पंच परमेष्ठी के भाव:
1.5 पदों में देव के गुण कितने ?
*🅰बीस।*
2.स्वयं दिक्षित होने वाले पद ?
*🅰अरिहंत।*
3.केवलज्ञान केवलदर्शन है लेकिन एक भी शिष्य नहीं ?
*🅰सिद्ध।*
4.साधक पद वाले कितने ?
*🅰तीन। (प्रथम दो छोड़कर)*
5.भरतक्षेत्र में अभी कितने पद वाले हैं ?
*🅰तीन।(प्रथम दो को छोड़कर)*
6.जम्बुद्वीप में कितने पद वाले हैं ?
*🅰चार।(सिद्ध को छोड़कर)*
7.आचार्य,उपाध्याय,साधु को कितने ध्यान रहते हैं ?
*🅰प्रथम तीन।*
8.5 पद में से नियमा देवलोक में कौन जाते हैं ?
*🅰कोई नहीं।*
9.5 पद में से चश्में की जरूरत किस को पड़ती है ?
*🅰अन्तिम तीन पद को।*
10.श्रीपाल महाराज की माताजी के सम्बधनजी के ससुरजी के बेटे के साले का नाम क्या ?
*🅰पुण्यपालji
1
(विषय: नमस्कार महामंत्र)
प्रश्नपत्र-11
1. अरिहंत के भाव कितने पाए जाते हैं?
उ. अरिहंत में भाव 3 पाए जाते हैं - औदयिक, क्षायिक और पारिणामिक।
2. सिद्ध के भाव कितने पाए जाते हैं?
उ. सिद्धके भाव 2 क्षायिक और पारिणामिक।
3. आचार्य के भाव कितने पाए जाते हैं?
उ. आचार्य के सभी 5 भाव पाए जाते हैं।
4. उपाध्याय के भाव कितने पाए जाते हैं?
उ. उपाध्याय के सभी 5 भाव पाए जाते हैं।
5. साधु के भाव कितने पाए जाते हैं?
उ. साधु के सभी 5 भाव पाए जाते हैं।
विवेचन:
कर्मों के संयोग (उदय, पारिणामिक) या वियोग (उपशम, क्षय और क्षयोपशम) से होने वाली आत्मा की अवस्था को भाव कहते हैं।
कुल पांच भाव होते हैं- औदयिक, औपशमिक, क्षायोपशमिक, क्षायिक और पारिणामिक।
कर्म वर्गणा का पाक हो जाता है तो वे उदय में आते हैं उससे होने वाली आत्मा की अवस्था औदयिक भाव या उदय निष्पन्न है। आठों कर्मों का उदय 14वें गुणस्थान तक रहता है।
मोह के अभाव को उपशम कहते हैं। उपशम से होने वाली आत्मा की अवस्था औपशमिक भाव या उपशम निष्पन्न है। उपशम मोहनीय कर्म का चौथे से 11वें गुणस्थान तक होता है।
कर्मों का समूल विनष्ट हो जाना क्षय कहलाता है। उस क्षय से होने वाली आत्मा की अवस्था क्षायिक भाव या क्षय निष्पन्न है। क्षय आठों कर्म का होता है। मोहनीय का क्षय 12वें गुणस्थान में होता है। ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय और अंतराय कर्म का क्षय 13वें गुणस्थान में होता है। चारों अघाती कर्मों का क्षय 14वें गुणस्थान के बाद होता है।
उदयावलिका में प्रविष्ट घाती कर्म का क्षय और उदय में न आए हुए कर्म का उपशम (विपाकोदय में न आना) क्षयोपशम कहलाता है। उस क्षयोपशम से होने वाली आत्मा की अवस्था क्षायोपशमिक भाव या क्षयोपशम निष्पन्न है। क्षयोपशम चारों घाती कर्मों का होता है। ज्ञातव्य है कि उपशम में प्रदेशोदय नहीं रहता जबकि क्षयोपशम में प्रदेशोदय रहता है।
कोई भी स्वभाव में परिणित होने को पारिणामिक भाव कहते हैं। जैसे कोई रंग फीका पड़ गया या जैसे सयोगी का अयोगी हो जाना पारिणामिक भाव हैं। पारिणामिक भाव जीव और अजीव दोनों का होता है। जाति, योग, उपयोग आदि जीवाश्रित और शब्द, रस आदि अजीवाश्रित पारिणामिक भाव हैं। जीव में ही नहीं, अजीव में भी एक भाव पारिणामिक होता है। पुद्गल का भी क्षण क्षण परिणमन होता है।
पंच परमेष्ठी के भाव:
1 अरहंत में तीन भाव पाऐ जाते हैं
# 13वें गुणस्थान में उदय के 33 बोल में से बोल 7 पाते हैं- मनुष्य गति, त्रसकाय, शुक्ल लेश्या, आहारता, संसारता, असिद्धता और सयोगिता। 14वें गुणस्थान में आहारता, सयोगिता और लेश्या कम होकर बाकी के चार बोल पाते हैं।
# क्षायिक के 13 बोल मे से 9 (आत्मिक सुख, अटल अलगाहन, अमूर्तिपन और अगुरुलघुत्व को छोड़कर) पाते हैं।
पारिणामिक के 10 में से 7 बोल (इन्द्रिय, कषाय, वैद को छोड़कर); 14वें गुणस्थान में योग और लेश्या भी कम हो जाते हैं।
2 सिद्धों मे दो भाव पाऐ जाते हैं
क्षायिक के 13 में से 8 ( पांच लब्धि , क्षायिक चारित्र को छोडकर । पांच लब्धि के स्थान पर आठवां गुण अंतराय रहित )
पारिणामिक के 10 में से 3 बोल - ज्ञान, दर्शन और उपयोग।
3-4-5 ) आचार्य, उपाध्याय एवं साधु में पांचो भाव पाऐ जाते हैं ।
उदय के 33 में से 25 बोल। तीन गति पांच काय को छोड़कर ।
उपशम के 8 में से 8 बोल (11वें गुणस्थान तक)
क्षायिक के 13 मे से 9 (आत्मिक सुख, अटल अलगाहन, अमूर्तिपन और अगुरुलघुत्व को छोड़कर) पाते हैं।
क्षयोपशम के 32 में से 32
पारिणामिक के 10 में से 10
इनके केवली हो जाने पर उनके भी अरिहंत के समान ही तीनों भाव पाते हैं।
प्रश्नपत्र-12
1. अरिहंत के पासणिया कितने पाए जाते हैं?
उ. अरिहंत में पासणिया 2 पाए जाते हैं - केवल ज्ञान और केवल दर्शन।
2. सिद्ध के पासणिया कितने पाए जाते हैं?
उ. सिद्ध के पासणिया 2 पाए जाते हैं - केवल ज्ञान और केवल दर्शन।
3. आचार्य के पासणिया कितने पाए जाते हैं?
उ. आचार्य के 7 पासणिया पाए जाते हैं।
4. उपाध्याय के पासणिया कितने पाए जाते हैं?
उ. उपाध्याय के 7 पासणिया पाए जाते हैं।
5. साधु के पासणिया कितने पाए जाते हैं?
उ. साधु के 7 पासणिया पाए जाते हैं।
पासणिया शब्द का उपयोग पन्नवणा, भगवती, नंदी आदि कई आगमों में हुआ है। पासणिया का अर्थ है गहराई से देखना। 12 उपयोग में से 9 उपयोग (मति ज्ञान, मति अज्ञान और अचक्षु दर्शन को छोड़कर) पासणिया हैं। उपयोग की तरह ही पासणिया भी दो प्रकार के हैं साकार और अनाकार पासणिया। उपयोग और पासणिया में अंतर यही है कि उपयोग वर्तमान दर्शी (मति ज्ञान, मति अज्ञान) और अस्पष्ट (अचक्षु दर्शन)भी होते हैं। पासणिया दीर्घकालिक व स्पष्ट होते हैं इसीलिए मति ज्ञान, मति अज्ञान और अचक्षु दर्शन को पासणिया की श्रेणी में नहीं लिया गया है।
साकार पासणिया के 6 भेद हैं- श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन:पर्यवज्ञान, केवलज्ञान, श्रुत अज्ञान और विभंग अज्ञान।
अनाकार पासणिया के तीन भेद हैं- चक्षु दर्शन, अवधिदर्शन और केवल दर्शन।
अरिहंत, सिद्ध में केवल ज्ञान और केवल दर्शन- ये दो पासणिया पाए जाते हैं।
आचार्य, उपाध्याय और साधु में 7 पासणिया पाए जाते हैं। सम्यक्त्वी होने के कारण इनमें 9 पासणिया में से श्रुत अज्ञान और विभंग अज्ञान नहीं पाए जाते। केवली हो जाने पर उनमें भी केवल ज्ञान और केवल दर्शन- ये दो पासणिया ही पाए जाते हैं।
प्रश्नपत्र-13
1. अरिहंत में समुद् घात कितनी पाती हैं?
उ. अरिहंत में समुद् घात नहीं पाती।
2. सिद्ध में समुद् घात कितनी पाती हैं?
उ. सिद्ध में समुद् घात नहीं पाती।
3. आचार्य में समुद् घात कितनी पाती हैं?
उ. आचार्य में समुद् घात 7 पाती हैं।
4. उपाध्याय में समुद् घात कितनी पाती हैं?
उ. उपाध्याय में समुद् घात 7 पाती हैं।
5. साधु में समुद् घात कितनी पाती हैं?
उ. साधु में समुद् घात 7 पाती हैं।
विवेचन:
शरीर को छोड़े बिना आत्मप्रदेशों को शरीर से बाहर निकालने और फैलाने को समुद् घात कहते हैं। समुद्घात सात हैं-
1. वेदनीय- असह्य वेदना से
2. कषाय- तीव्र क्रोधादि कषाय से
3. मारणान्तिक- मरणांतिक कष्ट से
4. वैक्रिय- वैक्रिय लब्धि का प्रयोग करने से
5. तैजस- तेजो लेश्या का प्रयोग करने पर
6. आहारक- आहारक लब्धि का प्रयोग करने से
7. कैवल्य- आयुष्य कर्म अल्प और अन्य कर्म अधिक होने पर अंतिम अंतर्मुहूर्त्त में केवली समुद्घात होती है। केवली समुद्घात करते नहीं हैं, यह अपने आप घटित होती है।
अरिहंत और सिद्ध में समुद्घात नहीं पाती। केवली में समुद्घात 1 केवली समुद्घात पाती है। छठे गुणस्थान में केवली समुद्घात को छोड़कर समुद्घात 6 पाती हैं। 7 से 10 गुणस्थान में समुद्घात 3 प्रथम पाती हैं। 13वें गुणस्थान में एक केवली समुद्घात पाती है। 14वें में समुद्घात नहीं पाती।
प्रश्नपत्र-14
1. पांच पदों में नो संयति नो असंयति कौन?
उ. सिद्ध भगवान न तो संयति हैं और न ही असंयति। उन्हें नो संयति नो असंयति कहा जाता है। संयति का अर्थ है- संयमी, महाव्रती, पूर्णव्रती साधु-साध्वी। असंयति का अर्थ है- अव्रती। सिद्ध न तो संयति हैं और न असंयति।
2. पांच पदों में अनिन्द्रिय कौन?
उ. अरिहंत और सिद्ध। सिद्धों के न शरीर होता है और न इन्द्रियां। अरिहंत के शरीर भी होता है और इन्द्रियां भी किन्तु केवल ज्ञान प्राप्त होने से उनके इन्द्रिय ज्ञान की अपेक्षा नहीं रहती। इसलिए उन्हें भी अनिन्द्रिय या नो इन्द्रिय कहते हैं।
3. अरिहंत पदवी सावद्य है या निरवद्य?
उ. अरिहंत पदवी सावद्य निरवद्य दोनों नहीं।
4 . साधु की पदवी सावद्य है या निरवद्य?
उ. उज्ज्वलता और करणी दोनों दृष्टि से साधु की पदवी निरवद्य है।
5. केवली की पदवी सावद्य है या निरवद्य?
उ. केवली की पदवी उज्ज्वलता की दृष्टि से निरवद्य है।
विवेचन:
कुल 23 पदवी होती हैं:
7 एकेन्द्रिय रत्न: 1. चक्र, 2. छत्र, 3. चर्म ,4. दंड , 5.खड्ग ,6. मणि ,7. काकणी
7 पंचेन्द्रिय रत्न: 8. सेनापति , 9. गाथापति , 10. बढ़ई , 11. पुरोहित, 12. स्त्री, 13. अश्व , 14. गज।
15. तीर्थंकर, 16.चक्रवर्ती , 17.वासुदेव , 18. बलदेव , 19. मांडलिक राजा , 20. केवली , 21. साधु , 22. श्रावक और 23. सम्यक् दृष्टि ।
इन 23 में से अंतिम 4 पदवी निरवद्य हैं बाकी की पदवी सावद्य निरवद्य दोनों नहीं। केवली पदवी चारों घाती कर्म के क्षय से निष्पन्न है। साधु पदवी चारित्र मोहनीय कर्म के उपशम, क्षय, क्षयोपशम से निष्पन्न है। श्रावक पदवी चारित्र मोहनीय कर्म के क्षयोपशम से निष्पन्न है और सम्यक् दृष्टि दर्शन मोहनीय कर्म के उपशम, क्षय, क्षयोपशम से निष्पन्न है। इन चारों पदवियों की कामना करना चाहिए। हम इन पदवियों को अवश्य पाएं।
बाकी 19 पदवी नाम कर्म के उदय से निष्पन्न है। इन पदवियों की कामना नहीं करनी चाहिए।
1. अभवी जीव पंच परमेष्ठी के कितने पद प्राप्त कर सकते हैं?
उ. अभवी जीव पंच परमेष्ठी का एक भी पद नहीं पा सकता। अभवी सम्यक्त्वी नहीं हो सकता और बिना सम्यक्त्व के चारित्र ग्रहण नहीं कर सकता। हां, व्यवहार में अभवी साधु वेश धारणकर उपाध्याय, आचार्य बन भी सकता है । ऐसा व्यक्ति भारी तपस्या कर काल पूरा करे तो नव ग्रेवेयक तक भी जा सकता है किन्तु न तो पांच अनुत्तर विमान में जा सकता है और न मोक्ष में ही जा सकता है।
2. क्या कोई श्रावक अपने जीवन में अरिहंत पद पा सकता है?
उ. नहीं, श्रावक उस जीवन में अरिहंत नहीं बन सकता। क्योंकि श्रावक का पांचवा गुणस्थान होता है और अरिहंत अपने जीवन में कभी पांचवा गुणस्थान स्पर्श नहीं करते। वे सीधे महाव्रत ही स्वीकार करते हैं। दीक्षा लेते ही सातवां गुणस्थान आता है। अंतर्मुहूर्त्त में छठे गुणस्थान में आते हैं।
3. क्या कोई श्रावक अपने जीवन में सिद्ध पद पा सकता है?
उ. सिद्ध पद साधु ही प्राप्त कर सकता है। यदि श्रावक आगे जाकर साधु बन जाए या उसमें माता मरूदेवा की तरह "भाव साधुपन" आ जाए तो आयुष्य पूर्ण कर सिद्ध पद पा सकता है।
4. पंच परमेष्ठी की दृष्टि कौन सी होती है।
उ. दृष्टि तीन प्रकार की होती है- सम्यग् दृष्टि, सम्यग्-मिथ्या दृष्टि और मिथ्या दृष्टि। पांचों ही परमेष्ठी की दृष्टि केवल सम्यक् दृष्टि होती है।
5. पंच परमेष्ठी में वीर्य कौन सा पाया जाता है?
उ. व्रतधारण की अवस्था को वीर्य कहते हैं। वीर्य तीन प्रकार का है- बाल वीर्य, बाल-पंडित वीर्य और पंडित वीर्य। पहले से चौथे गुणस्थान तक बाल वीर्य होता है। पांचवें में बाल-पंडित वीर्य और इसके ऊपर के गुणस्थानों में पंडित वीर्य होता है। सिद्धों के वीर्य नहीं होता। बाकी चारों ही परमेष्ठी में एक ही वीर्य- पंडित वीर्य पाया जाता है।
प्रश्नपत्र-16
1. अरहंत किसे कहते हैं?
उ. जो आत्माएं चार घनघाति कर्म का क्षयकर राग-द्वेष रूपी कर्म शत्रुओं का नाश कर केवलज्ञान प्राप्त कर लेते हैं और धर्म की प्ररूपणा करते हैं, चार तीर्थ की स्थापना करते हैं उन्हें अरहंत कहते हैं। सभी केवलज्ञानी अरहंत नहीं होते। तीर्थंकरों को अरहंत कहते हैं। ये तीर्थंकर नाम कर्म के उपार्जन से होते हैं।
2. केवलज्ञान किसे कहते हैं?
उ. सम्पूर्ण ज्ञान को। केवलज्ञान से भूत, भविष्य, वर्तमान सब कुछ जाना जाता है। यह अनंत ज्ञान है, अबाध ज्ञान है। केवल ज्ञान आत्मा का एक मूल गुण है जो ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय हो जाने प्रकट हो जाता है।
3. अरहंतों को और किस नाम से जाना जाता है?
उ. अरहंतों को अर्हत्, अरिहंत, अरुहंत, तीर्थंकर, जिन, आदि नामों से जाना जाता है। सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, वीतराग, केवली शब्द अरहंत के लिए पर्याप्त नहीं हैं। ये शब्द सामान्य केवली के लिए काम में लेते हैं। वीतराग तो छद्मस्थ भी हो सकते हैं।
4. हमारे देव कौन हैं?
उ. तीन अनमोल रत्न माने गये हैं- देव, गुरु और धर्म। इनमें हमारे देव हैं अरहंत।
5. देव से क्या तात्पर्य है?
उ. श्रेष्ठ पुरुष या सर्वज्ञ को देव कहते हैं।
प्रश्नपत्र-17
1. अरहंत साकार है या निराकार?
उ. साकार।
2. नमस्कार महामंत्र में अरहंत का कौन सा पद है?
उ. पहला।
3. अरहंत भगवान क्या नहीं देखते?
उ. स्वप्न नहीं देखते।
4. क्या वर्तमान में अरहंत भगवान विद्यमान हैं?
उ. हमारे भरत क्षेत्र में तो नहीं हैं किन्तु पांच महाविदेह क्षेत्र में सीमंधर स्वामी आदि 20 अरंहत विद्यमान हैं उन्हें 20 विहरमान भी कहा जाता है।
5. हमारे यहां अभी कौन से अरहंत का शासन (बरतारा) चल रहा है?
उ. हमारे भरतक्षेत्र में अभी भगवान महावीर का शासन चल रहा है। इस क्षेत्र में इस अवसर्पणी काल में चौबीस तीर्थंकर हुए। पहले ऋषभ और अन्तिम महावीर स्वामी।
प्रश्नपत्र-18
1. पंच परमेष्ठी का दंडक कौन कौन सा है?
उ. सिद्धों के दण्डक नही होता। बाकी चारों परमेष्ठी का दण्डक इक्कीसवां मनुष्य पंचेन्द्रिय का।
संसारी जीवों 4 गति, 24 दंडक और 84 लाख जीवयोनि में भटकते रहते हैं।जहां प्राणी अपने किए हुए कर्मों का दंड भोगता है उसे दंडक कहते हैं। नाम कर्म के उदय से दंडक मिलता है।
2. कितने परमेष्ठी नींद लेते हैं ?
उ. तीन- आचार्य, उपाध्याय और साधु तीनों नींद लेते हैं किन्तु केवली हो जाने पर नींद नहीं लेते। नींद दर्शनावरणीय कर्म के उदय से आती है। अत: केवली, अरिहंत और सिद्ध नींद नहीं लेते।
3. कितने परमेष्ठी आहार करते हैं।
उ. सिद्ध को छोड़कर चारों परमेष्ठी आहार करते हैं।
4. कितने परमेष्ठी निराकार हैं और कितने साकार ?
उ. सिद्ध निराकार हैं और सिद्ध को छोड़कर चारों परमेष्ठी साकार हैं।
5. कितने परमेष्ठी मनुष्य हैं और कितने देवता?
उ. सिद्ध को छोड़कर चारों परमेष्ठी मनुष्य हैं। सिद्ध भगवान हैं। लौकिक देवता परमेष्ठी की श्रेणी में नहीं आते। अरहंत लोकोत्तर देव कहलाते हैं किन्तु होते वे भी मनुष्य ही हैं।
प्रश्नपत्र-19
1. नमस्कार महामंत्र में कितने पद्य और अक्षर हैं?
उ. पांच पद्य और पैतीस अक्षर। पूरे (वृहद्) महामंत्र में 9 पद और 68 अक्षर हैं।
2. नमस्कार महामंत्र के किस पद में कितने कितने अक्षर हैं
उ. पहले पद में 7, दूसरे पद में 5, तीसरे पद में 7, चौथे पद में 7 और पांचवें पद में 9 अक्षर हैं। इस प्रकार नमस्कार महामंत्र में कुल 35 अक्षर हैं।
3. नव पद किसे कहते हैं?
उ. ऐसो पंचणमुक्कारो के चार पदों सहित सहित पूरे नमस्कार महामंत्र में नव पद हैं।
4. नमस्कार महामंत्र में कितने अक्षर लघु, गुरु, हर्स्व और दीर्घ हैं?
उ. इस संबंध में गणाधिपति गुरुदेव तुलसी का यह पद्य याद रखने योग्य है-
नमस्कार के पांच पद, अक्षर हैं पैंतीस।
ग्यारह लघु चौबीस गुरू पनर दीर्घ ह्रस्व बीस।
5. नमस्कार महामंत्र में लघु अक्षर कौन कौन से हैं?
उ. णमो अरहंताणं में- ण, अ और र- 3
णमो सिद्धाणं में- ण - 1
णमो आयरियाणं में- ण, य और रि- 3
णमो उवज्झायाणं में - ण, उ - 2
णमो लोए सव्व साहूणं में- ण और व- 2
3+1+3+2+2=11 अक्षर लघु हैं।
प्रश्नपत्र-20
1. नमस्कार महामंत्र में गुरु अक्षर कौन कौन से हैं?
उ. नमस्कार महामंत्र के 35 में से उपर्युक्त 11 लघु अक्षरों को छोड़कर महामंत्र के 35 अक्षरों में शेष सभी 24 अक्षर गुरु हैं।
2. नमस्कार महामंत्र में दीर्घ अक्षर कौन कौन से हैं?
उ. णमो अरहंताणं में- मो, हं और ता - 3
णमो सिद्धाणं में- मो और द्धा - 2
णमो आयरियाणं में- मो, आ और या - 3
णमो उवज्झायाणं में - मो, झा और या - 3
णमो लोए सव्व साहूणं में- मो, लो, सा और हू - (3+2+3+3+4=)15 अक्षर दीर्घ हैं।
3. नमस्कार महामंत्र में हर्स्व अक्षर कौन कौन से हैं?
उ. उपर्युक्त 15 दीर्घ अक्षरों को छोड़कर महामंत्र के 35 अक्षरों में शेष सभी 20 अक्षर हर्स्व हैं।
4. नमस्कार महामंत्र में कितना ज्ञान समाया हुआ है?
उ. जैन परम्परा के अनुसार नमस्कार महामंत्र में चौदह पूर्व का सार समाया हुआ है।
5. "अ सि आ उ सा" मंत्र में किनको नमस्कार किया है?
उ. यह नमस्कार महामंत्र का ही लघु रूप है और इसमें भी पंच परमेष्ठी को ही नमस्कार किया गया है।
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