गरीब बनाम आमिर
एक दिन गर्व से इतरा कर पुछ ही लिया वैभव ने गरीबी से
तुझ में और मुझ में कितना फर्क है ?
गरीबी ने कहा -हाँ है तो कुछ शब्दों का ,
सिर्फ शब्दों का. नहीं तुम गल्त हो .
गरीब ने आह भरते हुए कहा - मैं तो सच होकर भी हमेशा गल्त ही रहा
तुम्हारे सामने , सच हाँ ये भी एक फर्क है १
तुम बता पाओगे वैभव ने फिर इढ्लाकर के कहा /
गरीब ने कहा हाँ हाँ एक दम साफ है ; सारा व्याकरण तो न समझा पाऊंगा
कुछ उदाहरण ही दे पाऊंगा
जैसे _
तुम्हारी फैशन
हमारी माली हालत
तुम्हारे फैशन -ए- बुल कपड़ों से झांकता जिस्म ,
हमारे फटे हाल कपड़ों में बेबस जवानी
तुम्हारे टकराते पैमाने
हमारी लुढ़कती बोतले
तुम्हारा कबरे डांस
यंहा गरीबी का नंगा नाच
तुम्हारे नौनिहालो के मुंह में सिगरेट सिगार
हमारे बच्चों के पास बीडी के बचे टुकड़ों के
बेजान से कश
धुआ धुँआ जीवन के घुटन से तुम भी घुटते हो
और घुटते हैं हम भी
महफ़िलो में तुम्हारी बीबी के जिस्म पर
आवारें नज़रे कपड़ों को भी भेद जाती हैं
तुम्हारे यहाँ ये बदतमीजी भी तमीज कहलाती है
और हमारी बीबी पेट की आग से
वासनामयी नज़रों की शिकार हो जाती है
हमारे समाज में दलाल होते है
हाँ हम पेट की ज्वाला में जमीर को स्वाह करते हैं
तुम तो अपच से हवशी बन जाते हो
हम मज़बूरी में पले
तुम शान तले
फिर थोडा सा फर्क है
शब्दों के ये जलजले
वैभव भौचक्का सा अपने गिरेबान में झाँका
सच्चाई की तस्वीर नंगी पड़ी थी १
मान में सोचा गरीबी को नाहक छेड़ा और फजीयत हो गई
तुम बता पाओगे वैभव ने फिर इढ्लाकर के कहा /
गरीब ने कहा हाँ हाँ एक दम साफ है ; सारा व्याकरण तो न समझा पाऊंगा
कुछ उदाहरण ही दे पाऊंगा
जैसे _
तुम्हारी फैशन
हमारी माली हालत
तुम्हारे फैशन -ए- बुल कपड़ों से झांकता जिस्म ,
हमारे फटे हाल कपड़ों में बेबस जवानी
तुम्हारे टकराते पैमाने
हमारी लुढ़कती बोतले
तुम्हारा कबरे डांस
यंहा गरीबी का नंगा नाच
तुम्हारे नौनिहालो के मुंह में सिगरेट सिगार
हमारे बच्चों के पास बीडी के बचे टुकड़ों के
बेजान से कश
धुआ धुँआ जीवन के घुटन से तुम भी घुटते हो
और घुटते हैं हम भी
महफ़िलो में तुम्हारी बीबी के जिस्म पर
आवारें नज़रे कपड़ों को भी भेद जाती हैं
तुम्हारे यहाँ ये बदतमीजी भी तमीज कहलाती है
और हमारी बीबी पेट की आग से
वासनामयी नज़रों की शिकार हो जाती है
हमारे समाज में दलाल होते है
हाँ हम पेट की ज्वाला में जमीर को स्वाह करते हैं
तुम तो अपच से हवशी बन जाते हो
हम मज़बूरी में पले
तुम शान तले
फिर थोडा सा फर्क है
शब्दों के ये जलजले
वैभव भौचक्का सा अपने गिरेबान में झाँका
सच्चाई की तस्वीर नंगी पड़ी थी १
मान में सोचा गरीबी को नाहक छेड़ा और फजीयत हो गई
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