अनमोल छानिकाएं
दाता
उसने कुछ नहीं जोड़ा
लोग बतातें हैं
पहनने का एक जोड़ा भी
उसके पास,नहीं मिला
ज़िन्दगी भर अपना सब देता रहा
दे देकर सबको जोड़ता रहा
आताम्लोचन
उस दिन
जब मैंने सोचा की वह मुझे
गलत समझ रहा होगा
तभी से ऐसा लग रहा हैं कि मैंने उसे
पहेली बार अपने बाबत
गलत सोचने का मोका दिया है
एक अहसास था
जहाँ तरलता थी
में डूबता चला गया
जहाँ सरलता थी
में झुकता चला गया
संवेदनायों ने
मुझे जहाँ से छुआ
में वहीँ से पिघलता चला गया
सोचने को कोई चाहे जो सोचे
पर यह तो एक एहसास था
जो कभी हुआ कभी न हुआ
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