मन क्यों नहीं मानता

मन क्यों नहीं मानता की,
 वोबूढ़ाहो गया  ,
क्योंकि शायद
सालों से इसे
भरमाया है ,
अभी रहने दे ,जिम्मेदारीयां
निभा ले
बाद में निवर्त हो
जी लेना अपनी जिंदगी और लो
वो निवर्त हो गया तैयार है
अपनी इच्छा पूरी करने को
अब कितना भी समझाऊँ,कि अब तुम
बूढ़े होगये
 तुम अब यह नहीं कर सकते
ये नहीं पहन सकते ,
अब शरीर भी समझाने लग गया है
तुम जवान नहीं इतना नहीं चढ़ उतर
सकते,
पर वो मानता ही नहीं
कहता हैं  रुआंसा होकर,झूठे हो तुम,

कितना चाहता था मैं अपनी जिंदगी जीना
कहाँ जीने दी,हरदम रोकते रहे तुम
अभी नहीं बाद में मेरी इच्छायें रोड़ दी,
क्या?इस दिन के लिए मैंने अपनी सारी चञ्चलता छोड दी ,
नहीं2 अब नहीं मानूँगा
अब मैं वही करूंगा जो दिल चाहता है,
वो करता भी हैं कभी कभी, दिलचाही। पर
अब वो लोगों कि हंसी का पात्र बन जाता है ,तब
वो ऐसी कातिल नजरों से मुझे घूरता है,
और  जैसेमैं गुनहगार हूँ इसकी,
औऱ मैं  क्या करूँ, कर भी क्या सकती हूं,
 पलके झुका
लेती हूं ,
कभी 2 तो बाग़ी हो जाता है
,औऱ दहाडे मारता है चीत्कार करता है
कितना भी उसे समझाऊँ
पर
 मन मेरा ,अड़ा है,
 मानता ही नहीं कि वो बुढा होगया
स्वरचित

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