अरनाथ स्वामी
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चक्रवर्ती,कामदेव, तीर्थंकर तीन पद के धारी देवाधिदेव 18 वें तीर्थंकर श्री *अरनाथ स्वामी का केवलज्ञान कल्याणक*
तिथि कार्तिक शुक्ला द्वादशी,
शुक्रवार, दि. 27/11/2020
"छोड़ विभूति चक्रवर्ती की, निज वैभव प्रगटाया है।
सम्यक चारित्र चक्र धारकर, कर्मचक्र विनाशाया है।।"
*18 वें तीर्थंकरअरनाथ स्वामी का*
*पूर्व भव एवं जीवन परिचय*
जंबुद्वीप के पुर्व विदेह क्षेत्र में सीता नदी के विस्तृत पट पर वस्त नामक विजय था। उसमें सुसीमा नामक नगर था। उस पर धनपति नामक राजा राज्य करते थे। उसका राज्य कलह रहित परस्पर वात्सल्य भाव से रहने वाले लोगों से मुनि के आश्रम जैसा लगता था। अनुक्रम से इस संसार को असार जानकर राजा ने संवर मुनि के पास दीक्षा ग्रहण की। विविध अभिग्रहों को धारण कर तीव्र तपस्या करते हुए इस पृथ्वी पर विहार करने लगे। एक समय पुरे चार माह के उपवास किये। पारणे के दिन जिनदास नामक सेठ के पुत्र ने श्रद्धापूर्वक उन्हें प्रतिलाभित किया। (जब प्रभु को केवलज्ञान हुआ तब समवसरण में उनके गणधर कुंभ ने देशना देते हुए प्रभु के धनपति राजा के भव में इस श्रेष्ठी पुत्र का पुरा वृतांत बताया था प्रभु अरनाथ के समय में वीरभद्र नाम से यह युवक अपने परिवार जनों के साथ आया था वृतांत लम्बा होने से यहाँ नहीं ले पा रहा हूँ) क्रमशः अर्हंत आराधना एवं स्थानकों की तपस्या कर धनपति राजमुनि ने तीर्थंकर नामकर्म का उपार्जन किया। यहाँ आयुष्य पूर्ण कर धनपति राजमुनि नौवें ग्रैवेयक देवलोक में परम महान देवता हुए।
🌸 *प्रभु का च्यवन*
जंबुद्वीप के भरतक्षेत्र में हस्तिनापुर नामक नगर था उस पर सुदर्शन नामक राजा राज्य करते थे। उसके महादेवी नामक स्वर्ग की देवी समान रानी थी। नौवें ग्रैवेयक देवलोक से राजा धनपति का जीव अपना आयुष्य पूर्ण कर फागुन सुद बीज के दिन चंद्र के रेवती नक्षत्र में आने पर रानी महादेवी की कुक्षी में अवतरित हुआ। माता ने तीर्थंकर च्यवन सुचक चौदह महास्वपन देखे।
🌸च्यवन तिथि:फाल्गुन शुक्ला द्वितीया,
🌸नक्षत्र :रेवती,
🌸च्यवन:अंतिम रात्रि।
🌸श्री अरनाथजी का जन्म हस्तिनापुर के कुरुवंश में मार्गशीर्ष शुक्ल दशमी को रेवती नक्षत्र में हुआ था। इनके माता का नाम रानी महादेवी और पिता का नाम राजा सुदर्शन था।इनके शरीर का वर्ण सुवर्ण था, जबकि इनका चिन्ह मछली था, तीर्थंकर जब उदर में थे उस समय माता ने स्वप्न में चक्र के आरे को देखा अत: प्रभु का नाम पिता ने अर रखा।शरीर की अवगाहना 30 धनुष थी। पिता की आज्ञा मानकर प्रभु ने अनेक राजकन्याओं से विवाह किया। जन्म से 21 हजार वर्ष बित जाने पर प्रभु ने राज्य शासन को सम्भाला। प्रभु के शस्त्रागार में गगनचारी चक्र रत्न उत्त्पन्न हुआ। फिर अन्य प्राप्त हुए 13 रत्नों को भी साथ लेकर प्रभु चक्र रत्न के पिछे दिग्विजय करने निकले। चार सौ वर्ष तक दिग्विजय यात्रा कर पूरे भरतक्षेत्र में अपना शासन को प्रवर्तित किया। प्रभु चक्रवर्ती सम्राट बने।
21 हजार वर्ष मांडलिकशासन में, 21 हजार वर्ष चक्रवर्ती सम्राट के रुप में,व्यतीत हो जाने पर लोकांतिक देवों ने आकर प्रभु को निवेदन किया कि प्रभु अब तीर्थ का प्रवर्तन करावे।
प्रभु ने वार्षिक दान देना प्रारंभ किया।राज्य भार अपने पुत्र अरविंद को सौंपकर, दीक्षा की ओर प्रवृत्त हुए। सालभर पूरा होने पर इन्द्र आदि देवताओं ने आकर प्रभु का दीक्षा महोत्सव किया।
🌸दीक्षा तिथि : मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी,
🌸दीक्षा नक्षत्र : रेवती नक्षत्र,
🌸समय : दिन के पिछले पहर,
🌸शिबिका : वैजयन्ती,
🌸दीक्षा स्थान : सहस्त्राम्र वन उद्यान,
🌸सहदीक्षीत : 1000 राजा,
🌸तप : बेला,
🌸प्रथम पारणा : राजपूर नगर के राजा अपराजित के यहाँ परमान्न से।
🌸प्रभु ने दीक्षा वन में रखी चंद्रकांतमणि की शिला पर विराजमान हो कर अपने वस्त्र-आभूषणों का त्याग किया , सिध्द परमेष्ठी को नमस्कार कर पंचमुष्ठी केशलोंच किया, सर्व प्रकार के सावद्य-पाप का त्याग कर सामायिक सुत्र पढ़ कर संयम व्रत ग्रहण किया,
🌸सौधर्म इंद्र द्वारा देव दुष्य कंधे पर डाल कर भक्ति-भाव से तीर्थंकर के केशों को अपने उत्तरीय में लेकर क्षीर समुद्र में विसर्जन किया। देवगण ने तीर्थंकर की पूजा भक्ति की।वे अपने अपने स्वर्ग को लौटे।
🌸दीक्षा धारण करते ही तीर्थंकर प्रभु को मनःपर्ययज्ञान की
उपलब्धि हुई, तपोबल से अनेक ऋद्धियों की एकसाथ प्राप्ति हुई। प्रभु केवलज्ञान होने तक परीषहों और उपसर्गों को मौन रहकर सहज भाव से सहन करते हुए तीन वर्ष छद्मस्थ विहार करते हुए बाह्य और अंतरंग तपानुष्ठानोंमें अनुरक्त हुए
तीर्थंकर प्रभु आत्म साधना की गहन भूमिका को प्राप्त कर वापस अपने दीक्षा स्थान पर पधारे। आम्र वृक्ष के निचे समाधिस्थ हो कर खड़े हो गये। कार्तिक शुक्ल द्वादशी को चंद्र के रेवती नक्षत्र में आने पर केवल्योपलब्धि से विभूषित हुए।
🌸केवलोत्पत्तिकाल:अपराह्न,
🌸केवलस्थान:सहस्त्राम्र वन,
हस्तिनापुर,
🌸केवलीकाल:20997 वर्ष,
🌸गणधर संख्या:33,
🌸शासन देव षण्मुख यक्ष,
🌸शासन देवी धारिणी,
🌸साधु संख्या50000,
🌸साध्वियाॅ 60000,
🌸चौदह पूर्व धारी 610,
🌸अवधि ज्ञानी 2600,
🌸मन: पर्यवज्ञानी 2551,
🌸केवलज्ञानी 2800,
🌸वैक्रीयलब्धिधारी 7300,
🌸वादलब्धिवाले 1600,
🌸श्रावक:184000,
🌸श्राविका:3 लाख 72 हजार ,
🌸निर्वाण समय नजदीक जानकर प्रभु श्री अरनाथ स्वामीजी ने सम्मेद शिखर एक हज़ार साधुओं के साथ पधारे और एक माह का अनशन ग्रहण कर मार्गशीर्ष शुक्ला दशमी को चंद्र के रेवती नक्षत्र में आने पर हजार मुनियों के साथ निर्वाण को प्राप्त किया।
🌸अरनाथ भगवान के च्यवन,जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान चारों कल्याणक हस्तिनापुर में ही हुए थे।
🌸प्रभु श्री अरनाथ स्वामी ने कुमार अवस्था, मांडलिक शासन, चक्रवर्ती एवं दीक्षा में समान समान आयु को व्यतीत कर 84 हजार वर्ष का आयुष्य पुर्ण कर निर्वाण को प्राप्त हुए।
🌸तीर्थंकर श्री कुंथुनाथस्वामी के मोक्ष गमन के पश्चात एक करोड़ वर्ष कम पल्योपम के चौथे भाग के बित जाने के बाद प्रभु श्री अरनाथ स्वामी का निर्वाण हुआ।
*ॐ ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्राय नमः*
प्रभु अरनाथ स्वामी का केवलज्ञान कल्याणक हम सभी को मांगलिक रहे।
जिनाज्ञा विरुद्ध अंशमात्र भी लिखा गया है तो त्रीविधे मिच्छा मि दुक्कड़म्
🙏🙏🙏जय जिनेन्द्र सा🙏🙏
भगवन्त कोठारी
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