अस्तित्व

पुष्प को उसकी सुन्दरता ने छला हैं 
काँटों ने  अपनी चुभन से ही तन पे वेदना सही है 
पानी की तरलता ने उसे आकर हीन बना दिया 
पत्थर के  ठोसपन ने उसे हर जगह पिटवाया 
चींटी के छोटेपन ने ही उसका  अस्तित्व मिटाया 
हाथी के दांतों ने उसे ही शिकार बनाया 
दो परायों को दोष कितना भी ,
पर आदमी खुद जिम्मेवार -हालत होता है
अपनी सहृदयता को कमजोरी कहूं या विशषता उसीसे  हर बार मन हताहत होता हैं    
 

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