जीवन
जीवन की मीनाकारी
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जन्म 'मिलता' है और मौत' आती' है परन्तु जहाँ तक जीवन का प्रश्न है वह तो 'बनाना' पड़ता है तभी तो जीवन को एक प्रकार की मीनाकारी कहा है... जिसकी विभूषा एक मणि के साथ दूसरी मणि के जड़ने से निखरती है।
मात्र श्वासोच्छ्वास का चलना जीवन नहीं है अपितु जीवन प्रतिपल मौत की ओर प्रस्थान कर रहा है। मौत का एक बार भी स्मरण आ जाए तो जीवन के सारे प्राण निकल जाते हैं। जब तक मृत्यु का विचार नहीं किया तभी तक सपनों को फैलाये जाओ फूलाये जाओ और कागज के महल बनाये जाओ... लेकिन मृत्यु का ख्याल आते ही सब ढह जाता है।
इसलिए जिन्दगी को जीते हुए मृत्यु की तैयारी प्रतिपल करनी होगी। जो इन्सान जिन्दगी में मरने की तैयारी नहीं कर पाता वह गलत ढंग से मरता है।
जब तक हम जीवन का परम मूल्य नहीं पहचानते तब तक मरण को भी नहीं जान सकेंगे। जीने की एक पवित्रतम मंजिल हो .... एक उच्च आदर्श हो तभी जिन्दगी के कोई मायने हैं, ऐसी जिन्दगी मृत्यु को मंगल रूप प्रदान करती है।
संसार में जन्म ले कर निरुद्देश्य मर गए तो दुनिया में आने का औचित्य क्या है ...? जिन्होंने उद्देश्यपूर्ण व निष्पाप जीवन जिया है उनके लिए मृत्यु महोत्सव है और बन्धनों से मुक्त होने का श्रेष्ठतम सुअवसर है।
सफल मृत्यु उसकी होती है जो जीने की कला को समझता है। कुशल वह है जो जीने की कला को सीख लेता है। ऐसा महामानव इस दुनिया में अपने उत्तम लक्ष्य के लिए जीता है और उसी के लिए मर-मिटता है।
ढलता सूरज : बुढ़ापा
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बुढ़ापा ... साँझ का ढलता हुआ सूर्य है, जो शीघ्र अस्त होने वाला है और इसके बाद मौत की गहन अंधेरी रात आनेवाली है। अतः जीवन की संध्या ढलने से पहले धर्म-जागृति का एक छोटा- सा दीप जला लेना क्योंकि कितना ही विस्तृत व सघन अंधकार क्यों न हो उसे मिटाने के लिए एक दीपक समर्थ होता है ...।
बुढ़ापे का शरीर पुरानी नौका है... इस जर्जर नौका में मोह और माया का अधिक माल भरोगे तो नौका डूब जाएगी।
इसलिए महापुरुषों का कथन है, जैसे-जैसे शरीर की नौका कमजोर होती जाए वैसे-वैसे मोह-माया... झूठ-कपट के रगड़े- झगड़े का भार भी हल्का करते जाना ... वर्ना जीवन की गाड़ी खटारा बन जाएगी।
जब शरीर और इन्द्रियाँ थक जाएँ तो समझ लो जीवन में जागने का क्षण आ गया ... इस हाल में आदमी को अपने घर लौट आना चाहिए ... कर्तव्य के कारण यदि घर न छोड़ सके तो घर के प्रति जो ममत्व है उसे छोड़ देना चाहिए।
भारत देश की पुरानी परम्परा के अनुसार मनुष्य को आठ और साठ साल की उम्र में घर छोड़ देना चाहिए। आठ साल का बच्चा विद्यार्जन के लिए घर छोड़ देता है तो साठ वर्ष की उम्र में आदमी संन्यासाश्रम के लिए घर छोड़कर चल पड़ता है ...।
बुढ़ापा आने लगे तब अपनी प्रवृत्ति का विस्तार कम करना वृत्तियों को संक्षिप्त करना ... संग्रह का घेरा सीमित कर लेना ... अपेक्षा का धागा ढीला छोड़ देना ... वाणी को मौन से श्रृंगारित कर लेना ... स्वभाव में मृदुता को बसा लेना और वस्तुएँ हाथ से फिसले उससे पहले उन्हें छोड़ देना ... इस प्रकार जो जीवन के अन्तिम पड़ाव पर भी जाग जाते हैं वे भी धन्य हैं ...।
जीवन का आखिरी हिसाब
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एक घर में बच्चे खेल रहे थे। अचानक बहुत शोरगुल हुआ क्योंकि बच्चे आपस में लड़ने लगे। इतने में एक बच्चा चिल्लाया ... "इसने मुझे धोखा दिया।"
बच्चों की आवाज सुन कर पिताजी ने पूछा, "किसने किसको धोखा दिया ...?"
बच्चे बोले, "इसने हमारे साथ गलत चाल चली है।" कुछ सोच कर पिताजी ने पूछा, "तुम्हारा यह खेल कितनी देर चलेगा...?"
बच्चों ने कहा, "बारह बजे तक खत्म हो जाएगा।" पिताजी ने आखिरी प्रश्न पूछा, "खेल खत्म होने के बाद जिसने धोखा दिया और जिसने धोखा खाया उनमें क्या फर्क होगा ...?"
बच्चों ने सहज कहा, "दोनों में कोई फर्क नहीं होगा क्योंकि आखिरी हिसाब सबको बराबर कर देता है।"
यह बात शत-प्रतिशत सच है, आखिरी हिसाब मौत का हिसाब है जो सब बराबर कर देता है।
यहाँ सब कुछ अनित्य है। जैसे फूल खिलते ही मुरझाना शुरू हो जाता है। खिलना और मुरझाना एक ही प्रक्रिया के दो छोर हैं।
यहाँ सभी चीजों पर विनाशता का कलंक लगा हुआ है, बंगला खंडहर बन जाता है ... कपड़ा चीथड़ा बन जाता है ... बर्तन टूट जाता है ... शरीर मिट्टी में मिल जाता है।
समय हर नई चीज को पुरानी और पुरानी को नष्ट कर देता है। इसलिए जो उत्पन्न होता है वह विनष्ट हो जाता है ... जो जन्मता है वह मरता है। इस क्षण के अतिरिक्त हाथ में कोई दूसरा क्षण नहीं है। अतः हर क्षण को आखिरी क्षण मानकर जीवन अन्तिम का हिसाब कर लेना ...।
आप प्रवासी हो
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जिन्दगी का विश्लेषण करोगे तो पाओगे यह संसार द्वन्द्वात्मक है। यहाँ प्रत्येक चीज अपने से विपरीत में प्रतिपल बदल रही है। सुख... दुःख में और दुःख ... सुख में तब्दील हो जाता है, संपत्ति विपत्ति में और विपत्ति ... संपत्ति में बदल जाती है।
अभी हम स्वस्थ हैं घड़ी भर बाद बीमार भी हो सकते हैं। जो जन्मता है वह मरता है ... जो उत्पन्न होता है वह विनष्ट हो जाता है जो खिलता है वह मुरझाता है ... यहाँ सब कुछ विपरीत में बदलता है।
इस जगत में सिर्फ बर्फ ही नहीं पिघलती तमाम वस्तुएँ भी पिघल रही हैं ... सिर्फ नदी ही नहीं बहती प्रत्येक वस्तु बह रही है ... सिर्फ पत्ता ही पीला नहीं पड़ता हर वस्तु पीली पड़ रही है ... प्राप्त वस्तु सतत बदल रही है और अप्राप्त परिस्थिति वर्तमान में विद्यमान नहीं है। ऐसे में किसी भी परिस्थिति से नित्य सम्बन्ध संभव नहीं है जो संभव नहीं उसकी आशा करना अथवा उस पर विश्वास करना भूल है।
वियोग ... विदाई ... विसर्जन... विनाश... इन चार 'वि' की सच्चाई को जान लेने के बाद धन की अन्धी दौड़ मंदी हो जाएगी ... अहंकार व्यर्थ हो जाएगा ... रगड़े-झगड़े में उलझने का मन नहीं करेगा और ममत्व की मात्रा स्वयमेव घट जाएगी।
जीवन रहते हुए यह चिन्तन अवश्य कर लेना ... संसार में कुछ भी नित्य नहीं है ... स्थिर नहीं है... जो अभी है वह दूसरे क्षण वैसा नहीं रहेगा... जो गया उसके लिए मत रोना ... जो आया उसका हर्ष मत मनाना क्योंकि जो आया है उसे जाना है...।
प्रतिपल ख्याल बना रहे, आप यहाँ के प्रवासी हो ... रहवासी नहीं, नित्यवासी नहीं ...।
'आज' और 'कल' में फासला
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एक व्यक्ति समुद्र किनारे सुबह से शाम तक बैठा इन्तजार करता रहे कि जब समुद्र की लहरें शान्त हो जाएगी तब स्नान कर लूँगा तो वह आदमी कभी भी स्नान नहीं कर सकेगा ... समुद्र है तो लहरें उठेगी ... टकराएगी और मिट जाएगी किन्तु जिनको स्नान करने की कला आ जाए वे लहरों के साथ-साथ स्नान कर लेते हैं।
संसार के सागर में जीवन निर्वाह हेतु व्यवस्थाओं की अनगिनत लहरें हैं। जीवन की अवस्था और व्यवस्था की लहरों में जीने की कला आ गई तो मृत्यु की तैयारी स्वतः हो जाएगी। अवस्था के साथ व्यवस्था में रूपान्तरण तभी हो सकता है जब मनुष्य धर्म और सत्कर्म को कल पर न टालें।
वस्तुतः मन जिसे महत्व देता है उसे तत्काल कर लेता है और जिसे महत्व नहीं देता उसके लिए वह टालमटोल करता है।
ज्ञानी कहते हैं, 'आज' और 'कल' के बीच अनेक संभावनाएँ हैं। आज और कल के फासले में दुर्घटना, आत्महत्या, बीमारी व मृत्यु होने की भी संभावना है।
ऐसा भी हो सकता है कि जो आदमी ऑफिस जाने के लिए निकला हो और कोई शत्रु अचानक आक्रमण कर दे। ऐसा भी हो सकता है कि फैक्ट्री में आग लगने से करोड़ों के नुकसान की बात सोचकर व्यक्ति स्वयं जहर खा ले ...। यह भी हो सकता है कि भयंकर दुर्घटना से अकस्मात् मृत्यु हो जाए ... ऐसा भी हो सकता है कि अचानक पेट में दर्द उठे और असाध्य बीमारी का अलार्म बज जाए ...।
हर पल बदलती हुई जिन्दगी में जहाँ ऐसी संभावना हो वहाँ 'आज' का सत्कर्म 'कल' पर टालना समझदारी नहीं है ...।
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🥀🥀संकलनकर्ता :
🙏 शैलेन्द्र कुमार जैन, [ राजगढ़ वाला ]
इन्दौर ( मध्यप्रदेश) 452-005
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🙏 शैलेन्द्र कुमार जैन, [ राजगढ़ वाला ]
इन्दौर ( मध्यप्रदेश) 452-005
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🙏 शैलेन्द्र कुमार जैन, [ राजगढ़ वाला ]
इन्दौर ( मध्यप्रदेश) 452-005
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🙏 शैलेन्द्र कुमार जैन, [ राजगढ़ वाला ]
इन्दौर ( मध्यप्रदेश) 452-005
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