तपस्या पर कविता
*युद्ध भूमि में योद्धा तपे, सूर्य तपे आकाश*
*तपस्वी साधक अंदर से तपे, करें कर्मों का नाश।*
*तप जीवन का श्रोत है*,
*तप जीवन जलती ज्योत है*
*तप से होती है कर्मनिर्जरा*
*तप मोक्ष मार्ग का स्तोत्र है।*
*बिलासपुर क्षेत्र को दी हरियाली
अर्चना ने लगा दी अद्भुत
तपस्या की झड़ी
अढ़ाई, दस, पंद्रह
अबकी मासखामन की अत्युत्तम तपस्या की जुडी कड़ी
*उत्तरोत्तर तप का विस्तार है*
*पाया जीवन का निस्तार हैं*
पुण्यवाणी का शुभ अवसर आया
तपस्या में तन मन लगाया रसनेन्द्रिय पर किया विजय
दृढ़ता से कर्मों को खपाया।
तपस्वी के क्या गायें हम गुणगान❓
तपस्वी से होता है कर्मों का संहार।
जैन श्वेतांबर तेरापंथ संघ
अर्चना नाहर की करते अनुमोदना बारम्बार
🙏🏻🙏🏻
यूँ ही नहीं,तप के फूल खिलते ,उपवन में
यूँ ही नहीं तप की सौरभ महका करती
पर आज हमारा,
महक रहा है तप से आंगन, तप की ऊर्जा छाई है
बधाई तुम्हें
तप की राह तुम्हें *हंसिका* खूब भायी हैं।
कठिन बड़ी राह तप की,
क्षुधा-जल -उष्ण परिषह सहन करनी पड़ती,पर तुमने (क्लिष्ट राह चुनी)
पहले की अठाई ,अब निरंतर तेले की लड़ी लगाई,
रसनेन्द्रिय पर किया विजय
दृढ़ता से कर्मों को खपाया।
छोटी वय में कर्म निर्जरा से प्रीत जगाई,
यूँ ही सतत धर्म -तप के केतन लहराओ
भविष्य में बन सजग श्राविका
धर्म की अलख जगाओ
हम सबकी खूब खूब अनुमोदना पाओ।
तप हैं तत्व निर्जरा
तप काया की निर्मलता
तप हैं आत्मशुद्धि की साधना
तप हैं
आत्मा पर लगे हुए कर्मदलिकों का क्षय करना
तप हैं निरन्तर सम्यक मार्ग पर बढ़ने की पगडण्डी
तप हैं मोह दूर करने की जड़ी
ललिका जी ने
तप के क्षीर सागर में गहरे पैठ पुण्य के मोती चुने है
अपने जीवन के लिएआध्यात्मिक स्वर्णिम तार बुने है
ललिका जी ऐसे ही दुसह तप के सोपान पर
निरन्तर बढ़ती जा रही हैं
तप के कणढ़ी आभूषण तिस पर मौन का पेंडेंट से जीवन सजा रही हैं।
शांत मुद्रा मुख पर, चिर शांति
प्रसन्न मुख , निरन्तर आने का क्रम
दृढ़ निश्चय ,की प्रतिमूर्त ललिका जी आपकी
मन ही मन नजर उतारते है हम
सदा यूँ ही तप के नित नए सच्चे आभूषण गढ़ते जाए
धन्ना अणगार की परिपाटी
पर पग जमाते जाये
औऱ अपने जीवन की मूल्य निधि को अमूल्य बनाती जाए
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