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चार लाइन

हे लक्ष्मी मैया! सुने थे ये हम  तुम लड़ाई झगड़े से दूर रहती हरदम  फिर  संसद में  कैसे तुम रम गई  क्या तुम भी कलयुगी हो गई

कडवा सच

कडवा सच  माँ  तू अपने लाल को पैदा करके खुश मत हो  तू तो ईश्वर से खैर मना  क्योंकि  आने वाले समय में ऐसा ही होगा  कोई आंतक वादी होगा  कोई आंतक वाद का शिकार  और माँ तुम तो दोनों रूपों में ही ठगी जाओगी . अंग्रेजो से  देश  आजाद हो गया पर  आंतक वाद से नहीं हो पायेगा  ये अपनी धरती के खरपतवार है जितना काटो उग -उग आएगा

इमोशनल अत्याचार

  इमोशनल  अत्याचार  इस आयातित अपसंस्कृति में  भावों का बलात्कार होगया  इसीलिए लोग कहते है इमोशनल अत्याचार हो गया  भावों के तार जुड़े न जुड़े, शारीरिक तार जुड़ते है एक के रहते दूसरे से बंधते है , अपने प्यार की तहकीकात करवाते  है और छले जाते है अपने गिरेबान में मुंह छिपा रोते , चीखते , चिल्लाते है  दो खानदान की   रुसवाई करवाते  है मैं ये कहती हूँ , ये प्यार नहीं ढकोसला है प्यार तो प्यारा  होता है, खुद से ज्यादा प्यार पर भरोसा होता है  प्यार तो विश्वास का दूसरा नाम है  बिना शर्तो का जज्बा होता है ,पर जो ये कहता है ,वही हंसी का पात्र बनता है U TV बिंदास वाले आज के इस जज्बे से खूब खेलरहे है और सच  ये भी इमोशनल अत्याचार कर रहे है हकीकत खुली पड़ी है अब इमोशन में कुछ नहीं शेष बस अत्याचार ही अत्याचार  हो गया है भावों का सच बलात्कार हो गया

मेरे अपने विचार

मेरे अपने विचार  तुम देवता होगये दुनिया  की नज़र में .पर ये भी एक सच है  ,जब  जब तुम दुखी या सुखी हुए,तब तब तुममे तृष्णा  थी .  भावों  के अनुप्रेषण से ,संवादों के सम्प्रेषण से , कुछ कृति  अनमोल करो  अपने ही अनुभवों से  हम क्या थे क्या होंगे  क्या से क्या हो गए  बदले स्वभाव  आश्चर्य जब स्वयं को आजाये  समझ  जीवन बहुत कुछ घटित  हो गया जो विपरीत था तुम से  रास्ते मिलते ही चले जायेगे ,पाँव उधाके तो देखो  काफिले बहार के भी आयेगे, चमन  बसा के तो देखो  जहा स्वंयं के आत्म विश्वास में कमी आती है वहीँ से अन्धविश्वास पनपने लगते है . मनुष्य  एक समझदार प्राणी है तभी तो उसने सीख लिया है करना  खुद से खुद का सौदा  दुसरे  के हाथों . भिभक्षु है सभी यहाँ अधिष्ठाता कौन बनेगा  ? यास्टिक हे यहाँ सभी  बुद्ध यहाँ कौन बनेगा ? क्षीर को क्षार ,बनाते है  अनिल में  अनल देखते है  दिग्भ्रमित ! से लोग  अल्लाह ,ईश में फर्क करने वाले   ये तो इंसान को भ...

व्यंगातम कविता

व्यंगातम कविता  फील गुड   (एक बार चुनाव में बीजेपी ने नारा दिया था - फील गुड  बस वही नारा उनका किनारा कर गया .उस वक़्त मैंने ये कविता उस वक़्त के हालात को देख कर लिखीथी )                              फील गुड है या ख्वाब सुनहरा बता तेरा स्वाद है क्या ?                 तिलस्मी दुनिया वाले आओ बताएं इसका हाल है क्या ? जेल से  भागे कैदी सिपाही सो रहे है,  साहूकार  तो अपनी खैर मना रहे   ,कैदी   फीलगुड मनारहे है                                     रेल रोज़ पटरी से उतरती है                                    रोज़ इस्तीफ...

मुक्तक

मुक्तक    हर नज़र साधू नहीं ,हर बसर गाँधी नहीं   सूत हर रेशम नहीं, वस्त्र हर खादी नहीं   नित की कसौटी पर मत कसो इंसान को  आदमी -है आदमी सोना नहीं चांदी नहीं  एक शाम मैं घुमने निकला ,दिल में बड़े अरमान थे  एक तरफ थी झाड़ियाँ ,एक तरफ शमशान थे  एक हड्डी जो मेरे पांव को छू गई उसके यहीं बयान थे ए मुसाफिर !जरा संभल के चल हम भी कभी इंसान थे  मुरझ -मुरझ के गिर जाने को हर कुसुम खिलता  है  कितने ही दीप जला दो पर  दीप ना दिन को जलता  है मन चाही हर बात मिले  ऐसी चाह निरर्थक कितने ही हो रंगीन जिन्दगी ,पर बेरंग कफ़न मिलता