चार लाइन

हे लक्ष्मी मैया! सुने थे ये हम 
तुम लड़ाई झगड़े से दूर रहती हरदम 
फिर  संसद में  कैसे तुम रम गई 
क्या तुम भी कलयुगी हो गई


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