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जनरल60

 * *🕰️समय  दोपहर 2.25 से 2.55.*       *🦚 टॉपिक : ~ जनरल🔰🌹* 🦚🌻🌼🌹🦚🌻🌼🌹🦚🌻🌼🌹🦚🌻🌼🌹 1️⃣ जैनाचार्य तो युद्ध बंद करवाते है पर मैं युद्ध करवाकर भी आराधक आचार्य बना❓ 🅰️कलिकाचार्य 2️⃣  मैंने गोवर्धन पर्वत पर साढे तीन करोड़ मुद्राएँ खर्च कर जिन मंदिरों का निर्माण करवाया❓ 🅰️आम राजा 3️⃣ मैं प्रतिदिन वीतराग स्तोत्र एवं योगशास्त्र का स्वाध्याय करके ही मुंह मे पानी डालता  था❓ 🅰️ कुमार पाल राजा जी 4️⃣ मैं थराद का रहने वाला था एवं मैंने 36०  साधर्मिको को अपने जैसा श्रीमंत बनाया था 🅰️ आभु संधवी 5️⃣ मैं मंदिर जाते हुए रास्ते में प्रतिदिन सवा सेर स्वर्ण का दान देती थी 🅰️पेथडसा की पत्नी 6️⃣  मैं इतना बड़ा खतरनाक हूं कि मुझसे बचने के लिये ही व्रतों का विधान किया गया हे❓  🅰️ प्राणातिपात 7️⃣एक लोहे का विशाल गोला मेरे समाने  आ गिरा मुझे वैराग्य और ज्यादा मजबूत हो गया ❓ 🅰️ जम्बुस्वामी जी 8️⃣ जैन मुनि कभी झूठ नहीं बोलते ये विश्वास ही मुझे सन्मार्ग पर ले आया ❓  🅰️ शय्यंभवसूरि जी 9️⃣ मैने मेरे गुरुदेव की याद में पालीताना नगर  बसाया 🅰️ नागार्जुन जी 1️⃣0️⃣ मुझे प्रतिबोध देने के लिये मेरी  पा

दास दासियां

 https://www.facebook.com/groups/3154432777929819/?ref=share 📅 *༺꧁ नवकार करे भव से पार    ꧂༻*  *DSTE ~ 01/05/2021* *🕰️समय रात 8.45 से 9.15* 🦚 *टॉपिक -: दास दासिया*🦜 *〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️* 🦚🌼🌻🌹🦚🌼🌻🌹🦚 *1 मई मजदूर दिवस है*  *तो आज हमारी क्लास भी*  *दास दासियां पर स्पेशल है।* 1️⃣ आपके अंतःपुर में *सैरन्ध्री* नामकी दासी है , वह हमारी पत्नी द्रौपदी है । किसने किससे कहा?  🅰️ अर्जुन जी ने ,राजा  वृहन्नट से कहा 2️⃣पन्ना धाय ने किसको बचाने के लिये अपने पुत्र चन्दन  को कुर्बान कर दी 🅰️उदयसिंह जी 3️⃣उदयान राजा की रुपवती दासी का नाम ❗ 🅰️स्वर्ण गुलिका 4️⃣बहुला दासी ने विरजी को कौनसे तप का पारना कराया❓ 🅰भद्रतप☘ 5️⃣एक दासी जो   सलीम की  प्रियतमा बनी 🅰️अनारकली 6️⃣एक दासी जो भारत की मुगलसम्राज्ञी  बनी 🅰️नूरजहाँ 7️⃣कोई भी महिला मंदिर में खुद को समर्पित करके देवता की सेवा करती थीं। देवता को खुश करने के लिए मंदिरों में नाचती थीं। उसे क्या कहते है 🅰️देव दासी 8️⃣भारत का एक प्रसिद्ध वंश 🅰️गुलाम वंश 9️⃣एक गुलाम वंश की  शासिका 🅰️रजिया सुल्ताना 🔟चक्रवर्ती के दास दासी कितनी होती है 🅰️99 करोड़ 1️⃣1

हैमवत आदि क्षेत्र

  प्रश्न-ये हैमवत आदि क्षेत्र कितने-कितने बड़े हैं ? उत्तर -हैमवत और हैरण्यवत क्षेत्र २१०५५/१९ योजन है, हरि और रम्यक क्षेत्र ८४२११/१९ योजन है और देवकुरु-उत्तरकुरु भोगभूमि ११८४२१/१२ योजन है। यह योजन दो हजार कोश का है अर्थात् लगभग ४००० मील का है। प्रश्न-इनमें कौन जन्म लेते हैं ? उत्तर -जो मनुष्य तिर्यंच मंद कषायी हैं, आहारदान देते हैं या अनुमोदना करते हैं इत्यादि शुभ कार्यों से ये भोगभूमि में जन्म ले लेते हैं। इनका अधिक विस्तार आदिपुराण व तिलोयपण्णत्ति आदि से जानना चाहिए। कर्मभूमि कहां कहां हैं ? प्रश्न-इस जम्बूद्वीप में कर्मभूमि कहां-कहां हैं ? उत्तर -इस जम्बूद्वीप में जो सात क्षेत्र हैं-भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत और ऐरावत। इनमें से भरतक्षेत्र और ऐरावत क्षेत्र के आर्यखण्ड में चतुर्थ, पंचम और छठे काल में कर्मभूमि की व्यवस्था रहती है। प्रश्न-भरत और ऐरावत क्षेत्र के आर्यखण्ड में प्रथम, द्वितीय और तृतीय काल में क्या व्यवस्था होती है? उत्तर -भरत, ऐरावत क्षेत्र में प्रथम, द्वितीय, तृतीय काल में उत्तम, मध्यम और जघन्य भोगभूमि की व्यवस्था रहती है। इन्हें अशाश्वत भोगभूमि कहते हैं। ऐसे

भोगभूमि

  प्रश्न-पुनः अशाश्वत और परिवर्तनशील भोगभूमि कहां हैं ? उत्तर -जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र और ऐरावत क्षेत्र के आर्यखण्ड में षट्काल परिवर्तन होता है अतः इन्हीं दोनों में प्रथम काल में उत्तम भोगभूमि की व्यवस्था है, द्वितीय काल में मध्यम भोगभूमि की एवं तृतीय काल में उत्तम भोगभूमि की व्यवस्था रहती है, पुनः चतुर्थकाल में कर्मभूमि की व्यवस्था हो जाती है। आज यहां भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड में पंचमकाल में कर्मभूमि की व्यवस्था चल रही है इसीलिए इन भोगभूमियों को अशाश्वत कहते हैं। इस प्रकार से जंबूद्वीप में छः शाश्वत भोगभूमि हैं और दो अशाश्वत भोगभूमि तीन काल में आ जाती हैं। धातकीखण्ड में १२ शाश्वत भोगभूमि हैं, पुष्करद्वीप में भी १२ हैं, कुल ढाई द्वीप संबंधी ३० भोगभूमि शाश्वत हैं। जंबूद्वीप के समान ही धातकीखण्ड में २ भरत, २ ऐरावत ऐसे ही पुष्करार्ध में २ भरत, २ ऐरावत क्षेत्र होने से वहां पर आर्यखण्ड के प्रथम आदि तीन काल में भोगभूमि की व्यवस्था हो जाती है पुनः निसर्गतः वह व्यवस्था समाप्त होकर कर्मभूमि की व्यवस्था बन जाती है।

विदेहक्षेत्र

  विजयार्ध हैं। इन प्रत्येक विजयार्ध के उत्तर-दक्षिण दोनों श्रेणियों में ५५-५५ विद्याधर नगरियां हैं जहां नित्य ही विद्याधर निवास करते हैं। प्रत्येक क्षेत्र में निषध पर्वत के उत्तर की ओर दो कुण्ड स्थित हैं। इनसे गंगा-सिंधु नामक दो नदियां निकलती हैं जो कि वत्सा आदि क्षेत्र में जाती हुई विजयार्ध के गुफा द्वार से निकलकर वत्सा आदि क्षेत्र में बहती हुई सीता नदी में प्रविष्ट हो जाती हैं। ऐसे नील पर्वत में दक्षिण की ओर दो-दो कुण्ड हैं जिनसे रक्ता-रक्तोदा नदियां निकलकर सीता नदी में मिल जाती हैं। ऐसे ही पश्चिम विदेह में भी दो-दो नदियां सीतोदा नदी में प्रविष्ट हो जाती हैं। इस प्रकार प्रत्येक विदेह में छह-छह खण्ड हो जाते हैं, जिनमें से एक आर्यखण्ड है और पांच म्लेच्छ खण्ड हैं। प्रश्न-विदेह क्षेत्र  के आर्यखण्ड की व्यवस्था कैसी  है ? उत्तर -प्रत्येक आर्यखण्ड के मध्य में १-१ राजधानी है। उनके क्षेमा, क्षेमपुरी, अरिष्टा, अरिष्टपुरी आदि नाम हैं। ये प्रत्येक नगरियां दक्षिण-उत्तर में बारह योजन लम्बी पूर्व-पश्चिम में नव योजन विस्तृत हैं, सुवर्णमय परकोटे से वेष्टित हैं, ये नगरियां एक हजार गोपुर द्वारों से,

सुमेरुपर्वत

  सुमेरुपर्वत प्रश्न-सुमेरु पर्वत कहां है ? उत्तर -जंबूद्वीप में सात क्षेत्र हैं-भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत और ऐरावत। इनमें विदेहक्षेत्र बीच में आ जाता है। इस विदेह के ठीक बीच में सुमेरुपर्वत स्थित है। प्रश्न-जंबूद्वीप कहां है ? उत्तर -इस मध्यलोक में असंख्यात द्वीप समुद्र हैं जो कि एक दूसरे को वेष्ठित किए हुए हैं। इनमें सर्वप्रथम द्वीप का नाम जंबूद्वीप है। इस जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड में ही हम लोग रहते हैं। प्रश्न-क्या यह सुमेरुपर्वत पृथ्वीतल पर ही है ? उत्तर -हां, यह पर्वत पृथ्वीतल पर ही है। प्रश्न-इसकी ऊँचाई और चौड़ाई का प्रमाण क्या है ? प्रश्न-इसकी ऊँचाई और चौड़ाई का प्रमाण क्या है ? उत्तर – यह पर्वत एक लाख चालीस योजन १ ऊँचा है। इसकी नींव पृथ्वी के अन्दर १ हजार योजन की है अतः ऊपर में यह ९९००० योजन ऊँचा है इसकी चूलिका ४० योजन प्रमाण है। नींव के तल में इसका विस्तार १००९०१०/११ योजन है। पृथ्वी के ऊपर इसका विस्तार १०००० योजन है। आगे घटते-घटते चूलिका के अग्रभाग में इसका विस्तार ४ योजन मात्र रह गया है। पृथ्वी पर जहां पर इसका विस्तार १०००० योजन है वहीं पर इस पर्वत के च

जंबूद्वीप

  प्रश्न-इस जंबूद्वीप के बाहर क्या है ? उत्त र-इसको चारों तरफ से वेष्टित करके लवणसमुद्र है जो कि २ लाख योजन है। इसके आगे धातकीखण्ड, इसके आगे कालोदधि, इसके बाहर पुष्करार्ध द्वीप आदि ऐसे-ऐसे असंख्यातों द्वीप-समुद्र हैं जो कि पूर्व-पूर्व को वेष्टित किए हुए हैं।