महावीर के विहार
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03-11-2020
🌻🌺👉 भगवान महावीर स्वामी के सम्यक्त्व प्राप्ति के पश्चात् के प्रमुख सत्ताइस भवों का वर्णन 👈🌺🌺
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🌹 आनंद गाथा पति के यहां बहुला नाम की दासी रात के बर्तनों को साफ करके उसमें निकली हुई खुरचन बाहर फेंकने के लिए जा रही थी।
🌴 उसी समय उसे भगवान दिखाई दिए। उसने पूछा - महात्माजी ! आप यह लेंगे। भगवान ने हाथ बढ़ाए और दासी ने भक्ति पूर्वक वह खुरचन भगवान के हाथों में डाल दी।
🌺 भगवान के पारणे से प्रसन्न हुए देवों ने पांच दिव्यों की वर्षा की और जय जयकार किया।
🌳 जनता हर्ष विभोर हो गई और राजा ने दासी को दासत्व से मुक्त कर दिया।
🌷इंद्र द्वारा भगवान की प्रशंसा से संगम देव रुष्ट🌷
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🌸 भगवान विहार करते हुए दृढ़भूमि से पेढाल गांव पधारे। वहां म्लेच्छ लोग बहुत थे।
🌱 गांव के बाहर पेढाल उद्यान के पोलास चैत्य में प्रभू तेले के सहित प्रवेश किया और एक शीला पर खड़े होकर एक रात्रि की भिक्षु पडिमा स्वीकार कर ध्यानस्थ हो गए।
🌻 उस समय देवेन्द्र सौधर्म देवलोक की सुधर्मा सभा में सामानिक और त्रायस्त्रिंशक आदि देवों की परिषद में बैठे थे।
☘️ उस समय देवेन्द्र ने अपने अवधि ज्ञान से भगवान को पोलास चैत्य मे महाभिक्षु प्रतिमा में देखा। वह सिंहासन से उतरा और बायां घुटना खड़ा रखकर, दोनों हाथ जोड़कर, मस्तक झुकाकर भगवान को वंदना की।
💐 फिर सिंहासन पर बैठकर देवेन्द्र ने कहा - हे देव-देवीयों ! इस भरत क्षेत्र के पेढाल गांव के बाहर भगवान भिक्षु की महाप्रतिमा धारण कर एकाग्रता पूर्वक ध्यान मग्न खड़े है।
🍀 भगवान समिति-गुप्ति से युक्त होकर क्रोध आदि कषायों को नियंत्रित करके उसे नष्ट करने में लगे है।
🌼 उनकी दृढ़ता, निश्चलता, एकाग्रता और उनकी सहनशीलता इतनी है कि जिसे देव, दानव, राक्षस, मनुष्य और तीनों लोक मिलकर भी चलायमान करने में समर्थ नहीं है।
🌹🌷👉 इसके आगे का वर्णन कल लिखने के भाव रखता हूं।
🌺🌸👉 मैं प्रतिदिन भगवान के बारे में जानकारी दें रहा हूं। आप समझ लिजिए कैसे थे हमारे भगवान ?
🙏🏻 उन्होंने छदमस्त अवस्था में कैसे-कैसे परिषहों को समभाव से सहन किया!
🙏🏻🙏🏻 जैसा जीवन उन्होंने जीया वैसा उन्होंने हमें भी जीने का उपदेश दिया। यही महावीर बनने का या मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग है।
🌹 जय जिनेन्द्र सा।
🌹🌹 रमेश मेहता
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06-11-2020
🌺🌺👉 भगवान महावीर स्वामी के सम्यक्त्व प्राप्ति के पश्चात् के प्रमुख सत्ताइस भवों का वर्णन 👈🌺🌺
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🌹🌴👉 कल से आगे पढ़े :-
११) अब संगम भयंकर पिशाच की विकुर्वणा करके उपस्थित हुआ। उसका मुंह गुफा के समान था और उसमें से ज्वालामुखी के समान लपटें निकल रही थी।
🌹 मस्तक के बाद सुखी घास के समान थे। हाथ थंभे के समान और जांघें ताड़वृक्ष के समान लंबी थी। आंखें अंगारे के समान दहक रही थी। दांत पीले और कुदाल के जैसे थे। उसके हाथ में खड्ग था। उसने भी भगवान को बहुत कष्ट दिया। परंतु परिणाम वहीं निकला जो अभी तक निकला था।
१२) अब वह विकराल सिंह बनकर सामने आया। उसकी गर्जना से सारा प्रदेश भयभीत हो गया। वह अपने तीक्ष्ण नाखुनों और वज्र समान दोढों से भगवान के शरीर को छिन्न-भिन्न कर दिया। अंत में वह हारकर ढीला पड़ गया।
१३) अब संगम भगवान के पिता श्री सिद्धार्थ राजा का रुप धारण कर उपस्थित हुआ और कहने लगा :-
🌴 हे पुत्र! यह अत्यंत दुष्कर साधना तुम क्यो कर रहे हो ? यह व्यर्थ का कायाक्लेश है। इससे कोई लाभ नहीं होने वाला है ? मैं दुःखी हो रहा हूं। नंदिवर्धन भी मुझे छोड़कर चला गया है। मैं वृद्ध हूं और भयंकर रोग मुझे सता रहे है। इस वृद्धावस्था में मेरी सेवा करना तुम्हरा परम कर्तव्य है।
🌹 पिता बोलने बंद हुए तो माता सामने आ गई। वह भी अपनी व्यथा सुनाकर विलाप करने लगी और भगवान को घर चलने का आग्रह करने लगीं।
🌹 भगवान पर किसी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ा और संगम का यह प्रयोग भी विफल रहा।
🌹🌺👉 इसके आगे के भाव कल लिखने के भाव रखता हूं।
🌹 जय जिनेन्द्र सा।
🌹🌹 रमेश मेहता
🌹🌹🌹
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