व्यंगातम कविता
व्यंगातम कविता
फील गुड
(एक बार चुनाव में बीजेपी ने नारा दिया था - फील गुड बस वही नारा उनका किनारा कर गया .उस वक़्त मैंने ये कविता उस वक़्त के हालात को देख कर लिखीथी )
फील गुड है या ख्वाब सुनहरा बता तेरा स्वाद है क्या ?
तिलस्मी दुनिया वाले आओ बताएं इसका हाल है क्या ?
जेल से भागे कैदी सिपाही सो रहे है,
साहूकार तो अपनी खैर मना रहे
,कैदी फीलगुड मनारहे है
रेल रोज़ पटरी से उतरती है
रोज़ इस्तीफे की नौंटकी कर रहे है
जनता तो हनुमान चालीसा पढ़ कर
जान की खैर मना रही
रेल मंत्री फीलगुड मनारहे है
भूकंप तूफान में जकड़ा शहर
नेता मुआवजा मांग रहे है
जनता तो है बदहवास !
मुख्यमंत्री फीलगुड मनारहे है
सी .बी आई में केश धरे है
फिर भी पार्टी अध्यक्ष बुला रहे है
जनता तो है चुप ,
जोगी जी फीलगुड मनारहे है
कल की बनी सड़को पर खड्ढे मुस्कुरा रहे है
लोग तो हड्डियों खैर मानते
ढेकेदार फीलगुड मनारहे है
केश होने पे भी बेशर्मी से विद्रूप हंसी
हमाम में सब नंगे कहकर धडल्ले से
नेता पल्ला झाड रहे है
जनता तो इनके कारनामों से आवक
वकील फीलगुड मनारहे है
कल तक दे रहे थे गालियाँ, आज गलबाहिंया
ये कैसा राजनीतिधर्म निभा रहे है
जनता तो बेचारी छली गई
अवसरवादी नेता फीलगुड मनारहे है
टेंडरो में हो रहे घपले , घपलों में ही देश उठ रहा है
जनता तो है फंसी हुई इस देश में घपलेवाले ही फीलगुड मनारहे है
नेता पल्ला झाड रहे है
जनता तो इनके कारनामों से आवक
वकील फीलगुड मनारहे है
कल तक दे रहे थे गालियाँ, आज गलबाहिंया
ये कैसा राजनीतिधर्म निभा रहे है
जनता तो बेचारी छली गई
अवसरवादी नेता फीलगुड मनारहे है
टेंडरो में हो रहे घपले , घपलों में ही देश उठ रहा है
जनता तो है फंसी हुई इस देश में घपलेवाले ही फीलगुड मनारहे है
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