मुहपत्ति
1.मुहपत्ति किसे कहते है ?
उ.जो मुंह पर बांधी जाए उसे मुहपत्ति कहते है।
( *मुहपत्ति का ऐसा अर्थ न ही आगमों में हैं और न ही पूर्वाचार्य रचित टीकाओं में ।*
*ऐसे अर्थ करने पर अनेक अनर्थ की संभावना आती हैं जैसे रजोहरण का शब्दार्थ सीधे सीधे रज/मिट्टी/कचरा को हरणे वाला यानी झाडू होगा*)
2.मुहपत्ति क्यो बांधी जाती है ?
उ.मुहपत्ति जैन की पहचान है, जीव रक्षा, थूंक आदि से बचाव व धर्म चिन्ह के लिए मुहपत्ति मुंह पर बाँधी जाती है।
( *मुहपत्ति बांधना जैनो की पहचान हो तो फिर स्थानकवासी श्रावकों को भी 24 घंटे पहनके रखना चाहिए नही तो फिर जब जब बिन मुहपत्ति बांधे रहेंगे तब तब अजैन कहलायेंगे।*)
3.मुहपत्ति मुंह पर रखने की मान्यता कौन कौन से जैन सम्प्रदायों में है ?
उ.श्वेताम्बर परंपरा में स्थानाकवासी, तेरापंथी दोनो मुहपत्ति मुंह पर बांधते है जबकि मूर्तिपूजक परंपरा में मुंह पर कपड़ा रखकर बोलने की परंपरा है।( *मुहपत्ति हमेशा बाँधे रखना श्वेतांबर परंपरा के नयी अमूर्तिपूजक संप्रदायों की मान्यता हैं*)
4.खुले मुंह बोलने से जीव विराधना होती है ऐसा किस आगम में उल्लेख है ?
उ.श्री भगवती सूत्र शतक 16 उद्देशक 2 में शकरेंद्र महाराज के अधिकार में खुले मुंह बोली हुई भाषा को सावद्य, जीवो को मारने वाली भाषा बताया है।
( *सत्य हैं पर बाँधके बोलने की बात नही हैं।*)
5.जैन मुंह पर कपड़ा बांधते हैं क्या ऐसा अजैन मान्यता के ग्रंथ भी मानते है ?
उ.हाँ शिवपुराण नामक अजैन ग्रंथ में तुण्डे वस्त्रस्य धारक शब्द से जैन संतो के मुंह पर कपड़ा बंधने की सिद्धि होती है।
( *शिवपुराण से आधा लेना आधा छोड देना ये तटस्थ पुरूषें के लक्षण नही हैं।*
*शिवपुराण, ज्ञानसंहिता 29-अध्याय, श्लोक-311*
*वस्त्रयुक्तं तथा हस्तं, क्षिप्यमाणं मुखे सदा। धर्मेति व्याहरंतं, नमस्कृत्य स्थितं हरे।*
*अर्थ- वस्त्र युक्त हाथ को मुख पर रखते और धर्मलाभ कहते।*
*किसी भी तरह का झूठा प्रचार करना अनुचित हैं, मोक्षार्थी जीव ऐसा पाप कदापी नही करते।*
*शिव पुराण भी हाथ में रखने की प्राचीन परंपरा का स्पष्ट समर्थन करता हैं*)
6.क्या मुहपत्ति बांधना लवजी ऋषि जी म सा से चालू हुआ है ?
उ.नही,पूज्य श्री लवजी ऋषि जी म सा से पहले के संत भी मुंह पर मुहपत्ति बांधते थे । शिवपुराण, योगशास्त्र आदि कई ग्रंथो में जो कि पूज्य श्री लवजी ऋषि जी म सा से पहले ही बन चुके है उन में मुंह पर कपड़ा बांधने का वर्णन मिलता है।
( *शिवपुराण क्या कहता हैं ये हम पहले ही देख चुके।*
*योगशास्त्र और शिवपुराण के नाम पर झुठ फैलाना यानी अपने आप को झुठ के दल दल में फसाते जाना । योगशास्त्र में ऐसा कोई वर्णन नही हैं । वर्णन होता तो श्लोक सहित लेखक निश्चित रूप से वर्णन करते।*
*इतना ही नही स्थानकवासी संत संतबालजी ने कहा हैं कि मुखबंधन लोकाशाह के समय से नही पर लवजी से चालु हुआ हैं और ये जरूरी भी नही - जैन ज्योति 18-5-1936 पृ 72 राज्यपाल मगनलाल बोहरा का लेख।*
*तेरापंथी आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी भी कहते हैं कि मुखबंधन प्राचीन परंपरा नही हैं और आगम में प्रतिलेखन विधि में मुहपत्ति से शरीर का प्रमार्जन करना बताया हैं। तत्वबोध ता.1/3/4 सितंबर 2007*)
7.क्या मूर्तिपूजक मान्यता में मुंह पर कपड़ा बांधने की कोई परंपरा है ?
उ.मूर्तिपूजक आज भी पूजा करते समय मुंह पर कपड़ा बांधते है, उसके अलावा उनके काल के चुके साधु साध्वियों के मुंह पर मुहपत्ति बंधने की परंपरा है, इसके अलावा उनके कई ग्रंथो में मुंह पर कपड़ा बांधने की विधि बताई हुई है
( *मूर्तिपूजक पूजा करते हुए मुह और नाक दोनो पर कपडा बाँधते हैं जिसका कारण ही अलग हैं। डस्ट अलर्जी से कोई बचने के लिए मास्क पहनता हैं तो सभी को पहनना अनिवार्य नही हो जाता।*
*हाँ, आज भी प्राचीन परंपरा का अनुसरण करते मूर्तिपूजक साधु मुखबाँधते हैं पर हमेशा नही, जब उपाश्रय का प्रमार्जन करते हैं तब ताकी सचित्त मिट्टि नाक मुह में न जाये और उनकी हिंसा न हो।*
*या फिर तब जब हाथ में बडे बडे ग्रंथ हो जिनको दोनो हाथ से पकडना पडता हैं, ऐसे में वे साधु 48 मिनिट पूर्व ही मुहपत्ति बदल देते हैं ताकि समुर्छिम मनुष्यों की हिंसा न हो ।*)
8.मुहपत्ति में थूंक लगता है तो क्या उसमे संमुर्च्छिम नही होते ?
उ.आगम में 14 संमुर्च्छिम के नाम है उसमें थूंक नही आया है अतः थूंक मे जीव नही होते है।
( *श्री पन्नवणा सूत्र में 14 योनी बताई हैं समुर्च्छिम मनुष्यों की, उसमें चौदवा कहा है 'सर्व अशुचि स्थान' अब थूंक अशुची नही तो क्या हैं ?*
*प्राचीन टीकाकार श्री मलयगिरीजी म.सा. ने इसका अर्थ करते हुए स्पष्ट कहा कि जो जो स्थान मनुष्य के संपर्क से अपवित्र हुए हो। शरीर का कोई भी अंग शरीर से पृथक होने के बाद पवित्र नही गिना जाता। थूंक हो चाहे रक्त हो, चाहे फुंसी का रस हो सभी अशुचि हैं और 48 मिनिट के अंदर न सूके तो समुर्छिम जीवों की अत्पत्ति एवं मरण होता ही हैं।*
*थूंक में समुर्छिम न मानने पर थाली धोकर पीने की प्राचीन परंपरा भी झूठी ठहरेगी इतना ही नही सुबह से शाम तक झूठा खाना रखने की भी आपत्ति आयेगी जो जैनाचार के एकदम विरूद्ध हैं। एक झूठी मान्यता अनेक दुराचार खडा करती हैं।*)
9.शरीर से निकलने वाली अशुचि में समुर्छिम होते ही है फिर थूंक में क्यो नहीं होंगे ?
उ.आगम में शरीर की कई अशुचियाँ बताई है उनमें आंख का मेल, आंसू, कान का मेल, पसीना शरीर का मेल इन सब का नाम नही आया है अगर थूंक में जीव माने तो पसीना आदि इन सब मे भी जीव मानने पड़ेंगे फिर तो विहार आदि में अनिवार्य रुप से पसीना होता है अतः वहां भी जीव विराधना माननी पड़ेगी लेकिन ऐसे तो कोई भी नही मानते है अतः थूंक में भी समुर्छिम नही मानने चाहिए।
( *आगम कार ने 'सर्व अशुचि स्थान' कहकर सभी अशुचि का सामवेश कर ही लिया हैं। इसको अनदेखा कर मनमानी करना अनुचित हैं।*
*इतना ही नही सूत्रों में पसीने से झूं जैसे चर्मचक्षु को दिखने वाले जीव तक की उत्पत्ति का स्पष्ट वर्णन हैं तो पसीना, कान के मैल आदि में समुर्छिम की उत्पत्ति न मानना या तो सांप्रदायिक हट गिना जायेगा या मूर्खता*
*और पसीना सामान्य रूप से जल्दी सूख जाता हैं हवा के संपर्क के कारण, वहीं मुहपत्ति में आठ पट होने से मुह के पास रहा भाग थूंक के विशिष्ट संपर्क में आता हैं पर प्रचूर मात्रा में हवा के संपर्क में नही आता जिस कारण समुर्छिम की विराधना होती हैं।*
*पसीना फिर भी न सूका हो तो झूँ तक उत्पन्न हो सकती है तो समुर्छिम के लिए विपरीत कथन करना निरीह अज्ञानता होगी।*
*मू.पू.संघ के साधुजी आज भी जब लंबे विहार आदि से आते हैं तो समुर्छिम की हिंसा से बचने के लिए पसीने वाले कपडे तुरंत सुखा देते हैं।* )
10.क्या भगवान महावीर के साधु साध्वी जी भी मुहपत्ति बांधते थे ?
उ.हां बांधते थे
श्री गौतम स्वामी जी आदि कई मुनिराजों के अधिकार में मुहपत्ति की प्रतिलेखना करने का वर्णन आया है, मुहपत्ति होगी तो ही उसकी प्रतिलेखना संभव है।
( *मुहपत्ति का होना और बाँधना एक कैसे होता हैं ?*
*अस्पताम में हजारो मास्क होती हैं तो क्या यह मतलब हुवा कि हजारो लोग मास्क पहने हुए हैं ?* )
11.मुहपत्ति कहा मुंह पर बांधना थोड़े ही कहा फिर उसको मुंह पर क्यो बांधे ?
उ.नाम से ही कार्य की सिद्धि होती है, पगरखा शब्द से पांव में जूते पहनने की सिद्धि, अंगरखा से अंग की रक्षा करने वाले वस्त्र की सिद्धि होती है उसी प्रकार मुहपत्ति से मुह पर रखे वस्त्र की सिद्धि होती है जब नाम मे ही अर्थ है तो उसके विवेचन की जरूरत ही कहाँ है।
( *नाम से ही अर्थ हैं, मतलब रजोहरण यानी झाडू। हर शब्द का अर्थ शब्दार्थ ही नही होता शब्द के अर्थ तीन प्रकार के होते हैं*
*शब्दार्थ - शब्द का सीधा अर्थ जैसे चंद्रकांत यानी चंद्र का प्रकाश*
*रूढार्थ- चंद्रकांत किसी व्यक्ति का नाम*
*एदंपर्यार्थ- भगवान चंद्रकांत हैं यानी ज्ञान प्रकाश से मन को शीतलता प्रदान करने वाले।*
*सिर्फ शब्दार्थ ही पकडेंगे तो नमो अरिहंताणं बोलने पर ही सबसे बडा अनर्थ हो जायेगा क्योंकि नमो अरिहंताणं का शब्दार्थ हैं 'जो व्यक्ति अपने शत्रु को मारदे उसे नमस्कार।' पर नमोअरिहंताणं बोलते एदंपर्यार्थ याद करना हैं शब्दार्थ नही।*)
12.मुहपत्ति कहा उसके डोरे के बारे में कहां कहा गया है ?
उ.किसी को रोटी के लिए कहने पर रोटी के साथ सब्जी, पानी आदि का भी समावेश हो जाता है उनको अलग से कहने की कोई जरूरत ही नही होती वैसे ही मुहपत्ति कहने से उसके अंदर रहे डोरे का भी समावेश हो जाता है।
( *रोटी बिना सब्जी सामान्य रूप से ग्रहण नही की जाती उसके लिए समझ सकते हैं कि सब्जी भी साथ गिनि जाये। पर जो वस्तु सामान्य रूप से अलग भी उपयोग में ली जाती हो उसके लिए ऐसा अर्थघटन उचित नही।*
*मुहपत्ति सामान्य रूप से बिना डोरे के उपयोग में ली ही जाती हैं।*
*और बिना कोई आगमिक आधार के आपने जहाँ मुहपत्तिका माप बता दिया, इतनी सूक्ष्म बात कही हैं तो डोरे का माप आदि बात कैसे छोड दी ?*
*रोटी के लिए आटे में पानी कितना मिलाना हैं कहने वाले सब्जी के विषय में कोई निर्देशन दिये बिना कैसे रह सकता हैं ?*)
13.मुहपत्ति बंधने से मुंह से छोड़ी हवा फिर से मुंह मे ही आती है , मुहपत्ति बीमारियों का कारण है अतः नही बांधनी चाहिए क्या यह सही है ?
उ.गलत है, अगर बीमारियां फैलती तो ऑपरेशन के समय डॉक्टर मास्क कैसे पहनते और सार्स जैसी बीमारियों में लोगों को मुंह पर कपड़ा बांधने की सलाह कैसे दी जाती, मुहपत्ति बंधने से कई संक्रमक रोगों से सहज ही बचाव हो जाता है।
( *ये शोध का विषय हैं, बाकी डाॅ हमेशा नही बाँधते और बिमारी में नाक और मुह दोनो पर कपडा बाँधा जाता है। इनको मुहपत्ति बाँधने से जोडना मूर्खता मात्र हैं क्योंकि रोग से बचाव मुख्य रूप से नाक बाँधने से संभव हैं सिर्फ मुह बाँधने से नही।* )
14.क्या तीर्थंकर भगवान खुले मुंह बोलते है ?
उ.नही, भगवान मुहपत्ति नही बांधते पर बोलने का अवसर होने पर मुंह के आगे हाथ रखकर यतना पूर्वक बोलते है।
( *ये बिना कोई आगमिक आधार की कपोलकल्पना मात्र हैं, भगवान अगर हाथ से मुहपत्ति का काम कर लेते हैं तो रजोहरण का भी कर लेते हैं ऐसी आपकी मान्यता होगी ?*
*संप्रदायवाद के वश हो कैसी कैसी विचित्र मान्यताएँ खडी कर दी हैं, क्या भगवान महावीर की संतान उनके विषय में कुछ भी बोल देती हैं ?क्या सच्ची संतान ऐसी होती हैं ?* )
15.जब तीर्थंकर भगवान मुहपत्ति नही रखते तो हम क्यो रखे ?
उ.भगवान के अतिशय होने से मुहपत्ति की जरूरत ही नही पड़ती पर हमारे कोई अतिशय नही है, भगवान के अंगुलिगो में छेद नही होने से उनको बोलते समय, खाते समय कोई तकलीफ नही पड़ती है, पर अपने ऐसे शरीर न होने से वस्त्र, बर्तन आदि का उपयोग करना पड़ता है, अगर एकांत आग्रह रखे तो मुहपत्ति क्या वस्त्र, रजोहरण या मोर पिच्छी कर कमंडल भी नही रख सकेंगे क्योंकी भगवान तो ये सब भी नही रखते थे, अतः हर जगह तर्क उपयुक्त नहीं होते
जैन दर्शन व्यक्ति प्रधान नही आज्ञा प्रधान है
( *आज्ञा प्रधान कहने के लिए मात्र या सचमें मानते भी हैं ?*
*आगमो में मुखबंधन का कोई वर्णन नही इसीलिए आगम में वर्णित नाई का काष्ठ का टुकडा मुह पर बाँधने का सहारा लेना पडता हैं। मानो जैसे साधु और नाई का कल्प एक हैं।*
*यहाँ तक कि गौतम स्वामी को ईर्यासमिति का भंग करने वाले तक अप्रत्यक्ष रूप से कह देते हैं सिर्फ अपना उल्लू सिधा करने के लिए ।*)
16.मुहपत्ति का माप कितना है ?
उ.16 *21 अंगुल।
16.अंगुल चौड़ी 21 अंगुल लंबी मुहपत्ति होती है उसे 8 पट करके मुह पर बाँधते है।
( *आगम में कहाँ लिखा हैं ? और स्थानकवासी आगम के सिवाय अन्य ग्रंथों को मानते भी नही*)
17.मुहपत्ति के 8 पट क्यो करते है ?
उ.2 मान्यता है।
1.आठ कर्म को क्षय करने के लिए
2.आठ पट होने से मुह से आने वाली हवा का वेग काफी कम हो जाता है जिससे वायुकाय की अयतना नही होती है आठ से कम पट होने पर जीव मर सकते है अतः आठ पट रखे जाते है।
( *आगम में कहाँ लिखा हैं ?* )
18.जैसे मुंह की हवा से जीव मरते है वैसे नाक की हवा से नही मरते क्या ?
उ.तेज हवा से वायुकाय के जीव मरते है इसके लिए आगम में जल्दबाजी का निषेध है नाक की हवा धीमी होती है नाक में बाल का आवरण आ जाने से उसकी गति और मंद हो जाती है वरना तेज श्वास चलने आदि में तो अयतना मानते ही है, अतः उस समय अनुलोम विलोम आदि आसन करते समय, छीक आते समय भी नाक पर भी कपड़ा रखते है।
( *इस कल्पना की सच्चाई जानने के लिए सिर्फ एक छोटा प्रयोग करें, सांस लेते छोडते वक्त नाक के आगें उंगली रखें और देखें कि श्वास गरम हैं या नही । दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा ।* )
19 .बिना मुहपत्ति सामायिक करे तो क्या प्रायश्चित आता है
उ. 11 सामायिक का प्रायश्चित आता है।
( *बिना मुहपत्ति मतलब बाँधना आवश्यक नही!*)
20.गुरु भगवंतों से चर्चा आदि करते समय अगर मुहपत्ति न हो तो क्या करना ?
उ.मुहपत्ति न होने पर मुंह के आगे रुमाल रखकर रखना वह भी न हो तो हाथ की हथेली मुंह के आगे रखना, अंगुलिया आगे नही रखना क्योंकि उनमें छेद होने से हवा बाहर निकलती है, वायुकाय की अयतना होती है।
( *वाह! श्रावक जितना ध्यान बोलते समय रख लेते हैं कपडा मुह के आगे रखकर इतना ध्यान पूरा जीवन यतना पूर्वक जीने वाले साधु नही रख पाते ? इसीलिए तो बोलते वक्त भुल जाने के भय से पूरा दिन कपडा बाँधे रखते हैं।*)
21.अगर मुहपत्ति न हो तो मौन पूर्वक सामायिक कर सकते है क्या ?
उ.नही कर सकते है, छद्मस्थता, अज्ञान आदि के कारण कभी अचानक बोलने का प्रसंग आ सकता है और अयतना हो सकती है, तथा सामायिक की शुद्धि के लिए , सामायिक की पहचान के लिए मुहपत्ति बांधकर रखना अनिवार्य है चाहे बोले या ना बोले।
( *20 वे और 21वे उत्तर में ये कैसा विरोधाभास ? बिना मुहपत्ति के सामायिक नही हो सकती तो साधु को साथ चर्चा कैसे हो सकती हैं ?*
*और साधु के साथ चर्चा कर सकते हैं तो सामायिक क्यों नही?*
*चर्चा करते यतना रखने वाला सामायिक में यतना नही करेगा ?* )
22.क्या बिना मुहपत्ति सामायिक होती ही नही है ?
उ.ऐसा नही है कि बिना मुहपत्ति सामायिक नही होती, तिर्यंच बिना मुहपत्ति ही सामायिक करते है, पर वो उनकी मजबूरी है अपनी ऐसी कोई मजबूरी नही होने से बिना मुहपत्ति की सामायिक नही होती है।
( *वैसे तिर्यंछ के मुह भी बाँधे जाते हैं।इसीलिए कहीं आगे जाकर आप यह न कह दें कि जब तिर्यंच का मुह बंधा हो तब ही उन्हे सामायिक करनी चाहिए।*)
23.क्या साधुजी बिना मुहपत्ति के हो सकते है ?
उ.तीर्थंकर भगवान और भाव दीक्षित के अलावा बिना मुहपत्ति के साधु नही होते है।
( *"बिना मुहपत्ति नही हो सकता" ध्यान रहे बिना बाँधे नही कहा हैं।*)
24.क्या रंगीन मुहपत्ति बांधी जा सकती है ?
उ.नही
पहले और अंतिम तीर्थंकर भगवान के शासन के साधु साध्वी जी कोरा कपड़ा वापरते है उनके कारण श्रावक श्राविका भी सामायिक के उपकरण सफेद और कोरे रखते है, अतः कलरफुल और डिज़ाइन वाली मुहपत्ति आदि वपरना सही नही है।
( *सत्य हैं*)
25.मुहपत्ति में तीन गुण, ........................
थूंक पड़े नही शास्त्र पर, ये तीन गुण प्रत्यक्ष
उ धर्म चिन्ह जीव रक्ष
( *पुन: कहना पडेगा मुहपत्ति बाँधना धर्म चिन्ह तो नही बाँधे श्रावक अन्य धर्मी या अधर्मी मानना पडेगा, हाँ धर्म का नही पर नवीन मत यानी स्थानकवासी मत का चिन्ह मान सकते हैं।*
*मुहपत्ति बिना बाँधे रखने से ज्यादा जीव रक्षा होती हैं,संपातिम की, समुर्छिम की एवं वायुकाय की, इतना ही नही निरर्थक क्रिया और उपयोगरहित क्रिया से भी बचा जा सकता हैं।*)
सभी धर्मप्रेमी भाई बहनों का हार्दिक आभार
श्री जिनवचनो से अंश मात्र भी न्यून अधिक या विपरीत कहा तो मिच्छामि दुक्कडम🙏किशोर गांधी बेमाली सोलापुर🙏🙏
(बहुत कुछ जिनवचन विपरीत लिखा होने के कारण संविग्न गीतार्थ गुरूभगवंतों से आलोचना लेकर शुद्धि करना उचित रहेगा।)
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