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जून, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

चुटकले

चुटकले  आरोगो सा  एक अँधा किसी मारवाड़ी के घर खाने जाता है ,पर उसे मारवाड़ी तो आती ही नहीं थी , वहां पंहुचते ही सब ने बहुत आवभगत की और कहा - खाना परोस  के कहा अरोगो मारवाड़ी में खाना खाइए को आरोगो सा कहते है . उस सूरदास (अँधा ) व्यक्तिको मारवाड़ी तो आती नहीं थी उस  ने सोचा आरोगो सा कोई खाने की चीज का नाम है वह मन ही मन खुश हो रहा था ,आज तो खाने में मुझे कोई नई स्वादिष्ट चीज मिलेगी .जिसका नाम आरोगो सा है . उसने बड़ी आतुरता से सारे  खाने को टटोला  सभी चीज पहचान रहा था . पूरी ,सब्जी , कचोरी, राइता आदि,पर वह नहीं थी जिसे वह ढूंढ़ रहा था , तो उसने  सोचा वह कोई मीठी चीज है लास्ट में आएगी . उसका खाना लगभग खत्म होने को था, पर आरोगो सा तो आई ही नहीं उसकी हिम्मत ने जबाब दे दिया ,उसने किसी से झिझकते हुए  पूछा -, भई,क्या बात है मेरी प्लेट में तो आरोगो सा नहीं आई वह व्यक्ति भी मजाकिया था ,वह सारी बात समझ कर बोला- अरे आई नहीं में अभी लाता हूँ , और वो उसे एक पत्थर देकर बोला लो साहब आरोगो सा .सूरदास बहुत खुश हुआ  ,और खाने की कोशिश करने लगा पर पत्...

ढूँढ़ते रहे जायोगे

नारी में हया ,पुरुष में साहस ,बच्चों में बचपना  ढूँढ़ते रहे जायोगे धरम में शांति ,वीरों में क्रांति ,नेता में देश भक्ति ढूँढ़ते रहे जायोगे  अरिहंतों की वाणी ,गुरुओं में ज्ञानी ,सेठों में दानी  ढूँढ़ते रहे जायोगे  राजपूतों  की आन ,लखनवी शान ,क्षत्रियों की जबान  ढूँढ़ते रहे जायोगे सत्य के लिए युद्ध ,पर्यावरण  में हवा शुद्ध ,धरम गुरुओं में बुद्ध ढूँढ़ते रहे जायोगे विज्ञापनों की कतार में ,अखबारों में न्यूज़ ,विज्ञापनों मेंसच्चाई  मानवों के मकड़ जाल में इंसानियत की परछाई  ढूँढ़ते रहे जायोगे

अनवरत प्रश्न

अभय हो जीने की कला  सीख पायेगा ? चक्रव्यूह   विचारों के हैं बुने अभिमन्यु भी  बन पायेगा ? द्रोण ही आहुति मांग रहे हैं अपने शिष्यों की ? छलावे का शिकार एकलव्य बन कर ही रहे जाएगा  या कभी अर्जुन भी बन पायेगा ? शकुनी के चालों  में क्या मौन  भीष्म प्रतिज्ञा रख पायेगा ? आक्षेप रहित वीरों  का क्या  एक इतिहास क्या रच पायेगा ? सर्वत्र हो शांति  क्या ऐसा स्वप्न दुकूल भी बुन पायेगा?  जवाब रहित अनवरत प्रश्न क्या सही हल दे पायेगा?

नारी। कविता

 नारी मैं ना किसी से हारी  हूँ  ये आज समझने पाई हूँ , दुर्बलता मैं नारी हूँ प्रकृति के सुकुमार अवयव लेकर  मैं सबसे  हारी हूँ  जयशंकर प्रसाद  ( ये पंक्तिया  पढ़कर मुझे ये लगा नहीं स्त्रियों का मतलब दुर्बलता तो हरगिज नहीं हो सकता है . तो मैंने इन पंक्तियों के प्रत्यूतरमें ये कविता लिखी ) कौन कहता है ,मैं दुर्बलता मैं नारी हूँ  मैं न किसी से हारी थी ,ना किसी से हारी  हूँ  मेरा ध्येय केवल सीता नहीं, मेरा आधार केवल अहिल्या नहीं मेरा रूप केवल मेनका नहीं मेरी नियति केवल सती नहीं  मैं  तो हूँ  इन्द्रा भी  नूर जहाँ भी  मैं  जेबूनिसा भी मैं  हूँ पुतली बाई भी  मेरे जिस्म पे दिए गर जख्म तो मैं  बन जाऊंगी जख्मी शेर  मत ललकारो मुझे नहीं तो मैं  बन आऊँगी समक्ष तेरे लक्ष्मी  रजिया पुतली नूर हिम्मत मत करना मेरे सतीत्व  के स्पर्श का, मैं पद्मिनी का इतिहास  दोहरा दूँगी लांछन  मत लगाना मै  विश्व में आग लगा दूँगी  ...

डायरी का पन्ना

डायरी का पन्ना  यूँ मैंने कई लम्हे बिता दिए  जिस चाहत में आज मिल गई तो अधूरी सी  क्योँ लगती है ?. सच है ये जीवन ख्वाबों  का अँधा ढेर है .किसी के सिर्फ आँखों में पलते किसी के फलते है  पर अक्सर  इतनी देर हो जाती है पलने और फलने में की मिल कर भी कुछ  कमी रहती है  मैं निराशावादी नहीं हूँ  ,जीत चुकी हूँ अपने भीतर की जंग कई दफे, पर क्या करूँ ? जीतने की जद्दोजहद  में कई बार जो  रुसवाई हुई खुद से खुद की  वो भूले नहीं भूलती है आदमी परायों से लड़े तो एक अलग बात , अपनों से लड़ने पर एक कसक रहती है  हंसने का मौखुटा तो दिन भर लगा ही रखा है .पर डायरी के पन्नो पर नकली हंसी  जमती नहीं  यु  ज़माने भर की तल्खियों का सामना किया ,पर तीर्थ  की उम्र में ये दुनियादारी निभती नहीं चलो एक बार और  निभालेते है रस्मोजिंदगी ,यूँ फूलो की सेज हर किसी के नसीब में  होती नहीं

हाउजी बनाम शहर

हाउजी बनाम हमारा  शहर  ( ये एक मनोरंजन है मनोरंजन के सिवाय कुछ नहीं .दिल पे मत लेना यार . इसके सारे आंकड़े हाउजी के नंबर के हिसाब से है  इसमें कोई सत्यता नहीं ) हमारे नगर की क्या यही पहचान है ? ३६ गढ़ की क्या बन पाई शान है . सड़ी नालियाँ  ५६ धारा,बिखरी सी जीवन धारा  सड़के जिसमे गढ़े ५० -६० 1, १० दिशाओं ४रों ओर बिखरी सड़ांध .1 ५-२५ करते रह गए, १९ २० के चक्कर में  खाई ६५ या पछाड़ ,  ३, पूल की लचर  हालत, ८२-८४ माह से बन rahi जाने कब बनेगी , लग गई पूरी लागत. बनने चले ६ बे जी बन गए २ बे जी  अभी थोड़े दिनों पहले की बात बताती हूँ  ,आँखों देखी सुनाती हूँ  लालकृष्ण  अडवानी थे , आने वाले ,१५, दिन में जोर शोर से श्री कान्त वर्मा मार्ग की सड़क हो गई आनन-फानन तैयार  . गौर फरमाएं  सिर्फ ७, दिन बाद ही होने लगी टाइल्स गायब .३२ दिनों में बैंच गायब,, नजारा  अजब सड़क की गजब कहानी था , ५७ दिनों में तो फुटपाथ  ही टूट रही थी .पूछा भाई नई सड़क तोड़ रहे हो क्या है . ,माजरा ? बोले बड़े भोलेपन से सड़क बनाने की जल्दी में नाले बनाने भूल गए...

पहेलिया

पहेलिया     १. गहना पहना क्यों  नहीं ,पानी पिया क्यों नहीं? २.जूता पहना क्यों नहीं समोसा खाया क्यों  नहीं ? ३. घर में माँ ने डांटा क्यों? स्कूल में टीचर ने डांटा क्यों? ४. इंग्लिश वर्ण माला में सबसे ढंडा वर्ण कौनसा है ? ५.शोले पिक्चर में डबल  रोल किसका था ? ६.एक ही चीज है उसे यदि  भूख  लगे तो खा लेना, प्यास लगे तो  पी लेना , ठण्ड लगे तो जला लेना ? ७.कौनसा पुलाव है ,जो नहीं खा सकते ?. ८. राम सीता हे तो राम कौन है ? ९. भारत की पहली विदेश यात्री महिला? १० एक एसी चिड़िया जिसके सर  पर पैर है? ११.बिना मात्रा का एक शहर ? १२एक सब्जी  और एक खाने की चीज जिसे गाली देते हुए संबोधित करते है ? १३. महिलाओं को सबसे अच्छी बुक कौन सी लगती है ?  १४. एक एसी भाषा जो उलटी सीधी एक सामान हो  o o o o o o o o o o o १. घड़ा नहीं था  २. टला नहीं था  ३.लेट गया था  ४. B ५. सिक्का  ६.नारियल  ७.ख्याली  पुलाव  ८.दर्जी ९.सीता  १०.प्रत्येक  चिड़िया (क्योंकि सब के सर , पर , और पैर होते है ) ११अह्म...

समनी वृन्द को भाव भीनी विदाई

समनी वृन्द को भाव भीनी  विदाई  (स्वागत जहाँ आह्राल्द्कारी होता है  ,विदाई सदैव कष्टकारी  होती है ,हम भाव पूर्ण ह्रदय से विदाई देते हुए   उन सार्थक क्षणों को याद करते है, कि आप द्वारा की गई ज्ञान वृष्टि सें हम कितने ओतप्रोत हुए, कितने  वो साधारण से दिन आपके सानिध्य से अमुलिय हो गए  और ये यादे  ही हमारी बहुमुलिय थाती  बन गई ) सोये श्रावको को आप जगाने आ गए  ज्ञान के दीप जलाने आ  गये  ज्ञान धर्म में व्यवहारकी शिक्षा आपकी मन को प्रेरणा देती रही  आपके साथ आगम की  स्वर -लहरी चलती  रही  आप का साथ मन को बहुत भा गया  और मिले साथ ये ज्ञान पिपासा बढा गया  हमारे पुण्य  के प्रतिफल आप जैसे गुरुओं  का साथ मिला  दुर्लभ मोक्ष मार्ग पाने का,  किंचित  आधार मिला  संयम गुण विद्या ख्याति और अंतर्बल है  ऐसी  ज्ञान से परिपूर्ण समनिजियो को  मेरा शत शत वंदन है (जाते वक़्त विदाई में कुछ देने का  दस्तूर होता है    तो  हम  भी ये  दस्तूर...

भोगा जाना सत्य

अर्थ बदलते रिश्ते    भाई चारा :: भाई को चारा बनाया जाता है  उसके नाम बड़े बड़े  काम किये जाते है  वक़्त  आने पर भाई को भाई चारा बनाकर डकार जाते है  इसका मतलब ही भाईचारा निकला  जाता है  रिश्ते  बनाम रीसते ::   रिश्ते  तो रीसते है आजकल आंसू  से लेकर खून तक  वादों को लेकर जज्बातों  तक  बहते ही जाते है  कुछ ढ हरता  ही नहीं  क्योंकि रिश्ते तो रीसते है  आजकल  परिवार :: पहले था  जो चारो तरफ के वार को रोके वोह है परिवार  आज के सन्दर्भमें  जो चारों ओर से वार करे  वो है परिवार 1 मजाक  :: मजाक को व्यंग्य का जरिया बना दिए  लोग  मजाक का भी मजाक बना दिए  लोग  मजाक में कह देते हैं चुभती बात  सहो तो व्यंग की चुभन  कहो तो कहेगें अरे !. मजाक का क्या बुरा मानना बुरा लगा है तो माफ़ करना यार  मजाक की मजाक व्यंग्य का व्यंग्य  देखो  कितने चालक हो गए है लोग 1 तुक:: मत मांगो तुक की कविता या तुक बंदी की कविता इतनी जिन्दगी ने सही है...

गरीब बनाम आमिर

एक दिन गर्व से इतरा कर पुछ ही लिया  वैभव ने गरीबी से  तुझ  में और  मुझ  में  कितना  फर्क है ? गरीबी ने कहा -हाँ  है तो  कुछ  शब्दों  का  , सिर्फ शब्दों  का.     नहीं  तुम गल्त हो .  गरीब   ने आह  भरते हुए कहा  - मैं  तो सच  होकर  भी हमेशा  गल्त ही रहा  तुम्हारे  सामने  ,   सच  हाँ   ये भी एक फर्क  है १ तुम बता पाओगे  वैभव ने फिर इढ्लाकर के कहा / गरीब  ने कहा हाँ हाँ एक दम साफ है ; सारा व्याकरण तो न समझा पाऊंगा  कुछ उदाहरण ही दे पाऊंगा  जैसे _ तुम्हारी  फैशन हमारी  माली  हालत  तुम्हारे  फैशन -ए- बुल  कपड़ों  से झांकता  जिस्म , हमारे  फटे हाल  कपड़ों  में बेबस  जवानी  तुम्हारे टकराते पैमाने   हमारी लुढ़कती बोतले  तुम्हारा कबरे डांस  यंहा गरीबी का नंगा नाच  तुम्हारे नौनिहालो  के मुंह में सिगरेट सिगार...

गीत संध्या सञ्चालन

पत्नी को वश में रखने के लिए थोडा बहुत दबाव ज़रूरी होता है  भई यह बात में पहले से जनता हूँ  इसलिए नियमित रूप से में उनके पॉंव दबाता हूँ  किसी आदमी को अपने प्रभाव से वशीभूत करना और उससे जो  जी  चाहे वह काम करवाना ?                     सम्मोहन  या शादी  पहले साल पत्नी जान होती है ,फिर साल दर साल जानलेवा  जो गलती करने पर सॉरी बोले वह समझदार होता है ,जो बिना गलती किये सॉरी बोले वो  विवाहित होता है कुछ व्यक्ति किताबी कीड़े होते हैं ,पर पत्नी की नज़र में हर पति साधारण कीड़े होते हैं   गणपति आह्वान  गणपति ब्रह्माण्ड के सभी सभी देवताओं में आप सर्वप्रथम है १जब तक आपका आगमन नहीं होगा किसी देवता का आगमन नहीं होगा इसीलिए आप आकर हमारी पूजा अंगीकार करे  आपके विराट स्वरुप की स्तुति  -नृत्य  के द्वारा कर रही है   --------- सूर्य तो ढल गया पर रोशनाई काफी है संगीत संध्याके सफ़र में गीत काफी है स्वागत करती हूँ...

SMS

वेलेंटाई डे मुमकिन नहीं  आसमान में चमकते तारों को छूना पर जिद में आकर कोशिश तो करूँगा ही, क्या पता मेरी मेहनत रंग लाये और चाँद मेरे दामन में गिर जाये  आँखों की ज़बा नहीं फिर भी बोलती ,  खामोश हसरतो के राज खोलती , दिल के आइने में अक्स हे तुम्हारा . तुम मेरी बंदगी ,और क्या कहे इसके सिवा  कि तू ही हे मेरी बंदगी    आँखों में आंसू कि लकीर बन गई  जो न सोचह था वो तस्वीर बन गई  हमने तो यूँ  ही  रेतपर  फिराई थी अंगुलिया  गौर से देखा तो तुम्हारी  तस्वीर बन गई  दो कदम सब चलते है ,पर जिंदगी भर कोई साथ निभाता नहीं  अगर रोकर भुलाई जाती यादें ,तो हंसकर कोई गम छुपाता नहीं  A good friend like a computer  Enter UR life Save U in their heart , Formet UR problems  Shift  U2 opportunities &Never delete U from memory! I asked god 4 a flower , he gave me a garden. Asked 4 a tree he gave me a forest Asked 4a river ,he gave me an occan , Asked 4 a friend, he gave me U.  सायरी  एक इबारत...

पुराने सन्दर्भ नयी परिभाषाये

शादी की अंगूठी - दुनिया की सबसे छोटी हथकड़ी  बजट - जिसमे सब चीजो का भाव बढ़ जाये  अर्धांगिनी -जो पति की आधी तनखा गिन ले  सफल हेरोइने -तंग कपडे ढीली आदतें   पति -जो बिना गलती सॉरी कहे  वित्  मंत्री -वेध्य रूप से जेब कतरा

अस्तित्व

पुष्प को उसकी सुन्दरता ने छला हैं  काँटों ने  अपनी चुभन से ही तन पे वेदना सही है  पानी की तरलता ने उसे आकर हीन बना दिया  पत्थर के  ठोसपन ने उसे हर जगह पिटवाया  चींटी के छोटेपन ने ही उसका  अस्तित्व मिटाया  हाथी के दांतों ने उसे ही शिकार बनाया  दो परायों को दोष कितना भी , पर आदमी खुद जिम्मेवार -हालत होता है अपनी सहृदयता को कमजोरी कहूं या विशषता उसीसे  हर बार मन हताहत होता हैं      

मेरी काव्य रचना

तुम बरसात की नन्ही बूंद सद्रश मुझ  सागर सीपी के खुले हृदय में  मोती बनकर झरे  हो मूल्यहीन से मूल्यवान बनते ही  बिकाऊ हो गए मेरा  सीना चाक कर काफिरों ने  तुमे मुझसे छीना  है  देखो मेरी जरा किस्मत  हस्ती मिटी   है मेरी  तब,  जब एक जर्रे को मोती बनाया हैं

दीप विश्वास की ज्योति

ये सेंकडो दीप जो चुपचाप रात के अँधेरे में   अमा की रात में  जला देते है  और एहसास लेकर  लौट जाते है कि उसके दीप प्रकाश स्तम्भ बनकर   जलते रहेंगे  और यही विश्वास कि ज्योति  हर यात्री के पथ पर निरंतर रौशनी बिखरती   जलती रहती है और भटकने से उसे बचाए रहती है     

अनमोल छानिकाएं

दाता उसने कुछ नहीं जोड़ा  लोग बतातें हैं पहनने का एक जोड़ा भी  उसके पास,नहीं मिला  ज़िन्दगी भर अपना सब देता रहा  दे देकर सबको जोड़ता रहा  आताम्लोचन उस दिन  जब मैंने सोचा की वह मुझे  गलत समझ रहा होगा  तभी से ऐसा लग रहा हैं कि मैंने उसे पहेली बार अपने बाबत  गलत सोचने का मोका दिया है  एक अहसास था  जहाँ तरलता थी  में डूबता चला गया जहाँ सरलता थी  में झुकता चला गया  संवेदनायों ने  मुझे जहाँ से छुआ  में वहीँ से पिघलता चला गया  सोचने को कोई चाहे जो सोचे  पर यह तो एक एहसास था जो कभी हुआ कभी न हुआ