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25 बोल विवेचना भाग 1 से 25

 *संकलन कर्ता : अंजुगोलछा* 💫💫💫💫💫💫 *क्रमांक 1*, 💫💫💫💫💫💫💫 🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷 *1:2:21* *पहला बोल  -- गति चार* *भाग  -- 1* 1 नरक गति     2  तिर्यंच गति  3 मनुष्य गति   4  देव गति  गतियाँ जीव की होती है तो आइये पहले जीव के बारे में जाने जैन दर्शन में जीव दो प्रकार के माने गए हैं --  *२. जीव के दो प्रकार हैं*- *१. सिद्ध* *२. संसारी* वैसे ही राशि   दो भागों में विभक्त है , 1 जीव और 2,अजीव।  इन दो राशिमें सारा संसार  समा जाता है। इसके बाहर कुछ भी नही  यह वर्गीकरण संग्रहनय की दृष्टि से है।(संग्रह नय मतलब विस्तृत वस्तु को संक्षिप्त करके बताना )  इसमें एक दृष्टि से सारा संसार बंध गया। पर यह दृष्किोण व्यावहारिक कम है। किसी भी तत्व को व्यावहारिक बनाए बिना यह जन-भोग्य नहीं बन पाता। इसलिए, उक्त वर्गीकरण को व्यवहार नय की दृष्टि से समझना भी जरूरी है। इस क्रम में हम सबसे पहले जीव तत्त्व को लेते हैं। जीव के दो प्रकार हैं-सिद्ध और संसारी ।  पहले सिद्ध को जानने का प्रयत्न करते  है।(औऱ पहले सिद्ध ...