ऋषभ देव जन्म 2
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💁♂💁 *भगवान रुषभदेवजी/आदिनाथजी जीवन चरित्र* 🙋🙋♂
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*201*
*ससमचतुस्त्र संस्थान* वाला *प्रभु🙏 का शरीर👤* ऐसा शोभता👌🏻👌🏻 था मानों वह *खेलने🏸🤼♂🤺 की इच्छा रखने वाली लक्ष्मी💵👸* की स्वर्णमय वेदिका हो❗
*समान उम्र के बनकर* आये हुए *देवकुमारो🤴🏻🤴🏽* के साथ वे उनकी चित की अनुवृत्ति को *खुश👏🏻 करने के लिए खेलते🏸🤼♂🤺 थे*❗खेलते🏸🤼♂🤺 समय🕛 , धूल से भरे हुए *शरीर👤वाले और घुंघरू* पहने हुए *प्रभु🙏 मस्ती🌝* में आये हुए *हाथी🐘 के बालक* के समान *शोभते*👌🏻 थे❗
*प्रभु🙏 लीला🗣🤼♂⛹♂🤽♂🏊🏻♂मात्र* से जो कुछ भी लेते थे, उसे *बड़ी------ ऋद्धिवाला* कोई *देव*🤴🏽 भी न ले सकता था❓
*कल आगे का भाग*▶▶▶▶
✍ *बेहेन हिनाजी भूरा सिवनी*
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*202*
यदि कोई *देव🤴🏻 बलपरिक्षा💪🏻* के लिए *उनकीउंगली☝🏻 पकड़ता* था तो वह उनके *श्वास के पवन* से रेती के कण की *तरह उड़ कर दूर जा गिरता*था❗
कई *देव🤴कुमार कंदुक(गेंद)⚽* की तरह *प्रभु🙏 के सामने लोटते* थे और विचित्र
*कंदुको से(गेंदों)⚽🏀🎾🏐⚾ से प्रभु को खिलाते🏏🏑 थे*❗
कई *देवकुमार🤴🏽🤴🏼* *राज शुक(पाले हुए तोते)* के समान रूप धारणकर
*चाटुकार( खुशामद😎)* की तरह, *"जीते रहो❗"खुश🎊 रहो❗ "खुश🎊 रहो"*❗इत्यादि तरह तरह के *शब्द बोलते🗣 थे*❗
कई *देव🤴🤴🏼स्वामी🙏 को खुश🎊करने* के लिए *मोर बनकर केका वाणी* में(मोर की बोली से) षड्ज स्वर में *नाचते💃🏾और गाते🗣 थे*❗
*कल आगे का भाग*▶▶▶▶
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*203*
*प्रभु🙏 के मनोहर हस्त🤲🏻 कमल🌷 को ग्रहण* करने और *स्पर्श🤚 करने के इरादे* से कई *देवकुमार🤴हंसो🐦🐦* का रूप धारण कर *गान्धार स्वरों🗣 में गायन* कर *प्रभु*🙏 के आसपास घूमते थे❗
कई *देवकुमार🤴🏻प्रभु🙏* का प्यार भरा *दृष्टिपात रूपी अमृतपान🏺🏺* करने की *इच्छा से क्रोंच पक्षी🦆* का रूप धारण कर उनके सामने मध्यम *स्वर से बोलते🗣थे*❗
कई *प्रभु🙏 को प्रसन्न🎉* करने के लिए *कोयल🦅 का रूप* धारण कर पास के *वृक्ष🌳पर बैठ* कर, *पंचम5⃣ स्वर में गाते🎶थे*❗
कई अपनी *आत्मा को पवित्र* करने की इच्छा से, *प्रभु🙏का वाहन🚕🚗🚙* बनने के लिए *घोडे🐴 का रूप* धारण करते थे❗
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*204*
*देवता🤴घोड़े🐴* का रूप धारण कर *धैवत ध्वनि में हिनहिनाते* हुए *प्रभु🙏के पास----* आते थे❗
*कई हाथी*🐘 का रूप धारण करके *निषाद स्वर में बोलते*🗣 हुए नीचा *मुँह किये* हुए सुंडो से *प्रभु🙏के चरणों👣* का *स्पर्श*🌸 करते थे❗कई *वृषभ🐂( बैल)*का रूप धारण कर *सींगो से तट् प्रदेशों* में पास की *जमीनों🌁 को ताडन करते हुए वृषभ🐂* के समान *स्वरो में बोलते🗣 हुए प्रभु🙏* की दृष्टि को आनंदित करते थे❗
कई *अंजनाचल( काले पहाड़🗻)* के समान *बड़ेभैंसों🐃* के रूप धारण कर आपस मे *लड़ते🤼♂ थे और प्रभु🙏 को युद्धक्रीड़ा🤼♂* बताते थे❗
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*205*
*कई देवता🤴🏼🤴🏽प्रभु🙏* के *आनंद🎉 के लिए पहलवानों💪🏻💪* का रूप धरकर अपनी *भुजाओं* को ठोकते हुए *एक 👉🏻👈🏻दूसरे को अखाड़े🤼♂* में उतरने के लिए *ललकारते* थे❗इस तरह *योगी* जैसे *तरह-तरह* की विधियों से *प्रभु🙏 कीउपासना* करते है वैसे ही *देवकुमार🤴🏻 भी तरह तरह के खेल🏑🏏🏸🏓 बताकर प्रभु🙏* की उपासना करते थे❗
*ऐसी स्थिति* में रहते हुए और *उद्यान🏞पालिकाएं* जैसे *वृक्ष🌳 का पालन* करती है उसी तरह *अप्रमादी पांच5⃣ दाइयों🤱🏼* के द्वारा *लालित-पालित प्रभु🙏 क्रमशः बड़े* होने लगे❗
यहाँ *प्रभु🙏की अंगूठा चूसने👍🏻* की *अवस्था का वर्णण* पूर्ण हुआ❗
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*206*
*अंगूठा-चूसने👍🏻* की अवस्था *पूर्ण होने पर दूसरी👉🏻 अवस्था* को प्राप्त *गृहवासी अरिहंत सिद्धअन्न*( रंधा हुआ अनाज) का *भोजन🍱 करते है:* परंतु *नाभि नंदन भगवान*🙏 तो *उत्तरकुरुक्षेत्र🌿🌳🍃🎋 से देवताओं🤴🏼🤴🏽🤴🏻* के द्वारा लाये हुए *कल्पवृक्ष🌴 के फलों🍊🍐🍎 का भोजन* करते थे,और *क्षीरसागर🌊 का पानी🏺 पीते* थे❗
*बीते कल की तरह बचपन🏃♂* को पूरा कर, *सूरज☀ जैसे दिन के मध्यभाग में आता है वैसे प्रभु🙏 ने*, जिसमे अवयव दृढ़ हो जाते है, ऐसे यौवन का आश्रय लिया❗
*जवान* हो जाने के *बाद➡* भी *प्रभु🙏 के दोनों2⃣ चरण👣, कमल🌷 के मध्य भाग* के समान *कोमल,लाल, उष्ण,*
कम्पनरहित, *पसीनेरहित और समान तलुए*🧣 वाले थे❗
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*207*
*प्रभु🙏 के तलुए👣* में *चक्र🔆 का चिन्ह था,माला📿 ,अंकुश♐ तथा ध्वजा🚩के चिन्ह* थे❗वे मानो *लक्ष्मीरूपी हथिनी🐘* को हमेशा *स्थिर रखने* के लिए थे❗
*लक्ष्मी👸💰 के लीलाभवन* के समान *प्रभु🙏के चरण👣* तल में *शंख और कुम्भ⚱* के चिन्ह थे व *एड़ी में स्वस्तिक का* एक चिन्ह था❗
*प्रभु🙏* का पृष्ठ,
*गोलाकार⭕और सर्प🐍* की फन की तरह *उन्नत ,अंगूठा 👍🏻वत्स* की तरह
*श्रीवत्स्य के चिन्ह* वाला था❗
*वायुरहित स्थान में जलते🔥* हुए कंपरहित *दीपक की शिखा* के समान *प्रभु🙏 की छिद्ररहित और सरलअंगुलिया🤟🏻* *चरण👣रूपि कमल🌷* के समान मालूम होती थी❗
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*208*
प्रभु 🙏🙏की *पैरों 👣की उंगलियां* निवास🏪 स्थान में रखे हुए *दीपक की लौ* ♨के समान *बिना छेदों वाली और सीधी थी*❗
उंगलिया चरणरूपि 👣🌷🍀* *कमल के 🐾🐾पत्तों* समान मालूम होती थी❗उन उंगलियों के ⬇नीचे *नंद्यावर्त* 🏵के चिन्ह शोभते थे❗उनके प्रतिबिम्ब जमीन पर पड़ने से *धर्मप्रतिष्ठा के हेतु रूप होते थे: अर्थात चैत्य- प्रतिष्ठा ⛳में जिस तरह नन्दावर्त का पूजन* 📿होता है, उसी तरह प्रभु 🐾की उंगलियो के नीचे के नंद्यावर्त के चिन्हों के 💡🌅प्रतिबिम्ब या निशान 🔆🔅जमीन पर पड़ने से🚩🚩🌄
*धर्मप्रतिष्ठा के हेतु रूप होते थे*❗
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*209*
*जगत्पत्ति🌍👑 की हर एक उँगली🖕🏻* के *पर्व🎉 में अधोवापिया🕳(गहरे खड्डों)* सहित जौ के *चिन्ह* थे❗ वे ऐसे *मालूम* होते थे मानों वे *जगत🌍 की लक्ष्मी👸💎💸 के साथ प्रभु🙏* का ब्याह होने वाला हो इसलिए बोए गए हो❗
*पृथु(मोटी) और गोलाकार⭕* एड़ी ऐसी *शोभती*👌🏻 थी, मानों वह *चरण👣कमल🌷* का *कंद(छत्ता⛱)* हो❗ *नाखून अंगूठे👍🏻 और अंगुलिरूपी☝🏻* *सर्पो🐍 के फनो पर मणि💎* के समान *शोभते👌🏻 थे*❗
*चरणों👣के ग़ुढ*( साफ न दिखनेवाले) *गुल्फ*(टखने)
*सोने⚡ के कमल🌷* की *कर्णिका(गांठ)* के *गोलक(खड्डा🕳)* की *शोभा👌🏻 का विस्तार* करते थे❗
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*210*
*प्रभु🙏के दोनों पैरों👣* के *तलुए के ऊपर* के भाग *कछुए 🐢की पीठ* की तरह *क्रम से उन्नत*, नसे न दिखे ऐसे, रोमरहित, स्निग्ध कांतिवाले थे❗
*गोरी पिंडलियों*, अस्थि *रुधिर में छिप* जाने से, *पुष्ट, गोल⭕और हिरणियों🦌* की पिंडलियों की *शोभा👌🏻 को भी तिरस्कार❌* करने वाले थे❗घुटने मांस से भरे हुए *गोल⭕* थे❗ वे रुई से भरे हुए *गोल⭕ तकिए के अंदर* डाले हुए *आईने💧 के समान* लगते थे❗
*जांघे कोमल*, क्रम से *(मोटाई)* में चढ़ती हुई औऱ स्निग्ध थी❗ वे *केले🍌🍌 के खंभों* के विलास को *धारण* करती थी❗ *मुश्क(अंडकोष) हाथी*🐘 की तरह *ग़ुढ व समस्थिति* वाले थे कारण *अश्व🐴 की तरह कुलीन पुरुष* के चिन्ह बहुत ग़ुढ होते है❗
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*219*
कई बार 🧒🏼प्रभु *इन्द्र🤴 की गोद मे पैर रखे, चमरेंद्र के गोद 👑रूपी 🛏पलंग पर, अपने शरीर के ऊपरी भाग को स्थिर किये और देवताओ द्वारा लाये हुए आसनपर⛩ विराजमान हो, दोनों हाथों में तौलिए लिए *हाज़री में खड़ी हुई 🧚♀🧜♀अप्सराओं द्वारा सेवित, *अनासक्त 😑भाव से* दिव्य💃🏾🎷🎻💃🏾 नृत्य- संगीत देखते थे❗
एक दिन एक 🎎 *युगलियो की जोड़ी* 🌳. *ताडवृक्ष* के 👇नीचे बालको🤼♂ के लायक खेलकूद करती थी❗उस समय बहुत *मोटा ताड का 🍈फल* उस युगल पुरूष के सर पर पड़ा और 👎🏻🤯 *काकतालिय न्याय* से, वह पुरुष 🚹तत्काल ही अकालमृत्यु से 🚼*. *पंच तत्व* पाया( असमय में मर गया)❗
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*220*
*युगलिक🎎 के मृत्यु* की घटना *पहली1⃣ बार* हुई थी❗ *अल्प कषाय* के कारण वह *युगलिक🎎 लड़का🚶♂* मरकर *स्वर्ग🌆 मे गया*❗ कारण......
🌿🌿 *रुई भी बहुत कम वजनवाली* होने से *आकाश☄* में जाती है❗🌿🌿
*पहले1⃣बड़े⬆ पक्षी🦅,* अपने *घोंसलो🗑 की लकड़ी⛔* की तरह *युगलिको🎎 के मृत* शरीर को उठाकर *समुद्र🌊में डाल देते* थे, मगर *उस समय🕓* यह *बात नहीं*🖕🏻 रही थी; *अवसर्पिणी काल* का प्रभाव *आगे▶ बढ़* रहा था❗ इसलिए *वह कलेवर- मुर्दा* वहाँ पड़ा रहा❗
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*221*
युगलिक🎎 जोड़े में जो *बालिका 👩🏻थी वह वह स्वभाव से ही😘☺ मुग्धपन* से सुशोभित 👌🏻👌🏻हो रही थी❗ अपने साथी 🚶♂लड़के के🚼 *मर* जाने से , *बिकने के बाद बची हुई* चीज की तरह *चंचल👀👀👱🏻♀ आँखों वाली* वह बालिका 🚼🧘🏼♀वही बैठी रही❗
फिर उसके *मातापिता 👫उसे वहां से उठाकर ले गए* 🚶🏽♀और उसका🧥🍱😘😌
पालन पोषण करने लगे❗
👩🏻 उन्होंने उसका नाम *सुनंदा* रखा❗
🕚....… कुछ दिनों बाद सुनंदा के मातापिता 👫मर गए❗ कारण👇 *संतान पैदा होने के बाद युगलिकों की जोड़ी थोड़े दिन ही जीवित रहती है*❗
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**222*
युगलिक🎎🚶♂ लड़का तथा 👫मातापिता के बाद 🌀🌀🌀 *सुनंदा अकेली 😧 रह गयी*❗ अकेली रह जाने के कारण क्या करना 😴🤔चाईये उसे नही सूझता था❗ *वह समूह 🦌🦌से बिछड़ी हुई हिरणी की तरह 🍂🌳🌱🌲वन में अकेले भटकने* 🚶🏽♀🚶🏽♀लगी❗
*सरल अंगुली👐🏼 रूपी पत्रवली चरणों* से 👣जमीन पर कदम रखते हुयी वह, मानो *पृथ्वी 🌷🌷पर खिले हुए कमलो को स्थापित ✨✨✨कर रही हो ऐसा मालूम होती* थी❗
*उसके👁👁 नयन कामदेव 🤴के बनाये हुए सोने के 🏹🏹तरकश की तरह* जान पड़ते थे ❗
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*225*
*सर्वांगसुन्दरी👩🏻* और *लावण्यवती सुनंदा वनदेवी🧚🏻♀ की तरह जंगल🏞* को जगमगा रही थी ❗ उस *अकेली मुग्धा😌 को देख,* कितने ही *युगलिये🎎 कींकर्तव्य* , हो याने क्या करना चाहिए सो नही समझने से *जड़ युगलिये🎎 उसे नाभिराजा👑* के पास ले गए❗
*श्री नाभिराजा👑 ने 'यह ऋषभ🙏 की धर्मपत्नी👸🏻 हो'* यह कहकर, *नेत्ररूपी👀 कुमुद* के लिए *चंद्रिका🌟 के समान उस बाला* को स्वीकार किया❗
*एक1⃣ दिन सौधरमेंद्र🤴🏼* अवधिज्ञान से *प्रभु🙏 का लग्न- विवाह समय🕜* जानकर *अयोध्यानगरी*🏙 में आया❗
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*227*
*सौधर्मइन्द्र🤴🏽आगे▶* कहते है *हे नाथ*👑🌍❗ मैं आपका *अभिप्राय जानकर* कहता हूँ, की आप *गर्भावास से ही वीतराग* है ,आप को किसी भी *सांसारिक पदार्थ🧥👚👖👢👡⛑👒🍊🍋🌶🍍* से मोह नहीं है-- किसी भी *वस्तु*🍱 में आसक्तती नहीं है❗ दूसरे *पुरूषाथो की अपेक्षा* न होने से *चौथे4⃣ पुरुषार्थ मोक्ष* के लिए आप तय्यार है: फिर भी *हे स्वामी🙏🏻❗ मोक्षमार्ग🏗* की तरह *व्यहवार मार्ग* भी आप से ही प्रगट----- होगा, इसलिए उस *लोकव्यवहार को आरम्भ▶* करने के लिए मैं आप के *विवाह महोत्सव* को करने की इच्छा रखता हूँ; आप *अनुमति🤚🏻 दीजिये*❗
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*229*
*इन्द्र🤴🏼ने प्रभु🙏🏻 का आंतरिक अभिप्राय* समझ कर, *🎊विवाह👫🎊 के लिए उन्हें प्रस्तुत समाज*, *विवाह🎊👫🎊 कर्म आरम्भ* करने के लिए *तत्काल वहाँ देवताओ🤴🏻🤴🏼🤴* को बुलाया❗
*सौधर्मइन्द्र🤴🏽 की आज्ञा👆* पाकर *अभिनियोगिक देवताओं👷🏻♂👷♂* ने सुधर्मा सभा के *छोटे भाई* के जैसा एक *सुंदर👌मंडप🌉 तैयार* किया❗
*मंडप🌉* में लगाये हुए *सोने⚡, चांदी⛓ और पद्म मणिक्य* के खम्भे--- *मेरु⛰, रोहणाचल🌋 और वैताढ्य पर्वतों🏔* की *चुलिका( शिखरों🗻) की तरह शोभा👌🏻👌🏻* देते थे❗
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