विदेहक्षेत्र
विजयार्ध हैं। इन प्रत्येक विजयार्ध के उत्तर-दक्षिण दोनों श्रेणियों में ५५-५५ विद्याधर नगरियां हैं जहां नित्य ही विद्याधर निवास करते हैं।
प्रत्येक क्षेत्र में निषध पर्वत के उत्तर की ओर दो कुण्ड स्थित हैं। इनसे गंगा-सिंधु नामक दो नदियां निकलती हैं जो कि वत्सा आदि क्षेत्र में जाती हुई विजयार्ध के गुफा द्वार से निकलकर वत्सा आदि क्षेत्र में बहती हुई सीता नदी में प्रविष्ट हो जाती हैं। ऐसे नील पर्वत में दक्षिण की ओर दो-दो कुण्ड हैं जिनसे रक्ता-रक्तोदा नदियां निकलकर सीता नदी में मिल जाती हैं। ऐसे ही पश्चिम विदेह में भी दो-दो नदियां सीतोदा नदी में प्रविष्ट हो जाती हैं। इस प्रकार प्रत्येक विदेह में छह-छह खण्ड हो जाते हैं, जिनमें से एक आर्यखण्ड है और पांच म्लेच्छ खण्ड हैं।
प्रश्न-विदेह क्षेत्र के आर्यखण्ड की व्यवस्था कैसी है ?
उत्तर-प्रत्येक आर्यखण्ड के मध्य में १-१ राजधानी है। उनके क्षेमा, क्षेमपुरी, अरिष्टा, अरिष्टपुरी आदि नाम हैं। ये प्रत्येक नगरियां दक्षिण-उत्तर में बारह योजन लम्बी पूर्व-पश्चिम में नव योजन विस्तृत हैं, सुवर्णमय परकोटे से वेष्टित हैं, ये नगरियां एक हजार गोपुर द्वारों से, पांच सौ अल्प द्वारों से तथा रत्नों के विचित्र कपाटों वाले सात सौ क्षुद्र द्वारों से युक्त हैं। इनमें एक हजार चतुष्पथ और बारह हजार रथ मार्ग हैं, ये अविनश्वर नगरियां अन्य किसी के द्वारा निर्मित नहीं हैं-अकृत्रिम हैं।
प्रश्न-वहां पर आर्यखण्ड में षट्काल परिवर्तन होता है क्या ?
उत्तर-नहीं, विदेहों में शाश्वत कर्मभूमि है। वहां पर सदा ही चतुर्थकाल की आदि जैसा परिणमन चलता रहता है।
प्रश्न-वहां पर तीर्थंकर आदि महापुरुष कब-कब जन्मते हैं ?
उत्तर-वहां पर तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव और प्रतिवासुदेव आदि महापुरुष हमेशा उत्पन्न होते रहते हैं। सीमंधर आदि विहरमाण तीर्थंकर वहां सतत विहार किया करते हैं। ये तीर्थंकर पांच कल्याणक से सहित होते हैं। वहां विदेह क्षेत्रों में कोई-कोई मनुष्य वहीं पर जन्म लेकर गृहस्थावस्था में तीर्थंकर के पादमूल में तीर्थंकर प्रकृति बांधकर दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण ऐसे तीन कल्याणक को प्राप्त कर लेते हैं और कोई-कोई यदि मुनि होकर तीर्थंकर प्रकृति का बंध करते हैं तो उनके ज्ञान और निर्वाण ऐसे दो ही कल्याणक होते हैं। वहां पर प्रत्येक मनुष्य की उत्कृष्ट आयु पूर्व कोटि वर्ष प्रमाण है और शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना पांच सौ धनुष प्रमाण है।
प्रश्न-वहां पर वर्ण व्यवस्था आदि कैसी है ?
उत्तर-विदेहों में क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये तीन ही वर्ण होते हैं, ब्राह्मण वर्ण नहीं होता है। वहां पर परचक्र का प्रकोप, अन्याय, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, ईति, भीति, भूकम्प आदि आतंक नहीं होते हैं। आज भी वहां से मनुष्य कर्मों का नाश कर मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।
इस प्रकार से यह विदेहक्षेत्र इसी जम्बूद्वीप में है, पृथ्वीतल पर है और यहां से लगभग ३४ हजार योजन की दूरी पर है ऐसा समझना।
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