सती मदनरेखा

भारतवर्ष में. सुदर्शनपुर नाम क प नगर था। सुदर्शनपुर के राजा का नाम था, मणिरथ | मणिरथ, न्याय नीती कुशल और क्षत्रियोचित गुण सम्पन्न था । मणिरथ के छोटे भाई का नाम युगबाटु था। युगबाट की तरह वीर और फला कुशल होने के साथ ही, विनम्र भी था | जिसकी यह कथा है, वह सती मयणरहा या मदनरेगा युगबाट की धर्मपत्नी थी ।


मणिरय और युगयाट्ट दोनों भाइयों में, परम्पर पूर्ण स्नेट या। मणिरथ, अपने छोटे भाई युगबाहु को पुत्र की तरह मानता



उस पर पूर्ण विश्वास रखता और उसकी सुविधा का भो समुचित रूपेण ध्यान रखता । इसी प्रकार युगबाहु भी, अपने बड़े भाई! को अपने पिता के समान आदरणीय मानता, उसकी इच्छा विरुद्ध कोई कार्य न करता, तन मन से उसकी सेवा करता, उसके प्रति विनम्र एवं आज्ञाकारी रहता और अपने हृदय में, स्वप्न में भी उसके प्रति दुर्भाव न देता तात्पर्य यह कि दोनों भाइयों में आदर्श स्नेह था। दोनों, दो देह एक आत्मा के समान रहते थे ।


एक दिन मणिरथ ने विचार किया कि मेरा भाई युगबाहु वीर, विनम्र, न्याय नीति कुशल और मेरा पूर्ण भक्त है । वह मेरा उत्तराधिकारी होने के सर्वथा योग्य है। इसलिए यही अच्छा होगा कि मैं युगबाहु को युवराज पद देकर अपना उत्तरा धिकारी घोषित कर दूँ। अभी राज्य का कार्य भार मुझ पर ही है, लेकिन जब में युगबाहु को युवराज बना दूँगा, तब कुछ भार उस पर भी पड़ जावेगा। जिससे मेरे पर का भार हल्का हो जावेगा। इस प्रकार विचार कर उसने, युगबाहु को अपना युवराज बनाने का निश्चय किया |


दूसरे दिन प्रातःकाल, मणिरथ, अपने निश्चय पर प्रसन्न होता हुआ बैठा था। उसी समय युगबाहु आया। बड़े भ्राता को प्रणाम करने, उसकी कुशल जानने एवं कोई सेवा कार्य। हो तो उसे सुनने के लिए, युगबाहु नित्य प्रातःकाल मणिरथ की सेवा में उपस्थित हुआ करता था। उसने अपने लिए ऐसा नियम ही बना लिया था। इस नियम के अनुसार, युगवार, मणिरथ के सामने उपस्थित हुआ और उसने मणिरय को प्रणाम किया | मणिरथ ने युगबाहु को नित्य से अधिक स्नेह एवं • आनन्द पूर्वक आशीर्वाद दिया। पारस्पारिक कुशल प्रश्न के पश्चात, = युगवाहु ने मणिरथ से कहा कि श्राज मैं आपको नित्य से बढ़त अधिक आनन्दित देख रहा हूँ। क्या में यह जानने के योग्य हूँ, कि आज ऐसा कौनसा हर्ष समाचार है, जिसने आप ऐसे गम्भीर महाराजा पर भी अत्यधिक प्रभाव डाला है ?


3 युगवाहु का कथन सुनकर, मणिरथ और भी अधिक प्रसन्न हुआ। उसने युगवाहु से कहा कि क्या कोई ऐसी घात भी हो : सकती है, जो मैं तुम से गुप्त रखूं ? मैंने आज तक तुम से न तो कोई बात गुप्त रखी ही है, न भविष्य में गुप्त रखने की इच्छा ही है और जिस बात के लिये तुम पूछ रहे हो, यह बात तो विशेषतः तुम्ही से सम्बन्धित है, इसलिए उसे गुप्त रखने का कोई कारण ही नहीं है। प्रिय युगबाहु, मुझे आज अवश्य ही क - प्रसन्नता है और प्रसन्नता का कारण है, तुम्हे युवराज बनाने का = मेरा निश्चय | मैंने तुम्हे अपना युवराज घनाने का निश्चय किया है। इस महान् शुभ निर्णय के कारण हो, मुझे प्रसन्नता है। मैंने सती मदनरेखा



सोचा, कि इस समय राज्य के कार्य का भार मुझ अकेले हो पर है। जब मैं तुम्हे युवराज बना दूँगा, तब मेरे ऊपर जो भार है, वह दो भागों मे घट जायगा और अर्द्ध भाग तुम्हारे कन्धों पर आ पड़ेगा ।


मणिरथ का कथन सुनकर, युगवाहू, सकुचाकर इस तरह नम्र हो गया, जैसे उस पर कोई स्थूल भार पड़ा हो। उसकी आँखे नीची हो गई। उसने मणिरथ से कहा, कि पूज्य भ्राताजी, बिना युवराज पद पाये, मैं आपकी सेवा करने और आपका भार बॅटाने में कुछ आनाकानी करता था, जो आपने मुझे युवराज पद देने का निश्चय किया ? युवराज पद लेकर उसके बदले में सेवा करना, यह मेरे लिए एक कलंक जैसी बात होगी। यह तो मेरी तुच्छता होगी। आपने जो विचार किया है, उससे तो यही स्पष्ट है, कि मै राज्य के लोभ के बिना आपकी सेवा न करता । समझ में नहीं आता कि मेरे किस व्यवहार के कारण आपके हृदय में मेरे प्रति यह विचार पैदा हुआ ।


युगबाहु का कथन सुनकर, मणिरथ श्राह्लादित होकर कहने लगा, कि प्रिय बन्धु, तुम्हारा यह कथन भी मेरे लिए आनंदकारी हुआ है। मैंने यह निश्चय न तो किसी प्रकार के सन्देह या अविश्वास के कारण किया है, न तुम्हे तुच्छ बनाने के लिए । किन्तु तुम्हारी नम्रता, सेवा एवं तुम्हारे गुणों से प्रभावित होकर,







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