महावीर जी के जन्म कल्याणक पर कविता

 (*महावीर जी के जन्म कल्याणक*

*पर मेरी  रचना के माध्यम से भाव भीनी बधाई*)

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*वीर  आप मेरी श्रद्धा के सुमन हो जिसे*

*अंजली में भर  अर्पण तुम्हें कर जाऊं*

*छवि बसा ली है आंखों  में*, 

*पल भी विस्मृत ना  कर पाँऊ*


*महावीर -महावीर बनें कैसे* 

*इसकी झलक दिखाती हूं*

*दुःख सुख में सम रहने की* 

*महानता में बताती हूँ*


*स्नेह  के सागर   आप हो*

*दुखियों के आधार आप हो*  

*मां का दर्द, गर्भ में जान लिया था*

*जब तक माँ बाप  रहेंगे , दीक्षा नहीं लूंगा प्रण अनूठा ढान लिया था*

*मुख पर असीम  शान्ति हैं*

*शत्रु भी मित्र बन जाये* 

*ऐसी विशेष आपके भामंडल में कान्ति है।*

*गर्भ हरण, प्रथम समवशरण की देशना में केवल देवगण का* 

*आना, देशना का रिक्त जाना*

*केवल  ज्ञान के पश्चात भी* *गौशालक का उपसर्ग  सहना* , *चरमो त्पात   होना ,सूर्य चंद्र का मूल रूप मे देशना में आना* 

,*ऐसेकई अच्छेरे हुए* 

 *22 परिषह  आये जीवन में* 

*(शायद ही कोई बचा हो)सह* 

*गए सम भाव से*

 *जिस संगमदेव ने दिए छः माह तक मरणांतक उपसर्ग पर उसपर भी नहीं रोषित हुए*, *बल्कि करुणा के दो  आंसू*

*उसकी भावी दुर्गति पर बहा दिए*

*24 तीर्थकरों में सबसे कम थी* ,

*आयुष्य औऱ सबसे छोटी* *अवगाहना थी*


*पर उन सबके कष्ट मिला लो  तो भी वीर के कष्टों  का पलड़ा भारी था*,


*पहले तीर्थंकर जो अकेले चले दीक्षा  लेने साथ कोई ना आया था*

 *निर्वाण भी अकेले पायाथा*

 

*मालूम था ह्रस्व होगा धर्म का* 

*पर नियति यही जान छोड़* *दिया*

*चाहते तो उम्र बढ़ा सकते थे*

*आग्रह स्वंय इंद्र ने था किया*,

*ऐसा कभी नहीं हुआ ना कभी होगा*

*कह निर्वाण का आलिंगन किया*


 *हे,करुणा की असीमता के सागर* , 

*आपके जन्म कल्याणक पर जन जन को बधाई हो*


*धन्य हुए हम भी*

 *ऐसे  विलक्षण तीर्थंकर के* *शासन काल में*,  

*उनके हम  अनुयायी है, *आपके  ज्ञान के कोटिश- *कोटिश अंश  भी मिल जाये तो*

*भव सागर तर पाऊं ऐसा उपक्रम हो*,

*अंजू गोलछा का आपके चरणोंमें वंदन स्वीकृत हो* 

*मुझ नाचीज़ की  भाव भीनी रचना*

*वीर चरणों  में अर्पित हो*


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