देश तुझ पर कविता करने को जी चाहता है

देश तुझ  पर कविता करने को जी चाहता है

बिखरने को आमादा खड़ा , सीमा हीन सा है पड़ा
तुझे ए मेरे वतन
कविता में संजो लेने को जी चाहता है
कुछ देश पर ,कुछ काल पर  इस बदलते आयाम पर
कुछ लिखने को जी चाहता है .
बिखरे ऐतिहासिक  तत्व छिटक छहरी सागर बूंदों सरीके
इन्हें अंजुली में भरके , भारत माँ को समर्पित करने को जी चाहता है

लड़ाइयों को भी नाम दिया इतिहास ने
देश प्रेम की जगती ज्वाला को भी क्रांति का नाम दिया इतिहास ने
पर आज जो धधक रही है ,अनाम  सी  ज्वाला जन २ के मन में
 इतिहास मौन सा दिखता है .
आज इन आक्रोशों को एक नाम देने  का जी चाहता है 

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