, 4. मृगचारी, 5. कुशील ।


86. निमित्त नैमित्तिक व कालिक क्रियाओं के भेद - 1. दैनिक, 2. रात्रिक, 3. पाक्षिकी, 4. चातुर्मासकी, 5. वार्षिकी।


87. रंग, रूप, रुपया, राग और रसना इन पाँच 'र' में लिप्तता संसार बढ़ाने का कारण हैं।


88. अजीव द्रव्य पाँच - 1. पुद्गल, 2. धर्म, 3. अधर्म, 4. आकाश, 5. काला ।


89. अमूर्तिक द्रव्य - 1. जीव, 2. धर्म, 3. अधर्म, 4. आकाश, 5. काल ।

90. (इज्या) देव पूजा - 1. नित्यमह, 2. चतुर्मुख,


3. कल्पद्रुम, 4. अष्टान्हिका, 5. इन्द्रध्वज । 91. ज्ञानावरण कर्म की प्रकृतियाँ - 1. मतिज्ञानावरण,


2. श्रुतज्ञानावरण, 3. अवधिज्ञानावरण, 4. मन:पर्ययज्ञा


नावरण, 5. केवलज्ञानावरण।


92. पिंडस्थ ध्यान की धारा पाँच - 1. पृथ्वी धारणा, 2. अग्नि धारणा, 3. पावन धारणा, 4. जल धारणा, 5. तत्त्वरूपवती धारणा ।


93. ब्रह्मचारी के पाँच भेद- 1. उपनय, 2. अवलम्ब, 3. अदीक्षा, 4. गूढ, 5. नैष्ठिक ।


94. द्विदल दोष के पाँच भेद - 1. अन्न द्विदल, 2. काष्ठ,


3. हरी, 4. शिखरनी, 5. काँजी ।


95. उत्तम भावना - 1. तपोभावना, 2. श्रुतभावना, 3.सत्यभावना, 4.एकत्व भावना, 5. धृतिबल भावना ।


96. संक्लिष्ट (कुत्सित) भावना के पाँच भेद - 1. कंदर्पी, 2.कैल्विषी, 3.अभियोगिकी, 4.आसुरी, 5.संमोही।


97. माया के पाँच भेद - 1. निवृत्ति, 2. उपधि, 3. सातिप्रयोग, 4.प्रणिधि, 5. प्रतिकुंचन ।


98. विनय के पाँच भेद - 1. लोकानुवृत्ति, 2.अर्थनिमित्तक, 3.कामतन्त्र, 4. भय, 5. मोक्ष।


99. तीर्थंकरों की निर्वाण भूमि पाँच - 1. कैलाशपर्वत, 2. गिरनार, 3. चम्पापुर, 4. पावापुर, 5. सम्मेदशिखर


100. पूजा के अंग - 1. आह्वानन, 2. स्थापना, 3.सन्निधिकरण 4. पूजन, 5. विसर्जन ।


101. महावीर के पाँच नाम - 1. वर्धमान, 2. वीर, 3. अतिवीर, 4. सन्मति, 5. महावीर ।


102, क्षुल्लक के पाँच भेद - 1. वानप्रस्थ क्षुल्लक, 2.


नैष्ठिक क्षुल्लक, 3. गूढ़ क्षुल्लक, 4. वर्णी, 5. साधक


क्षुल्लक |


103. पाँच अणुव्रत में प्रसिद्ध - 1. अहिंसाणुव्रत- मातंग | 2. सत्याणुव्रत - धनदेव । 3. अचौर्य व्रत - वारिषेण । 4.ब्रह्मचर्य व्रत - नीलीबाई । 5. परिग्रह परिमाण व्रत - जयकुमार सेनापति।


2. झूठ 104. पाँच पापों में प्रसिद्ध - 1. हिंसा में - धनश्री । में- सत्यघोष । 3. चोरी में तापस। 4. कुशील में - यमपाल। 5.परिग्रह में - श्मश्रु नवनीत ब्राम्हण |


105. पांच मिथ्यात्वों में प्रसिद्ध - 1. विपरीत मिथ्यात्व में - याज्ञिक ब्राह्मण। 2. एकान्त मिथ्यात्व मे - घोष । 3. विनय मिथ्यात्व में - शैव तापस। 4. संशय मिथ्यात्व में - श्वेताम्बर मुँहपट्टी वाले। 5. अज्ञान मिथ्यात्व में - मस्करी नाम (मुस्लिम) । -


106. प्राकृत भाषा के पाँच भेद - 1. मागधी, 2. अर्धमागधी, 3. शौरसैनी, 4. पैशाची, 5. चूलिका ।


107. पाँच समझने योग्य बातें - 1. मिथ्यात्व का वमन, 2.सम्यक्त्व का उत्पन्न, 3. कषायों का शमन, 4. इन्द्रियों का दमन, 5. आत्मानुभव |


108. पाँच त्याग्ने योग्य बातें-


1. (ककार) - 1. कीर्ति, 2. कंचन, 3. कामिनी, 4. कुटुम्ब,


5. करिश्मा | 2. (पकार) - 1. प्रदर्शन, 2. प्रतिष्ठा, 3. प्रतिस्पर्धा,


4. पाप, 5. पैशून्य। 3. (मकार) - 1. मंच, 2. माला, 3. माईक,


4.मान,5.माया।


2. श्रुत, 109. पाँच ग्रहण करने योग्य बातें - 1. सम्यक्त्व, 3. समता, 4. शान्ति, 5. सुख ।


जय पंच परमेक्षठी भगवान की जय जय जय


जैनम जयतु शासनम्


वास्तुगुरू महेन्द्र जैन (कासलीवाल)उ




1. व्रत पाँच -1. अहिंसा, 2. सत्य, 3. अचौर्य, 4. ब्रम्हचर्य,


5. अपरिग्रह।


2. पाप पाँच - 1. हिंसा, 2. झूठ, 3. चोरी, 4. कुशील 5. परिग्रह ।


3. शरीर पाँच - 1. औदारिक, 2. वैक्रियक, 3. आहारक 4. तैजस,


5. कार्मण


4. भाव पाँच - 1.औपशमिक भाव, 2. क्षायिक भाव,


3. क्षायोपशमिक भाव, 4. औदायिक भाव, 5. पारिणामिक भाव ।


5. समिति पांच - 1. ईर्या समिति, 2. भाषा समिति, 3. एषणा समिति, 4. आदाननिक्षेपण समिति 5. प्रतिष्ठापन (व्युत्सर्ग) समिति।


6. इन्द्रिय पांच - 1.स्पर्शन, 2. रसना, 3. घ्राण, 4. चक्षु 5. कर्ण ।


7. आचार पांच - 1. दर्शनाचार, 2. ज्ञानाचार, 3. चारित्रचार, 4. तपाचार, 5. वीर्याचार |


8. उदम्बरुल पांच - 1. बड़, 2. पीपल, 3. पाकर, 4. गूलर


5. कठूमर ।


9. मिथ्यात्व पाँच - 1. विपरीत, 2. एकान्त, 3. संशय 4 . विनय,


5. अज्ञान ।


10. ज्ञान पाँच - 1. मतिज्ञान, 2. श्रुतज्ञान, 3. अवधिज्ञान, 4. मन:पर्ययज्ञान, 5. केवलज्ञान ।


11. परमेष्ठी पाँच - 1. अरहन्त, 2. सिद्ध, 3. आचार्य 4. उपाध्याय,


5. साधु।


12. अन्तराय कर्म के पाँच भेद- 1. दान अन्तराय, 2. लाभ अन्तराय, 3. भोग अन्तराय, 4. उपभोग अन्तराय, 5. वीर्य अन्तराय ।

13. लब्धि के पांच प्रकार - 1. क्षयोपशम लब्धि, 2. विशुद्ध लब्धि, 3. देशना लब्धि, 4. प्रायोग्य लब्धि, 5. कारण लब्धि


14. अनुत्तर विमान पाँच - 1. विजय, 2. वैजयन्त 3. जयन्त, 4.


अपराजित, 5. सर्वार्थसिद्धि।


15. ज्योतिषी देव पाँच - 1. सूर्य, 2. चन्द्रमा, 3. ग्रह 4. नक्षत्र,


5. तारे ।


16. चौदहवें गुणस्थान का काल- 1. अ, 2. अ. 3. 3, 4.ऋ, 5. लृ इन पाँच हस्व स्वरों के उच्चारण काल मात्र ।


17. बाल ब्रम्हचारी तीर्थंकर पाँच हैं (पंचबालयति) - 1. वासुपूज्य, 2. मल्लिनाथ, 3. नेमिनाथ, 4. पार्श्वनाथ,


5. महावीर । 18. मेरू पाँच - 1. सुदर्शन, 2. विजय, 3. अचल, 4. मन्दर, 5. विद्युन्माली ।


19. बन्ध के पाँच कारण - 1. मिथ्यादर्शन, 2. अविरति, 3. प्रमाद,


4. कषाय, 5. योग ।


20. मुनि के पांच प्रकार- 1. पुलाक, 2. बकुश, 3. कुशील, 4. निर्ग्रथ, 5. स्नातक।


21. अहिंसा व्रत के पाँच अतिचार - 1. बन्ध, 2. वध, 3. छेदन, 4.अतिभारारोपण, 5. अन्नपान निरोध ।


22. सत्य व्रत के पाँच अतिचार - 1. मिथ्योपदेश,


2.रहोभ्याख्यान, 3.कूटलेखक्रिया, 4. न्यासापहार, 5. साकार मंत्र भेद ।


23. अचौर्य व्रत के पाँच अतिचार - 1. स्तेनप्रयोग,


2. तदाहृतादान, 3. विरुद्धराज्यातिक्रम. 4. महीना अधिक मान सन्मान, 5. प्रतिरूपक व्यवहार ।

24. ब्रह्मचर्य व्रत के पाँच अतिचार - 1. परविवाहकरण, 2.परगृहीतेत्वरिकागमन,3. अपरिगृहीते त्वरिकागमन, 4. अनंगक्रीड़ा, 5. कामतीव्राभिनिवेश ।


25. अपरिग्रह व्रत के पाँच अतिचार - 1. क्षेत्र-वास्तु प्रमाणात अतिक्रमण, 2. हिरण्य-सुवर्ण प्रमाणातिक्रम, 3. धन-धान्य प्रमाणातिक्रम, 4. दासी दास प्रमाणातिक्रम, 5. कुप्य प्रमाणातिक्रम |


26. स्वाध्याय के पाँच भेद - 1. वाचना, 2. पृच्छना, 3. अनुप्रेक्षा, 4. आम्नाय, 5. धर्मोपदेश ।


27. समाधि मरण के पाँच अतिचार - 1. जीवितासंशा, 2.मरणासंशा, 3.मित्रानुराग, 4. सुखानुबन्ध, 5. निदान।


28. अहिंसा व्रत की भावना पाँच - 1. वचन गुप्ति, 2 . मनोगुप्ति, 3.ईर्या समिति, 4. आदाननिक्षेपण समिति, 5. आलोकित पान भोजन।


29. सत्य व्रत की भावना पाँच - 1. क्रोध का त्याग, 2. लोभ का त्याग, 3.भय का त्याग, 4. हास्य का त्याग, 5. अनुविचि भाषण । 30. अचौर्य व्रत की भावना पाँच - 1. खाली घर में रहना, 2. किसी के छोड़े हुए स्थान में रहना, 3. अन्य को अपने ठहरे स्थान में आने से रोकना नहीं, 4. शास्त्र विहित भिक्षा की विधि में न्यूनाधिक नहीं करना, 5. साधर्मी भाइयों से विसंवाद नहीं करना।


31. ब्रह्मचर्य व्रत की भावना पाँच - 1. स्त्रियों में प्रीति उत्पन्न कराने वाली कथाओं को सुनने का त्याग। 2. स्त्रियों के मनोहर अंगों को रागसहित देखने का त्याग। 3. पूर्व काल में किये हुए विषय भोगों को स्मरण करने का त्याग। 4. काम उद्दीपन करने वाले पुष्टिकर व इन्द्रियों की लालसा उत्पन्न करने वाले रसों का त्याग। 5.शरीर के श्रृंगार युक्त करने का त्याग।


32. अपरिग्रह व्रत की भावना पाँच - 1. स्पर्शन, 2. रसना, 3. घ्राण, 4. चक्षु, 5. कर्ण इन्द्रियों के स्पर्श आदि इष्ट-अनिष्ट विषयों में रागद्वेष के भाव का त्याग।


33. समाधि मरण के पाँच प्रकार - 1. बाल-बाल मरण, 2. बाल मरण, 3. बाल पण्डित मरण, 4. पण्डित मरण, 5. पण्डित - पण्डित मरण।


34. दर्शन मोहनीय बन्ध के पाँच कारण - 1. केवली का अवर्णवाद, 2.शास्त्र का अवर्णवाद, 3. संघ का अवर्णवाद, 4. धर्म का अवर्णवाद, 5. देवों का अवर्णवाद ।


35. सम्यग्दर्शन के पाँच अतिचार - 1. शंका, 2.कांक्षा, 3.विचिकित्सा, 4.अन्यदृष्टि प्रशंसा, 5. अन्यदृष्टिसंस्तव ।


36. दिग्व्रत के पाँच अतिचार - 1. ऊर्ध्वव्यतिक्रम,


2.अधोव्यतिक्रम, 3.तिर्यग्व्यतिक्रम, 4. क्षेत्रवृद्धि,


5.स्मृत्यन्तराधान।


37. देशव्रत के पाँच अतिचार - 1. आनयन, 2. प्रेष्यप्रयोग, 3. शब्दानुपात, 4. रूपानुपात, 5. पुद्गलक्षेप ।


38. अनर्थदण्डत्याग व्रत के पाँच अतिचार - 1. कन्दर्प,


2. कौत्कुच्य, 3. मौखर्य


4.असमीक्ष्याधिकरण, 5. उपभोगपरिभोगानर्थक्य ।


39. सामायिक व्रत के पाँच अतिचार - 1. मनोदुः प्रणिधान, 2. वाग्दुः प्रणिधान, 3. कायदुः प्रणिधान, 4. अनादर, 5. स्मृत्यनुपस्थान ।


40. प्रोषधोपवास व्रत के पाँच अतिचार - 1. अप्रत्यवेक्षिताप्रमार्जितोत्सर्ग, 2. अप्रत्यवेक्षिताप्रमार्जितादान,3. अप्रत्यवेक्षिताप्रमार्जित संस्तरोपक्रमण, 4. अनादर,5.स्मृत्युपस्थान।


41. उपभोग परिभोग परिमाण व्रत के पाँच अतिचार - 1. सचित्ताहार, 2. सचित्त सम्बन्धाहार, 3. सचित्त,


4. अभिषवाहार, 5. दु: पक्वाहार ।


42. परोक्ष मुक्ति ज्ञान के पाँच भेद - 1. स्मृति, 2. प्रत्यभिज्ञान, 3. तर्क, 4. अनुमान, 5. आगम ।


43. अतिथि संविभाग व्रत के पाँच अतिचार - 1. सचित्तनिक्षेप,


2. सचित्तापिधान, 3. परव्यपदेश, 4. मात्सर्य, 5. कालातिक्रमण। 44. विनय पाँच - 1. दर्शन विनय, 2. ज्ञान विनय, 3. चारित्र विनय, 4. तप विनय, 5. उपचार विनय ।


45. अस्तिकाय पाँच - 1. जीव, 2. पुद्गल, 3. धर्म, 4. अधर्म,


5.आकाश।


46. रस पाँच- 1.खट्टा, 2. मीठा, 3. कड़वा, 4. कषेला,


5. चरपरा ।


47. वर्ण पाँच - 1. काला, 2. पीला, 3. नीला, 4. सफेद, 5. लाल ।


48. भूत पाँच - 1. पृथ्वी, 2. जल, 3. अग्नि, 4. वायु, 5. आकाश। ( अन्य मतियों के अनुसार)


49. परावर्तन पाँच - 1. द्रव्य, 2. क्षेत्र, 3. काल, 4. भव, 5. भाव ।


50. दान पाँच - 1.दयादत्ति, 2. पात्रदत्ति, 3. समदत्ति, 4.अन्वयदत्ति, 5. सकलदत्ति।


51. पाण्डव पाँच - 1.युधिष्ठिर, 2. भीम, 3. अर्जुन, 4. नकुल,


5. सहदेव ।


52. तीर्थंकर महावीर के बाद पाँच श्रुत केवली - 1. विश्वनन्दी, 2. नन्दीमित्र, 3. अपराजिता, 4. गोवर्धन, 5. भद्रबाहु |


53. तीर्थंकर महावीर के बाद पाँच महामुनि - 1. नक्षत्र, 2.जयपाल, 3. पाण्डु, 4. ध्रुवसेन, 5. कंसाचार्य दशांग विद्या के पारगामी ।


54. तीर्थंकरों के पाँच कल्याणक - 1. गर्भ, 2. जन्म, 3. तप,


4. ज्ञान, 5. मोक्ष।


55. कर्म इन्द्रियाँ पाँच - 1. पैर, 2. हाथ, 3. वचन, 4. गुदा, 5. उपस्था ।


56. ओम (ॐ) में पंच परमेष्ठी सूचक पाँच अक्षर हैं - 1. अ, 2.


अ, 3. आ, 4. उ, 5. मा 57. अ, सि, आ, उ, सा में पाँच अक्षर पंच परमेष्ठी सूचक हैं।


58. अभक्ष्य के पाँच भेद - 1. बहुस्थावर हिंसाकारक, 2. त्रसहिंसाकारक, 3. प्रमादकारक (नशाकारक), 4. अनिष्टकारक, 5. अनुपसेव्य ।


59. नाम कर्म की जाति अथवा शरीर प्रकृतियाँ पाँच - 1. एकेन्द्रिय, 2. द्वीन्द्रिय, 3. इन्द्रिय, 4. चतुरिन्द्रिय, 5. पंचेन्द्रिय ।


60. नाम कर्म की बन्धन प्रकृतियाँ पाँच - 1. औदारिक बंधान, 2. वैक्रियिक बंधान, 3. आहारक बंधान, 4. तैजस बंधान, 5. कार्मण बंधान |


61. पाँच संघात प्रकृतियाँ - 1. औदारिक संघात, 2. वैक्रियिक संघात, 3. आहारक संघात, 4. तैजस संघात, 5. कार्मण संघात |


62. चारित्र के पाँच भेद - 1. सामायिक,


2.छेदोपस्थापना,3.परिहारविशुद्धि, 4. सूक्ष्म संपराय, 5. यथाख्यात ।


63. अनऋद्धि प्राप्त आर्यों के पाँच भेद - 1. क्षेत्र आर्य, 2. जाति


आर्य, 3. कर्म आर्य,4. चरित्र आर्य, 5. दर्शन आर्य ।


64. विवेक पाँच प्रकार- 1. इन्द्रिय विवेक, 2. कषाय विवेक, 3. उपाधि विवेक, 4. भक्तपान विवेक, 5. देह विवेक ।


65. जिस साधु ने पंडितमरण करने का दृढ़ निश्चय कर लिया है, उसको इन पाँच शुद्धियों को धारण करना चाहिए - 1. आलोचना


शुद्धि, 2. शैया संस्तर शुद्धि, 3. उपकरण शुद्धि, 4. भक्त पानशुद्धि, 5. वैयावृत्य करण शुद्धि ।


66. निर्यापकाचार्य के अन्वेषण करने के लिए विहार करने वाले की विधि के पाँच प्रकार - 1. रात्रि प्रतिमा कुशल, 2. स्वाध्याय कुशल, 3. प्रश्न कुशल, 4. स्थडिलशायी, 5. आसक्ति रहित।


67. तीर्थंकर की प्रथम पारणा के दिन आहारदाता के यहाँ नियम से पँच आश्चर्य होते हैं - 1. रत्न दृष्टि 125000000 उत्कृष्ट व (1,25,000) जघन्य, 2. देव दुन्दुभि, 3. दिव्य पुष्पों की आवृत्ति, 4.जय-जय का उद्घोष, 5. शीतल सुगन्धित वायु का बहना ।


68. केवलज्ञान होते ही तीर्थंकर का शरीर 5,000 धनुष प्रमाण


ऊर्ध्व गमन करता है।


69. कुन्दकुन्द आचार्य गुरू की परम्परा पाँच - 1. भद्रबाहु, 2. गुप्तिगुप्त, 3. माघनन्दी, 4. जिनचन्द्र, 5. कुन्दकुन्द ।


70. केवल एक भव अवतार लेकर मोक्ष जाने वाले एक भवातारी पाँच - 1. पाँचवे स्वर्ग के लोकान्तिक देव, 2. दक्षिणेन्द्र, 3.इन्द्र की शचि, 4.लोकपाल, 5. पाँच अनुत्तर विमानों के देव । 71. समवाय पाँच - 1.स्वभाव, 2. पुरूषार्थ, 3. काललब्धि, -


4. भवितव्य, 5. निमित्त ।


72. धर्म के पाँच अंग निम्न हैं- 1. णमोकार मन्त्र जैसा मन्त्र नहीं। 2. वीतरागी जैसे देव नहीं। 3. निर्ग्रन्थ जैसे गुरु नहीं। 4. अहिंसा जैसा धर्म नहीं। 5. आत्मध्यान जैसा ध्यान नहीं ।


73. जैन धर्म की पाँच विशेषतायें हैं - 1. जैन धर्म भौतिक सम्पदा का प्रलोभन नहीं देता है। 2. जैन धर्म अवतारवाद को नहीं मानता है। 3.जैन धर्म अतिशय को नहीं मानता है। 4.जैन धर्म चमत्कार को भी नहीं मानता है। 5. जैन धर्म कर्तावाद को


नहीं मानता है। 74. दाता के पाँच दूषण - 1. विलम्ब से देना, 2. विमुख होकर देना, 3. दुर्वचन, 4. निरादर, 5. देकर पश्चात्ताप करना ।


75. निद्रा के पाँच भेद - 1. निद्रा, 2. 4.प्रचला-प्रचला, 5.स्त्यानगृद्धि।

76. अन्य दर्शन का स्वरूप - 1. न्याय वैशेषिक केवल नैगम नय के, 2. अद्वैतवादी और सांख्य केवल संग्रह नय के, 3. चार्वाक लोग केवल व्यवहार नय के, 4. बौद्ध लोग केवल ऋजु सूत्र नय के, 5. वैयाकरण केवल शब्द नय के।


77. मन के द्वारा परिणाम परिवर्तित होते हैं, उसकी पाँच भूमिकायें हैं- 1. क्षिप्त, 2. विक्षिप्त, 3. मूढ़, 4. चित्त निरोध, 5. एकाग्रता। उपरोक्त भूमिकाओं में मन घूमता रहता।


78. लब्धअपर्याप्तक के भवों की संख्या - एक इन्द्रिय में 66132 भव + दो इन्द्रिय में 80 भव+तीन इन्द्रिय में 60 भव+चार इन्द्रिय में 40 भव + पाँच इन्द्रिय में 24 भव= कुल योग66336 भव।


79. पाँच सूना - 1. बुहारी देना, 2. अग्नि जलाना, 3. जल भरना,


4. कूटना, 5. पीसना ।


80. पैंतालीस लाख योजन विस्तार है - 1. सीमान्तक इन्द्रक बिल (प्रथम नरक), 2. ढाई द्वीप, 3. प्रथम स्वर्ग का ऋजुनामा विमान, 4.सिद्ध शिला, 5. सिद्ध क्षेत्र ।


81. जीव के साथ संबंधित मुख्य वर्गणायें पाँच प्रकार की हैं- 1. आहार वर्गणा, 2. भाषा वर्गणा, 3. मनो वर्गणा, 4. तैजस वर्गणा, 5. कार्मण वर्गणा ।


82. अर्थ व्यंजन योग संक्रान्ति - 1. अर्थ नाम ध्यान करने योग्य द्रव्य व पर्याय का है। 2. व्यंजन नाम वचन का है। 3. योग नाम काय, वचन, मन की क्रिया का है। 4. संक्रान्ति नाम पलटने का है। 5. इनमें जो द्रव्य को छोड़ उसकी पर्याय को ध्याता है तथा पर्याय को छोड़कर द्रव्य को ध्याता है तो अर्थ संक्रान्ति है।


83. मोक्ष पाँच प्रकार का होता है - 1. शक्ति मोक्ष, 2. दृष्टि मोक्ष, 3. मोह मोक्ष, 4. जीवन मोक्ष, 5. विदेह मोक्ष


84. साधु की पाँच प्रकार की आहार चर्या - 1. भ्रामरी,


2.गर्त्तपूरणी, 3.उदराग्नि प्रशमन, 4. अक्षमृक्षणी, 5. गोचरी ।


85. साध्वाभास के 5 भेद - 1. पार्श्वस्थ, 2. संस्कृत, 3 अवसन्न, 4.मृगचारी, 5.कुशील।


86. निमित्त नैमित्तिक व कालिक क्रियाओं के भेद - 1. दैनिक,


2. रात्रिक, 3. पाक्षिकी, 4. चातुर्मासकी, 5. वार्षिकी । 87. रंग, रूप, रुपया, राग और रसना इन पाँच 'र' में लिप्तता


संसार बढ़ाने का कारण हैं।


88. अजीव द्रव्य पाँच - 1. पुद्गल, 2. धर्म, 3. अधर्म, 4. आकाश,


5. काला ।


89. अमूर्तिक द्रव्य - 1. जीव, 2. धर्म, 3. अधर्म, 4. आकाश,5. काल ।


90. (इज्या) देव पूजा - 1. नित्यमह, 2. चतुर्मुख, 3. कल्पद्रुम,4. अष्टान्हिका, 5. इन्द्रध्वज ।


91. ज्ञानावरण कर्म की प्रकृतियाँ - 1. मतिज्ञानावरण,


2. श्रुतज्ञानावरण, 3. अवधिज्ञानावरण, 4. मन:पर्ययज्ञानावरण,


5. केवलज्ञानावरण।


92. पिंडस्थ ध्यान की धारा पाँच - 1. पृथ्वी धारणा, 2. अग्नि धारणा, 3.पावन धारणा, 4. जल धारणा, 5. तत्त्वरूपवती धारणा ।


93. ब्रह्मचारी के पाँच भेद - 1. उपनय, 2. अवलम्ब, 3. अदीक्षा,


4. गूढ, 5. नैष्ठिक ।


94. द्विदल दोष के पाँच भेद - 1. अन्न द्विदल, 2. काष्ठ, 3. हरी, 4. शिखरनी, 5. काँजी ।


95. उत्तम भावना - 1. तपोभावना, 2. श्रुतभावना,

3.सत्यभावना, 4.एकत्व भावना, 5. धृतिबल भावना।


96. संक्लिष्ट (कुत्सित) भावना के पाँच भेद - 1. कंदर्पी, 2. कैल्विषी, 3. अभियोगिकी, 4. आसुरी, 5. संमोही ।


97. माया के पाँच भेद - 1. निवृत्ति, 2. उपधि, 3. सातिप्रयोग, 4. प्रणिधि, 5. प्रतिकुंचन ।


98. विनय के पाँच भेद - 1. लोकानुवृत्ति, 2. अर्थनिमित्तक, 3. कामतन्त्र, 4. भय, 5. मोक्ष |


99. तीर्थंकरों की निर्वाण भूमि पाँच - 1. कैलाशपर्वत, 2. गिरनार, 3. चम्पापुर, 4. पावापुर, 5. सम्मेदशिखर । 100. पूजा के अंग - 1. आह्वानन, 2. स्थापना, 3. सन्निधिकरण


4. पूजन, 5. विसर्जन ।


101. महावीर के पाँच नाम - 1. वर्धमान, 2. वीर, 3. अतिवीर,


4. सन्मति, 5. महावीर ।


102, क्षुल्लक के पाँच भेद - 1. वानप्रस्थ क्षुल्लक, 2. नैष्ठिक क्षुल्लक, 3. गूढ़ क्षुल्लक, 4. वर्णी, 5. साधक क्षुल्लक |


103. पाँच अणुव्रत में प्रसिद्ध - 1. अहिंसाणुव्रत- मातंग | 2. सत्याणुव्रत - धनदेव । 3. अचौर्य व्रत - वारिषेण । 4. ब्रह्मचर्य व्रत - नीलीबाई। 5. परिग्रह परिमाण व्रत - जयकुमार सेनापति ।


104. पाँच पापों में प्रसिद्ध - 1. हिंसा में - धनश्री । 2. झूठ में - सत्यघोष। 3.चोरी में - तापस। 4. कुशील में - यमपाल । 5. परिग्रह में - श्मश्रु नवनीत ब्राम्हण ।


105. पांच मिथ्यात्वों में प्रसिद्ध - 1. विपरीत मिथ्यात्व में - याज्ञिक ब्राह्मण। 2. एकान्त मिथ्यात्व मे - घोष । 3. विनय मिथ्यात्व में - शैव तापस। 4. संशय मिथ्यात्व में - श्वेताम्बर मुँहपट्टी वाले। 5.अज्ञान मिथ्यात्व में - मस्करी नाम (मुस्लिम) ।


106. प्राकृत भाषा के पाँच भेद - 1. मागधी, 2. अर्धमागधी, 3. शौरसैनी, 4. पैशाची, 5. चूलिका ।


107. पाँच समझने योग्य बातें - 1. मिथ्यात्व का वमन, 2. सम्यक्त्व का उत्पन्न, 3. कषायों का शमन, 4. इन्द्रियों का दमन, 5. आत्मानुभव |


108. पाँच त्याग्ने योग्य बातें -

1. (ककार) - 1. कीर्ति, 2. कंचन, 3. कामिनी, 4. कुटुम्ब, 5. करिश्मा |


2. (पकार) - 1. प्रदर्शन, 2. प्रतिष्ठा, 3. प्रतिस्पर्धा, 4. पाप,


5. पैशून्य।


3. (मकार) - 1. मंच, 2. माला, 3. माईक, 4. मान, 5. माया ।


109. पाँच ग्रहण करने योग्य बातें - 1. सम्यक्त्व, 2. श्रुत, 3. समता, 4. शान्ति, 5. सुख ।

















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