समनी वृन्द को भाव भीनी विदाई

समनी वृन्द को भाव भीनी  विदाई 

(स्वागत जहाँ आह्राल्द्कारी होता है  ,विदाई सदैव कष्टकारी  होती है ,हम भाव पूर्ण ह्रदय से विदाई देते हुए  
उन सार्थक क्षणों को याद करते है, कि आप द्वारा की गई ज्ञान वृष्टि सें हम कितने ओतप्रोत हुए, कितने  वो साधारण से दिन आपके सानिध्य से अमुलिय हो गए  और ये यादे  ही हमारी बहुमुलिय थाती  बन गई )

सोये श्रावको को आप जगाने आ गए 
ज्ञान के दीप जलाने आ  गये 

ज्ञान धर्म में व्यवहारकी शिक्षा आपकी
मन को प्रेरणा देती रही 
आपके साथ आगम की 
स्वर -लहरी चलती  रही 

आप का साथ मन को बहुत भा गया 
और मिले साथ ये ज्ञान पिपासा बढा गया 

हमारे पुण्य  के प्रतिफल आप जैसे गुरुओं  का साथ मिला 
दुर्लभ मोक्ष मार्ग पाने का,  किंचित  आधार मिला 

संयम गुण विद्या ख्याति और अंतर्बल है 
ऐसी  ज्ञान से परिपूर्ण
समनिजियो को  मेरा शत शत वंदन है

(जाते वक़्त विदाई में कुछ देने का  दस्तूर होता है  
 तो  हम  भी ये  दस्तूर  निभाते है ) 

जो तत्व प्रेक्षा ध्यान का ,आपने पाठ पढाया
उसका निरंतर अभ्यास करेंगे 
सुने पर श्रदधा  और संयम व्रत रखने का भरसक प्रयास करेंगे 

विदाई के क्षणों में
अब हम भी आप से एक किंचित सा वादा मांगते है 
आप देखिये इनकार  न करना 
गुरुदेव  से बारम्बार बिलास पुर की अर्ज कर 
आकर यहाँ , हमे अनुग्रहित करते रहना
xxx  xx  xxx  xx  xxx 

आप का साथ तरन्नुम बनागया
लबो ने जो गुनगुना दिया वो गीत बना  गया
माना बहुत कीमती था वक़्त आपका  
पर वे  चंद लम्हें  हमारी प्रभु से प्रीत बढ़ा गया

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