अजितनाथ,शांति सुत्र
श्न 1- दूसरे तीर्थंकर का नाम बताइये।
उत्तर- श्री अजितनाथ जी।
प्रश्न 2- भगवान श्री अजितनाथ ने कहां जन्म लिया?
उत्तर-अयोध्या में।
प्रश्न 3- भगवान श्री अजितनाथ कहां से गर्भ में आये?
उत्तर- विजय नामक अनुत्तर विमान में।
प्रश्न 4- भगवान श्री अजितनाथ ने कौन-से वंश में जन्म लिया?
उत्तर-इक्षच्वाकु वंश में।
प्रश्न 5- श्री अजितनाथ भगवन की माता का नाम बताइये।
उत्तर-विजया श्री (विजयसैना)
प्रश्न 6- श्री अजितनाथ भगवान के पिता का नाम बताइये।
उत्तर-जितशत्रू
प्रश्न 7- भगवान श्री अजितनाथ ने कौन-सी तिथि को गर्भ धारण किया?
उत्तर- ज्येष्ठ कृष्णा अमावस को।
प्रश्न 8- भगवान श्री अजितनाथ ने कौन-से नक्षत्र में गर्भ धारण किया?
उत्तर-रोहिणी नक्षत्र में।
प्रश्न 9- भगवान श्री अजितनाथ ने कौन-सी तिथी को जन्म लिया?
उत्तर- माघ शुक्ला दसवीं को।
प्रश्न 10- भगवान श्री अजितनाथ ने कौन-सी नक्षत्र में जन्म लिया?
उत्तर- रोहिणी नक्षत्र में।
प्रश्न 11- भगवान श्री अजितनाथ की आयु बताइये।
उत्तर- बहत्तर लाख वर्ष पूर्व
प्रश्न 12- भगवान श्री अजितनाथ का कुमार काल का कितने वर्ष का था?
उत्तर-अठारह वर्ष पूर्व का।
प्रश्न 13- भगवान श्री अजितनाथ के शरीर की ऊंचाई बताइये।
उत्तर-चार सौ पचास धनुष।
प्रश्न 14- भगवान श्री अजितनाथ के शरीर का वर्ण बताइये।
उत्तर- तपाये हुए स्वर्ण सदृश।
प्रश्न 15- भगवान श्री अजितनाथ जी ने कितने वर्ष तक राज्य किया?
उत्तर- त्रेपनलाख पूर्व वर्ष एवं एक पूर्वांग वर्ष तक।
प्रश्न 16- भगवान श्री अजितनाथ जी का चिन्ह बताइये।
उत्तर- हाथी।
प्रश्न 17- भगवान श्री अजितनाथ के पूर्वभव का क्या नाम था?
उत्तर- श्री विमलवाहन।
प्रश्न 18- भगवान श्री अजितनाथ ने कौन-से गोत्र में जन्म लिया?
उत्तर-काश्यपगोत्र।
प्रश्न 19- भगवान श्री आदिनाथ के मोक्ष जाने के कितने समय बाद भगवान श्री अजितनाथ का जन्म हुआ?
उत्तर-पचास लाख करोड़ सागर बीत जाने के बाद।
प्रश्न 20- भगवान श्री अजितनाथ के पुत्र का नाम बताइये।
उत्तर-श्री अजितसेन।
प्रश्न 21- भगवान श्री अजितनाथ का कुमार काल कितने वर्ष का था?
उत्तर-बीस लाख वर्ष पूर्व।
प्रश्न 22- भगवान श्री अजितनाथ के शरीर की ऊंचाई कितनी थी?
उत्तर-चार सौ पचास धनुष।
प्रश्न 23- भगवान श्री अजितनाथ के वैराग्य का कारण बताइये।
उत्तर-उल्कापात अर्थात बिजली का गिरना।
प्रश्न 24- भगवान श्री अजितनाथ ने दीक्षा कौन-सी तिथि को ली?
उत्तर- माघ शुक्ला नौवीं को।
प्रश्न 25- भगवान श्री अजितनाथ ने दीक्षा कौन-से नक्षत्र में ली?
उत्तर-रोहिणी नक्षत्र में।
श्री अजित शांति सुत्र -
अजित शांति स्तवननी रचना शंत्रुजय गिरिराज पर हुई थी। नेमिनाथ भगवान के शासन में नंदिषेण मुनि शत्रुंजय यात्रा करने आते थे , उस समय अजितनाथ भगवान अौर शांतिनाथ भगवान की दोनो देरीया आमने सामने थी। अजितनाथ भगवान के दर्शन करते समय , पिछे शांतिनाथ भगवान की देरी पड़ती थी , इसलिये दर्शन करते समय पिछे पीठ पड़ती थी। इसलिये नंदिषेण मुनि दोनो देरी के बीच में बैठ गये। उन्होंने भाववाही अजित शांति स्तवन की रचना की , रचना होने के बाद दोनो देरी जो आमने सामने थी वो देरी बाजु - बाजु में आ गई। अब अजितनाथ और शांतिनाथ भगवान की देरी मे बने हुए पगलाजी के दर्शन करते समय पिछे पीठ नहीं पड़ती है ।
यह अजित शांति स्तवन बहुत प्रभावक स्तवन है।अजित शांति स्तोत्र की गाथा मे इस प्रकार से लिखा हुआ है कि
"जो पढई जो निसुणइ, उभओ कालंपि अजिअ संति थयं,न हु हुंती तस्स रोगा पूववुप्पन्ना वि नासंति"
इस गाथा का अर्थ इस प्रकार से है -
श्री अजितशांति स्तवन को दो बार जो पढता है अथवा श्रवण करता है उसे रोग होते नही है और पहले के उत्पन्न हुए सभी रोग भी नाश हो जाते है । यह सुत्र बहुत ही प्रभावशाळी है और मंत्र गर्भित है ....
इस सुत्र मे कुल ४० गाथा है । श्री अजितनाथ - शांतिनाथ भगवान की देरी शत्रुंजय तीर्थ में छ:गाउ की यात्रा करते समय चंदन तलावड़ी के पास है।
अजितनाथ भगवान और शांतिनाथ भगवान ने यहाँ गिरिराज पर चातुर्मास किया था। इसलिये यह दोनो भगवान की देरी बनाई गई है।
श्री अजित शांति सुत्र -
अजित शांति स्तवननी रचना शंत्रुजय गिरिराज पर हुई थी। नेमिनाथ भगवान के शासन में नंदिषेण मुनि शत्रुंजय यात्रा करने आते थे , उस समय अजितनाथ भगवान अौर शांतिनाथ भगवान की दोनो देरीया आमने सामने थी। अजितनाथ भगवान के दर्शन करते समय , पिछे शांतिनाथ भगवान की देरी पड़ती थी , इसलिये दर्शन करते समय पिछे पीठ पड़ती थी। इसलिये नंदिषेण मुनि दोनो देरी के बीच में बैठ गये। उन्होंने भाववाही अजित शांति स्तवन की रचना की , रचना होने के बाद दोनो देरी जो आमने सामने थी वो देरी बाजु - बाजु में आ गई। अब अजितनाथ और शांतिनाथ भगवान की देरी मे बने हुए पगलाजी के दर्शन करते समय पिछे पीठ नहीं पड़ती है ।
यह अजित शांति स्तवन बहुत प्रभावक स्तवन है।अजित शांति स्तोत्र की गाथा मे इस प्रकार से लिखा हुआ है कि
"जो पढई जो निसुणइ, उभओ कालंपि अजिअ संति थयं,न हु हुंती तस्स रोगा पूववुप्पन्ना वि नासंति"
इस गाथा का अर्थ इस प्रकार से है -
श्री अजितशांति स्तवन को दो बार जो पढता है अथवा श्रवण करता है उसे रोग होते नही है और पहले के उत्पन्न हुए सभी रोग भी नाश हो जाते है । यह सुत्र बहुत ही प्रभावशाळी है और मंत्र गर्भित है ....
इस सुत्र मे कुल ४० गाथा है । श्री अजितनाथ - शांतिनाथ भगवान की देरी शत्रुंजय तीर्थ में छ:गाउ की यात्रा करते समय चंदन तलावड़ी के पास है।
अजितनाथ भगवान और शांतिनाथ भगवान ने यहाँ गिरिराज पर चातुर्मास किया था। इसलिये यह दोनो भगवान की देरी बनाई गई है।
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