देव और देवलोक
1️⃣- चारो जाति के देव जी के कुल कितने भेद हैं ?
🅰️- 198 भेद है ।
2️⃣- देवताओं में शरीर कितने पाये जाते हैं ?
🅰️- तीन शरीर,वैक्रिय, तेजस,कार्मण।
3️⃣- देवताओं में अवगाहना कितने प्रकार की होती हैं ?
🅰️- दो प्रकार की,भवधारणीय, वैक्रियकी अवगाहना ।
4️⃣- देवताओं में संहनन कितने पाये जाते हैं ?
🅰️- छ संहनन में से एक भी नहीं पाया जाता हैं।
5️⃣- देवताओं में संस्थान कितने प्रकार का होता हैं ?
🅰️- एक समचतुरस्त्र संस्थान ।
7️⃣- देवताओं में कितनी कषायें पायी जाती हैं ?
🅰️- चारों
8️⃣- देवताओं में कितनी संज्ञाऐं पायी जाती हैं ?
🅰️ चारों ।
9️⃣- देवताओं में कितनी लेश्याएं पायी जाती हैं ?
🅰️- छह ।
1️⃣0️⃣- देवताओं में कितनी इंद्रियां पायी जाती हैं ?
🅰️- पांच ।
1️⃣1️⃣- देवताओं में कितनी दृष्टियां पायी जाती हैं ?
🅰️ तीन दृष्टियों पायी जाती हैं ।
1️⃣2️⃣ देवताओं में कितने दर्शन पाये जाते हैं ?
🅰️ तीन दर्शन,चक्षु दर्शन, अचक्षु दर्शन,अवधि दर्शन।
1️⃣3️⃣ देवताओं में कितने ज्ञान पाये जाते हैं ?
🅰️- तीन ज्ञान,मतिज्ञान, श्रुतज्ञान,अवधिज्ञान।
1️⃣4️⃣- देवताओं में कितने उपयोग पाये जाते हैं ?
🅰️- नौ उपयोग,तीन ज्ञान,तीन अज्ञान,तीन दर्शन।
1️⃣5️⃣- देवता कितनी दिशाओं से आहार लेते हैं ?
🅰️- छहों दिशाओं से आहार लेते हैं ।
1️⃣6️⃣- देवता कितने प्रकार का आहार लेते हैं ?
🅰️ दो सौ अठ्यासी प्रकार का आहार लेते हैं।
1️⃣7️⃣ देवताओं की कितनी स्थिति होती हैं ?
🅰️ जघन्य दस हजार वर्ष, उत्कृष्ट- तैतीस सागरोपम की स्थिति होती हैं।
1️⃣8️⃣ देवताओं में कितने योग पाये जाते हैं ?
🅰️ ग्यारह योग,चार मन के,चार वचन के,तीन काया के ।
1️⃣9️⃣ देवताओं में कितने प्राण पाये जाते हैं ?
🅰️ दसों ही प्राण पाये जाते हैं ।
2️⃣0️⃣ देवता किन-किन गतियों में जाकर उत्पन्न हो सकते हैं ?
🅰️- मनुष्य और तिर्यंच इन दो गतियों में ही उत्पन्न हो सकते हैं ।
2️⃣1️⃣- चारों निकाय के देवों की कुलकोड़ी कितनी हैं ?
🅰️ छब्बीस लाख कुलकोड़ी हैं ।
2️⃣2️⃣ चारो निकाय के देवों की जीवायोनि कितनी हैं ?
🅰️ 4 लाख जीवयोनि हैं ।
2️⃣3️⃣ चारों निकाय के देवों के कुल कितने इन्द्र देव जी होते हैं ।
🅰️ चौसठ इन्द्र देव जी होते हैं ।
2️⃣4️⃣ देवताओं में कितने वेद पाये जाते हैं ?
🅰️ दो वेद,स्त्री वेद,पुरूष वेद , ।
2️⃣5️⃣ देवता संज्ञी होते हैं, या असंज्ञेय होते हैं ?
🅰️- दोनों ही प्रकार के होते हैं ।
-
--जो गर्भज तिर्यंच व मनुष्य मरकर देव होते हैं ,वे संज्ञी हैंऔर सम्मूर्च्छिमों से आकर उत्पन्न होते हैं वे अन्तर्मुहूर्त तक असंज्ञी होते हैं, फिर संज्ञी हो जाते हैं ।
1 देव का मेटरनिटी होम कौन सा.. ?
@ देवश्य्या
2 देव उत्तपन्न होता है उस स्थान को क्या कहते हैं...?
@ उत्पात सभा
3 देव के स्नानागार को क्या कहते हैं...?
@ अभिषेक सभा
4 देव के ड्रेसिंग रूम को क्या कहते हैं...?
@ अलंकार सभा
5 देव ना कर्त्तव्य बताते है वह स्थान को क्या कहा जाता हैं.../
@ व्यवहार सभा
6 देव के न्यायालय को क्या कहते हैं...?
@ सुधर्मा सभा
7 सोलह साल के कुमार जैसे कौन से देव दिखाई देते हैं...?
@ भवनपति
8 चोबीस साल के कुमार जैसे कौन से देव दिखाई देते हैं...?
@ वाण व्यन्तर
9 अठ्ठाइस साल के कुमार जैसे कौन से देव दिखाई देते हैं...?
@ ज्योतिषी
10 बत्तीस साल के कुमार जैसे कौन से देव दिखाई देते हैं...?
@ वैमानिक
11वैमानिक देव जैसे जैसे उपर के देवलोक में जाते हैं वैसे वैसे क्या बढ़ता जाता है और क्या घटता जाता हैं...?
@ आयु बढ़ती है - अवगाहना घटती हैं
12 देवो का आयुष्य पूर्ण होता है तो उसके शरीर को जलाते हैं या दफनाते हैं...?
@ विसराल ह्यो जाता है
13 अवश्य (नियमा) देवलोक में कौन जाता हैं...?
@ युगलिक
14 अवश्य पहले देवलोक में कौन जाता हैं...?
@ हिमवंत और हिरण्यवंत के समकिती
15 आठवें देवलोक तक कौन जा सकता हैं...?
@ तिर्यंच
16 वैमानिक का आयूष किसकी हाजरी ने बंधता हैं...?
@ समकिती
17 देवी भी हैं और सती भी हैं...?
@ पद्मावती
18 बारहवे देवलोक तक कौन जा सकता हैं...?
@ श्राविक- श्राविका
19 जिसकी पदवी में आता हैं कि देव भी बनेंगे देवाधिदेव...?
@ कृष्ण वासुदेव
20 जिसकी मोक्ष जाने की साधना सिर्फ साढ़े चार मिनीट रह गई उस देव को क्या कहते हैं.../
@ लवसप्तम देव
21 सर्वार्थसिद्ध विमान के देव कैसे होते हैं...?
@ एकावतारी
०४ - तत्वार्थसूत्र -દેવગતી જીવ
प्र.१. देव कितने हैं ? बताईये।
उत्तर — ‘‘देवाश्चतुर्णिकाया:’’। देव चार निकाय वाले हैं
प्र.२. देव कौन कहलाते हैं ?
उत्तर — देवगति नामकर्म के उदय होने पर जो नाना प्रकार की बाह्य विभूति सहित द्वीप समुद्रादि स्थानों में इच्छानुसार क्रीड़ा करते हैं वे देव होते हैं।
प्र.३. निकाय शब्द से क्या आश है ?
उत्तर — देवगति नामकर्म के उदय की सामथ्र्य से जो संग्रह किये जाते हैं, वे ‘निकाय’ कहलाते हैं।
प्र.४. देवों के चार निकाय कौन से हैं ?
उत्तर — देवों के चार भेद (निकाय) है—भवनवासी, ज्योतिषी, व्यंतर और वैमानिकी।
प्र.५. चारों प्रकार के देवों के कौन सी लेश्यायें होती हैं ?
उत्तर — ‘‘आदित स्त्रिषु पीतान्तलेश्या:’’ आदि के ३ निकायों अर्थात् भवनवासी, व्यंतर और ज्योतिषी में पीत पर्यंत चार लेश्या (कृष्ण, नील, कापोत, पीत) होती हैं।
प्र.६. चार निकायों के कितने भेद हैं ?
उत्तर — ‘‘दशाष्टपञ्चद्वादशविकल्पा: काल्पोपन्न पर्यंता:’’ काल्पोत्र देव तक के चार निकाय के देव क्रमश: दस, आठ, पांच और बारह भेद वाले हैं।
प्र.७. ‘कल्पोपत्र’ अर्थात् कौन से देव ?
उत्तर — वैमानिक देव ही कल्पोपन्न देव कहलाते हैं।
प्र.८. प्रत्येक निकाय के देवों में विशेष भेद कितने होते हैं ?
उत्तर — इंद्रसामानिकत्रायस्त्रिंशपारिषदात्मरक्षलोकपालानीक प्रकीर्णका भियोग्य किल्विषकाश्चैकश: प्रत्येक निकाय के देवों में इंद्र, सामानिक, त्रायिंस्त्रशं, परिषद, आत्मरक्ष, लोकपाल, अनीक, प्रकीर्णक, अभियोग्य और किल्विषिक ये दस भेद होते हैं।
प्र.९. इंद्र कौन होते हैं ?
उत्तर — जो अन्य देवों में नहीं होने वाले असाधारण अणिमादि गुणों के संबंध से शोभते हैं, वे इंत्र कहलाते हैं।
प्र.१०. सामायिक देव कौन हैं ?
उत्तर — आज्ञा और ऐश्वर्य के सिवा जो आयु भोग, वीर्य, परिवार और उपभोग में समान है सामानिक देव कहलाते हैं।
प्र.११. त्रायस्त्रिंश देव कौन होते हैं ?
उत्तर — जो पिता, गुरु और उपाध्याय के समान सबसे बड़े हैं, जो मंत्री और पुरोहित हैं, वे त्रायस्तिंश कहलाते हैं।
प्र.१२. परिषद देवों का स्वरूप क्या है ?
उत्तर — जो सभा में मित्र और प्रेमीजनों के समान होते हैं परिषद कहलाते हैं।
प्र.१३. आत्मरक्षा देव कौन से होते हैं ?
उत्तर — जो अंगरक्षक के समान हैं वे आत्मरक्ष देव कहलाते हैं।
प्र.१४.कौन सी जाति के देव ऐरावत हाथी बनते हैं ?
उत्तर — आभियोग्य जाति के देव ऐरावत हाथी बनते है।
प्र.१५. क्या चारों ही निकाय के देव दस प्रकार के होते हैं ?
उत्तर —‘‘त्रायस्त्रिंशलोकपालवज्र्या व्यंतर ज्योतिष्का:।’’ व्यंतर और ज्योतिष देव के त्रायस्त्रिंश और लोकपाल भेद नहीं होते हैं ।
प्र.१६. चारों निकाय के देवों में कितने इंद्र होते हैं ?
उत्तर — ‘‘पूर्वयोद्वीन्द्रा:’’ प्रथम दो निकायों में दो—दो इन्द्र होते हैं अर्थात् भवनवासीऔर व्यंतरवासी देवों में दो—दो इंद्र हैं ।
प्र.१७. भवनवासी एंवम् व्यंतरवासी देवों के कुल इंद्रों की संख्या बताइये ।
उत्तर — भवनवासियों के २० तथा व्यंतरवासियों के १६ इंद्र है।
प्र.१८. देवों के कौन सा सुख है ?
उत्तर — ‘‘कायप्रवीचारा आ ऐशानात्’’ ऐशान स्वर्ग तक के देव काय से प्रवीचार करते हैं ।
प्र.१९. काय प्रवीचार से क्या आशय है ?
उत्तर — मैथुन के उपसेवन को कायप्रवीचार कहते हैं ।
प्र.२०. सानत्कुमार स्वर्ग से अच्युत स्वर्ग पर्यंत देवों का सुख कैसा है ?
उत्तर — ‘‘शेषा: स्पर्शरूप शब्दमन: प्रवीचारा:’’। शेष स्वर्ग के देवों—देवियों के स्पर्श से, रूप देखने से, शब्द सुनने से, और मन में स्मरण करने मात्र से काम सुख का अनुभव होता है।
प्र.२१. अच्युत स्वर्ग के आगे देवों का सुख कौन सा है ?
उत्तर — ‘‘परेऽप्रवीचारा:’’। अच्युत स्वर्ग से आगे के देव प्रवीचार रहित होते हैं ।
प्र.२२. भवनवासी देवों के कितने भेद हैं ?
उत्तर — ‘‘भवनवासिनोऽसुरनाग विद्युत्सुपर्णाग्निवातस्त नितोदधि द्वीप दिक्कुमारा:’’ भवनवासी देव दस प्रकार के होते हैं—
असुरकुमार
नागकुमार
विद्युत्कुमार
सुपर्णकुमार
अग्निकुमार
वातकुमार
स्तनितकुमार
उदधिकुमार
द्वीपकुमार
दिक्कुमार।
प्र.२३. भवनवासी देवों को भवनवासी क्यों कहा जाता है ?
उत्तर — क्योंकि ये देव भवनों में रहते हैं, इसलिये भवनवासी कहलाते हैं।
प्र.२४. व्यंतर देवों के कितने भेद हैं ?
उत्तर — ‘‘व्यंतरा: किन्नरविं पुरुष महारोगगंधर्व यक्ष राक्षस भूत पिशाचा:।’’ व्यंतर देवों के ८ भेद हैं
किन्नर
विंपुरुष
महोरग
गंधर्व
यक्ष
राक्षस
भूत
पिशाच ।
प्र.२५. ज्योतिषी देवों के कितने भेद हैं ?
उत्तर — ‘‘ज्योतिष्का: सूय्र्या चंद्रमसौग्रहनक्षत्र प्रकीर्णक तारकाश्च।’’ ज्योतिषी देव ५ प्रकार के होते हैं— (१) सूर्य (२) चंद्र (३) ग्रह (४) नक्षत्र (५) प्रकीर्णक तारे ।
प्र.२६.ज्योतिषी देवों की गमन स्थली कौन सी है ?
उत्तर — ‘‘मेरुप्रदक्षिण नित्यगतयो नृलोके’’ मेरु की प्रदक्षिणा देते हुए ज्योतिषी देव सदैव मनुष्य लोक में गमन करते रहते है।
प्र.२७.नृलोक से आप क्या आशय है ? इसका विस्तार कितना है ?
उत्तर — नृलोक से आशय मनुष्यलोक से है और इसका विस्तार ४५ लाख योजन है।
प्र.२८. ढाई द्वीप में सूर्य, चंद्रमा और ग्रहों की संख्या कितनी है ?
उत्तर — ढाई द्वीप में १३२ सूर्य , १३२ चंद्रमा ११६१६ ग्रह और ३६९६ नक्षत्र है।
प्र.२९. ज्योतिषी देवों के गमन से किसका ज्ञान होता है ?
उत्तर — ज्योतिषी देवों के गमन से व्यवहार काल का ज्ञान होता है। जैसा कि सूत्र में कहा गया है— ‘‘तत्कृत: कालविभाग’’ जिसका आशय है उन गमन करने वाले ज्योतिषियों के द्वारा किया हुआ कालविभाग है।
प्र.३०. कालविभाग अर्थात् कौन सा काल ?
उत्तर — समय, आवलि आदि व्यवहार काल का विभाग ही यहां काल विभाग है।
प्र.३१. काल के कितने भेद हैं ?
उत्तर — काल के २ भेद हैं — (१) निश्चयकाल (२) व्यवहारकाल।
प्र.३२.ढाई द्वीप के बाहर ज्योतिषी देवों की स्थिति क्या है ?
उत्तर — ‘‘बहिरवस्थिता:’’ मनुष्यलोक के बाहर जयोतिषी देव स्थिर है।
प्र.३३. चौथे निकाय के देव कौन से हैं ?
उत्तर — ‘‘वैमानिका:’’ चौथे निकाय के देव वैमानिक देव हैं।
प्र.३४. विमान कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर — विमान ३ प्रकार के होते हैं— (१) इंद्रक (२) श्रेणीबद्ध (३) प्रकीर्णक ।
प्र.३५. वैमानिक देव कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर — ‘‘कल्पोपन्न कल्वातीताश्च’’ वैमानिक देवों के २ भेद हैं— (१) कल्पोपन्न (२) कल्पातीत ।
प्र.३६. कल्पोपन्न देव कौन हैं ?
उत्तर — सोलहवें स्वर्ग तक के देव कल्पोपन्न कहलाते हैं ।
प्र.३७. कल्पातीत देव कौन—कौन हैं ?
उत्तर — सोलह स्वर्ग से ऊपर क्षेत्रवर्ती नव ग्रेवेयक, नव अनुदिश और पांच अनुत्तरवासी अहमिन्द्र देव कल्पातीत कहलाते हैं।
प्र.३८. वैमानिक देव कहाँ रहते हैं ?
उत्तर — ‘‘उपर्युपरि ।’’ वैमानिक देव ऊपर—ऊपर स्थित है।
प्र.३९. स्वर्ग कितने हैं ? नाम बताइये ।
उत्तर — स्वर्ग १६ हैं— सौधर्म, ईशान, सानत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लांवत, कापिष्ठ, शुक्र, महाशुक्र, शतार, सहस्त्रार तथा आनत और प्रमाणत।
प्र.४०. कितने कल्प विमानों में वैमानिक देव निवास करते हैं ?
उत्तर — ‘‘सौधर्मेशानसानत्कुमार माहेन्द्रब्रह्म ब्रह्मोत्तरलान्तव कापिष्ठ शुक्र महाशुक्र शतार सहस्त्रोरष्वानत प्राण तयोरारणाच्युतयोर्नवसु नवग्रैवेयकेषु विजय—वैजयंत जयन्ता पराजितेषु सर्वार्थसिद्धौ च।’’ सौधर्म, ईशान, सानत्कुमार, माहेन्द्र,ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर,लांतव, कापिष्ठ शुक्र, महाशुक्र, शतार, सहस्त्रार तथा आनत—प्राणत, आरण—अच्युत, नौ गैवेयिक और विजय, वैजयंत, जयंत, अपराजित तथा सवार्थसिद्धि विमान में सभी देव निवास करते हैं ।
प्र.४१. सोलह स्वर्ग के कितने पटल हैं ?
उत्तर — सोलह स्वर्गों में ५२ पटल हैं ।
प्र.४२. नव गै्रवेयक कौन से हैं ?
उत्तर — सुदर्शन, अमोघ, सुबुद्ध पयोधर, सुभद्र, सुविशाल, सुमन, सौमनस और प्रियंकर ये ९ ग्रैवेयक हैं।
प्र.४३. नव अनुदिश कौन से हैं ?
उत्तर — आदित्य, अर्चि, अर्चिमाली, वैरोचन, प्रभास, अर्चिप्रभ, अर्चिमाध्य, अर्चिरावत, और अर्चिविशिष्ट ये नव अनुदिश हैं।
प्र.४४. पांच अनुत्तर कौन से हैं ?
उत्तर — विजय, वैजयंत, जयंत, अपराजित और सवार्थसिद्धि ये पांच अनुत्तर हैं ।
प्र.४५. सर्वार्थसिद्धि के देवों के बारे में बताईये ।
उत्तर — सर्वार्थसिद्धि का अर्थ है सर्व अर्थो की सिद्धि होना। सर्वार्थसिद्धि के देव एक भवावतारी होते है। देवों की जघन्य और उत्कृष्ठ आयु तैंतीस सागरोपम है।
प्र.४६. वैमाणिक देवों में परस्पर क्या विशेषता है ?
उत्तर — ‘‘स्थिति—प्रभाव सुखद्युतिलेश्याविशुद्धिन्द्रियावधि—वषयतोऽधिका:’’। स्थिति, प्रभाव, सुख, द्युति, लेश्या, विशुद्धि, इंद्रिय विषय और अवधि विषय की अपेक्षा ऊपर—ऊपर के देव अधिकता लिये है।
प्र.४७. वैमानिक देवों में ऊपर—ऊपर हीनता क्यों हैं ?
उत्तर —‘‘गति शरीर परिग्रहाभिमानतो हीना:’’। वैमानिक देवों में गति, शरीर परिग्रह और अीमान की अपेक्षा से क्रमश: ऊपर—ऊपर हीनता है।
प्र.४८. वैमानिक देवों में कौन सी लेश्या होती है ?
उत्तर — ‘‘पीत पद्मशुक्ल लेश्या द्वित्रिशेषेषु’’। कल्प युगलों में दो, तीन और शेष में क्रम से पीत, पद्म और शुक्ल लेश्या होती है।
प्र.४९. कल्पसंज्ञा किनकी है ?
उत्तर — ‘‘प्राग्गैवेयकेभ्य: कल्पा:’’ गैवेयक के पहले तक कल्प हैं ।
प्र.५०. कल्प किसे कहते हैं ?
उत्तर — सौधर्म स्वर्ग से लेकर अच्युत स्वर्ग कल्प कहलाते हैं ये १६ हैं।
प्र.५१. कल्पातीत कौन हैं ?
उत्तर — नवग्रैवेयक, नव अनुदिश और पांच अनुत्तर विमान कल्पातीत कहलाते हैं ।
प्र.५२. लौकांतिक देव कहां रहते हैं ?
उत्तर — ‘‘ब्रह्मलोकालया लौकान्तिका:’’ लौकांतिक देवों का निवास स्थान ब्रह्मलोक है।
प्र.५३. लोकांतिक देवों को लौकान्तिक क्यों कहते हैं ?
उत्तर — लोकांतिक देव ब्रह्मलोक के अंत में निवास करते हैं, इसलिये उन्हें लौकांतिक देव कहते हैं।
प्र.५४. लौकांतिक देवों के भेद कौन से हैं ?
उत्तर — ‘‘सारस्वतादित्यवह्लयरुगण गर्द तोय तुषिताव्याबाधारिष्टाश्च।’’ सारस्वत, आदित्य, वह्रि, अरुण, गर्दतोय, अव्याबाध, और अरिष्ट ये लौकांन्तिक देव ८ प्रकार के हैं ।
प्र.५५. सारस्वत देव कौन है ?
उत्तर — जो चौदह पूर्व के ज्ञाता होते हैं वे सारस्वत कहलाते हैं ।
प्र.५६. आदित्य देव कौन हैं ?
उत्तर — देवमाता अदिति की संतान को आदित्य कहते हैं।
प्र.५७. वह्मि देव कौन हैं ?
उत्तर — ङ्का अग्नि के समान दैदीप्यवान हैं वे वह्मि कहलाते हैं ।
प्र.५८. अरुण देव कौन होते हैं ?
उत्तर — उदीयमान सूर्य के समान जिनकी कांति हो वे अरूण कहलाते हैं।
प्र.५९. गर्दतोय देव कैसे होते हैं ?
उत्तर — जिनके मुख से शब्द जल के प्रवाह की तरह निकले वे गर्ततोय हैं।
प्र.६०.तुषित देव कौन हैं ?
उत्तर — जो संतुष्ट होते हैं तथा जिनके विषय सुख की अभिलाषा नहीं होती वे तुषित होते हैं।
प्र.६१. अव्याबाध देव कैसे होते हैं ?
उत्तर — ङ्का कामादि बाधाओं से रहित होते हैं वे अव्याबाध देव होते हैं।
प्र.६२. अरिष्ट देव कौन हैं ?
उत्तर — जो अकल्याणप्रद कार्य नहीं करते है उनको अरिष्टदेव कहते हैं।
प्र.६३. लौकांतिक देवों का दूसरा नाम क्या है और इनकी कुल संख्या कितनी है ?
उत्तर— लौकांतिक देवों का दूसरा नाम देव ऋषि (बह्मर्षि) है। इनकी संख्या चार लाख सात हजार आठ सौ बीस होती है।
प्र.६४. वे कौन से देव हैं जिनमें लौकान्तिक देवों के समान निवारण प्राप्त करने की योग्यता है।
उत्तर—‘‘विजयादिषु द्विचरमा:’’ विजयादिक में दो चरम वाले देव होते हैं।
प्र.६५. द्विचरम वाले देव कौन—कौन से हैं।
उत्तर—विजय, वैजयंत, जयंत और अपराजित विमानवासी तथा नव अनुदिशों में रहने वाले जो अहमिन्द्र देव हैं वे द्विचरमा कहलाते हैं।
प्र.६६. द्विचरमा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर—द्विचरमा से तात्पर्य है कि मनुष्य के दो भव धारण करके मोक्ष चले जाते हैं।
प्र.६७. तीन पल्य की उत्कृष्ट आयु वाले तिर्यंच कौन हैं ?
उत्तर—‘‘ औपपादिक मनुष्येभ्य: शेषास्तिर्यग्योनय:’’ उपपाद जन्म वाले देव, नारकी और मनुष्यों के सिवाय सब संसारी तिर्यंच योनि वाले हैं।
प्र.६८. तिर्यंच जीवों के रहने का क्षेत्र कौन सा है ?
उत्तर— तिर्यंच सर्व लोक में रहते हैं ।
प्र.६९. भवनवासी देवों की आयु कितनी है ?
उत्तर—‘‘स्थितिरसुरनाग सुपर्णद्वीप शेषाणां सागरोपमत्रिपल्योपमाद्र्ध हीनमिता:’’ उत्कृष्ट आयु के मान से असुरकुमार देव की ढाई पल्य, द्वीपकुमार देव की दो पल्य तथा शेष छह, विद्युतकुमार, अग्निकुमार, वातकुमार, स्तनितकुमार, उदधिकुमार और दिक्कुमारों की उत्कृष्ट स्थिति डेढ़ पल्य है।
प्र.७०. सौधर्म और ऐशान देवों की उत्कृष्ट आयु कितनी है ?
उत्तर— सौधर्म और ऐशान देवों की उत्कृष्ट आयु दो सागर से कुछ अधिक है।
प्र.७१. ‘अधिके’ शब्द को सूत्र में किस अपेक्षा से लिया गया है ?
उत्तर—यहां अधिके शब्द घातायुष्क जीवों की अपेक्षा से है।
प्र.७२. अधिके शब्द के अनुसार घातायुष्क देवों की आयु अन्य देवों से कितनी अधिक है ?
उत्तर— घातायुष्क देवों की आयु अन्य देवों की अपेक्षा आधा सागर अधिक होती है।
प्र.७३. घातायुष्क से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर— जिन्होंने पहले ऊपर के स्वर्गों की आयु बांधी थी,किन्तु बाद में संक्लेष परिणाम होने से आयु में हृास होकर नीचे के स्वर्ग में उत्पन्न होने वाले जीव घातायुष्क कहलाते हैं।
प्र.७४.सानत्कुमार और माहेन्द्र कल्प में देवों की आयु कितनी है ?
उत्तर— ‘‘सानत्कुमार माहेन्द्रयो: सप्त।’’ सानत्कुमार और माहेन्द्र कल्प में सात सागर से कुछ अधिक उत्कृष्ठ आयु है।
प्र.७५. ब्रह्म कल्प अच्युत कल्प में देवों की आयु कितनी है ?
उत्तर—‘‘ त्रिसप्तनवैकादशत्रयोदशपञ्चदशभिरधिकानि तु।’’ ब्रह्म ब्रह्मोत्तर में साधिक तीन से अधिक सात अर्थात् दस सागर । लांतव— कापिष्ठ में सात से अधिक सात अर्थात् चौदह सागर। शुक्र —महाशुक्र में नौ से अधिक सात अर्थात् सोलह सागर। शतार—सहस्रार में ग्यारह से अधिक सात अर्थात् अठारह सागर। आनत—प्राणत में तेरह से अधिक सात अर्थात् बीस सागर। आरण—अच्युत कल्प में पंद्रह से अधिक सात अर्थात् बाईस सागर उत्कृष्ट आयु है।
प्र.७६. ग्रैवेयक, अनुदिश व अनुत्तरों में देवों की आयु कितनी है ?
उत्तर— ‘‘आरणाच्युतादूध्र्वमेवैâकेन नवसुग्रैवेयकेषु विजयादिषु सर्वार्थसिद्धौ च’’ आरण—अच्युत स्वर्ग से ऊपर नवग्रैवेयकों में, विजय आदि चार विमान तथा नव अनुदिशों में और सर्वार्थसिद्धि विमान में एक— एक सागर बढ़ती हुई आयु है।
प्र.७७. नव ग्रैवेयक में देवों की आयु समझाईये।
उत्तर— प्रथम ग्रेवेयक में ३३ सागर, द्वितीय में २४ सागर, तृतीय में २५, चतुर्थ में २६, पंचम में २७, षष्ठम में २८, सप्तम में २९, अष्टम में ३० और नवम ग्रेवेयक में ३१ सागर आयु है।
प्र.७८. नव अनुदिशों अनुत्तरों तथा सर्वार्थसिद्धि के देवों की आयु बताईये।
उत्तर— नव अनुदिश में ३२ सागर, उत्कृष्ट आयु। अनुत्तरों में ३३ सागर, उत्कृष्ट आयु। सर्वार्थसिद्धि में मात्र ३३ सागर उत्कृष्ट आयु ही होती है।
प्र.७९. एक पल्य में कितने वर्ष होते हैं ?
उत्तर— एक पल्य में असंख्यात वर्ष होते हैं ।
प्र.८०. एक सागर में कितने वर्ष होते हैं ?
उत्तर— दस कोड़ाकोड़ी पल्यों का एक सागर होता है।
प्र.८१. सौधर्म और ईशान स्वर्ग में देवों की जघन्य आयु कितनी है ?
उत्तर— ‘अपरापल्योपममधिकम्’ सौधर्म और ईशान स्वर्ग में देवों की जघन्य आयु एक पल्य से अधिक है।
प्र.८२. अन्य स्वर्गों में देवों की जघन्य आयु कितनी है ?
उत्तर— अन्य स्वर्गों में आगे—आगे पूर्व की उत्कृष्ट स्थिति अनन्तर—अनन्तर की जघन्य स्थिति है।
प्र.८३.सभी स्वर्गों के देवों की जघन्य स्थिति स्पष्ट कीजिये।
उत्तर— (अ) ज्योतिषी देवों की उत्कृष्ट आयु एक पल्य कुछ अधिक है जो सौधर्म और ईशान देवों की जघन्य आयु है। (ब) सौधर्म और ईशान की जो दो सागर कुछ अधिक उत्कृष्ट आयु है वह सानत्कुमार, माहेन्द्र स्वर्ग की जघन्य आयु है। (स) यही क्रम आगे आगे के स्वर्गों में चलता है, (द) सर्वार्थसिद्धि में जघन्य आयु नहीं होती है।
प्र.८४. नारकी जीवों की जघन्य आयु कितनी है ?
उत्तर— ‘नारकाणां च द्वितीयादिषु’ दूसरी आदि भूमियों में नारकी जीवों की पूर्व—पूर्व की उत्कृष्ठ आयु ही अनन्तर—अनन्तर की जघन्य आयु है।
प्र.८५.नारकी जीवों की आयु स्पष्ट कीजिये ।
उत्तर— (अ) रत्नप्रभा भूमि में उत्कृष्ट आयु एक सागर है वह शर्वâराप्रभा की जघन्य आयु है। (ब) शर्वरा प्रभा में जो उत्कृष्ट स्थिति तीन सागर है वह बालुका प्रभा की जघन्य आयु है। (स) इसी प्रकार आगे—आगे के नरकों की आयु जानें।
प्र.८६. प्रथम नरक में जघन्य स्थिति कितनी है ?
उत्तर— नरक की प्रथम भूमि में जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष है। सूत्र है — ‘दशवर्षसहस्राणि प्रथमायाम्’ ।
प्र.८७. भवनवासी देवों की जघन्य स्थिति कितनी है ?
उत्तर— ‘भवनेषु च’ अर्थात् भवनवासियों में भी जघन्य आयु दस हजार वर्ष है ।
प्र.८८. व्यंतर देवों की जघन्य स्थिति कितनी है ?
उत्तर— ‘व्यंतराणां च’। व्यंतर देवों की जघन्य स्थिति भी दस हजार वर्ष है।
प्र.८९. व्यंतर देवों की उत्कृष्ट स्थिति कितनी है ?
उत्तर— ‘परापल्योपममधिकम्’ व्यंतर देवों की उत्कृष्ट स्थिति साधिक एक पल्य है।
प्र.९०. ज्योतिषी देवों की उत्कृष्ट स्थिति कितनी है ?
उत्तर— ‘ज्योतिष्काणां च’। ज्योतिषी देवों की उत्कृष्ट स्थिति साधिक एक पल्य है।
प्र.९१. ज्योतिषी देवों की जघन्य स्थिति कितनी है ?
उत्तर— ‘तदष्टभागोऽपरा।’ ज्योतिषी देवों की जघन्य स्थिति उत्कृष्ट स्थिति का आठवां भाग है।
प्र.९२. समस्त लौकान्तिक देवों की स्थिति कितनी है ?
उत्तर— ‘लौकान्तिकानामष्टौ सागरोपमाणि सर्वेषाम्’ समस्त लौकान्तिक देवों की स्थिति आठ सागर है।
प्र.९३. लौकान्तिक देवों के कौनसी लेश्या होती है ?
उत्तर— समस्त लौकान्तिक देवों की शुक्ल लेश्या होती है ।
प्र.९४. लौकान्तिक देवों के शरीर की ऊँचाई कितनी होती है ?
उत्तर— समस्त लौकान्तिक देवों के शरीर की ऊँचाई पांच हाथ होती હે .
1) देव हैं पर देवलोक में नहीं रहते, कौन ?
💥अरिहंत💥
2) इंद्र की आँखों में आँसू कब आते हैं ?
💥जब तीर्थकर का निर्वाण
होता तब💥
3) देव दुंदुभी सुनकर कौन दुःखी हुए?
💥जीर्ण सेठ💥
4) तीर्थंकरों के लिए देव किसकी रचना करते हैं ?
💥समवशरण💥
5) वैमानिक देवों के विमान किसके बने हुए होते हैं ?
💥रत्नों के💥
6) कौनसे देव ने तीर्थंकर का ट्रांसफर किया?
💥हरिण गमेषी देव💥
7) देवलोक में जन्म के बाद देव कितने समय में युवा होता है?
💥अंर्तमुहुर्त में💥
(48 मिनट के अंदर)
8) देवता धर्म आराधना के लिये किस द्वीप पर जाते हैं?
💥नंदीश्वर द्वीप💥
9) देवशय्या किससे ढकी हुई होती है ?
💥देवदुष्य वस्त्र से💥
10) देवलोक में ढोल बजाना और सफाई का काम कौन करते हैं ॽ
💥किल्विषी देव💥
11) तीर्थकर का जन्म हुआ-यह सूचना सबसे पहले किस देव को मिलती है?
💥सौधर्मेन्द्र को💥
12) कौनसे देव मूल रूप से समवशरण में आये?
💥सूर्य और चंद्र💥
13) तीर्थंकर की दीक्षा के लिए एजेंट बनकर कौन आते हैं?
💥लोकान्तिक देव💥
14) करुणा करके देवलोक कौन गए?
💥धर्मरुचि अणगार💥
15) देवताओं ने किसे संयम के लिए रोका ?
💥राजकुमार नंदिषेण/आद्रकुमार को💥
16) किस देव ने सबसे ज्यादा कष्ट तीर्थकर को दिया ?
💥संगम देव ने💥
17) वॉचमेन देवताओं को क्या कहा जाता है ?
💥लोकपाल💥
18) देवों के वैक्रिय द्वारा बनाए वस्त्र व अलंकार कितने समय तक रहते हैं?
💥15 दिन तक💥
19) पश्चाताप किसके लिए पुरस्कार बन गया ?
💥गौशालक के लिए💥
(12वा देव लोक)
20) कौन से देव सिर्फ भवी ही होते हैं ?
💥5 अनुत्तर विमान के देव💥
21)देवताओं के जन्म के समय पलंग पर बिछा हुआ कपड़ा किसका बना होता है?
💥पृथ्वीकाय का💥
22) देव वचन का अनादर कर दीक्षा किसने ली ?
💥आद्रकुमार/नंदिसेन ने💥
23) देव अपना आहार कैसे करते हैं?
💥रोम आहार लेते हैं💥
24) किस तीर्थंकर के बल की शंका देव को हुई?
💥प्रभु महावीर 💥
25) कौन से देव तीसरी नरक तक जाते हैं?
💥परमाधर्मी देव💥
Last question for the day.
26) देवियां कितने देवलोक तक जा सकती है ?
💥आठवें देवलोक तक 💥
🌹1⃣देवताओं के मुख्य कितने प्रकार होते हैं?🌹
🌹1⃣चार🌹
🌹2⃣जो देव भवनों में निवास करते है उसे क्या कहते है?🌹
🌹2⃣भवनपतिदेव🌹
🌹3⃣जो वनों ,गुफाओं,और पर्वतों के अन्तरोंमे रहते है वे कौन से देव है?🌹
🌹3⃣वाणव्यंतर देव🌹
🌹4⃣व्यंतर देवों के कितने प्रकार है?🌹
🌹4⃣आठ🌹
🌹5⃣जृम्भक देव किसके अन्तर्गत आते है?🌹
🌹5⃣वाणव्यंतर देव🌹
🌹6⃣१५ परमाधामी कौन सी जाति के देव है?🌹
🌹6⃣असुरकुमार देव🌹
🌹7⃣समभूतला से ज्योतिषी देवो के विमान कितने दूर है?🌹
🌹7⃣790 योजन🌹
🌹8⃣ज्योतिषी देवो के कितने प्रकार है?🌹
🌹8⃣दो प्रकार🌹
🌹9⃣कौन कौन से?🌹
🌹9⃣चर,अचर🌹
🌹1⃣0⃣भवनपति देवो का जघन्य आयुष्य कितना है?🌹
🌹1⃣0⃣10000 वर्ष🌹
🌹1⃣1⃣व्यंतर देवो का उत्कृष्ट आयुष्य कितना है?🌹
🌹1⃣1⃣1 पल्योपम🌹
🌹1⃣2⃣असुर कुमार के मुकुट में किसका चिन्ह होता है?🌹
🌹1⃣2⃣चुडामणि🌹
🌹1⃣3⃣भवनपति देवो की अवगाहना कितनी है?🌹
🌹1⃣3⃣7 हाथ🌹
🌹1⃣4⃣असुरकुमार के शरीर का वर्ण कौन सा है?🌹
🌹1⃣4⃣काला रंग🌹
🌹1⃣5⃣असुरकुमार के वस्त्रों का रंग कौन सा है?🌹
🌹1⃣5⃣लाल वर्ण🌹
🌹1⃣6⃣वैमानिक देवों के कितने प्रकार है?🌹
🌹1⃣6⃣दो प्रकार🌹
🌹1⃣7⃣कौन-कौन से?🌹
1⃣7⃣कल्पोपपन्न,कल्पातीत
🌹1⃣8⃣अनुत्तर देवों के शरीर की अवगाहना कितनी है?🌹
🌹1⃣8⃣1 हाथ🌹U
🌹1⃣9⃣देवों का उत्कृष्ट आयुष्य कितना है?🌹
🌹1⃣9⃣33सागरोपम🌹
🌹2⃣0⃣देवों की स्वकाय स्थिति कितनी है?🌹
🌹2⃣0⃣देवों की स्वकाय स्थिति नहीं होती?🌹
🌹2⃣1⃣देवताओंमें कौन सा संधयण होता है?🌹
🌹2⃣1⃣देवताओं में संधयण नहीं होता?🌹
🌹2⃣2⃣देवताओं में कौन सा संस्थान होता है?🌹
🌹2⃣2⃣समचतुरस्र संस्थान🌹
🌹2⃣3⃣कौन से देवलोक तक के देव धरती पर आते है?🌹
🌹2⃣3⃣१२वें देवलोक तक के देव🌹
🌹2⃣4⃣देवता कौन सा आहार करते है?🌹
🌹2⃣4⃣लोम(रोम)आहार🌹
🌹2⃣5⃣सबसे कम देव कौन से देवलोक में है?🌹
🌹2⃣5⃣सर्वार्थ सिद्ध🌹
🌹2⃣6⃣देवताओं में कितने ज्ञान होते है?🌹
🌹2⃣6⃣तीन १ मतिज्ञान,२ श्रुत ज्ञान ३ अवधिज्ञान🌹
🌹2⃣7⃣देवताओंमें कितने योग होते है?🌹
🌹2⃣7⃣11 🌹
४ मन के,४ वचन के,३ काया के
🌹2⃣8⃣देवताओं में कितने दर्शन होते है?🌹
🌹2⃣8⃣तीन🌹चक्षुदर्शन,
अचक्षुदर्शन,अवधिदर्शन🌹
🌹2⃣9⃣देवताओं में कितनी पर्याप्तॉं होती है?🌹
🌹2⃣9⃣6 पर्याप्तियॉं🌹
🌹3⃣0⃣देवताओं में कितने प्राण होते है?🌹
🌹3⃣0⃣10प्राण🌹
🌹3⃣1⃣देवताओं के कुल भेद कितने है?🌹
🌹3⃣1⃣198🌹
🌹99 अपर्याप्ता,99पर्याप्ता🌹
🟨 *टोपिकः वेदना देने वाले परमाधामी का नाम बताओ*🙏
1️⃣ *गरम रेती में भूंजनेवाला*❓
🅰️ बालुका
2️⃣ *ह्रदय को फाडने वाला*❓
🅰️ सबल देव
3️⃣ *कांटे के वृक्ष से घिसटने वाला*❓
🅰️ खरस्वर
4️⃣ *कुंभी मे पकाने वाला*❓
🅰️ कुम्भ
5️⃣ *तलवार से टुकडे करने वाला*❓
🅰️ असिपत्र
6️⃣ *मांस खिलाने वाला*❓
🅰️ यम देव
7️⃣ *नाक कान विंधने वाला*❓
🅰️ धनुष देव
8️⃣ *गरम तेल मे डालने वाला*❓
🅰️ काल
9️⃣ *छुरे से टुकडे करने वाला*❓
🅰️ महारौद्रे/अम्बरीश
🔟 *500योजन उछालने वाला*❓
🅰️ अम्ब
📛1) वैमानिक देवो के कितने भेद❓
🅰 38
📛2) वैमानिक देवता कहा रहते है ?
:🅰 ऊर्ध्वलोक
📛3) वैमानिक देव के कितने प्रकार है ?
:🅰 2
📛4) बारह वैमानिक देवों के कितने इन्द्र होते है❓
🅰 दस.(10)
📛5) प्रत्येक इन्द्र के कितनी परिषद होती है ?
🅰 तीन ( 3)
📛6) क्या देवों मे भी निम्न श्रेणी के देव होते है?
🅰 हाँ होते है
📛7) निम्न श्रेणी के देवों कि पहचान किस नाम से होती है ?
🅰 किल्विषिक देव
📛8) पाँचवे देवलोक मे और कौनसे देव रहते है ?
🅰 लोकन्तिक देव
📛9) लोकान्तिक देव कितने है ?
🅰 नव (9)
📛10) लोकान्तिक देवों के स्वामी कि क्या विशिष्ट पहचान है ?
🅰 एकांत सम्यगदृष्टि तथा एक भवावतारी है
📛11) लोकान्तिक देवों के कितने स्वामी होते है ?
🅰 नव (9)
📛12) लोकान्तिक देवों कि स्थिती कितनी है ?
:🅰 8 सागरोपम प्रमाण
📛13) बारह देवलोको मे एकान्त मिथ्यादृष्टि कौनसे देव होते है ?
🅰 तीन किल्विषी देव
📛14) ग्रैवेयक देव कितने प्रकार के है ?
🅰 नव (9)
📛15) नव ग्रैवेयक के स्थान कहा पर है ?
🅰 12 देवलोक से उपर
📛16) प्रथम त्रिक मे कितने विमान है ?
🅰 111 (एक सौ ग्यारह)
📛17) ग्रैवेयक देवों कि अवगहना कितनी होती है ?
🅰 दो हाथ की
📛18) ग्रैवेत्रक देवों के विमान कितने ऊँचे होते है ?
🅰 1,000 योजन
📛19) ग्रैवेयक देवो कि उत्कृष्ट स्थिति कितनी होतघ है ?
🅰 31 सागरोपम की
📛20) अनुत्तर विमान कितने है ?
🅰 पाँच
📛21) अनुत्तर विमानो के देव किसमे निमग्न रहते है ?
🅰 ज्ञानादि पर्यायो मे
📛22) अनुत्तर विमानो मे कौन उत्पन्न होते है ?
🅰 शुध्द संयम वाले साधु
📛23) सर्वार्थसिध्द विमान से निकलकर जीव कितने भव करता है
: 🅰 एक भव
📛24) पाँचो अनुत्तर विमानवासी देवों कि अवगाहना कितनी है ?
🅰 एक हाथ की
📛25) मनुष्य लोक मे आवागमन कौनसे वैमानिक देव करते है ?
🅰 कल्पोपपन्न वैमानिक देव
📛26) चारो निकाय के देवो की कुलकोडी कितनी है ?
🅰 26 लाख कुलकोडी
📛27) चारो निकाय के देवो की जीवायोनी कितनी है ?
: 🅰 चार लाख
📛28) चारो निकाय के देवो के कुल कितने इन्द्र होते है ?
: 🅰 64 इन्द्र
📛29) चारो जाति के देवों के कुल कितने भेद है ?
🅰 198
📛30) देवताओं मे कितने संहनन पाये जाते है ?
: 🅰 एक भी नही
💎 :~*वर्षीदान
1️⃣तीर्थंकर जब सिंहासन पर बैठ कर दान देते हैं तब उनके हाथ में शक्ति कौन देता है
🅰️ सौधर्मेंद्र देव उनके हाथ में थकान नहीं आती
2️⃣ तीर्थंकर के भंडार में स्वर्ण मोहरे कौन भरते हैं
🅰️ ईशान्द्रे देव
3️⃣ चमरेन्द्र देव क्या काम करते हैं
🅰️ रत्ना छढ़ी बजाते रहते हैं जिससे भीड़ ना हो
4️⃣ दान को ज्यादा कम कौन से देव करते हैं
🅰️बलेन्द्रजी,
(दान लेने वाले के भाग्य में ज्यादा हो तो निकाल लेते हैं और कम हो तो और डाल देते हैं इस प्रक्रिया का किसे भी पता नहीं चलता है)
5️⃣ भवनपत्ती जी देव क्या काम करते हैं
🅰️ भरत क्षेत्र के व्यक्तियों को दान देने के लिए लाते हैं
6️⃣ वाणव्यन्तर देव क्या काम करते हैं
🅰️ याचकों की रक्षा करते हैं कोई उन्हें लूट ना ले
7️⃣ विद्याधरो को वर्षी दान की सूचना कौन देते हैं
🅰️ ज्योतिषी देव
8️⃣ तीर्थंकर के दान के प्रभाव से कितने खंड में और कितने वर्ष तक शांति रहती है
🅰️ 6 खंड और 12 बरस
9️⃣ उस धन को भंडार में रखे तो कितने वर्ष तक कमी नहीं आती
🅰️ 12 बरस तक
🔟 कौन निरोगी बनते हैं
🅰️ रोगी
1️⃣1️⃣ कौन बुद्धिशाली बनते हैं
🅰️ मंदबुद्धि वाले
1️⃣2️⃣ किस की वृद्धि होती है
🅰️ यश कीर्ति की, तथा स्वरूप की
1️⃣3️⃣ क्या चक्रवर्ती बलदेव वर्षी दान लेने जाते हैं
🅰️ हां बड़े उत्साह और उमंग से
1️⃣4️⃣ और कौन वर्षी दान लेने जाते हैं
🅰️ वासुदेव मांडलिक राजा सेठ सेनापति आदि
1️⃣5️⃣ तीर्थंकर के हाथों से दान कौन प्राप्त कर सकता है
🅰️ भव्य आत्मा
1️⃣6️⃣ तीर्थंकर भगवान जब दीक्षा लेने का संकल्प करते हैं तब किसका आसन चलित होता है
🅰️ शकेंद्र महाराज का
1️⃣7️⃣ वह किसको बुलाते हैं और क्या आज्ञा देते हैं
🅰️ वे श्रमण देव को बुलाते हैं और तीर्थंकर का भंडार भरने को कहते हैं (कहते हैं कि चोरी किए बिना डाका डाले बिना सात पीढ़ी तक जिस धन का कोई वारिस ना हो ऐसा धन तीर्थकर के भंडार में भरो)
1️⃣8️⃣ अब इसके बाद शकेंद्रीय महाराज किसको बुलाते हैं
🅰️ को
1️⃣9️⃣ उन्हें क्या आज्ञा देते हैं
🅰️ स्वर्ण मोहरे बनाने की
2️⃣0️⃣ कितने मासां की स्वर्ण मोहरे बनाई जाती है
🅰️ 16 मांसा की
(जृभ्भक देव से कहते हैं कि सारा सोना पिघलाकर उसमें से 16,16 मांसा की स्वर्ण मोरे बनाओ)
2️⃣1️⃣ उस मोहरे पर किस-किस के नाम लिखे जाते हैं
🅰️ तीर्थंकर जी का उनके माता-पिता का तथा उनकी नगरी का
2️⃣2️⃣ फिर किस देव के द्वारा कहां से उद्घोषणा करवाते हैं
🅰️ फिर ज्योतिषी देवों के द्वारा वैताढ्य पर्वत से उद्घोषणा करवाते हैं
2️⃣3️⃣ क्या उद्घोषणा करवाते हैं
🅰️ कल से तीर्थंकर महाराज वर्षी दान देंगे
2️⃣4️⃣ तीर्थंकर महाराज दिन में कब से कब तक वर्षी दान देते हैं
🅰️ सूर्योदय से सवा प्रहर तक
2️⃣5️⃣ प्रतिदिन कितना दान देते हैं
🅰️ 10800000 स्वर्ण मुद्राएं
2️⃣6️⃣ इस प्रकार का दान कितने दिनों तक देते हैं
🅰️ 360 दिन (1 बरस)
2️⃣7️⃣ किस की महिमा समझाने के लिए करते हैं
🅰️ दान धर्म की महिमा
2️⃣8️⃣ तीर्थंकर को सामायिक का दान कौन देते हैं
🅰️ स्वयं ही सामायिक लेते हैं
2️⃣9️⃣ सामायिक लेते समय किस शब्द का उच्चारण करते हैं
🅰️ नमो सिध्दस्स
3️⃣0️⃣ हमने आज पाठशाला में किस की महिमा गाई
🅰️ तीर्थंकर के अतिशय की महिमा
*
Abhavya jeev kaunse devlok tak jaa sakte hai?
जवाब देंहटाएंनौ ग्रैवयक तक
हटाएंकौनसे वैमानिक देव का चिन्ह सिंह है ?
जवाब देंहटाएंचौथे माहेंद्र देवलोक का
हटाएंDevgati me vyantar devo ke kyaa kyaa dukh he
जवाब देंहटाएंFir devgati ke dukh ka uttar aaya kyoo nahi
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