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अगस्त, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

#तप #अनुमोदना #तपस्या

 #तप #अनुमोदना #तपस्या  🧖🙏🧖🙏🧖🙏🧖🙏🧖 महक रहा है तप से ऑंगन,                    तप की  उर्जा छाई  है‌ । उपहार स्वरूप गुरु को आज,                    छ की भावना‌ भाई है।। रसना को वशीभूत करके,             (ओजल) तुमने पर्व मनाया है। गुरुवर के भजनों से पावन,                   घर को स्वर्ग बनाया है।।                 ✍️ मधु पारख.. 🧖🙏🧖🙏🧖🙏🧖🙏🧖🙏🧖 Madhu's Writing.

प्रश्न fb मे देने के

  भरत चक्रवर्ती जी की स्त्री रत्न किसकी पुत्री थी ? वैताध्य पर्वत के उत्तर श्रेणी के मालिक विनमी विद्याधर जी की पुत्री होती है, मेरी कुछ पुरांनी पोस्ट्स श्लाघनीय पुरुष। जिज्ञासुजनो को शायद रुचिकर लगे।  A -  श्लाघनीय पुरुष क्या है? 1 - उत्तम शौर्य, संहनन, संस्थान आदि गुणों से युक्त 2 - इनमें तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव , प्रतिवासुदेव का समावेश 3 - भरत -  ऐरावत क्षेत्र में काल चक्र का प्रभाव है इस लिए यहां एक कालचक्र के आधे हिस्से में 1 भरत या 1 ऐरावत में  24 तीर्थंकर, 12 चक्रवर्ती , 9 बलदेव, 9 वासुदेव , 9 प्रतिवासुदेव यह कुल 63 श्लाघनीय पुरुष होते है। 4 - चूंकि 5 महाविदेह में काल चक्र का प्रभाव नही , वहां श्लाघनीय पुरुष होते रहते है। 5 - 1 क्षेत्र में 1 समय मे 1 तीर्थंकर, 1 चक्रवर्ती हो सकते है। या 1 तीर्थंकर - 1बलदेव - 1 वासुदेव  - 1 प्रति वासुदेव हो सकते है। 6 - पर 1 क्षेत्र में जब  चक्रवर्ती हो तब बलदेव वासुदेव प्रतिवासुदेव नही होते। 7 - 1 समय मे 1 क्षेत्र में 1 तीर्थंकर हो तब उसी क्षेत्र में ऐसे दूसरे तीर्थंकर नही होते। ऐसे ही चक्रवर्ती बलदे...

30 अकर्म भूमि

  Explanation☝️👇 #घातकीखंड में,  कर्मभूमि के 6 क्षेत्र  है।2भरत + 2 ऐरावत + 2 महाविदेह = 6 #घातकी खंड में, अकर्म भूमि के 12 क्षेत्रों है।  2 हैमवत + 2 हिरण्य वय + 2 हरिवंश +  रम्यक वर्ष + 2 देवकुरू + 2 उत्तरकुरू = 12 6  + 12 =18 इस तरह घातकी खंड द्वीप में कुल मिलाकर 18 क्षेत्रो होते है। *🙏आज के प्रश्न🙏* ************************** *1. अकर्मभूमि में कितने प्रकार के कल्पवृक्ष हैं?* *1. दस प्रकार के कल्पवृक्ष हैं।* *2. हेमवंत और हैरण्यवत क्षेत्र के मनुष्यों की उम्र व अवगाहणा कितनी होती हैं?* *2. हेमवंत और हैरण्यवत क्षेत्र के मनुष्यों की स्थिति एक पल्योपम  की हैं और अवगाहणा एक गाउ की हैं।* *3. मेरु पर्वत कितना ऊँचा हैं? कितना गहरा हैं?* *4. मेरुपर्वत पर कितने वन है?* *5. मेरुपर्वत से कितने योजन ऊपर तारा ग्रह हैं?* *😊आज के प्रश्नों के उत्तर😊* ---------------------------------------- *3.  99,000 योजन का ऊँचा और 1000 योजन का गहरा हैं।* *4. मेरुपर्वत पर चार वन हैं- भद्रशाल वन, नंदन वन, सौमनस वन और पंडक वन।* *5. मेरुपर्वत से 790 योजन ऊपर तारा ग्रह हैं।...

भाव

  * *🔹प्रश्न 1: भाव का शाब्दिक अर्थ क्या है?* *👉 उत्तर : स्वरुप ।* *🔹प्रश्न 2: भाव किसे कहते हैं?* *👉 उत्तर : कर्मों के संयोग (उदय, पारिणामिक) या वियोग (उपशम, क्षय, क्षयोपशम) से होने वाली आत्मा की अवस्था को तथा परिणमन को भाव कहते हैं।* *🔹प्रश्न 3 : भाव के पाँच भेद कौनसे हैं?* *👉 उत्तर : औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, पारिणामिक ।* *🔹प्रश्न 4 : पाँच भाव के अतिरिक्त भी कोई भाव है?* *👉उत्तर : हाँ, सान्निपातिक भाव ।* *🔹प्रश्न 5 : सान्निपातिक भाव किसे कहते हैं?* *👉 उत्तर : सान्निपात-संयोग । अनेक भावों के मिश्रण को सान्निपातिक भाव कहते हैं।* *क्रमशः .........* * 🤔1) भाव किसे कहते है? 😊1) जीव और अजीव की स्वाभाविक और वैभाविक अवस्था को भाव कहते है। 🤔2) भाव कितने है ? 😊2) छः । 🤔3) कौन कौन से ? 😊3) औपशमिक, क्ष्योपशमिक, क्षायिक, औदेयिक  पारिणामिक और सान्निपातिक भाव। 🤔4) औपशमिक भाव किसे कहते है? 😊4) कर्म के उपशम से होने वाले भाव। 🤔5) क्षायिक भाव किसे कहते है? 😊5) कर्म के संपूर्ण क्षय से होने वाले भाव। 🤔6) क्षयोपशमिक भाव किसे कहते है? 😊6) उदय में आये हुवे कर्म का ...

तीसरा गुण स्थान

गुणस्थान :- गुण-स्थान :- अनादिकाल से यह जीव अज्ञान के वश में आकर विषयों और कषायों में प्रवृत्ति करता हुआ इस संसार में भटक रहा है ! इस भ्रमण में इस जीव ने अनन्तों बार चौरासी लाख योनियों में जन्म लिया ... कभी अच्छे कर्मों के उदय से देवों के दिव्य-सुखों को भोग खुश, तो कभी त्रियंच-नरक और मनुष्य गति के दुखों को भोग कर विचलित होता रहा ... अपने सच्चे आत्म-स्वरुप का दर्शन न हो सकने के कारण अनादि-काल से इस जीव की दृष्टि विपरीत ही रही है ! जीव की इस विपरीत दृष्टि के कारण ही उसे "मिथ्यादृष्टि" कहा जाता है ! गुणस्थान की आदर्श/मूल परिभाषा है कि "मोह और योग के निमित्त से जीव के श्रद्धा और चरित्र गुण की होने वाली तारतम्यरूप अवस्थाओं को गुणस्थान कहते हैं !"            याने, मोह(मिथ्यात्व) और योग(मन-वचन-काय) के मिलने से आत्मा के श्रद्धा(यथार्थ श्रद्धान) और चारित्र रूप गुणों की अलग-अलग अवस्थाओं को गुण-स्थान कहते हैं l मिथ्यादृष्टि जीव मिथ्या को छोड़कर किस प्रकार से यथार्थ दृष्टि (सम्यग्दृष्टि) वाला बनता है, और किस प्रकार अपने गुणों का विकास करते हुए परमात्मा बनता है, उसके इस ...

गर्भ औऱ जैन धर्म

गर्भ अध्ययन : आमुख  इस गर्भ अध्ययन में उन जीवों के जन्म का विवेचन है जो गर्भ से जन्म ग्रहण करते हैं। इसके साथ ही विग्रहगति एवं मरण का भी विशद वर्णन है। यह अध्ययन वक्कंति (व्युत्क्रान्ति) अध्ययन का पूरक अध्ययन है। कुछ जीवों का जन्म सम्मूच्छिम जन्म कहलाता है। एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रियादि जीवों का जन्म इसी श्रेणी में आता है। देवों एवं नैरयिकों का जन्म बिना माता-पिता के संयोग के होने से उपपात जन्म कहलाता है। मनुष्य, पशु, पक्षी आदि कुछ जीव ऐसे हैं जिनका जन्म गर्भ से होता है। चौबीस दण्डकों में से मात्र दो दण्डकों के जीवों का जन्म गर्भ से होता है-१. मनुष्य और 2. पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों का। इन दोनों के चर्मयुक्त पर्व होते हैं। ये दोनों शुक्र और रक्त से उत्पन्न होते हैं। ये दोनों गर्भ में रहते हुए आहार ग्रहण करते हैं तथा वृद्धिंगत होते हैं। गर्भ में रहते हुए इनकी हानि, विक्रिया, गतिपर्याय, समुद्घात, कालसंयोग, गर्भ से निर्गमन और मृत्यु होती है।। गर्भधारण करने व न करने के सम्बन्ध में स्थानांग सूत्र में बहुत सी बातें दी गई हैं। पाँच कारणों से स्त्री पुरुष का सहवास न करती हुई भी गर्भ धारण कर सकती ...