महाप्रज्ञजी ने कहा
*महाप्रज्ञजी ने कहा*⤵️
*"मैं कहाँ हूँ "*( *तत्वबोध से*)1️⃣
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अपने आप को देखें आध्यात्मिक होने का अर्थ है अपने आपको देखना। दुनिया में सबसे जटिल काम है अपने आप को देखना। हमारी एक ऐसी प्राथमिक संरचना हो गई है, कि हमारा ध्यान अपनी और नहीं जाता, दूसरों की और अधिक जाता है, अपने आपको देखना, यह शब्द बहुत पुराना है अध्यात्म के लोगों ने इसका बहुत उच्चारण किया है, प्रश्न है अपने आप को देखने का क्या अर्थ है? उसकी कोई स्पष्ट भाषा नहीं है, किसको देखना है, शरीर को हर आदमी देखता है, एक डॉक्टर शरीर को बहुत अच्छी तरह जानता है शरीर के अवयवों और कार्यों को जानना एक बात है। और उसे देखना अलग बात है, डॉक्टर जितना रोगी के शरीर को देखता है उतना शायद अपने शरीर को नहीं देखता केवल शरीर को देखना उसके क्रियाकलापों को जानना, चिकित्सा शास्त्रीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हो सकता है, अध्यात्म में अपने आप को देखने की परिभाषा सर्वथा नई और विलक्षण है। प्रेक्षा ध्यान के संदर्भ में अपने आप को देखने का अर्थ है अपने सुख-दुख को देखना अपने सुख को देखना और अपने दुख को देखना यह इतनी साफ चीजे है कि हर आदमी इन्हें देखता है भोगता है देखता कम है भोगता ज्यादा है। या तो सुख को भोगता है या दुख को भोगता है बस दोनों के भोग में ही जीवन चल रहा है।
*महाप्रज्ञजी ने कहा*⤵️
*"मैं कहाँ हूँ "*( *तत्वबोध से*)2️⃣
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हमारे जीवन की सरिता के दो तट बने हुए हैं एक और सुख का तट दूसरी और दुख का तट यह कभी इस तट को छूता है कभी उस तट, को कभी इधर मुड़ता है ,और कभी उधर, कभी सुख का अनुभव होता है, और कभी दुख का, इस सुख दुख के चक्र की ओर ध्यान केंद्रित करने का अर्थ है, सुख और दुख के नियम को देखना अपने आपको देखना, इसका दूसरा अर्थ है, स्वयं को देखना सुख और दुख का मूल कारण क्या है इसका स्वरूप क्या है इस कारण की खोज करने का अर्थ है अपने आप को देखना जैन दर्शन के अनुसार दुख का कारण है सातवेदिनीय कर्म और दुख का कारण है असातवेदनीय कर्म जो व्यक्ति प्राणी मात्र के प्रति करुणा का भाव रखता है, करुणा का व्यवहार करता है, उसके सात् वेदनीय कर्म का बंध होता है। और वह सुख का अनुभव करता है। जो व्यक्ति प्राणी मात्र के प्रति क्रूर व्यवहार करता है कठोर व्यवहार करता है, उसके और असातवेदनीय कर्म का बंध होता है। और वह दुख का अनुभव करता है, यह दार्शनिक दृष्टिकोण है ।सुख और दुख के मूल कारण का। करुणा होना दूसरों के प्रति कोमल व्यवहार करना मृदु व्यवहार करना- यह सुख का मूल कारण है दूसरे के साथ अन्याय पूर्ण और कठोर व्यवहार करना यह दुख का मूल कारण है। जब इस बात को आदमी देखेगा, इस पर ध्यान केंद्रित करेगा तो क्रूरता से बचना चाहेगा और करुणा पूर्ण व्यवहार को पहला स्थान देगा, क्योंकि उसे दुखी नहीं बनाना है दुखी नहीं बनना है तो क्रूरता को त्यागना हीं होगा।
*महाप्रज्ञजी ने कहा*⤵️
*"मैं कहाँ हूँ "*( *तत्वबोध से*)3️⃣अपने आपको देखना
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इस वैज्ञानिक दृष्टि से विचार करें विज्ञान के अनुसार हमारे मस्तिष्क में बहुत प्रकार के रसायन होते हैं हमारे प्रत्येक व्यवहार और आचरण के पीछे एक रसायन होता है, एक प्रकार का न्यूरोट्रांसमीटर होता है सुख का रसायन भी मस्तिष्क में है और दुख का रसायन भी मस्तिष्क में है, जब जब आदमी अच्छे विचार करता है तब तक सुख के रसायन का स्त्राव होता है जब जब वह बुरे विचार करता है तब तक दुख के रसायन का स्राव होता है सुख का कारण अच्छे विचार और दुख का कारण है बुरे विचार सुख दुख को देखना और सुख दुख के कारण को देखना ही अपने आप को देखना है ।जो व्यक्ति सुख दुख के रहस्य को नहीं जानते सुख-दुख के आध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारणों को नहीं जानते वे समस्याओं का समाधान नहीं कर सकते जो अपने आप को नहीं देखता वह ना क्रूरता को छोड़ सकता है ना अन्याय को छोड़ सकता है और ना दूसरों को धोखा देने के आचरण को छोड़ सकता है जिन लोगों ने अपने आपको देखना शुरू किया है वहीं इन बुराइयों से बच पाए अन्यथा संभव नहीं है।
*महाप्रज्ञजी ने कहा*⤵️
*"मैं कहाँ हूँ "*( *तत्वबोध से*)4️⃣अपने आपको देखना
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अपने आप को देखने का एक अर्थ है, विचारों को देखना विचार की प्रेक्षा करें, कौन सा विचार मस्तिष्क में दौड़ रहा है प्रेक्षा ध्यान का एक प्रयोग है- विचार- प्रेक्षा ,जैसे स्वास्थ्य- प्रेक्षा से श्वास को देखते हैं, शरीर- प्रेक्षा से शरीर को देखते हैं, वैसे ही विचार -प्रेक्षा से विचार को देखते हैं। हम विचारों को देखना शुरू कर दें तो एक चमत्कार जैसा हो जाता है ।विचार- प्रेक्षा के दो परिणाम होते हैं -,विचार आने बंद हो जाते हैं।, बुरे विचार नहीं आते । जो विचार आ रहा है, उसे देखना सीखे। अच्छा विचार आ रहा है तो उसे देखें और बुरा विचार आ रहा है तो उसे भी देखें। जब आदमी विचारों को देखना शुरू करता है तब विचार के कारण को भी देखना शुरू कर देता है ।जब तक व्यक्ति विचार को देखता नहीं तब तक विचार का कारण पकड़ में नहीं आता। जानता है कि विचार आ रहा है ।कभी मन में वंचना का विचार आ जाता है ,कभी आत्महत्या का विचार भी आता है, कभी पर हत्या का विचार भी आता है, कभी चोरी का विचार आ जाता है, कभी डकैती का विचार आ जाता है, कभी किसी को सताने का विचार आ जाता है। यह सारे बुरे विचार हैं। कभी अच्छे विचार भी आते हैं। कभी भलाई का विचार आता है, किसी का अच्छा काम करने का विचार आता है। केवल बुरे विचार ही नहीं आते, अच्छे विचार भी आते हैं। जो भी विचार आए, अच्छे आए या बुरे आए उन विचारों को देखना शुरू करें विचार का प्रवाह थम जाएगा.।
*महाप्रज्ञजी ने कहा*⤵️
*"मैं कहाँ हूँ "*( *तत्वबोध से*)5️⃣अपने आपको देखना
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सुख और दुख के साथ भी विचार का संबंध है। सुख-दुख को देखने का अर्थ है, विचार को देखना इस सुख के पीछे कौन सा विचार काम कर रहा है, इस दुख के पीछे कौन सा विचार काम कर रहा है, कभी-कभी अनुकूल स्थिति में भी बहुत बुरी कल्पना आने लग जाती है, भविष्य अंधकार में दिखाई देता है, कभी प्रतिकूल परिस्थिति में भी अच्छे विचारों का स्त्रोत रहता है, अपना भविष्य उज्जवल दिखाई देता है ,बहुत जटिल है, विचार का जगत , और बहुत जटिल है विचारों को देखना ,अच्छे विचार को देखना और बुरे विचार को देखना ।आत्म निरीक्षण या अपने आप को देखने का काम यहीं समाप्त नहीं होता, इस और आगे जाए चिंतन करें, विचार बुरा क्यों आता है, विचार अच्छा क्यों आता है, उसके मूल को देखें। उसके मूल को खोजें। सुख -दुख का मूल है अच्छा अथवा बुरा विचार अच्छा या बुरा। विचार का मूल है- अच्छा अथवा बुरा भाव हमारा भाव कैसा है? अगर अच्छा भाव भीतर काम कर रहे हैं तो, अच्छा विचार आएगा, यदि भीतर में बुरा भाव काम कर रहा है तो बुरा विचार आएगा।
*महाप्रज्ञजी ने कहा*⤵️
*"मैं कहाँ हूँ "*( *तत्वबोध से*)6️⃣अपने आपको देखना
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ध्यान का अर्थ है- स्थूल से सूक्ष्म की और जाना।
जो आदमी स्थूल पर अटक जाते हैं, वे ध्यान का लाभ नहीं उठा पाते। ध्यान का मूल सूत्र है "स्थूलात्सूक्ष्म:"सूक्ष्म से सूक्ष्म की ओर जाना। सुख की अनुभूति स्थूल है ।विचार उससे सूक्ष्म है और भाव विचार से भीसूक्ष्म है। यह हमारा भीतर का जगत है अंतर का जगत है। अध्यात्म के आचार्यों नेसुक्ष्म में जाने की बहुत प्रशस्त प्रक्रिया प्रस्तुत की, किंतु कुछ व्यवधान ऐसा आया कि वह प्रक्रिया छूट गई। जब से मनोविज्ञान का विकास हुआ है तब से सूक्ष्म जगत में जाने का द्वार खुल गया वैज्ञानिकों ने धर्म और धार्मिक को का बहुत बड़ा उपकार किया है। मनोविज्ञान ने अवचेतन और अचेतन मन में जाने का दरवाजा खोला। इसके आधार पर व्यक्तित्व का विश्लेषण शुरू किया तो जाने- अनजाने सूक्ष्म में प्रवेश का दरवाजा खुल गया। वर्तमान में जीने वाला वर्तमान से परिचित होने वाला और वर्तमान की व्यवहारिक पद्धतियों का चिंतन करने वाला, कोई भी व्यक्ति केवल स्थूल जगत को आधार मानकर समस्या का समाधान नहीं कर सकता सूक्ष्म में जगत में प्रवेश करने वाला ही समस्या को समाहित कर सकता है।
*महाप्रज्ञजी ने कहा*⤵️
*"मैं कहाँ हूँ "*( *तत्वबोध से*)7️⃣अपने आपको देखना
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भाव जगत हमारा सूक्ष्म जगत है ।भाव और सुख-दुख के संबंध को इस भाषा में प्रस्तुत किया जा सकता है -जैसा भाव वैसा विचार, और जैसा विचार वैसा सुख -दुख का अनुभव। विचार का मूल कारण है भाव। अच्छा भाव होता है तो अच्छा विचार आता है, बुरा भाव होता है, तो बुरा विचार आता है। हमारे विचारों पर नियंत्रण कौन कर रहा है? कभी अकस्मात बुरा विचार आ जाता है कभी अच्छा विचार आ जाता है, ऐसा क्यों होता है? विचार का स्त्रोत कहां हैं? अचानक विचारों में परिवर्तन क्यों आ जाता है? हमारी दुनिया में आकस्मिकता नहीं है, हमारी दुनिया के बहुत सारे नियम है नियति है जो दौड़ हो रही है वह कोई आकस्मिकतानहीं है बुरे विचार के पीछे निषेधात्मक भाव काम कर रहा है अच्छे विचार के पीछे विधायक भाव काम कर रहे हैं बुरे विचार को बुरा भाव जन्म दे रहा है अच्छे विचार को अच्छा भाव जन्म दे रहा है।
*महाप्रज्ञजी ने कहा*⤵️
*"मैं कहाँ हूँ "*( *तत्वबोध से*)8️⃣अपने आपको देखना
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इस संदर्भ में अपने आप को देखने का मतलब है- अपने भाव को देखना हम गहराई से देखें कि कौन -सा भाव काम कर रहा है, जैसे जैसे प्रेक्षा का अभ्यास बढ़ता चला जाता है, पहले हम स्थूल से सूक्ष्म की और चले जाते हैं। पहले स्थूल प्रकंपनो को पकड़ते हैं फिर सुक्ष्म प्रकंपनो को पकड़ते हैं सूक्ष्मतर प्रकंपनो को पकड़ने लग जाते हैं और आगे बढ़ते बढ़ते सूक्ष्मतम प्रकंपनो को पकड़ने लग जाते हैं भाव हमारा सूक्ष्म प्रकंपन है, उस जगत में जाकर हम देखते हैं तो हमें इस यथार्थ का अनुभव होता है- यह बुरा भाव पैदा हुआ और इससे यह विचार बुरा बना है। इस साक्षात्कार से बहुत सारी समस्याओं का समाधान मिल जाता है। बहुत सारी स्थितियां सरल बन जाती है, अपने आप को समझने का अपने व्यक्तित्व को समझने का यह अमोघ अवसर मिल जाता है।
[21/12, 10:28 am] Anju: *महाप्रज्ञजी ने कहा*⤵️
*"मैं कहाँ हूँ "*( *तत्वबोध से*)6️⃣अपने आपको देखना
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ध्यान का अर्थ है- स्थूल से सूक्ष्म की और जाना।
जो आदमी स्थूल पर अटक जाते हैं, वे ध्यान का लाभ नहीं उठा पाते। ध्यान का मूल सूत्र है "स्थूलात्सूक्ष्म:"सूक्ष्म से सूक्ष्म की ओर जाना। सुख की अनुभूति स्थूल है ।विचार उससे सूक्ष्म है और भाव विचार से भीसूक्ष्म है। यह हमारा भीतर का जगत है अंतर का जगत है। अध्यात्म के आचार्यों नेसुक्ष्म में जाने की बहुत प्रशस्त प्रक्रिया प्रस्तुत की, किंतु कुछ व्यवधान ऐसा आया कि वह प्रक्रिया छूट गई। जब से मनोविज्ञान का विकास हुआ है तब से सूक्ष्म जगत में जाने का द्वार खुल गया वैज्ञानिकों ने धर्म और धार्मिक को का बहुत बड़ा उपकार किया है। मनोविज्ञान ने अवचेतन और अचेतन मन में जाने का दरवाजा खोला। इसके आधार पर व्यक्तित्व का विश्लेषण शुरू किया तो जाने- अनजाने सूक्ष्म में प्रवेश का दरवाजा खुल गया। वर्तमान में जीने वाला वर्तमान से परिचित होने वाला और वर्तमान की व्यवहारिक पद्धतियों का चिंतन करने वाला, कोई भी व्यक्ति केवल स्थूल जगत को आधार मानकर समस्या का समाधान नहीं कर सकता सूक्ष्म में जगत में प्रवेश करने वाला ही समस्या को समाहित कर सकता है।
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*"मैं कहाँ हूँ "*( *तत्वबोध से*)7️⃣अपने आपको देखना
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भाव जगत हमारा सूक्ष्म जगत है ।भाव और सुख-दुख के संबंध को इस भाषा में प्रस्तुत किया जा सकता है -जैसा भाव वैसा विचार, और जैसा विचार वैसा सुख -दुख का अनुभव। विचार का मूल कारण है भाव। अच्छा भाव होता है तो अच्छा विचार आता है, बुरा भाव होता है, तो बुरा विचार आता है। हमारे विचारों पर नियंत्रण कौन कर रहा है? कभी अकस्मात बुरा विचार आ जाता है कभी अच्छा विचार आ जाता है, ऐसा क्यों होता है? विचार का स्त्रोत कहां हैं? अचानक विचारों में परिवर्तन क्यों आ जाता है? हमारी दुनिया में आकस्मिकता नहीं है, हमारी दुनिया के बहुत सारे नियम है नियति है जो दौड़ हो रही है वह कोई आकस्मिकतानहीं है बुरे विचार के पीछे निषेधात्मक भाव काम कर रहा है अच्छे विचार के पीछे विधायक भाव काम कर रहे हैं बुरे विचार को बुरा भाव जन्म दे रहा है अच्छे विचार को अच्छा भाव जन्म दे रहा है।
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*"मैं कहाँ हूँ "*( *तत्वबोध से*)8️⃣अपने आपको देखना
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इस संदर्भ में अपने आप को देखने का मतलब है- अपने भाव को देखना हम गहराई से देखें कि कौन -सा भाव काम कर रहा है, जैसे जैसे प्रेक्षा का अभ्यास बढ़ता चला जाता है, पहले हम स्थूल से सूक्ष्म की और चले जाते हैं। पहले स्थूल प्रकंपनो को पकड़ते हैं फिर सुक्ष्म प्रकंपनो को पकड़ते हैं सूक्ष्मतर प्रकंपनो को पकड़ने लग जाते हैं और आगे बढ़ते बढ़ते सूक्ष्मतम प्रकंपनो को पकड़ने लग जाते हैं भाव हमारा सूक्ष्म प्रकंपन है, उस जगत में जाकर हम देखते हैं तो हमें इस यथार्थ का अनुभव होता है- यह बुरा भाव पैदा हुआ और इससे यह विचार बुरा बना है। इस साक्षात्कार से बहुत सारी समस्याओं का समाधान मिल जाता है। बहुत सारी स्थितियां सरल बन जाती है, अपने आप को समझने का अपने व्यक्तित्व को समझने का यह अमोघ अवसर मिल जाता है।
*महाप्रज्ञजी ने कहा*⤵️
*"मैं कहाँ हूँ "*( *तत्वबोध से*)8️⃣अपने आपको देखना
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अपने आप को देखने का एक अर्थ है -अपने आचरण को देखना ।मैं कैसा आचरण कर रहा हूं अच्छा कर रहा हूं या बुरा कर रहा हूं ? व्यवहार दूसरों के साथ होता है और आचरण अपने तक सीमित रहता है। आचरण में दूसरे की जरूरत नहीं होती। वह अपने तक सीमित हो जाता है। सुख-दुख की अनुभूति आचरण और व्यवहार यह हमारे स्थूल जीवन में घटित होने वाली घटनाएं हैं। हर आदमी समझता है, कि मैं ऐसा आचरण कर रहा हूं जो नशे में चला जाता है या जिस ने मादक वस्तु के द्वारा अपने ज्ञान तंतुओं को मूर्छा में धकेल दिया है उन व्यक्तियों की बात छोड़ दें बाकी हर आदमी जानता है कि मैं कैसा आचरण और व्यवहार कर रहा हूं, जो आदमी मूर्च्छा अथवा नशे में होता है, वह अपने आचरण और व्यवहार पर ध्यान नहीं देता ।प्रत्येक जागरूक आदमी अपने आचरण को भी देखता है अपने व्यवहार को भी देखता है।
*महाप्रज्ञजी ने कहा*⤵️
*"मैं कहाँ हूँ "*( *तत्वबोध से*)9️⃣अपने आपको देखना
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सुख और दुख यह एक जोड़ा है। अच्छा और बुरा आचरण यह दूसरा जोड़ा है ।अच्छा और बुरा व्यवहार यह तीसरा जोड़ा है। यह हमारे स्थूल जीवन में घटित हो रहा है। इससे आगे इनका मूल कारण खोजें तो विचार और भाव आते हैं। विचार थोड़ा -सा सुख हो जाता है और भाव सूक्ष्मतर ।इन युगलों को देखने का मतलब है अपने आप को देखना इस विश्लेषण से देखने की बात स्पष्ट हो जाती है। किसी से कहा जाए कि अपने आप को देखो तो वह क्या देखेगा? अमूर्त को हर आदमी पकड़नहीं सकता इसीलिए मूर्त का विकास हुआ। आदमी मूर्त बात को पकड़ लेता है अमूर्त को समझ नहीं पाता तब जब तक मूर्तिकरण ना हो जाए, तब तक बात स्पष्ट नहीं होती। यह एक मूर्त रूप है अपने आप को देखने का।
जो व्यक्ति अपने आप को नहीं देखता अपना निरीक्षण नहीं करता केवल दूसरों को देखता है वह समस्याओं को निमंत्रण देता है, वर्तमान की समस्याओं को यदि तटस्थ विश्लेषण किया जाए तो निष्कर्ष आएगा बहुत सारी समस्याएं पर- दर्शन से उपजी हुई है। जो आदमी अपने आप को नहीं देखता फिर उसे दूसरे देखते हैं ।वह दूसरों के द्वारा नियंत्रित होता है।
*महाप्रज्ञजी ने कहा*⤵️
*"मैं कहाँ हूँ "*( *तत्वबोध से*)1️⃣0️⃣अपने आपको देखना
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नशा करने वाले सारे मूर्ख नहीं होते। समझदार लोग भी नशा करते हैं। और इसीलिए करते हैं कि जब समझदारी तनाव में बदल जाती है, तब उन्हें नशा करने के सिवाय कोई उपाय नहीं सूझता, वह अपने आप को भूलाना चाहता है, अपने आपको भूलाए बिना, तनाव का विसर्जन नहीं होता। अपने आप को भुलाने के दो ही उपाय हैं ध्यान और नशा। आदमी दिमाग को खाली करना चाहता है, पर विचारों का चक्का चलता रहता है, इस चंचलता को मिटाने के लिए यह दो ही उपाय हैं ।,
हमारे जीवन की सफलता और विफलता का यह बहुत बड़ा संगम- बिंदु है। सफलता का सूत्र है- अपने आप को देखना। और विफलता का सूत्र है, अपने आप को ना देखना दोनों धूप और छांव की तरह सटे हुए हैं, पर मिलते नहीं है, क्या आपने कभी धूप और छांवको मिलते हुए देखा है? धुप छांव से सटी हुई है ,किंतु क्या कभी धूप छांव की सीमा में गई है। अथवा कभी छांव धूप की सीमा में आई है।
*महाप्रज्ञजी ने कहा*⤵️
*"मैं कहाँ हूँ "*( *तत्वबोध से*)1️⃣1️⃣अपने आपको देखना
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आचार्य भिक्षु ने हिंसा -अहिंसा के संदर्भ में मार्मिक उदाहरण दिया ।हिंसा और अहिंसा दोनों सटे हुए हैं पर दोनों अलग-अलग हिंसा और अहिंसा में मिश्रण नहीं होता। धूप और छांव की भांति जीवन में हिंसा और अहिंसा दोनों बिल्कुल सटे हुए हैं। किंतु इनमें कभी मिश्रण नहीं होता, ठीक उसी प्रकार अपने आप को देखने और अपने आप को ना देखना यह दोनों प्रवृतियां सटी हुई है, पर कभी मिलती नहीं है। जिन जिन लोगों ने अपने आपको देखना सीखा है वे आध्यात्मिक बने हैं, और उन्होंने अपने समस्याओं का समाधान प्राप्त किया है ।
जिन-जिन लोगों ने अपने आप को देखना नहीं सीखा, वे मकड़ी की भांति अपने जाल मेंउलझते चलेजाते हैं। उनकी समस्याओं का कभी अंत ही नहीं होता। भौतिक समस्या हो या आर्थिक समस्या, सामाजिक समस्या हो या राजनीतिक समस्या, व्यक्तिगत समस्या हो या पारिवारिक समस्या, उसका समाधान सरल नहीं है। दुनिया में भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार की समस्याएं हैं। बाह्य जगत में होने वाली समस्याएं भौतिक और अपने भीतर में होने वाली समस्याएं आध्यात्मिक उन दोनों प्रकार की समस्याओं का समाधान पाने के लिए अपने आप को समझना और अपने आप को देखना जरूरी है।
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