मेरी काव्य रचना

तुम बरसात की नन्ही बूंद सद्रश
मुझ  सागर सीपी के खुले हृदय में 
मोती बनकर झरे  हो
मूल्यहीन से मूल्यवान बनते ही 
बिकाऊ हो गए
मेरा  सीना चाक कर काफिरों ने 
तुमे मुझसे छीना  है 
देखो मेरी जरा किस्मत 
हस्ती मिटी   है मेरी  तब, 
जब एक जर्रे को मोती बनाया हैं

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