जनरल 25
🦚🌼🌻🌹🦚🌼🌻🌹🦚
आज के प्रश्र्नो के जवाब इस लींक पर देना है ब्लू लाइन टच करे 👇👇👇👇
https://wa.me/+919998667158
1. संसार के परिभ्रमण मे हम सबसे कम समय कौनसी इन्द्रियों मे रहे है?
ज. पंचेन्द्रिय
2. पंचेन्द्रिय मे भी सबसे कम समय कौनसी गति मे रहै?
ज. मनुष्य
3. अनंत मिथ्यात्वी जीवों के सामने समकित जीव कीतने है?
ज. 1
4. अनंत समकित जीवों के सामने श्रावक कितने है?
ज. 1
5. आराधक श्रावक बनने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
ज. सम्यक पराक्रम
6. आत्मा के गुण कौनसे है?
ज. ग्यान, दशँन
7. धर्म के मुख्य कीतने प्रकार है?
ज. श्रुत धर्म, चारित्र धर्म
8. चारित्र धर्म के कितने प्रकार है?
ज.आगार धर्म, अणगार धर्म
9. आगार धर्म का मतलब क्या?
ज. श्रावक धर्म
10. अणगार धर्म का मतलब क्या?
ज. साधु धर्म
प्र १) प्रभु वीर के केवल-कल्याणक की तिथी ?
उ १) वैशाख शुक्ल १०
प्र २) प्रभु वीर के केवल प्राप्ति स्थान को, आज़ कौन से तीर्थ के नाम से जानते है ?
उ २) ऋज़ुवालिका तीर्थ
प्र ३) केवल-प्राप्ति जिस जगह हुई, उस गांव का नाम ?
उ ३) जृम्भक गाव
प्र ४) प्रभु वीर का छद्मस्थ काल कितना ?
उ ४) १२ वर्ष, छ मास, एक पक्ष (१२ वर्ष, साढ़े छ महिने या १२ वर्ष, १३ पक्ष (पखवाड़िये)
प्र ५) छद्मस्थ अवस्था में प्रभु वीर ने १० स्वपन कहां, किस स्थान पर देखें ?
उ ५) क्षूलपाणी यक्ष के मंदिर में दो घडी की निंद्रा में ।
प्र ६) प्रभु के १० स्वप्नों की बात जिसने अपने ज्ञान के माध्यम से जानी, उनका नाम ?
उ ६) उत्पल निमितज्ञ ने जानी ।
प्र ७) १० स्वप्नो में से कौन से स्वप्न का फल, उत्पल निमितज्ञ नहीं जान सके थे ?
उ ७) चौथा स्वप्न - सुगंधी पुष्प की दो माला, इस स्वप्न का फल नहीं जान सके थे, जो प्रभु वीर ने उन्हें, उनके पूछने पर, समझाया था ।
प्र ८) छद्मस्थ अवस्था में देखे गये इस चौथे स्वप्न का फल बतायें ।
उ ८) स्वप्नफल था कि, "साधुधर्म व श्रावकधर्म की प्ररुपणा करेंगे"
प्र ९) केवलप्राप्ति के बाद प्रभु की प्रथम देशना निष्फल गई, तो वह कौन से दो कारण है, जिससे हम यह कह सक्ते है ?
उ ९) ऐसा इसलिए कहा गया क्योंकि, प्रथम देशना के अंत में सप्रथम तो १) सर्वविरति और २) देशविरति ग्रहण करनेवाला कोई नहीं था । और यह एक अच्छेरा हुआ ।
प्र १०) प्रभु वीर ने दूसरे दिन, वैशाख सु ११ को, दूसरी बार देशना दी तब ऐसा क्या हुआ, जिससे हम जैन धर्म को आज़ पामे है और इस धर्म के मार्ग पर चल पाये है ?
उ १०) वैशाख सुद ११ को, ११ ब्राह्मणों समेत उनके ४४०० शिष्यो ने, चंदना आदि अनेक कन्याओं ने, प्रभु वीर के हाथो देशना के अंते, सर्वविरति धर्म, चारित्र ग्रहण किया, और प्रभु ने ऐसे, साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका यह चतुर्विध संघ की स्थापना की, जिसे हम "जिनशासन की स्थापना" भी कहते है ।
प्र ११) जिनशासन की स्थापना का मतलब क्या है ?
उ ११) क्योंकि, इस शासनकाल में, व्यक्तियों का समूह, उस शासनकाल के समय के अंतर्गत, अरिहंत परमात्मा की आज्ञा का पालन करता है, इसलिए, शासन की स्थापना जरुरी होती है। जिनशासन में चतुर्विध संघ के रुप में, साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका संघ की स्थापना होती है।
अभी हम सब प्रभु वीर के शासनकाल में रह रहे है ।
प्र १२) क्या जिनशासन की स्थापना सिर्फ एक ही बार हुई है या और भी ? यह प्रथा कब से शुरु हुई ?
उ १२) जिनशासन की स्थापना शाश्वत है और अनादि अनंत काल से होती आई है ।
प्र १३) प्रभु वीर ने ११ ब्राह्मणों को दिक्षित कर, गणधर रुपे क्यों स्थापा था ? वज़ह ?
उ १३) प्रभु ने ११ गणधरो को त्रिपदी दी, जिसके आधार पर, उन्होंने १२ अंग, द्वादशांगी की रचना की, इसलिए, प्रभु ने उन्हें गणधर पद पर स्थापा ।
प्र १४) प्रभु वीर ने चंदनाजी को किस पद पर स्थापा ?
उ १४) प्रवर्तिनी पद पर
प्र १५) वीर प्रभु के गण कितने हुए ?
उ १५) नौ गण हुए ।
प्र १६) गण का मतलब क्या ?
उ १६) एक वाचनावाले साधु के गण को, एक गण कहते है । वाचना - सूत्रवाचना
प्र १७) प्रभु के ११ गणधर तो गण नौ ही क्यों हुए ?
उ १७) ११ गणधर होने के बावजूद, सूत्रवांचना की अपेक्षा, वीर प्रभु के गण, नौं ही हुए, क्यों कि, सात गणों ने तो अपनी अलग अलग सूत्रवांचना की थी, पर, बाकी चार गणों में से, अकंपितजी और अचलभ्राताजी का एक गण माना गया एवं मेतार्यजी और प्रभास जी का भी एक ही गण माना गया क्योंकी इनकी परस्पर समान सूत्रवाचना हुई थी और इसलिए नौं गण बनें ।
प्र १८) "आणाजुत्तो संघो" इस का मतलब क्या है ?
उ १८) संघ वह है, जिसके पास यानि जो आज्ञा से युक्त है । चतुर्विध संघ मतलब साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका का समुदाय (वृंद)
प्र १९) शासन कितने प्रकार के ?
उ १९) चार प्रकार के
प्र २०) कौन कौन से प्रकार का शासन है ? नाम ?
उ २०) १) द्रव्यशासन २) भावशासन, ३) व्यवहारशासन व ४) निश्चयशासन
प्र २१) प्रभु की आज्ञा रुप द्रव्यशासन को ही हम जो आधारभूत मानें, तो क्या वह परिणमित होगा ?
उ २१) नहीं, द्रव्यरुप प्रभु की वाणी सुन लेने, पढ़ लेने मात्र से, परिणाम नहीं मिलेंगे, जब तक उसे भाव यानि भावशासन का सहयोग़ नहीं मिलेगा ।
प्र २२) निश्चय और व्यवहार शासन में मुख्य, प्रधान कौन और क्यों ?
उ २२) निश्चय यानि प्रभु की कोई भी एक आज्ञा के पालन का निश्चय करना और यह प्रधान रुपे है । जब निश्चय होता है तब व्यवहार यानि कैसे उस आज्ञा अनुरुप वर्ता जाये, वह आचरण हमें करना होता है, वह है व्यवहारशासन ।
प्र २३) प्रभु वीर तो कोई आक्रमक नहींं थे फिर उनको, व्यवहार की द्रष्टि से, (लांछन की नहींं), सिंह की उपमा किस कारण दी जा सक्ती है ?
उ २३) जैसे सिंह की गर्ज़ना से, वन में दूर दूर तक वातावरण शांत हो जाता है, सभी पशु पक्षी अपनी अपनी जगह स्थिर हो जाते है, वैसे ही, प्रभु वीर की वाणी का प्रभाव सारे आर्यवर्त में फैला ।
उपसर्गो का भी सिंह की भांति, तटस्थ होकर, स्वयं से ही जझ़ुमते हूए, सहन किया, वह भी निर्लेपीरुपे, इसीलिए, उनकी तुलना सिंह से की जा सक्ती है ।
प्र २४) प्रभु वीर ने शंका लिए आये हुए गौतमस्वामी को कहा कि, "यज्ञ मैनै भी किया है"। तब प्रभु किस यज्ञ की बात किये थे ?
उ २४) आत्म-यज्ञ की
प्र २५) प्रभु वीर की दूसरी देशना किस उद्यान में चल रही थी ?
उ २५) महासेन उद्या
प्र २६) इंद्रभूति के यज्ञ के यजमान कौन थे ?
उ २६) सौमिल ब्राह्मण
प्र २७) प्रभु ने देशना में यह जगत दो तत्वों का मेल है, यह कहा था, यह दो तत्व कौन से ?
उ २७) जीव तत्व (चेतन) और अजीव तत्व (जड़) का मेल है ।
प्र २८) इन दोनो तत्वो को चलायमान करता कौन सा त्रिसूत्र है, जिससे यह बंधे हुए है और जिस पर प्रभु ने त्रिपदी दी थी ?
उ २८) त्रिसूत्र - उत्पाद, व्यय और ध्रिव्य । त्रिपदी - उपन्नेईवा, विगमेईवा, धुवेईवा
प्र २९) प्रभु वीर के समय में कितनी व्यक्तिओने तीर्थंकरनामकर्म का बांध किया ? सबके नाम एक साथ उत्तर में लिखे ।
उ २९) नौ व्यक्तिओने
१) श्रेणिक राजा २) प्रभु वीर के काका सुपार्श्वजी ३)पोटिला अणगार (साध्वीजी) ४) उदायन राजा ५) महाशतक श्रावक ६) शंख श्रावक ७) अंबड़ सन्यासी ८) सुलसा श्राविका और, ९) रेवती श्राविका
प्र ३०) प्रभु वीर का शासन उनके निर्वाण काल से कब तक का और कितना है ।
उ ३०) निर्वाण काल से २१००० वर्ष तक का, पांचमे आरे के शेष तक का है ।
#तत्वार्थ_सूत्र
प्र.१. मोक्षमार्ग क्या है ? सूत्र लिखिये ।
उत्तर — सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्ग:।
प्र.२. सूत्र का अर्थ स्पष्ट कीजिये ?
उत्तर — सम्यग्दर्शन, सम्यक्ज्ञान और सम्यक् चारित्र तीनों की एकता ही मोक्षमार्ग है।
प्र.३.मोक्ष क्या है ?
उत्तर — आत्मा का हित अथवा अष्ट कर्मों से रहित होना मोक्ष है।
प्र.४. मोक्ष का स्वरूप क्या है ?
उत्तर — संसार से सर्वथा विलक्षण आत्मा, निर्विकार, निराकार आत्मा का जो स्वरूप होता है वही मोक्ष है।
प्र.५. संसारी प्राणी मोक्ष क्यों चाहते हैं ?
उत्तर — चूंकि मोक्ष के बाद संसार में पुनः आकर जन्म मरण के दुःखों को सहना नहीं पड़ता है तथा अव्याबाध सुख की प्राप्ति मोक्ष कहलाती है , इसीलिए हर संसारी प्राणी मोक्ष को चाहता है ।
प्र.६. मोक्ष प्राप्ति का उपाय क्या है ?
उत्तर — मोक्ष प्राप्ति के लिये सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यग्चारित्र की सीढियों पर चढ़ना होता है ।
प्र.७. आचार्य उमास्वामीजी ने सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यग्चारित्र की एकता शब्द का उपयोग क्यों किया ?
उत्तर — आचार्य उमास्वामी ने बताया कि मात्र सम्यग्दर्शन या सम्यग्ज्ञान अथवा सम्यग्चारित्र मोक्ष का माध्यम नहीं बल्कि तीनों होने पर ही मोक्ष प्राप्ति होगी।
प्र.८. इन सूत्रों तत्वार्थसूत्रों के रचयिता का नाम बताईये ?
उत्तर — तत्वार्थसूत्र के कर्ता का नाम है – उमास्वामी आचार्य ।
प्र.९. सम्यक् शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर — सम्यक् शब्द संपूर्णता, निर्मलता व समीचीनता का द्योतक है।
प्र.१०. सम्यग्दर्शन किसे कहते हैं? लक्षण बताईये । (सूत्र लिखें)
उत्तर — तत्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् ।।२।।
प्र.११. उपर्युक्त सूत्र का अर्थ लिखिये ।
उत्तर — जीवादि सात तत्वों एवं अर्थ – पदार्थों का श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है ।
प्र.१२. दर्शन शब्द कौन सी धातु से बना है और उसका अर्थ क्या है ?
उत्तर — दर्शन शब्द ‘दृश्’ धातु से बना है और उसका अर्थ आलोक अर्थात् देखना है।
प्र.१३. सम्यग्दर्शन के कितने भेद हैं ?अर्थ सहित सूत्र लिखिये ।
उत्तर — “तन्निसर्गादधिगमाद्वा ” अर्थात् वह सम्यग्दर्शन स्वभाव से अथवा पर के उपदेश से उत्पन्न होता है । इस प्रकार सम्यग्दर्शन के उत्पत्ति की अपेक्षा से दो भेद हैं— (१) निसर्गज (२) अधिगमज ।
प्र.१४. निसर्गज सम्यग्दर्शन क्या है ?
उत्तर — जो सम्यग्दर्शन पर के उपदेश के बिना अपने आप (पूर्वभव के संस्कार से) उत्पन्न होता है उसे निसर्गज सम्यग्दर्शन कहते हैं ।
प्र.१५. अधिगमज सम्यग्दर्शन किसे कहते हैं ?
उत्तर — जो गुरू आदि पर के उपदेश से उत्पन्न होता है, वह अधिगमज सम्यक् दर्शन कहलाता है ।
प्र.१६. सात तत्व कौन से हैं ? सूत्र लिखें ।
उत्तर — जीवाजीवास्रवबंधसंवरनिर्जरामोक्षास्तत्त्वम् ।।४।। अर्थात् जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये सात तत्व हैं ।
प्र.१७. नौ पदार्थ कौन से हैं ?
उत्तर — जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष , पाप तथा पुण्य ।
प्र.१८. सम्यग्दर्शन तथा जीवादि तत्व एवम् पदार्थों को जानने का क्या उपाय है ? सूत्र लिखें ।
उत्तर — नामस्थापनाद्रव्यभावतस्तन्न्यास:।।५।। नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव से सात तत्वों और सम्यग्दर्शन को जाना जाता है ।
प्र.१९. नाम आदि चार पदार्थ क्या कहलाते हैं ?
उत्तर — नाम आदि चार पदार्थ निक्षेप कहलाते हैं।
प्र.२०. निक्षेप क्या है ?
उत्तर — प्रत्येक शब्द का लोक में अथवा शास्त्रों में अनेक अर्थों में प्रयोग होता है। यह प्रयोग कहां किस अर्थ में किया गया है इस बात का स्पष्टीकरण करना निक्षेप कहलाता है ।
प्र.२१. जीवादि तत्वों का ज्ञान किसके द्वारा होता है ?
उत्तर — प्रमाणनयैरधिगम:। जीवादि तत्वों का ज्ञान प्रमाण और नयों से होता है।
प्र.२२. प्रमाण किसे कहते हैं ? प्रमाण के कितने भेद हैं ?
उत्तर — जो पदार्थ के सर्वदेश को ग्रहण करे उसे प्रमाण कहते हैं । प्रमाण के २ भेद हैं — (१) प्रत्यक्ष प्रमाण (२) परोक्ष प्रमाण।
प्र.२३. नय और प्रमाण के अलावा जीवादि पदार्थों का ज्ञान किनके द्वारा होता है ?
उत्तर — ‘निर्देशस्वामित्त्व साधनाधिकरणस्थितिविधानत:।’ अर्थात् निर्देश, स्वामित्व , साधन, अधिकरण, स्थिति और विधान के द्वारा भी जीवादि पदार्थों का ज्ञान होता है।
प्र.२४. निर्देश – स्वामित्व आदि क्या हैं ? समझाइये।
उत्तर —(१) निर्देश— वस्तु के स्वरूप का कथन करना निर्देश है । (२) स्वामित्व— वस्तु के अधिकार को स्वामित्व कहते हैं । (३) साधन— वस्तु की उत्पत्ति का कारण साधन कहलाता है । (४) अधिकरण— वस्तु के आधार को अधिकरण कहते हैं । (५) स्थिति— वस्तु के काल की अवधि को स्थिति कहते हैं । (६) विधान— वस्तु के भेदों को विधान कहते हैं ।
प्र.२५. जीवादि तत्वों के जानने के और अनुयोग द्वार कौन से हैं ? बताइये ।
उत्तर —‘सत्संख्या क्षेत्र स्पर्शनकालान्तरभावाल्पबहुत्त्वैश्च।’ सत् , संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अंतर, भाव , अल्पबहुत्व इन आठ अनुयोग द्वारों से भी जीवादि पदार्थों का ज्ञान होता है ।
प्र.२६.सत् – संख्या आदि से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर — सत् वस्तु के अस्तित्व को सत् कहते हैं । संख्या— वस्तु के परिमाण की गणना संख्या है । क्षेत्र— वस्तु के वर्तमान निवास को क्षेत्र कहते हैं । स्पर्श—वस्तु के तीनों काल संबंधी निवास को स्पर्श कहते हैं । काल— वस्तु के ठहरने की मर्यादा काल कहलाती है । अंतर— वस्तु के विरहकाल को अंतर कहते हैं । भाव— औपशमिक आदि परिणामों को भाव कहते हैं । अल्पबहुत्व—वस्तु की हीनाधिकता का वर्णन करने को अल्पबहुत्व कहते हैं ।
प्र.२७. सम्यक् ज्ञान के भेद बताइये ?
उत्तर — ‘मतिश्रुतावधिमन:पर्ययकेवलानि ज्ञानम् ।’ मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन: पर्यय ज्ञान, और केवलज्ञान ये पांच सम्यक्ज्ञान हैं ।
प्र.२८. कितने ज्ञान प्रमाण हैं ?
उत्तर — ‘तत्प्रमाणे ।’ मति, श्रुत आदि पाचों ज्ञान ही प्रमाण हैं।
प्र.२९. प्रमाण किसे कहते हैं ?
उत्तर — जो किसी वस्तु को भली भांति, सम्यक् प्रकार से जानता है उसे प्रमाण कहते हैं अथवा जिसके द्वारा विषय को अच्छी तरह से जाना जाता है वह प्रमाण कहलाता है।
प्र.३०. प्रमाण के कितने भेद हैं ?
उत्तर — प्रमाण के २ भेद हैं—(१) प्रत्यक्ष प्रमाण (२) परोक्ष प्रमाण ।
प्र.३१. परोक्ष प्रमाण रूप ज्ञान कौन से हैं ?
उत्तर — ‘आद्ये परोक्षम्’ अर्थात् आदि के मतिज्ञान और श्रुतज्ञान ये दो ज्ञान परोक्ष हैं ।यहां आदि से तात्पर्य पहले से है ।
प्र.३२. मति—श्रुतज्ञान परोक्ष क्यों हैं ?
उत्तर — क्योंकि ये ज्ञान इंद्रिय और मन की सहायता से उत्पन्न होते हैं ।
प्र.३३. प्रत्यक्ष प्रमाणरूप ज्ञान कौन से हैं ?
उत्तर — ‘प्रत्यक्षमन्यत् ।’ अर्थात् शेष सब ज्ञान प्रत्यक्ष हैं । अर्थात् अवधिज्ञान, मन:पर्ययज्ञान और केवलज्ञान तीनों ज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाण रूप हैं।
प्र.३४. प्रत्यक्ष ज्ञान से क्या आशय है ?
उत्तर — जो ज्ञान बाह्य इंद्रियों की अपेक्षा आत्मा के द्वारा होते हैं वे ज्ञान प्रत्यक्षज्ञान हैं ।
प्र.३५.मति—स्मृति आदि शब्दों का आशय क्या है ?
उत्तर — ‘मति, स्मृति, संज्ञा, चिंता, अभिनिबोध ’ आदि मतिज्ञान के ही पर्यायवाची नाम हैं ।
प्र.३६. मतिज्ञान क्या है ? इसे अन्य किन नामों से जाना जाता है ?
उत्तर — मननं मतिः—इंद्रिय और मन से होने वाली धारणा मति है । स्मरण संज्ञा— अतीत को स्मरण करना स्मृति है । संज्ञानं संज्ञा— यह वही है या उसके समान ऐसा ज्ञान संज्ञा है । चिन्तन चिंता— चिंतन करना, मनन करना चिंता है । अभिनिबोध— साध्य से साधन का ज्ञान करने को अभिनिबोध कहते हैं ।
प्र.३७. मतिज्ञान की उत्पत्ति का कारण क्या है ?
उत्तर — ‘तदिन्द्रियानिन्द्रियनिमित्तम्।’ मति—ज्ञान इंद्रिय और मन के निमित्त से होता है ।
प्र.३८.मतिज्ञान के कितने भेद हैं ?
उत्तर —‘अवग्रहेहावायधारणा:।’ अवग्रह, ईहा, अवाय, और धारणा ये मतिज्ञान के चार भेद हैं ।
प्र.३९. अवग्रह—ईहा आदि क्या हैं ?
उत्तर — (१) अवग्रह—रूप देखने के पश्चात् अर्थ का ग्रहण करना । (२) ईहा— अवग्रह द्वारा जाने गये पदार्थों को विशेष रूप से जानना । (३) अवाय— विशेष चिन्ह देखकर वस्तु का निर्णय हो जाना । (४) धारणा— अवाय से निश्चय किये पदार्थ को कालान्तर में नहीं भूलना ।
प्र.४०. अवग्रह, ईहा आदि चारों ज्ञानों में कितना काल लगता है ?
उत्तर — अवग्रह — ईहा आदि चारों ज्ञान क्षणभर में भी हो सकते हैं और अनेक काल बाद भी हो सकते हैं।
प्र.४१. अवग्रह ज्ञान की विशेषता बताईये ?
उत्तर —‘‘व्यंजनस्या:’’ अवग्रह ज्ञान अप्रकट रुप शब्दादि पदार्थों का होता है।
प्र.४२. व्यंजनावग्रह किनके द्वारा नहीं हो सकता है?
उत्तर — ‘‘न चक्षुरनिन्द्रियाभ्याम्’’ नेत्र और मन से व्यंजनावाग्रह नहीं होता है।
प्र.४३. श्रुतज्ञान किसे कहते है, इसका लक्षण और भेद बताईये ?
उत्तर — ‘श्रुतं मतिपूर्वं द्वयनेक द्वादश भेदम्’। श्रुतज्ञान मतिज्ञान पूर्वक होता है अर्थात् मतिज्ञान होने के बाद ही श्रुतज्ञान होता है जिसके दो, अनेक और बारह भेद हैं ।
प्र.४४. श्रुत ज्ञान के दो भेद कौन से हैं ?
उत्तर — श्रुतज्ञान के २ भेद निम्न प्रकार हैं — (१) अंगबाह्य (२) अंगप्रविष्ट ।
प्र.४५. श्रुतज्ञान के बारह भेद कौन से है ?
उत्तर — अंग प्रविष्ट के बारह भेदों की अपेक्षा श्रुतज्ञान के बारह भेद निम्न प्रकार से हैं— (१) आचारांग, (२) सूत्रकृतांग, (३) स्थानांग, (४) समवायांग, (५) व्याख्याप्रज्ञाप्ति अंग, (६) ज्ञातृधर्मकथांग, (७) उपासकाध्ययनांग, (८) अंतकृद्दशांग, (९) अनुत्तरोपपादिक दशांग, (१०) प्रश्नव्याकरणांग, (११) विपाकसूत्रांग, (१२) दृष्टिप्रवादांग ।
प्र.४६. श्रुतज्ञान के अनेक भेद कौन से हैं ?
उत्तर — अंग बाह्य श्रुत के १४ भेदों की अपेक्षा श्रुतज्ञान के अनेक भेद निम्नानुसार है :- (१) सामायिक, (२) स्तव, (३) वंदना, (४) प्रतिक्रमण, (५) वैनयिक, (६) कृतिकर्म, (७) दशवैकालिक, (८) उत्तराध्ययन, (९) कल्पव्यवहार, (१०) कल्पाकल्प, (११) महाकल्प, (१२) पुण्डरीक, (१३) महापुण्डरीक, (१४) अशीतिका ।
प्र.४७. भवप्रत्यय अवधिज्ञान किसे होता है ?
उत्तर — ‘भवप्रत्ययोऽवधिर्देवनारकाणाम्’ भवप्रत्यय अवधिज्ञान देव और नारकियों को होता है ?
प्र.४८. कितने ज्ञान प्रमाण हैं ?
उत्तर — ‘मतिश्रुतावधिमन: पर्ययकेवलानि ज्ञानम्।’ मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन:—पर्यय ज्ञान, और केवलज्ञान ये पांच सम्यकज्ञान हैं।
प्र.४९. भव से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर — आयु और नामकर्म का निमित्त पाकर जो जीव की पर्याय होती है उसे भव कहते हैं।
प्र.५०. भवप्रत्यय अवधिज्ञान से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर — वह अविधज्ञान जो भव के निमित्त से होता है भव प्रत्यय अवधिज्ञान कहलाता है।
प्र.५१. क्या समस्त देव नारकियों को अवधिज्ञान होता है ?
उत्तर — नहीं, सम्यग्दृष्टि देव— नारकियों के अवधिज्ञान होता है और मिथ्यादृष्टि को कुअवधिज्ञान होता है।
प्र.५२. देव और नारकियों के अतिरिक्त अन्य किन्हें भवप्रत्यय अवधिज्ञान होता है ?
उत्तर — देव और नारकियों के अतिरिक्त तीर्थंकरों को भी भवप्रत्यय अवधिज्ञान होता है ।
प्र.५३. अवधिज्ञान कितने प्रकार का होता है ?
उत्तर — अवधि ज्ञान के दो भेद हैं—(१) भवप्रत्यय, (२) गुणप्रत्यय या क्षयोपशमनिमित्तक।
प्र.५४. गुणप्रत्यय अथवा क्षयोपशम निमित्तक अवधिज्ञान से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर — अवधिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से होने वाले ज्ञान को गुणप्रत्यय अथवा क्षयोपशम निमित्तक अवधिज्ञान कहते हैं ।
प्र.५५. क्षयोपशम निमित्तक अवधिज्ञान या गुणप्रत्यय के कितने भेद हैं ?
उत्तर — ‘क्षयोपशमनिमित्त: षडविकल्प: शेषणाम्।’ क्षयोपशम निमित्तक अवधिज्ञान के ६ भेद हैं और वे शेष मनुष्यों और तिर्यंचों को होता है।
प्र.५६. क्षयोपशम निमित्तक अवधिज्ञान के ६ भेद कौन से हैं ?
उत्तर — क्षयोपशम निमित्तक अवधिज्ञान के ६ भेद निम्नानुसार हैं— (१) अनुगामी,(२) अननुगामी,(३) वर्धमान,(४) हीयमान,(५) अवस्थित,(६) अनवस्थित ।
प्र.५७. अनुगामी अवधिज्ञान और अननुगामी अवधिज्ञान किसे कहते हैं ?
‘उत्तर — जो अवधिज्ञान जीव के साथ सूर्य प्रकाश की तरह एक भव से दूसरे भव या एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र जाये उसे अनुगामी और नहीं जावे उसे अननुगामी अवधिज्ञान कहते हैं।
प्र.५८. वर्धमान और हीयमान से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर — जो शुक्लपक्ष के चन्द्रमा की तरह बढ़ता रहे वह वर्धमान और जो कृष्णपक्ष के चंद्रमा की तरह घटता है उसे हीयमान कहते हैं।
प्र.५९. अवस्थित और अनवस्थित अवधिज्ञान से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर — जो अवधिज्ञान न घटता है और न बढ़ता है सदैव एक सा रहता है उसे अवस्थित और जो हवा से प्रेरित जल की तरंग की तरह घटता बढ़ता रहे एक सा ना रहे उसे अनवस्थित अवधिज्ञान कहते हैं।
प्र.६०.अनुगामी और अननुगामी अवधिज्ञान के कितने भेद हैं ?
उत्तर — अनुगामी और अननुगामी अवधिज्ञान के ३ भेद हैं—(१) क्षेत्रानुगामी, (२) भवानुगामी, (३) उभयानुगामी। इनके विपरीत होने वाले ज्ञान अननुगामी अवधिज्ञान के भेद हैं।
प्र.६१. मन:पर्यय ज्ञान कब होता है ?
उत्तर — जैसे ही भावी तीर्थंकर दीक्षा लेते हैं उन्हें मन: पर्ययज्ञान हो जाता है।
प्र.६२. मन:पर्यय ज्ञान के कितने भेद हैं ?
उत्तर — ऋजुविपुलमति मन:पर्यय: ।।२३।। अर्थात् ऋजुमति और विपुलमति के भेद से मन: पर्ययज्ञान दो प्रकार का होता है।
प्र.६३. ऋजु का अर्थ क्या है ?
उत्तर — ऋजु का अर्थ है सरलता।
प्र.६४. ऋजुमति मन: पर्ययज्ञान क्या है ?
उत्तर — वह ज्ञान जो मन, वचन की सरलता से चिंतित पर के मन में स्थित रूपी पदार्थों को जानता है ऋजुमति मन: पर्ययज्ञान है।
प्र.६५. विपुलमति मन: पर्ययज्ञान किसे कहते हैं ?
उत्तर — वह ज्ञान जो सरल तथा कुटिल रूप से चिंतित पर के मन में स्थित रूपी पदार्थों को जानता है वह विपुलमति मन: पर्यय ज्ञान है।
प्र.६६. ऋजुमति और विपुलमति मन: पर्ययज्ञान में क्या अंतर है ?
उत्तर — विशुद्धय प्रतिपाताभ्यां तद्विशेष: अर्थात् परिणामों की विशुद्धता एवम् अप्रतिपात इन दोनों कारणों से ऋजुमति और विपुलमति मन: पर्ययज्ञान में अंतर होता है।
प्र.६७. विशुद्धि से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर — मन: पर्यय ज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम होने पर आत्मा में जो निर्मलता आती है उसे विशुद्धि कहते हैं।
प्र.६८. अप्रतिपात से क्या समझते हैं ?
उत्तर — गिरने का नाम प्रतिपात और नहीं गिरने का नाम अप्रतिपात है।
प्र.६९. ऋजुमति और विपुलमति मन: पर्ययज्ञान में अंतर बताईये ।
उत्तर — ऋजुमति और विपुलमति मन:पर्यय ज्ञान में यह अंतर है कि-
(१) ऋजुमति ज्ञान स्थूल ज्ञान है। और विपुलमति ज्ञान सूक्ष्म ज्ञान है।
(२) ऋजुमति ज्ञान प्रतिपाती है । और विपुलमति ज्ञान अप्रतिपाती है।
(३) यह ऋजुमति ज्ञान तद्भव मोक्षगमी के ही होता है , ऐसा कोई नियम नहीं है ।
प्र.७०. अवधिज्ञान और मन: पर्ययज्ञान में क्या विशेषता या अंतर है ?
उत्तर — विशुद्धिक्षेत्रस्वामीविषयेभ्योऽवधि मन:पर्यययो: । अवधिज्ञान और मन:—पयर्यज्ञान में विशुद्धता,क्षेत्र , स्वामी और विषय की अपेक्षा विशेषता अथवा अंतर होता है।
प्र.७१. मति—श्रुत ज्ञान का विषय क्या है ?
उत्तर — मति श्रुतयोर्निबन्धोद्रव्येष्वसर्वपर्यायेषु। अर्थात् मतिज्ञान और श्रुतज्ञान का विषय संबंध समस्त पर्यायों से रहित जीव पुद्गल आदि समस्त द्रव्यों में है । मति—श्रुतज्ञान जीवादि छहों द्रव्यों को जानते हैं परंतु उनकी पर्यायों को नहीं।
प्र.७२. अवधिज्ञान का विषय बताईये ?
उत्तर — रूपिष्ववधे:।अवधिज्ञान समस्त रूपी पदार्थों को जानता है।
प्र.७३. मन: पर्ययज्ञान का विषय संबंध क्या है ?
उत्तर — तदनन्तभागे मन: पर्ययस्य। अर्थात् मन: पर्ययज्ञान का विषय अवधिज्ञान के अनंतवे भाग को जानता है। अवधिज्ञान से मन:—पर्ययज्ञान का विषय अत्यंत सूक्ष्म है।
प्र.७४. केवलज्ञान का विषय क्या है ?
उत्तर — सर्वद्रव्य पर्यायेषु केवलस्य । अर्थात् केवलज्ञान समस्त द्रव्य और उनकी समस्त पर्यायों को जानता है।
प्र.७५. द्रव्य किसे कहते हैं ?
‘उत्तर’ — सत् द्रव्य लक्षणम् अर्थात् जो उत्पाद, व्यय , ध्रौव्य युक्त है वह सत् है गुण पर्याय् सहित है वह द्रव्य है।
प्र.७६. पर्याय किसे कहते हैं ?
उत्तर — जो चारों ओर से द्रव्य के प्रत्येक गुण को प्राप्त होती है , पर्याय है।
प्र.७७. एक आत्मा में एक साथ कितने ज्ञान हो सकते हैं ?
उत्तर — एकादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्नाचतुभ्र्य: एक जीव में एक साथ एक को आदि लेकर चार ज्ञान हो सकते हैं ।
प्र.७८. आत्मा में एक साथ होने वाले ज्ञान कौन से हैं।
उत्तर — किसी आत्मा में एक ज्ञान हो तो केवल ज्ञान दो ज्ञान हो तो मतिज्ञान, श्रुतज्ञान तीन ज्ञान हो तो मति—श्रुत अवधि ज्ञान या मति — श्रुत, मन:— पर्ययज्ञान चार ज्ञान हो तो मति, श्रुत, अवधि और मन: पर्ययज्ञान
प्र.७९. वे कौन से ज्ञान हैं जो मिथ्या अथवा विपरीत भी होते हैं ?
उत्तर — ‘‘मति श्रुतावधयोविपर्ययश्च’’ । मतिज्ञान, श्रुतज्ञान , अवधिज्ञान विपरीत अथवा मिथ्या ज्ञान भी होते हैं।
प्र.८०. मति—श्रुत—अवधिज्ञान विपरीत कैसे अथवा क्यों होते हैं ?
उत्तर — अज्ञान से होने वाला ज्ञान मिथ्याज्ञान होता है , अधूरा होता है जैसे रज रहित कड़वी तुंबी में रखने से दूध कड़वा हो जाता है उसी प्रकार मिथ्यादर्शन के संसर्ग से इन ज्ञानों में विपरीतता आ जाती है।
प्र.८१. मिथ्यादृष्टि का ज्ञान मिथ्या क्यों है ?
उत्तर — सदसतोरविशेषाद्यदृच्छोपलब्धेरून्मत्तवत्। सत्—असत् पदार्थो में विशेष ज्ञान न होने से, अपनी इच्छानुसार जैसा तैसा जानने के कारण पागल पुरुष के ज्ञान की तरह मिथ्यादृष्टि का ज्ञान मिथ्या ही है।
प्र.८२. सतसतो: से क्या आशय है ?
उत्तर — सत् — प्रशस्त तत्वज्ञान तथा असत् — अप्रशस्त तत्वज्ञान ।
प्र.८३. मति, श्रुत, अवधिज्ञान में विपरीतता किस कारण से आती है ?
उत्तर — सत्—असत् संबंधी निर्णय न करके अपनी इच्छा से अभिप्राय लेने के कारण मति, श्रुत, अवधिज्ञान में विपरीतता आ जाती है ।
प्र.८४. कुमतिज्ञान किसे कहते हैं ?
उत्तर — पर उपदेश के बिना यंत्र, कूट, विष, बंध आदि के विषयों में जो बुद्धि प्रवृत्त होती है वह कुमतिज्ञान है।
प्र.८५. कुश्रुतज्ञान किसे कहते हैं ?
उत्तर — हिंसादि पाप कर्मों के विधायक तप तथा असमीचीन तत्व के प्रतिपादक ग्रंथों (कपिलादि द्वारा रचे गये) को कुश्रुत तथा उसके ज्ञान को कुश्रुतज्ञान कहते हैं ।
प्र.८६. सम्यक्ज्ञान और मिथ्याज्ञान में क्या अंतर है ?
उत्तर — ज्ञेय के अनुसार होने वाला ज्ञान सम्यक्ज्ञान तथा ज्ञेय के विपरीत होने वाला ज्ञान मिथ्याज्ञान है।
प्र.८७. नय के भेद कौन से है ?
उत्तर —‘‘नैगमसंग्रहव्यवहारर्जुसूत्रशब्दसमभिरूढ़ैवम्भूता नया:।’’ नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत ये सात नय है।
प्र.८८. नैगम नय से क्या आशय है ?
उत्तर — कार्य संपन्न हुए बिना संकल्पमात्र को ग्रहण करना नैगमनय हैं।
प्र.८९. नैगमनय का उदाहरण दीजिये ।
उत्तर — जैसे सब्जी सुधारती किसी महिला से कोई पूछे कि तुम क्या कर रही हो ? वह कहती है — सब्जी बना रही हूँ । यद्यपि उस समय वह सब्जी बना नहीं रही है मात्र सब्जी बनाने का संकल्प होने से नैगमनय इसे सत्य स्वीकारता है।
प्र.९०. संग्रह नय किसे कहते हैं ?
उत्तर — भेद सहित समस्त पर्यायों को अपनी जाति के अवरोध द्वारा एक मानकर सामान्य से सबको ग्रहण करना संग्रहनय है।
प्र.९१. व्यवहारनय किसे कहते हैं ?
उत्तर — संग्रहनय द्वारा ग्रहण किये पदार्थों का विधिपूर्वक भेद करना व्यवहारनय है।
प्र.९२. ऋजुसूत्र नय से क्या आशय है ?
उत्तर — ऋजु का अर्थ सरल है और जो सरल को स्वीकार करता है वह ऋजुसूत्रनय है।
प्र.९३. शब्द नय किसे कहते हैं ?
उत्तर — लंग, संख्या, साधना आदि के व्यभिचार की निवृत्ति करने वाला नय शब्दनय है।
प्र.९४. समभिरूढ़ नय किसे कहते हैं ?
उत्तर — जो अनेक अर्थों को छोड़कर प्रधानता से एक में रूढ़ होता है वह समभिरूढ़नय है।
प्र.९५. एवंभूतनय से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर — जो वस्तु जिस पर्याय को प्राप्त हुई है उसी रूप निश्चय कराने वाले नय को एवंभूतनय कहते है । जैसे राज्य करता हुआ ही राजा है अन्यथा नहीं।
प्र.९६. नैगम,संग्रह, व्यवहार आदि नयों को क्रमश: क्यों रखा गया है ?
उत्तर — ये सातों ही नय आगे जाकर सूक्ष्म विषय वाले होने के कारण इनका यही क्रम रखा गया है। पहला—पहला नय आगे आने वाले नयों का हेतु है इसलिये भी यही क्रम रखा गया ।
प्र.९७. क्या ये नय निरपेक्ष रूप सम्यक्तव के हेतु हो सकते हैं ?
उत्तर — सातों नय यदि निरक्षेप रहे तो मिथ्या हो जायेंगे, सापेक्ष रहने पर ही ये सम्यक्त्व के हेतु हैं।
प्र.९८. कार्य सिद्धि कितने नयों से होती है ?
उत्तर — सातों ही नय कार्य सिद्धि के हेतु हैं।
प्र.९९. हमारे जीवन में नय की क्या आवश्यकता है ?
उत्तर — नय का ज्ञान वात्सल्य भावना का प्रतीक है, सफल जीवन की कुंजी है, नय जीवन के मार्गदर्शक हैं, नय मतभेद तथा हठवादिता को हटाता है। संक्षेप में नय संतोषमय जीवन जीने की एक कला है।
प्र.१००. संसारी प्राणी दर्शन, ज्ञान,चरित्र को किस अर्थ में ग्रहण करते है ?
उत्तर — सच्ची श्रद्धा सच्चा ज्ञान तथा सच्चा चारित्र अथवा सम्यक्दर्शन, सम्यक् ज्ञान, सम्यक्चारित्र से सभी संसारी प्राणी परिचित है।
जैनम् जयतु शासनम्
वास्तुगुरू महेन्द्र जैन (कासलीवाल)
1⃣ केवली के कर्म कितने ?
1⃣ 4. वेदनीय आयु नाम गोत्र
2⃣ साधुओ के अनाचार कितने ?
2⃣ 52 बावन
3⃣ अन्तगड़ मे कितनी रानियो का वर्णन है ?
3⃣ 33 रानियो का
4⃣ अरिहन्त कितने व कोन से गुण स्थान मे रहते है ?
4⃣ 2 गुणस्थान मे 13 & 14
5⃣ अरिहन्त मे कितने ज्ञान होते है ?
5⃣ 1 केवल ज्ञान
6⃣ अरिष्टनेमि गृहस्थावस्था मे कितने दिन रहे ?
6⃣ 300 वर्ष
7⃣ राजमति का अरिष्टनेमि से कितने भवो से अनुराग था
7⃣ 8 भव
8⃣ शरीर मे कितने धातु होते है ?
8⃣ 7. सात
9⃣ श्रावक के कितने गुण व कितने लक्षण होते है ?
9⃣ 21. गुण 21 लक्षण
साधु जी की कितनी प्रतिमाये है
12. बारह
1⃣1⃣ बाजार मे बिकने वाला केला कौनसी काय मे आता हैं ?
1⃣1⃣ अकाय
1⃣2⃣ सामायिक करने वाला श्रावक कोनसी गति मे जाता है ?
1⃣2⃣ देव गति मे
1⃣3⃣ हाथी किस काय मे आता है ?
1⃣3⃣ त्रस काय
1⃣4⃣ संवर भावना किसने भायी ?
1⃣4⃣ गौतम स्वामी ने
1⃣5⃣ दान दिये बिना ही भवभ्रमण किसने घटाया ?
1⃣5⃣ जीरण सेठ ने
1⃣6⃣ पत्नि को सजाते सजाते केवल ज्ञान किसे हुआ ?
1⃣6⃣ रतिसार
1⃣7⃣ काया को किसने वश मे किया ?
1⃣7⃣ गजसुकुमाल।
1⃣8⃣ जिन जीवो ने एक बार निगोद छोड़ के दूसरी जगह जन्म लिया क्या कहते ?
1⃣8⃣ व्यवहार राशि
1⃣9⃣ आते हुये कर्मो को रोकना ?
1⃣9⃣ संवर
2⃣0⃣ मन को एक स्थान पर स्थिर करना ?
2⃣0⃣ ध्यान
2⃣1⃣ जो कुछ प्राप्त है उस पर ममत्व रखना ?
2⃣1⃣ परिग्रह
2⃣2⃣ पेट भरे पेटी ना
भरे बताओ कौन ?
2⃣2⃣ पूणिया श्रावक
2⃣3⃣ देख सकते पर
पकड़ नहीं सकते ?
2⃣3⃣ सपना & परछाई
2⃣4⃣ जीव पे जीव ? क्या
2⃣4⃣ जूँ लीख
2⃣5⃣ जीव मे जीव ? क्या
2⃣5⃣ गर्भस्थ जीव
2⃣6⃣ पति पत्नी दोनो
मोक्ष गये ?
2⃣6⃣ नेम राजुल
2⃣7⃣ राजा मरा कोई रोया नहीं ?
2⃣7⃣ मोहनीय कर्म
2⃣8⃣ ऐसी कोनसी आग है जो अन्दर ही अन्दर जलती है ?
2⃣8⃣ ईर्ष्या व चिन्ता
2⃣9⃣ किस बारह व्रत धारी श्रावक ने घमासान युध्द किया ?
2⃣9⃣ चेड़ा महाराज
3⃣0⃣ काजल से भी अधिक काला क्या ?
3⃣0⃣ कलंक
3⃣1⃣ जीव का घर कोनसा
3⃣1⃣ मोक्ष
3⃣2⃣ जीव का ससुराल
3⃣2⃣ देव लोक
3⃣3⃣ जीव का ननिहाल
3⃣3⃣ निगोद
3⃣4⃣ जीव मे अजीव
3⃣4⃣ नाखून बाल
1⃣ श्रीकृष्ण वासुदेव
2⃣ धर्म रुची अणगार
3⃣ परमपुज्य जयमलजी म.सा.
4⃣ राजा श्रेणिक
5⃣ मृगापुत्र
6⃣ माता मरुदेवी
7⃣ गजसुकुमाल
8⃣ शंखराजा
9⃣ एवंतामुनी
1⃣0⃣ चंदनबाला
1⃣1⃣ धन्ना अणगार
1⃣2⃣ राजा श्रेणिक
1⃣3⃣ आनंद श्रावक
1⃣4⃣ नंदकवरजी म.सा
1⃣5⃣ चन्डकोषीक
1⃣6⃣ कामदेव
1⃣7⃣ परमपुज्य कंचनकँवरजी म.सा.
1⃣8⃣ भरत चक्रवती
1⃣9⃣ स्थुलीभद्र
2⃣0⃣ हनुमान
2⃣1⃣ ईलायची कुमार
2⃣2⃣ खंदकजी के 500 शीष्य
2⃣3⃣ सुबाहु कुमार
2⃣4⃣ समुद्रपाल
2⃣5⃣ अर्जुन माली
2⃣6⃣ वसुमती ( चंदनबाला )
2⃣7⃣ राजा मेघरथ
2⃣8⃣ ढंढण मुनी
2⃣9⃣ कपील ब्राम्हण
3⃣0⃣ गोतम गणधर
*🅿666. राज पुत्र होकर भी चंडाल के घर कौन पले ~ बढ़े ~??????*
*🅰Ans. कुरगुंडू जी।
*🅿667. कुरगुंडू जी को कौनसा शोक था ~???*
*🅰Ans. गौ ~ पालन।
*🅿668. कुरगुंडू जी की मुद्रिका पर किनका नाम था ~?????*
*🅰Ans. पिता महाराज दधिवाहन जी का।
*🅿669. अनाथी मुनिजी और श्रेणिक राजा जी की चर्चा किस उद्यान में हुई थी ~????*
🅰Ans. राजगृही के मंडीकुक्षी उद्यान में।
*🅿670. गौत्र के नाम से कौन प्रसिद्ध हुए ~????*
*🅰Ans. गौतम जी और गर्गा चार्य जी।
*🅿671. प्रभु के साधनाकाल के प्रथम वर्ष में क्या अनहोनी हुई ~???*
*🅰Ans. चातुर्मास में विहार करना पडा।
*🅿672. किसके उपद्रव को प्रभु ने शांत भाव से सहे ~?????*
*🅰Ans. शूलपाणी यक्ष के।
*🅿673. उपसर्ग रहित रात्री में प्रभु ने कितने स्वप्न दर्शन किये ~????*
*🅰Ans. 10.
*🅿674. स्वप्न फल बताने वाले नेमितज्ञ का नाम क्या था ~?????*
🅰Ans. इंद्रशर्मा जी।
*🅿675. इंद्रशर्मा जी किस परम्परा का साधु था ~???*
*🅰Ans. पार्श्व परम्परा का।
*🅿676. साधना के प्रथम वर्ष में प्रभु ने कोनसी व् कितनी तपस्यायें की थी ~???*
*🅰Ans. पन्द्रह ~ पन्द्रह उपवास की 8 तपस्याएं की थी।
*🅿677. साधना के दूसरे वर्ष में प्रभु का नाम फैलाने के लिए किसने कहाँ पर चमत्कार दिखाया ~???*
*🅰Ans. मोराक सन्निवेश में सिद्धार्थ नामक व्यन्तर देव ने।
*🅿678. सन्निवेश में कौनसी दो नदियां बहती थी ~???*
*🅰Ans. सुवर्ण बालुका और रौप्य बालुका।
*🅿679. किस नदी के किनारे प्रभु का देवदुष्य वस्त्र काँटों में उलझकर पीछे छूट गया ~????*
🅰Ans. सुवर्ण बालुका नदी के किनारे।
*🅿680. प्रभु कितने समय बाद पूर्ण अचेल हो गए ~?????*
*🅰Ans. तेरह महीनों के बाद।
*🅿681. प्रभु ने साधना काल के किस वर्ष में किसका उद्धार किया था ~???*
*🅰Ans. दूसरे वर्ष में चण्डकौशिक सर्प का।
*🅿682. चण्डकौशिक के शांत होने पर प्रभु ने उसे क्या उपदेश दिया ~????*
*🅰Ans. उवसम भो चण्डकोसिया " शांत हो चण्डकौशिक।
*🅿683. चण्डकौशिक को जातिस्मरण ज्ञान होने पर कितने भव याद आए~????*
*🅰Ans. तीन भव।
*🅿684. वो तीन भव कौनसे थे ~????*
🅰Ans. 1. तपश्वि मुनि। 2. ज्योतिष्क जाती का देव। 3. कुलपति की पत्नी की कुक्षी से जन्म लिया।
*🅿685. चण्डकौशिक का तीसरे भव में क्या नाम था ~????*
*🅰Ans. कौशिक।
*🅿686. कौशिक मरकर कोनसा सर्प बना ~???*
*🅰Ans. आशीविष सर्प बना।
*🅿687.उत्तर वाचला में प्रभु ने कौनसा तप किया और पारणा किस द्रव्य से किया ~????*
*🅰Ans. अर्धमासी तप , खीर से।
*🅿688. प्रभु ने किस नगरी में कोनसी नदी से नोका विहार किया ~~????*
*🅰Ans. श्वेताम्बिक नगरी में गंगा नदी से।
*🅿689. नोका विहार करते कौनसा उपसर्ग आया ~???*
🅰Ans. सुदर्ष्ट्र देव द्वारा भयंकर तूफान खड़ा कर नॉका को पलटाने की कोशिश की।
*🅿690. इस उपसर्ग से प्रभु को किसने बचाया ~?????*
*🅰Ans. नागकुमार देव कम्बल आवर शम्बल ने।
*🅿691. जिनदास श्रावक जी की पत्नी का नाम क्या था ~?????*
*🅰Ans. सोमदासी।
*🅿692. जिनदास को ये दोनों बेल कहाँ से मिले ~???*
*🅰Ans. आभार ज्ञापन स्वरूप अहीरी ने दो बेल जिनदास जी को दिए थे।
*🅿693. दोनों बेल कैसे श्रावक थे ~???*
*🅰Ans. सुलभ बोधि व द्रव्य श्रावक थे।
*🅿694. सुद्रष्ट्र नाग देव कौन था ~???*
🅰Ans. त्रिपृष्ट वासुदेव के भव में जिस सिंह को मारा था वही सिंह का जिव सुदंष्ट्र नाग देव बना।
*🅿695. प्रभु का प्रथम मासखमण का पारणा किनके यहाँ हुआ ~???*
*🅰Ans. विजय सेठ जी के यहाँ।
*🅿696. दूसरे चातुर्मास में प्रभु के अतिशय प्रभाव से कौन आकर्षित हुआ ~????*
*🅰Ans. गौशालक जी।
*🅿697. सर्वज्ञता के दूसरे वर्ष में प्रभु ने कुल कितने मासखमण किये ~???*
*🅰Ans. चार।
*🅿698. प्रभु ने तीसरे वर्ष में कौनसी तपस्या की ~???*
*🅰Ans. दो ~ दो मास की।
*🅿699. प्रभु को डाकू समजकर कहाँ पर पीटते हुए ले जाया गया ~????*
🅰Ans. चोराक सन्निवेश में पहरेदार द्वारा।
*🅿700. प्रभु को इन पहरेदारों से बचाने कौन आया ~?????*
*🅰Ans. उत्पल निमितज्ञ की बहने जयन्ति व् सोमा।
🌺1⃣ वचन के कितने दोष है ?
✅1⃣ आठ ।
🌺2⃣ काय गुप्ति कितने प्रकार की होती है ?
✅2⃣चार ( द्रव्य क्षेत्र काल भाव ) ।
🌺3⃣ पुत्रादि के वियोग से मातादि से विलाप की बाते करना कौनसी कथा है ?
✅3⃣ मृदुकारिणिका कथा ।
🌺 सम्यगदर्शन का भेद हो वैसी बातें करना कौनसी कथा है ?
✅3⃣ दर्शन भेदिनी कथा ।
🌺4⃣ दशवैक़ालिक सूत्र में साधु की भिक्षाचर्या को किसकी उपमा दी गई है ?
✅4⃣ मधुकरीवृत्ति ।
🌺 पाँच समितियों में तीसरी समिति कौनसी है ?
✅4⃣ एषणा समिति ।
🌺5⃣ उपधि कितने प्रकार की होती है ?
✅5⃣ दो (ओघोपधि , औपग्रहिकोपधि )।
🌺6⃣ एषणा समिति कितने प्रकार की है ?
✅6⃣ तीन ।
🌺7⃣ समिति गुप्ति का वर्णन कौनसे सूत्र में आया है ?
✅7⃣ उत्तराध्ययन सूत्र ।
🌺8⃣ मन वचन और काया की अशुभ प्रवृति को रोकना क्या है ?
✅8⃣ गुप्ति ।
🌺9⃣ गुप्ति कितनी होती है ?
✅9⃣ तीन ।
🌺🔟 सम्यक् प्रकार से प्रवृति करना क्या है ?
✅🔟 समिति ।
🌺1⃣1⃣ समिति कितने होती है ?
✅1⃣1⃣ पाँच ।
🌺1⃣2⃣ पाँच समिति व तीन गुप्ति को और किस नाम से जाना जाता है ?
✅1⃣2⃣ अष्ट प्रवचन माता ।
🌺1⃣3⃣समिति का रूप क्या है ?
✅1⃣3⃣ प्रवृतिमय रूप ( पालन करने रूप ) ।
🌺1⃣4⃣ गुप्ति का रूप क्या है ।
✅1⃣4⃣ निवृत्तिमय ( छोड़ने रूप ) ।
🌺1⃣5⃣ इर्या समिति की शुद्धि के कितने कारण है ?
✅1⃣5⃣ चार ।
🌺1⃣6⃣ आलम्बन का मतलब क्या है ।
✅1⃣6⃣ लक्ष्य अथवा प्रयोजन ।
🌺1⃣7⃣ आलम्बन कितने है ?
✅1⃣7⃣ तीन ( ज्ञान दर्शन चारित्र ) ।
🌺1⃣8⃣ इर्या समिति की शुद्धि का दूसरा कारण क्या है ?
✅1⃣8⃣ काल ( समय ) ।
🌺1⃣9⃣ इर्या समिति का तृतीय कारण क्या है ?
✅1⃣9⃣ मार्ग ( रास्ता ) ।
🌺2⃣0⃣ इर्या समिति की शुद्धि का चौथा कारण क्या है ?
✅2⃣0⃣ यतना ।
🌺2⃣1⃣ यतना के कितने भेद है ?
✅2⃣1⃣ चार ।
🌺2⃣2⃣ साधु सामने को कितनी भूमि को देखकर यतना पूर्वक चलना चाहिए ?
✅2⃣2⃣ युगमात्र ( चार हाथ प्रमाण ) ।
🌺2⃣3⃣ साधु के गमना - गमन का काल कितना है ?
✅2⃣3⃣ सूर्य उदय से सूर्य अस्त ।
🌺2⃣4⃣ साधु आहार कितने कारण से करे ?
✅2⃣4⃣ छः ।
🌺2⃣5⃣ साधु के आहार त्याग के कितने कारण है ?
✅2⃣5⃣ छः ।
🌺2⃣6⃣ साधु कितने दोष टालकर आहार की शुद्द एषणा करे ?
✅2⃣6⃣ बत्तीस दोष ।
🌺2⃣7⃣ गृहस्थ द्वारा साधु को लगने वाले दोष को क्या कहते है ?
✅2⃣7⃣ उद्गम दोष ।
🌺2⃣8⃣ उद्गम के कितने दोष है ?
✅2⃣8⃣ सोलह ।
🌺2⃣9⃣ साधु को देने के लक्ष्य से आहारादि को अलग रखना कौनसा दोष है ?
✅2⃣9⃣ स्थापना दोष ( ठवणा )।
🌺3⃣0⃣ साधु के लिए ख़रीद कर देना कौनसा दोष है ?
✅3⃣0⃣ क़्रित दोष ( किय ) ।
🌺3⃣1⃣ किसका सम्यक् प्रकार से आचरण करने से बुद्धिमान साधु संसार से शीघ्र मुक्त हो सकता है ?
✅3⃣1⃣ आठ प्रवचन माताओं का ।
*
1 मोक्ष के लक्षण कितने
🅰️5
2 सर्वप्रथम लक्षण का प्रकार कौनसा
🅰️समकित
3 प्रथम लक्षण कौनसा
🅰️शम
4 सम का अर्थ क्या है
🅰️शत्रु मित्र पर समभाव रखना
5 दूसरा लक्षण कौनसा है
🅰️संवेग
6 संवेग का अर्थ क्या है
🅰️मोक्ष की अभिलाषा राखना
7 यह कब होगा
🅰️विनय गुण की प्राप्ति पर
8 *मुझे तीसरे भव में ही मोक्ष जाना है या तीसरे भव में मोक्ष जाना है*
*दोनो एक है या अलग अलग*
🅰️अलग
9 कितना अंतर है
🅰️दिन-रात
10 कर्मो का राजा कौन
🅰️मोहनीय कर्म
प्रश्न-1. भगवान महावीर का जन्म कहाँ हुआ था ?
उत्तर- बिहार प्रान्त के कुण्डलपुर नगर में (वर्तमान में नालन्दा जिले में है)।
प्रश्न-2.भगवान महावीर का जन्म कब हुआ था?
उत्तर- ईसा से 600 वर्ष पूर्व चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को।
प्रश्न-3.उनकी माता का नाम क्या था ?
उत्तर- महारानी त्रिशला देवी।
प्रश्न-4. उनके पिता का नाम बताओ?
उत्तर- महाराजा सिद्धार्थ।
प्रश्न-5.महावीर के बाबा का नाम क्या था ?
उत्तर- महाराज सर्वार्थ।
प्रश्न-6.महावीर स्वामी के कितने नाम प्रसिद्ध हैं?
उत्तर- पाँच-वीर, अतिवीर, महावीर, सन्मति, वर्धमान।
प्रश्न-7.प्रभु महावीर की वीरता की पहली परीक्षा किसने ली थी?
उत्तर- संगम देव ने सर्प बनकर परीक्षा ली थी।
प्रश्न-8.कितने वर्ष की उम्र में तीर्थंकर महावीर ने दीक्षा ली थी?
उत्तर- 30 वर्ष की उम्र में।
प्रश्न-9.भगवान महावीर ने मोक्ष कहाँ प्राप्त किया था?
उत्तर- बिहार प्रांत की पावापुरी नगरी में।
प्रश्न-10. महावीर स्वामी की आयु कुल कितने वर्ष की थी?
उत्तर- 72 वर्ष।
प्रश्न-11. भगवान महावीर का चिन्ह क्या है?
उत्तर- शेर।
प्रश्न-12. महावीर स्वामी के एक विशेष आहार के समय किसकी बेडि़यां टूटी थीं?
उत्तर- महासती चन्दना की।
प्रश्न-13. चंदना का महावीर से क्या संबंध था?
उत्तर- चन्दना महावीर स्वामी की सबसे छोटी मौसी थीं।
प्रश्न-14. तीर्थंकर किसे कहते है?
उतर- जो धर्मतीर्थ का प्रवर्तन करते हैं वे तीर्थंकर कहलाते हैं।
प्रश्न-15. तीर्थंकर के जन्म की क्या विशेषता है?
उत्तर-जिनके जन्म से 15 महीने पहले तक रत्नों की वर्षा होती है।
प्रश्न-16. तीर्थंकर कितने होते हैं?
उत्तर. चौबीस (24)।
प्रश्न-17. सुमेरु पर्वत की महिमा क्या है?
उत्तर- इस पर जन्मजात तीर्थंकर बालक का इन्द्रों द्वारा जन्माभिषेक किया जाता है इसलिए इसकी महिमा विशेष है।
प्रश्न-18. जन्माभिषेक क्या है?
उत्तर- जन्मजात तीर्थंकर बालक का 1008 कलशों से अभिषेक करना (स्नान कराना) जन्माभिषेक कहलाता है।
प्रश्न-19. वह सुमेरुपर्वत कहाँ है?
उत्तर- जम्बूद्वीप के बीचोंबीच में सुमेरु पर्वत है।
प्रश्न-20. वर्तमान में ऐसा सुमेरु पर्वत बड़े रूप में कहाँ बना है?
उत्तर- हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप रचना के बीच में 101 फुट ऊँचा सुमेरू पर्वत बना है।
प्रश्न-21. पहले तीर्थंकर का नाम बताओ?
उत्तर- तीर्थंकर श्री ऋषभदेव जी।
प्रश्न-22. ऋषभदेव का जन्म कहाँ हुआ था?
उत्तर- अयोध्या नगरी में।
प्रश्न-23. उनकी माता का नाम क्या था?
उत्तर- महारानी मरुदेवी जी।
प्रश्न-24. उनके पिता का क्या नाम था?
उत्तर- महाराजा नाभिराय जी।
प्रश्न-25. अयोध्या में अन्य किन महापुरुष का जन्म हुआ था?
उत्तर- मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचन्द्र जी का।
प्रश्न-26. श्री रामचन्द्र का जन्म किस दिन हुआ था?
उत्तर- चैत्र शुक्ला नवमी तिथि को।
प्रश्न-27. उस तिथि को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर- उस तिथि को रामनवमी के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न-28. धर्म किसे कहते हैं?
उत्तर- जो उत्तम सुख को प्राप्त करावे वह धर्म है।
प्रश्न-29. जैन धर्म की स्थापना किसने की?
उत्तर- किसी ने नहीं, क्योंकि वह शाश्वत धर्म है।
प्रश्न-30. महावीर की निर्वाण तिथि क्या है?
उत्तर- कार्तिक कृष्णा अमावस।
प्रश्न-31. उसे किस पर्व के रूप में मनाया जाता है?
उत्तर- वीर निर्वाण दिवस जैन धर्मानुसार दीपावली पर्व के रूप में मनाया जाता है।
प्रश्न-32. महावीर के नाम पर सरकारी छुट्टी कब होती है?
उत्तर- महावीर जयन्ती को, चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन महावीर भगवान के जन्म दिन के उपलक्ष्य में यह छुट्टी होती है।
प्रश्न-33. व्यसन किसे कहते हैं?
उत्तर- बुरी आदत को व्यसन कहते हैं।
प्रश्न-34. व्यसन कितने होते हैं?
उत्तर- सात।
प्रश्न-35. सात व्यसनों के नाम बताओ?
उत्तर- 1.जुआ खेलना 2. मांस खाना 3. शराब पीना 4.वेश्या सेवन 5. शिकार खेलना 6. चोरी करना 7. परस्त्री सेवन करना।
प्रश्न-36.पांडवों को किस व्यसन के कारण जंगल में जाना पड़ा?
उत्तर- जुआ खेलने के कारण|
प्रश्न-37. रावण को किस व्यसन के कारण नरक जाना पड़ा?
उत्तर- परस्त्री सेवन की भावनामात्र से, क्योंकि उसने सीता का हरण किया था उससे बलात्कार नहीं किया था।
प्रश्न-38. शराब पीने से क्या हानि होती है?
उत्तर- पैसा, स्वास्थ्य एवं परिवार की बर्बादी होती है। इस लोक में निंदा एवं अगले भव में नरक के दुख भोगना पड़ता है।
प्रश्न-39. शिकार खेलना बुरा क्यों है?
उत्तर- इससे निरपराध जीवों की हिंसा होती है और इनकी हिंसा से नरक में जाना पड़ता है।
प्रश्न-40. सातों व्यसनों में कौन सा व्यसन अच्छा है?
उत्तर- कोई भी नहीं।
प्रश्न-41. सत्य बोलने में कौन सा राजा लोकव्यवहार में प्रसिद्ध हुआ है?
उत्तर- राजा हरिश्चन्द्र।
प्रश्न-42. श्री रामचन्द्र जी की प्रसिद्धि क्यों हुई?
उत्तर- पिता की आज्ञापालन करने के कारण।
प्रश्न-43. पाप किसे कहते हैं?
उत्तर- बुरे कार्यों को करना पाप कहलाता है।
प्रश्न-44. पाप कितने होते हैं? उनके नाम बताओ?
उत्तर- पाँच-1. हिंसा 2. झूठ 3. चोरी 4. कुशील 5.परिग्रह
प्रश्न-45. हिंसा किसे कहते हैं?
उत्तर- किसी भी छोटे-बड़े प्राणी को मारना हिंसा है।
प्रश्न-46. झूठ किसे कहते हैं?
उत्तर- अपनी देखी सुनी बात को गलत रूप में बताना झूठ है।
प्रश्न-47. चोरी किसे कहते हैं?
उत्तर- किसी की गिरी, पड़ी या भूली चीजों को उससे पूछे बिना उठा लेना चोरी है।
प्रश्न-48. कुशील किसे कहते हैं?
उत्तर- पुरुषों के द्वारा किसी महिला को बुरी नजर से देखना और महिलाओं के द्वारा किसी पुरुष के प्रति बुरी दृष्टि रखना कुशील पाप है।
प्रश्न-49. परिग्रह किसे कहते हैं?
उत्तर- आवश्यकता से अधिक धन का संग्रह करने को परिग्रह कहते हैं।
प्रश्न-50. पापों का त्याग कौन कर सकते हैं?
उत्तर- मनुष्य एवं पशु भी पापों का त्याग कर सकते हैं।
प्रश्न-51. अणुव्रत किसे कहते हैं?
उत्तर- जिन व्रतों को छोटे रूप में-आंशिक रूप में पालन किया जाता है वे अणुव्रत कहलाते हैं।
प्रश्न-52. अणुव्रतों का पालन कौन करते हैं?
उत्तर- गृहस्थ स्त्री-पुरुष अणुव्रतों का पालन करते हैं।
प्रश्न-53. महाव्रत किसे कहते हैं?
उत्तर- पूर्णरूप से पांचों पापों का त्याग करने को महाव्रत कहते हैं।
प्रश्न-54. महाव्रत कितने होते हैं? उनके नाम बताओ।
उत्तर- पांच-1. अहिंसा महाव्रत 2. सत्य महाव्रत 3. अचौर्य महाव्रत 4. ब्रह्मचर्य महाव्रत 5. अपरिग्रह महाव्रत।
प्रश्न-55. बच्चों का सबसे बड़ा क्या कर्तव्य है?
उत्तर- माता-पिता, गुरु, मित्र, भाई-बहन और परिवार के प्रति विनय करना, उद्दण्डता नहीं करना।
प्रश्न-56. माता-पिता के प्रति आपके क्या कर्तव्य हैं?
उत्तर- उनकी आज्ञा का पालन करना।
प्रश्न-57. गुरू के प्रति विद्यार्थी के क्या कर्तव्य हैं?
उत्तर- गुरू की विनय करना, उनकी आज्ञा का पालन करना और उनकी गलती नहीं देखना।
प्रश्न-58. भगवान किसे कहते हैं?
उत्तर- जो कर्मों से छूटकर फिर कभी संसार में जन्म न ले उन्हें भगवान कहते हैं।
प्रश्न-59. इंसान की क्या पहचान है?
उत्तर- जो अपने समान दूसरों को भी समझकर किसी को कष्ट न दे उसे इंसान कहते हैं।
प्रश्न-60. अंडा शाकाहार है या मांसाहार?
उत्तर- मांसाहार, क्योंकि उसमें किसी माँ का बच्चा ही होता है।
प्रश्न-61. शाकाहारी वस्तुओं की उत्पत्ति कैसे होती है?
उत्तर- पेड़ों से और खेती द्वारा उत्पन्न वस्तु शाकाहारी होती है। जैसे-अनाज, फल, मेवा, सब्जी।
प्रश्न-62. मांसाहारी चीजें कहाँ से उत्पन्न होती हैं?
उत्तर- जीवों के पेट से पैदा होने वाले अंडे और जीवों के हड्डी, खून, मांस आदि से बनने वाली चीजें मांसाहारी होती है।
प्रश्न-63. मत्स्य पालन केन्द्र धर्म है या अधर्म?
उत्तर- अधर्म है क्योंकि इसमें मछलियों को मारने के लिए पाला जाता है अतः यह मत्स्यमारण है।
प्रश्न-64. भारतीय संस्कृति की जड़ क्या है?
उत्तर- अहिंसा और स्त्रियों का पातिव्रत्यधर्म।
प्रश्न-65. हिंसा के कितने भेद हैं?
उत्तर- चार भेद है-1. संकल्पी 2. आरंभी 3. उद्योगी 4. विरोधी।
प्रश्न-66. संकल्पी हिंसा किसे कहते हैं?
उत्तर- जानबूझकर किसी भी छोटे-बड़े जीव को मारना संकल्पी हिंसा है।
प्रश्न-67. आरंभी हिंसा का क्या अर्थ है?
उत्तर- खाना पकाने, पानी भरने, कपड़ा धोने आदि कार्यों में आरंभी हिंसा होती है।
प्रश्न-68. उद्योगी हिंसा किस-किस कार्य में होती है?
उत्तर- व्यापार, खेती आदि में उद्योगी हिंसा होती है।
प्रश्न-69. विरोधी हिंसा का क्या अभिप्राय है?
उत्तर- अपने परिवार, समाज, देश तथा सत्य की रक्षा हेतु विरोधियों से लड़ना विरोधी हिंसा है। जैसे-रामचन्द्रजी ने नारी अत्याचार के विरोध में रावण के साथ युद्ध किया था।
प्रश्न 70. इन चारों हिंसाओं में गृहस्थ किससे बच सकते हैं?
उत्तर- संकल्पी हिंसा से, क्योंकि यह सर्वथा त्याज्य है एवं शेष तीन का त्याग गृहस्थ जीवन में असंभव है।
प्रश्न-71. युद्ध में होने वाली हिंसा का क्या नाम है?
उत्तर- अपनी देशरक्षा के लिए किये जाने वाले युद्ध में होने वाली हिंसा का नाम है-विरोधी हिंसा।
प्रश्न-72. देश रक्षा में मरने वाले सैनिक के मरण का नाम क्या है?
उत्तर- वीरमरण।
प्रश्न-73. हमारे देश का नाम किस राजा के नाम पर पड़ा है?
उत्तर- भगवान ऋषभदेव के पुत्र भरत चक्रवर्ती के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा है।
प्रश्न-74. जैन धर्म का मूलमंत्र क्या है?
उत्तर- णमोकार मंत्र-णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं।
प्रश्न-75. णमोकार मंत्र का क्या मतलब है?
उत्तर- इसमें पांच प्रकार के महापुरुषों को नमस्कार किया गया है, इसलिए इसे पंच-नमस्कार मंत्र भी कहते हैं।
प्रश्न-76. वे पांच महापुरुष कौन-कौन से होते हैं?
उत्तर- अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु। ये पाँचपरमेष्ठी होते है।
प्रश्न-77. परमेष्ठी किसे कहते हैं?
उत्तर- जो परम अर्थात् मनुष्यों में सबसे अधिक पूज्य पद में स्थित होते हैं उन्हें परमेष्ठी कहते हैं।
प्रश्न-78. वर्तमान में जैन धर्म के कितने भेद है?
उत्तर- दो भेद है-1. दिगम्बर धर्म 2. श्वेतांबर धर्म।
प्रश्न-79. जैन साधु के वर्तमान में कितने भेद है?
उत्तर- दो भेद है-दिगम्बर जैन साधु और श्वेताम्बर जैन साधु।
प्रश्न-80. दिगम्बर जैन साधुओं की क्या पहचान है?
उत्तर- वे नग्न होते हैं, उनके हाथ में मोरपंख की पिच्छी और लकड़ी का कमंडलु होता है।
प्रश्न-81. इन साधुओं को क्या कहा जाता है?
उत्तर- मुनि महाराज जी।
प्रश्न-82. दिगम्बर साधु पूरे नग्न क्यो रहते हैं?
उत्तर- क्योंकि उनका मन पूर्ण शुद्ध-पवित्र होता है, बच्चे के समान वे निर्विकारी होते है।
प्रश्न-83. दिगम्बर जैन धर्म में साध्वियों की क्या पहचान है?
उत्तर- दिगम्बर जैन साध्वी एक सफेद साड़ी पहनती हैं और उनके हाथ में भी मोरपंख की पिच्छी एवं लकड़ी का कमण्डलु होता है।
प्रश्न-84. इन साध्वियों को क्या कहा जाता है?
उत्तर- आर्यिका माताजी।
प्रश्न-85. ये साधु-साध्वी मोरपंख की पिच्छी क्यों रखते हैं?
उत्तर- यह इनकी पहचान है क्योंकि उठते, बैठते, सोते आदि सभी समय ये मोरपंख की पिच्छी से स्थान को परिमार्जित कर (जीव जन्तु बचाकर) बैठते है ताकि कोई छोटा सा भी जीव मरने न पावे।
प्रश्न-86. साधु-साध्वी कमंडलु क्यों साथ रखते हैं?
उत्तर- इसमें शरीर शुद्धि के लिए गरम जल रखते हैं।
प्रश्न-87. उस जल का जैन मुनिगण क्या प्रयोग करते हैं?
उत्तर- दीर्घशंका, लघुशंका जाने में शुद्धि के लिए उस जल का प्रयोग करते हैं उसे वे कभी भी पीते नहीं है।
प्रश्न-88. जैन धर्म के मूल सिद्धान्त क्या हैं?
उत्तर- अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्त ये जैन धर्म के मूल सिद्धान्त हैं।
प्रश्न-89. भारतीय मुद्रा पर कौन सी सूक्ति लिखी होती है?
उत्तर- सत्यमेव जयते।
प्रश्न-90. जैनधर्म के प्रसिद्ध पांच तीर्थों के नाम बताओ?
उत्तर- अयोध्या, सम्मेदशिखर, हस्तिनापुर, कुण्डलपुर, पावापुर।
प्रश्न-91. हस्तिनापुर का नाम विशेष प्रसिद्ध किस कारण से हुआ?
उत्तर- कौरव-पांडव की राजधानी के कारण।
प्रश्न-92. हस्तिनापुर में विशेष दर्शनीय स्थल क्या है?
उत्तर- जम्बूद्वीप रचना।
प्रश्न-93. जम्बूद्वीप क्या है?
उत्तर- जैन भूगोल का ज्ञान कराने वाला पृथ्वी का स्वरूप जम्बूद्वीप है।
प्रश्न-94. जम्बूद्वीप की रचना किसकी प्रेरणा से बनी है?
उत्तर- जैन साध्वी पूज्य गणिनीप्रमुख (आचार्या) श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से।
प्रश्न-95. पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी ने कितने शास्त्र लिखे हैं?
उत्तर- दो सौ पचास (250)।
प्रश्न-96. गति किसे कहते हैं?
उत्तर- एक जन्म से दूसरे जन्म को धारण करने का नाम गति है।
प्रश्न-97. गतियाँ कितनी होती हैं?
उत्तर- चार-नरकगति, तिर्यचगति, (पशुगति) मनुष्यगति, देवगति।
प्रश्न-98. कैसे कर्म करने से देवगति मिलती है?
उत्तर- दूसरों का उपकार करने से, सदाचार का पालन करने से तथा भगवान की उपासना से देवगति मिलती है।
प्रश्न-99. नरकगति में कौन से दुख होते हैं?
उत्तर- संसार के सारे दुख नरक में होते हैं। जैसे-मार-काट, अग्नि में पकाना, आरे से चीरना आदि।
प्रश्न-100. कौन से जीवों को मरकर नरक में जाना पड़ता है?
उत्तर- हिंसा करने वाले, शराब पीने वाले, जुआ खेलने आदि पाप करने वाले लोग मरकर नरक में जाते हैं।
प्रश्न-101. किन कर्मों से पशु पर्याय मिलती है?
उत्तर- दूसरों के साथ विश्वासघात करने से, ठगने से पशु पर्याय में जाना पड़ता है।
प्रश्न-102. गुरू की विनय करने से क्या लाभ है?
उत्तर- इस जन्म में खूब विद्या प्राप्त होती है और अगले जन्म में मनुष्य या देव जैसी अच्छी योनि में जन्म होता है।
प्रश्न-103. सच्चे जैन श्रावक (गृहस्थ) की मुख्य पहचान क्या है?
उत्तर- पानी छानकर पीना, रात्रि में भोजन नहीं करना और प्रतिदिन भगवान के दर्शन करना।
प्रश्न-104. जैन साधु-साध्वी हमेशा पैदल विहार क्यों करते हैं?
उत्तर- अहिंसा धर्म का पालन करने के लिए और अपने उपदेशों से जनकल्याण करने हेतु वे सदैव पैदल विहार करते हैं।
प्रश्न-105. दिगम्बर जैन साधु-साध्वियों की मुख्य तीन पहचान क्या हैं?
उत्तर- करपात्र में दिन में एक बार भोजन लेना, केशलोंच करना (अपने हाथों से अपने सिर, दाढ़ी, मूछ के बाल उखाड़ना) पैदल विहार करना।
प्रश्न-106. कषाय किसे कहते हैं?
उत्तर- जिन भावों से आत्मा कसी जाती है अर्थात् आत्मा को दुख मिलता है उसे कषाय कहते हैं।
प्रश्न-107. कषाय कितने प्रकार की होती है?
उत्तर- चार-क्रोध, मान, माया, लोभ।
प्रश्न-108. इनमें सबसे ज्यादा बुरी कौन सी कषाय है?
उत्तर- क्रोध कषाय, क्योंकि क्रोध में आकर लोग आत्महत्या तक कर लेते हैं।
प्रश्न-109. समस्त अनर्थों का मूल कौन सी कषाय है?
उत्तर- लोभ। इसलिए लोभ को पाप का बाप कहा गया है।
प्रश्न-110. सामान्य रूप से सभी मनुष्यों में कितनी कषाय होती है?
उत्तर- चारों कषाय सामान्य रूप से सभी में पाई जाती है।
प्रश्न-111. पूर्णरूप से कषाय रहित कौन होते हैं।
उत्तर- भगवान, जिन्होंने सभी कर्मों को जीत लिया है।
*
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें