नवकार मंत्र

नवकार मंत्र का सबसे पहला  उल्लेख कहाँ मिलता hai❓
Ana🔟--खार्वेल्ल के  शिलालेख मैं.

*1)🦚 नवकार मंत्र से शुली का सिंहासन किसका हुआ ⁉          *🅰🎁 सुदर्शन सेठ*

*2)🌹नवकार मंत्र से अग्नि का सिंहासन किसका हुआ⁉*
 *🅰✈ अमर कुमार*

*3)🏕 नवकार मंत्र के प्रभाव से सर्प का फुलो का हार किसका हुआ ⁉*
 *🅰🌹 सति सोमाजी ( श्रीमति जी )*

*4)🦚 नवकार मंत्र से अग्नि का नीर कर दिना*⁉
 🅰🕉 *सति सीताजी*

*5) ✈ नवकार मंत्र के प्रभाव से चंपानगरी के द्धार खोल दिने*⁉
 🅰🎁 *सति सुभद्रा जी*

*6)🙏 नवकार मंत्र के प्रभाव से मेरा कुष्ट रोग मिट गया*⁉
 🅰🏕 *श्रीपाल राजा*

 *7)🦚 नवकार मंत्र का प्रभाव कितने लोक मे है*⁉
 🅰🦚 *तीनो लोक मे*

*8)🕉 नवकार मंत्र के स्मरण पुर्वक मृत्यु पाने वाला जीव मरकर कहा जाता है*⁉
*🅰✈मनुष्य या देवगति*

*9)🙏नवकार मंत्र के रचियता कौन है*⁉
*🅰🦚यह मंत्र अनादि से चला आ रहा है अतः इसका कोइ रचियता नही है*

*10)🏕 नवकार मंत्र के जाप  का क्या साधन है*⁉
 *🅰🌹 माला या अनानुपुर्वी*

*11)🏆 नवकार का छोटा रुप क्या है*⁉
 🅰🎁 *असिआउसा*

*12)✍ नवकार मंत्र मे छद्मस्थ कितने*⁉
 🅰🙏 *तीन पद ( आचार्य  उपाध्याय व साधु)*

*13)✈ नवकार मंत्र का स्मरण करने से कितने सागरोपम से संचित पापो का नाश होता है*⁉
: 🅰🏕 *500*

*14)🕉 इस युग मे नवकार मंत्र का सर्व प्रथम प्रणयन किसने किया*⁉
*🅰🕉भगवान ॠषभदेवजी*

*15)🏆 नवकार मंत्र मे चैतन्य पद कोनसे है*⁉
 *🅰🦚 पाचो पद*

*16)🏕 नवकार मंत्र को सर्वोपरि मंत्र क्यो माना गया है*⁉
*🅰✍ क्योकि चौदह पुर्व का सार है*

*17)🕉 नवकार मंत्र का स्मरण कितनी गति वाले जीव कर सकते है*⁉
 🅰🙏 *चारो गति वाले*

*18)🦚 नवकार मे गणधर  किस पद मे आते है*⁉
: 🅰✈ *णमो आयरियाणं*

*19)🙏 नवकार मंत्र के अधिष्टायक देव का नाम बताओ⁉                   🅰🏆 *विमलेश्वर देव*

*20)🕉संपुर्ण नवकार मे अक्षर कितने*⁉
 *🅰🙏68 अक्षर*

*21)  नवकार मंत्र के पाच पद के गुण कितने*⁉
 *🅰🏕108 गुण*

*22)🙏 नवकार मंत्र पर प्रार्थना की एक पंक्ति लिखो*⁉
*🅰✍ नवकार मंत्र है महामंत्र इस मंत्र की महिमा भारी है*

*23)🎁नवकार मे पहले अरिहंत को क्यो नमन किया है*⁉
*🅰✍क्योकि अरिहंत मोक्ष मार्ग एवं मुक्त जीवो के स्वरुप को बताते है*

*24)🏕 नवकार मंत्र के प्रभाव से तिर्यंच गति से देव गति मे कोन गये*⁉
 🅰🙏 *नाग नागिन का जोडा ( देवी पद्मावतीजी व देव धरणेन्द्रजी बने*)

*25)🕉 नवकार मंत्र का ऐक पद सुनकर किसको पुर्व भव याद आया*⁉
*🅰🦚 सुदर्शना राजकुमारी*


णमोकार मन्त्र किसे कहते हैं, यह किस भाषा एवं किस छंद में लिखा गया है? जिस मन्त्र में पाँचों परमेष्ठियों को नमस्कार किया गया हो, वह णमोकार मन्त्र है। यह प्राकृत भाषा एवं आर्या छंद में लिखा गया है।

*टोपीक :- नवकार 🦚*


1  नवकार गिनने से ........सागरोपम नरक के पाप टूटते है
उतर। 500

2    नवकार में म नो बार आता है जो .... मोक्ष का भेद स्वरूप है
उतर मोक्ष

3  जिसके मन मे नवकार उसे किया करेगा.......
उतर संसार

4 नवकार में .................यह 3 तत्व रहते है

उतर देव गुरु धर्म

5  नवकार में  ........का समावेश होता है
उतर पंसपरमेष्ठी

6  नवकार के 1 अक्सर के स्मरण से .......सागरोपम का पाप मिटता है
उतर।  सात

7 नवकार के प्रभाव से सर्प .........बना
उतर धरणेन्द्र

8  नवकार के ........पद में नवकार का फल बताया हुआ है
उतर। सातवे

9  नवकार वाली........विद्या और ........मंत्र से अभिमंत्रित होनी साहिये
उतर। वर्धमान ,,सूरी

10  1 लाख नवकार जो विधि पूर्वक गिनता है.........नामकर्म उपजन करता है
उतर तीर्थकर

11  108 नवकार गिनने से   .............सागरोपम के पाप मिटते है

उतर। 54 हजार
12  नवकार में .....प्रकार के देवो को नमस्कार किया हुआ है। P
उतर दो

13  नवकार में ......सपड़ाये है
उतर  आठ

14   नवकार में बताए हुए 5 परमेष्टि के गुण .............हिट है
उतर। एक सो आठ

15   .......... के नवकार गिनने से सर्प फूल की माला बनी
उतर श्रीमती

16   3 नवकार गिनने से परमात्मा की 2 बार ........की पूजा होती है
उतर। नव अंग

17  नवकार के प्रभाव से.        ......  मरकर  राजकुमारी हुई
 उतर समडी

18  5 पद के axsar ......होते है
उतर पैतीस

19  नवकार मंत्र ........तीर्थ के सारभूत है
उतर। अड़सठ

20   नवकार महामन्त्र के 14 स्वर में....... स्वर है
उतर। सात

21  नवकार महामन्त्र के प्रत्येक axsar में.............विद्या देवी होती है
उतर एक हजार आठ

22   नवकार में ........प्रकार के गुरुओ को नमस्कार किया हुआ होता है
उतर। तीन

23  नवकार के प्रभाव से ........के सुल का सिंहासन बना
उतर सुदरसन सेठ

24 नवकार तू से मारो  .....तारे मारे गनी.....
 उतर भाई ,सगाई

25   सर्व परमेष्ठी  के नाम से बना हुआ 1 शब्द .......है
उतर  ॐ ओम

26  नवकार में दूसरे पद का पूजन .........  रत्न से होता है
 उत्तर माणिक
27  नवकार में ........तत्वों का समावेश है
उत्तर पांच

   
1  जैन धमॆ का महामंत्र कौन सा है ?
नवकार मंत्र 
2 नमस्कार मंत्र कब से प्रारंभ हुआ ?
अनादिकाल से।
3 नमस्कार मंत्र मे किसे नमस्कार किया है ?
पाँच पदो को।
4 चौदह पूवोॅ का सार किसमे है?
नवकार मंत्र मे।
5  सभी मंगलो मे प्रथम मंगल कौन सा है ?
नवकार मंत्र ।
6 मंगल किसे कहते है ?
जो पापो को नष्ट करे ।
7 सामायिक सूत्र का प्रथम पाठ कौन सा है ?
नवकार मंत्र ।
8 नवकार मंत्र क्या करता है ?
सभी पापों का नाश करता है।
9 नवकार मंत्र मे कितने अक्षर होते है ?
68 (अड़सठ )
10 नवकार मंत्र के पाँचो पदो मे कितने अक्षर होते है?
35 ( पैंतीस )
11 नवकार मंत्र किन किन शास्त्रों से लिया गया है ?
1)भगवती सूत्र 2) कल्पसूत्र 3) आवश्यक सूत्र 4) चन्द्रप्रज्ञप्ति सूत्र 5) सूयॆप्रज्ञप्ति सूत्र 6) जंबुदीपप्रज्ञप्ति सूत्र ।
12 नमस्कार मंत्र शाश्वत है या  अशाश्वत है ?
शाश्वत।
13 णमो का अथॆ क्या है ?
नमस्कार ।
14 नमस्कार किसलिये किया जाता है ?
अंहकार हटाने के लिए।
15 नमन कितने योगों से होता है?
तीन योगों से ।
16 नमस्कार मंत्र मे कितने पद चश्मा लगा सकते हैं ?
तीन  आचार्य ,उपाध्याय, साधु ।
  17 नमस्कार मंत्र मे कितने पद के संहनन संस्थान होते है?
चार  अरिहंत ,आचायॅ , उपाध्याय,साधु ।
18 नमस्कार मंत्र मे तीन योगों का सम्मिलन किस प्रकार होता हैं ?
काया से झुकना , वचन से नमस्कार बोलना,
       मन से अभिमान हटाना ।
19  नमस्कार करने से क्या लाभ होता है ?
1 पुण्य का बंध होता है,
 2  अशुभ कमॅ की निजॅरा होती है,
  3 गुणग्राहकता  बढ़ती है,
  4 मोक्ष प्राप्त होता है,
  5 विनम्रता आती है ,
  6 नीच गोत्र का क्षय होता हैं .
20 नवकार मंत्र मे कितने पद होते है?
पाँच पद।
21नमस्कार मंत्र मे कितने पद सम्यगदृष्टि है ?
पाँचों पद
22 नमस्कार मंत्र मे कितने पद सवेदी है ?
तीन पद - आचायॅ ,उपाध्याय,साधु।
23नमस्कार मंत्र मे कितने अवेदी है?
दो पद - अरिहंत,सिध्द।
24नमस्कार मंत्र मे कितने पद संज्ञी है?
चार पद - अरिहंत,आचायॅ,उपाध्याय,साधु।
25नमस्कार मंत्र मे कितने पद  समुदगात करते है?
चार पद  - अरिहंत,आचायॅ,उपाध्याय,साधु।
26नमस्कार मंत्र मे कितने पद समुदगात नहीं  करते है?
एक पद-सिध्द।
27 नमस्कार मंत्र मे कितने पद सइन्द्रिय  है?
तीन पद-आचायॅ,उपाध्याय,साधु।
28नमस्कार मंत्र मे कितने पद अनिन्द्रिय  है?
दो पद-अरिहंत ,सिध्द।
29 अरिहंतो को अनिन्द्रिय   किस अपेक्षा से कहा गया है?
   अरिहंतो को अनिन्द्रिय  इसलिए कहा गया है कि वे अपनी इंद्रियों का उपयोग स्वयं के लिये नहीं करते हैं ।
30 नमस्कार मंत्र मे कितने पद सयोगी है?
चार पद-अरिहंत ,आचार्य ,उपाध्याय,साधु।
31 नमस्कार मंत्र मे कितने पद अयोगी हैं ?
एक पद-सिध्द
32 नमस्कार मंत्र मे कितने पद को परिषह नही आते ?
एक पद - सिध्द
33 नमस्कार मंत्र मे कितने पद सकषायी हैं ?
तीन पद- ,आचार्य उपाध्याय,साधु।
34 नमस्कार मंत्र मे कितने पद अकषायी हैं ?
दो पद-अरिहंत ,सिध्द।
35 नमस्कार मंत्र मे कितने पद कमोॅ की निजॅरा करते हैं ?
चार पद-अरिहंत , ,आचार्य उपाध्याय,साधु।
36 नमस्कार मंत्र मे कितने पद कमोॅ की उदीरणा करते हैं ?
चार पद-अरिहंत,आचार्य
उपाध्याय,साधु।
37 नमस्कार मंत्र मे कितने पदमें
        आठों ही कमोॅ की सत्ता होती हैं ?
तीन पद- ,आचार्य,उपाध्याय,साधु।
38 नमस्कार मंत्र मे कितने पद में उपशम समकित पायी जा सकती हैं ?
तीन पद-आचायॅ,उपाध्याय,साधु।
39 नमस्कार मंत्र मे कितने पद स्वप्न देखते हैं ?
तीन पद- आचार्य ,उपाध्याय ,साधु।
40 नमस्कार मंत्र मे कितने पद निद्रा विजयी हैं ?
दो पद - अरिहंत ,सिध्द ।
41 नमस्कार मंत्र मे कितने पद ईर्यासमिति का पालन करते हैं ?
अरिहंत,आचार्य,उपाध्याय, साधु।
42 नमस्कार मंत्र मे कितने पद पुस्तक पढ़ते हैं ?
  तीन पद - आचार्य ,उपाध्याय, साधु ।
43 नमस्कार मंत्र मे कितने पद प्रतिक्रमण करते हैं ?
तीन - आचार्य ,उपाध्याय,साधु।
44 नमस्कार मंत्र मे कितने पद शाश्वत हैं ?
पाँच पद-अरिहंत ,सिध्द,आचार्य,उपाध्याय,साधु।
45 नमस्कार मंत्र मे कितने पद अशरीरी हैं ?
एक पद-सिध्द भगवान।
46 नमस्कार मंत्र मे कितने पद सम्पूर्ण जीवराशी को प्रत्यक्ष देखते हैं ?
दो पद - अरिहंत ,सिध्द।
47 नमस्कार मंत्र मे कितने पद अकर्मा हैं ?
एक पद-सिध्द भगवान।
48नमस्कार मंत्र मे कितने पद मरते हैं ?
चार पद -अरिहंत, ,आचार्य,उपाध्याय,साधु।
  49 नमस्कार मंत्र मे कितने पद उपदेश देते हैं ?
चारपद -
अरिहंत,आचार्य,उपाध्याय,साधु।
50 नमस्कार पद मे कितने पद दीक्षा देते हैं ?
चार पद - अरिहंत,आचार्य,उपाध्याय,साधु।
51 नमस्कार मंत्र मे कितने पद के कर्म बंधते हैं ?
चार पद - अरिहंत,आचार्य,उपाध्याय,साधु।
52 नमस्कार मंत्र मे कितने पद सदेही हैं ?
चार पद - अरिहंत,आचार्य,उपाध्याय,साधु।
53 नमस्कार मंत्र मे कितने पद के आँखें होती हैं ?
चार पद - अरिहंत,आचार्य,उपाध्याय,साधु।
54 नमस्कार मंत्र मे कितने पद बोलते हैं ?
चार पद-अरिहंत,आचार्य,उपाध्याय,साधु।
55नमस्कार मंत्र मे कितने पद के कर्मो का उदय होता है?
चार पद-अरिहंत,आचार्य,उपाध्याय,साधु।
56नमस्कार मंत्र मे कितने पद उपदेश नहीं देते?
एक पद - सिद्ध भगवान।
57 नमस्कार मंत्र मे कितने पद मे दो ध्यान पाए जाते है?
  तीन पद-आचार्य,उपाध्याय,साधु।
58 नमस्कार मंत्र मे कितने पद आहार नही करते हैं ?
  एक पद - सिद्ध भगवान।
59 नवकार मंत्र मे कितने पद मे छहों लेश्या पायी  जाती हैं ?
तीन पद - आचार्य ,उपाध्याय,साधु।
60 नमस्कार मंत्र मे कितने पद में शुक्ल लेश्या पायी जाती हैं ?
चार पद - अरिहंत,आचार्य,उपाध्याय,साधु।
61 नमस्कार मंत्र मे कितने पद मे लेश्या नही पायी जाती है ?
एक पद - सिद्ध भगवान ।
62 नमस्कार मंत्र मे कितने पद सामायिक चारित्र पाया जाता हैं ?
  तीन पद - आचार्य ,उपाध्याय,साधु।
63 नमस्कार मंत्र मे कितने पद मे दो चारित्र पाये जाते हैं ?
  तीन पद- आचार्य ,उपाध्याय,साधु।
64 नमस्कार मंत्र मे कितने पद वाले जीव अंनत हैं ?
  एक पद - सिद्ध भगवान।
65 नमस्कार मंत्र में कितने पद वाले जीव एक ज्ञान  वाले होते हैं ?
  दो पद अरिहंत,सिध्द ।
66 नमस्कार मे कितने पद साधु प्राप्त कर सकता हैं ?
पाँचों पद।
67 नमस्कार मंत्र मे कितने पद महाविदेह में है?।
चार पद - अरिहंत,आचार्य,उपाध्याय,साधु।
68 नमस्कार मंत्र मे कितने पद अभी भरत ऐरवत क्षेत्र में हैं ?
तीन पद - आचार्य ,उपाध्याय,साधु।
69 नमस्कार मंत्र मे कितने पद देव के कहलाते हैं ?
दो पद-अरिहंत,सिध्द।
70 नमस्कार मंत्र मे कितने पद गुरु के कहलाते हैं ?
तीनपद- आचार्य,उपाध्याय,साधु।
71 नमस्कार मंत्र मे कितने पद देवाधिदेव के कहलाते हैं?
एक पद-अरिहंत ।
72 नमस्कार मंत्र मे कितने पद वाले धर्मदेव कहलाते हैं?
तीनपद-आचार्य,उपाध्याय, साधु।
73 नमस्कार मंत्र मे कित�ने पद वाले असंसार समापन्नक कहलाते है?
एक पद-सिद्ध भगवान ।
74 नमस्कार मंत्र मे कितने पद वाले संसार समापन्नक कहलाते हैं?
चार पद-अरिहंत,आचार्य,उपाध्याय,साधु।
75 पद किसे कहते हैं ?
योग्यता से मिले हुए पुज्य स्थान को पद कहते हैं ।
76 नमस्कार मंत्र के पाँचों पदों मे कितने गुण हैं ?
एक सौ आठ गुण।
77 नमस्कार मंत्र से कौन से तिर्यच दम्पति तिरे ?
नाग-नागिन(धरणेन्द्-पदमावती)
78 नमस्कार मंत्र स्मरण से शुली का सिंहासन किसके बना ?
सुदर्शन सेठ।
79 नमस्कार मंत्र के प्रभाव से कौन से चोर ने विद्या सिद्ध की ?
अंजन चोर
80 नमस्कार मंत्र श्रद्धा पूर्वक
स्मरण से सर्प का पुष्पहार किसने बनाया ?
सती श्रीमती (सोमा सती)
81 नवपद आराधना मे कुष्ट रोग किसका दूर हुआ ?
राजा श्रीपाल ।
82 नवपद आराधना मे खोया हुआ राज्य किसने पाया?
राजा श्रीपाल।
83 पाँच पद मे 'ण''अक्षर कितनी बार आया हैं ?
10 बार
84 नमस्कार पद मे कितने पद मे संस्थान नही होता है?
एक पद - सिद्ध भगवान
85 नमस्कार पद मे कितने पद की शरीर अवगाहना होती है?
चार पद- अरिहंत,आचार्य,उपाध्याय,साधु।
86 नमस्कार पद मे कितने पद सरागी होते है?
तीन पद - आचार्य ,उपाध्याय,साधु।
86 नमस्कार पद मे कितने पद वाले चलते है?
चार पद-अरिहंत,आचार्य,उपाध्याय,साधु।
87 नमस्कार मंत्र मे कितने पद द्रव्य और भाव प्राण वाले होते है?
चार पद-अरिहंत ,आचार्य,उपाध्याय,साधु।
88 नमस्कार मंत्रमे पद केवल भाव प्राण वाले होते है?
एक पद सिद्ध भगवान।
89 नमस्कार मंत्र मे कितने पद ऊध्वलोक में रहते है?
एक पद-सिध्द भगवान।
90 नमस्कार पद मे कितने पद वाले अधोलोक मे पाये जा सकते है?
चार पद
91 नमस्कार मंत्र मे कितने पद लोक मे रहते है?
पाँचो पद
92 नमस्कार मंत्र मे कितने पद मध्य (तिरछा)लोक मे रहते है?
चार पद
93 नमस्कार मंत्र मे कितने पद मुख्य रूप से साध्वी पा सकती है?
तीन पद अरिहंत ,सिद्ध ,साध्वी पद(5वां)
94 नमस्कार पद मे कितने पद वाले नया ज्ञान सीखते है?
तीन पद आचार्य ,उपाध्याय,साधु।
95 नमस्कार मंत्र मे कितने पद वालो के 34 अतिशय होते है?
एक पद - अरिहंत ।
96 नमस्कार मंत्र मे कितने पद वाले क्षीण मोही है?
दो पद अरिहंत ,सिद्ध।
97 नमस्कार मंत्र मे कितने पद वाले छद्मस्थ है?
तीन पद आचार्य ,उपाध्याय,साधु।
98 नमस्कार मंत्र मे कितने पद श्वासोश्वास लेते है?
चार पद अरिहंत,आचार्य,उपाध्याय ,साधु।
99 नमस्कार मंत्र मे कितने पद वालों के कार्मण शरीर होता हैं ?
चार पद - अरिहंत,आचार्य,उपाध्याय,साधु।
100 नमस्कार मंत्र मे कितने पद वाले घातीकर्मो से युक्त हैं?
तीन पद- आचार्य ,उपाध्याय,साधु।
101 नमस्कार मंत्र मे कितने पद वालों को प्रश्न उत्पन होते हैं ?
तीन पद - आचार्य ,उपाध्याय,साधु।
102 नमस्कार मंत्र को मंत्र क्यों कहा गया है?
अक्षर कम एंव भाव अधिक होने से मंत्र कहा गया है....
103 नमस्कार मंत्र के रचियता कौन है?
अनादिकाल से शाश्वत होने के कारण नवीन रचयिता नही होते हैं.....
104 नमस्कार मंत्र के पांचो पद शाश्वत हैं या अशाश्वत हैं ?
चार पद शाश्वत भी है और अशाश्वत भी है।सिद्ध भगवान शाश्वत हैं
105 चार पद शाश्वत किस अपेक्षा से हैं?
5 महाविदेह क्षेत्रों की अपेक्षा से सदाकाल शाश्वत हैं ।
106 चार पद अशाश्वत किस अपेक्षा से हैं ?
5 भरत 5 ऐरावत क्षेत्रों की अपेक्षा 3- 4-5 आरे में ही पाये जाने से
    शेष समय में अशाश्वत हैं...
107नमस्कार मंत्र के कौन से पद में गुरु अपने शिष्य को नमस्कार करते हैं ?
णमो लोए सव्व साहूणं /पांचवे पद के उच्चारण में।
108नमस्कार मंत्र मे णमो शब्द कितनी बार आया हैं ?
6बार
109नमस्कार मंत्र मे 'ण'अक्षर कितनी बार प्रयुक्त हुआ हैं ?
14बार
110 'णमो लोए सव्व साहूणं'को मूल शब्द क्यो कहा गया है?
क्योंकि इसी पद से बाकी पद प्राप्त हो सकते हैं....
111नमस्कार मंत्र मे कितने पद मे नियमा क्षायिक समयक्तवी ही होते हैं?
दो पद में -अरिहंत,सिद्ध।
112 नमस्कार मंत्र मे कितने पद मे क्षायोपशमिक समयक्तव पायी जाती हैं ?
तीन पद -आचार्य,उपाध्याय,साधु।
113नमस्कार मंत्र मे कितने पद मे क्षायिक भाव होता है?
पाँच पदो मे।
114नमस्कार मंत्र मे कितने पद सुक्ष्म जीवों को जानते हैं ?
दो पद - अरिहंत ,सिद्ध।
115नमस्कार मंत्र मे कितने पद मे चारों संज्ञा है?
तीन पद - आचार्य, उपाध्याय,साधु।
116नमस्कार मंत्र मे कितने पद
                       मे चारो संज्ञा नहीं है?
दो पद - अरिहंत,सिद्ध।
117पाँच पद मे 'ण'अक्षर कितनी बार आया है?
10बार
118नमस्कार मंत्र मे कितने पद वाले आहार नही करते हैं?
एक पद सिद्ध ।
119नमस्कार मंत्र मे कितने पद मे दो चारित्र पाये जाते हैं ?
तीन पद आचार्य ,उपाध्याय,साधु।
120नमस्कार मंत्र मे कितने पद के त्रसकाय होती है?
चारपद-अरिहंत,आचार्य,उपाध्याय,साधु।
121नमस्कार मंत्र मे कितने पद अकायिक होते हैं ?
एक पद -सिद्ध।
122नमस्कार मंत्र मे कितने पद जंगम काय कहलाते है?
चार पद-अरिहंत,सिद्ध,आचार्य,उपाध्याय।
123 नमस्कार मंत्र मे कितने पद निद्रा लेते हैं ?
तीन पद- आचार्य,उपाध्याय,साधु।
124 नमस्कार मंत्र मे कितने पद विहार करते है?
चारपद-अरिहंत,आचार्य,उपाध्याय,साधु।
125 नमस्कार मंत्र मे कितने पद आहार करते हैं ?
चार पद-अरिहंत,आचार्य,उपाध्याय,साधु।
126 नमस्कार मंत्र मे कितने पद परिषह सहते हैं ?
चार पद-अरिहंत,आचार्य,उपाध्याय,साधु।
127 नमस्कार मंत्र मे कितने पद वीतरागी होते है?
दो पद-अरिहंत,सिद्ध।
128 नमस्कार मंत्र मे कितने पद वाले चौदह पुर्वो के ज्ञाता होते हैं ?
तीन पद - (श्रुतज्ञानी की अपेक्षा से।)आचार्य,उपाध्याय,साधु।
129 नमस्कार मंत्र मे कितने अलोक मे रहते हैं ?
एक भी नहीं ।
130 नमस्कार मंत्रस्मरण कर चलनी मे पानी किसने निकाला?
सती सुभद्रा।
♥♥♥♥''णमो अरिहन्ताणं''♥♥♥♥
131 नमस्कार मंत्र का प्रथम पद कौन सा है?
णमो अरिहंताण
132'णमोअरिहंताण' में किनको नमस्कार किया गया हैं में?
🙏🙏सादर जय जिनेन्द्र🙏🙏


🙏🙏आज मेरी क्लास का विषय नमस्कार महामंत्र है 🙏🙏
 🅿1⃣श्री नमस्कार महामंत्र गर्भित ' नमस्कार माहात्म्य' की रचना किसने की❓
🅰1⃣सिद्धसेन दिवाकर जी

🅿2⃣श्री नमस्कार महामंत्र में तीन बार कौनसे अक्षर का प्रयोग हुआ है❓
 🅰2⃣ह/र/ल

🅿3⃣नमस्कार महामंत्र में कितने कण्ठय व्यंजनो का प्रयोग हुआ है❓
 🅰3⃣ एक (ग)

🅿4⃣श्री नमस्कार महामंत्र में देव तत्व के कितने गुण हैं❓
🅰4⃣ 20

🅿5⃣ श्री नमस्कार महामंत्र   में गणधर भगवंत की गिनती कौनसे पद में आती है❓
🅰5⃣आचार्य/ तीसरे पद

🅿6⃣श्री नमस्कार महामंत्र की चूलिका कौनसे छंद में रचित है❓
🅰6⃣ अनुष्टुप छंद

🅿7⃣ श्री नमस्कार महामंत्र का पांचवां पद कौन कौनसे गुण का प्रतीक है❓
🅰7⃣ समता/ क्षमा/ परहित

🅿8⃣ श्री नमस्कार महामंत्र में अनुस्वार कितने हैं❓
🅰8⃣ 13

🅿9⃣ श्री नमस्कार महामंत्र में कौनसी न्याय पद्धति का नाम आता है❓
 🅰9⃣ पंच

🅿🔟 श्री नमस्कार महामंत्र के ' णमो' शब्द का कौनसा आक्षर सूर्यवाची है❓
🅰🔟 ण

🅿1⃣1⃣ श्री नमस्कार महामंत्र के ' णमो ' पद से कौनसी सिद्धि प्राप्त होती है❓
🅰1⃣1⃣ अणिमा

🅿1⃣2⃣ श्री नमस्कार महामंत्र के अरिहंत के स्मरण से कौनसे आचार की शुद्धि होती है❓
🅰1⃣2⃣ ज्ञानाचार

🅿1⃣3⃣ श्री नमस्कार महामंत्र में उवज्झायाणं पद को नमस्कार करने से कौनसे कषाय पर विजय प्राप्त होती है❓
🅰1⃣3⃣ मान

🅿1⃣4⃣ श्री नमस्कार महामंत्र में उकारांत व्यंजन कौन कौनसे हैं❓
🅰1⃣4⃣ मु हू

🅿1⃣5⃣ श्री नमस्कार महामंत्र में पहले पद से कौनसी सिद्धि प्राप्त होती है❓
 🅰1⃣5⃣ महिमा

🅿1⃣6⃣ श्री नमस्कार महामंत्र के सिद्ध पद से कौनसा आचार प्राप्त होता है❓ 
🅰1⃣6⃣ दर्शनाचार

🅿1⃣7⃣ श्री नमस्कार महामंत्र में औष्ठय स्थान के कितने व्यंजनो का प्रयोग नहीं हुआ है❓
 🅰1⃣7⃣ तीन

🅿1⃣8⃣ श्री नमस्कार महामंत्र कौनसे पद के स्मरण से तपाचार की शुद्धि होती है❓
 🅰1⃣8⃣  उपाध्याय

🅿1⃣9⃣ श्री नमस्कार महामंत्र के दूसरे पद के जाप से कौनसी सिद्धि प्राप्त होती है❓
🅰1⃣9⃣ गरिमा

🅿2⃣0⃣ श्री नमस्कार महामंत्र के कौनसे पद के स्मरण से वीर्याचार सम्प्राप्त होता है❓
🅰2⃣0⃣ पाँचवे साधु पद से

🅿2⃣1⃣ श्री नमस्कार महामंत्र में उष्माक्षर का प्रयोग कितनी बार किया गया है❓
 🅰2⃣1⃣ आठ

🅿2⃣2⃣ श्री नमस्कार महामंत्र के तीसरे पद के स्मरण से किस आचार की शुद्धि होती है❓
🅰2⃣2⃣ चारित्राचार

🅿2⃣3⃣ श्री नमस्कार महामंत्र के पाँचवे पद के चिंतन से कौनसी सिद्धि प्राप्त होती है❓
 🅰2⃣3⃣ प्राकाम्य

🅿2⃣4⃣ श्री नमस्कार महामंत्र में तालव्य व्यंजनों का उपयोग कितनी बार होता है❓
 🅰2⃣4⃣ चार ( च,ज,झ,य)

🅿2⃣5⃣ श्री नमस्कार महामंत्र के 'मंगलाणं च' पद से कौनसी सिद्धि प्राप्त होती है❓
 🅰2⃣5⃣ वसित्व

🅿2⃣6⃣ श्री नमस्कार महामंत्र में स्वर का उपयोग कितनी बार हुआ है❓
 🅰2⃣6⃣ 06 

🅿2⃣7⃣ श्री नमस्कार महामंत्र की एक नवकारवाली गिनने से कितने सागरोपम के पाप का नाश होता है❓
🅰2⃣7⃣ 54 हजार सागरोपम

नवकार के पांच वे पद के स्मरण से कितने आत्माओं को नमस्कार होता है?

Aलोक के जघन्य 2 हजार करोड़
उत्कृष्ट 9 हजार करोड़ साधुजी साध्वीजी
*

29 🔴 नवकार में ........तत्वों का समावेश है
उतर 🔵  नव 

🔴30 नवकार मन्त्र में शून्य ।।।।।।।।।। बार आता है
🔵तेरा उतर 

🔴31   नवकार की रोज 10 माला ,तिस साल तकगिनने से गिनने वाला ।।।।।।।।। होता है
उतर🔵    करोडपती

32🔴14 पूर्वधारी साधुपन ।।।।।। समय मे नवकार का स्मरण  करते है
उतर 🔵 अंतिम

🔴33   नवकार गिनने के लिए ।।।।।।।।।तप करना जरूरी होता है
🔵   उपधान

🔴34  नवकारसी का पचखान  parate समय ।।।।।।।।।  नवकार गिननी होती है
🔵तीन

35🔴   जघन्य से साढ़े बारा।।।।।।।।। नवकार का जाप करना चाहिये
🔵हजार

🔴36  नवकार की चुलिका में ।।।।।।।  अक्षर होते है
उतर🔵    तेतीस 

🔴37     नवकार में।।।।।।। jodaxsar आते है
🔵सात

38🔴   नवकार में 5 परमेष्ठी नाम अनुसरते  ।।।।।।।।। शब्द आता है
🔵    असीआउसा

39    🔴    नवकार के प्रभाव से ।।।।।।।। ने   सुवर्ण पुरुष को प्राप्त किया
🔵   शिव कुमार 39

40    🔴  नवकार में 5 परमेष्ठी के।।।।।।।। वर्ण है
🔵40    पाच

🔴41    नवकार में आने वाले अंतिम सम्पदा के अक्षर ।।।।।।।।है
🔵    satara  17

🔴42   नवकार के प्रभाव से ।।।।।।।।। 32 लक्षण वाले हुये
🔵  श्री पाल राजा

🔴43    नवकार का आगमिक नाम ।।।।।।।।।।है
🔵    पंचमंगल। महा श्रुत स्कन्ध

🔴44 श्री  बहद नमस्कार स्तोत्र के रासयिता। ।।।।।।।।।।थे
🔵जिन चंद्र सूरी

🔴45         69 का अंक ।।।।।।।।।। पूर्व का सार दर्षाता है
🔵चौदह पूर्व का सार

🔴46    श्री नवकार मन्त्र में ।।।। 14 बार आता है
🔵ण

🔴47  नवकार का जप  करने से पहले ।।।।।।।।।।।। की भावना होनी चाहिये 
🔵   शिव मस्तु सर्व जगत

🔴48   नवकार गिनने के लिए ।।।।।।। की माला सर्व  श्रेष्ठ है
🔵   धागे 

49  🔴      नवकार के पहके 5 पदों को ।।।।।।।।।।।।  कहते है
🔵  पंचपरमेष्ठी

50🔴नवकार का जप जपने से पहले मन को ।।।।।।  भाव से भावित करना साहिये
🔵मैत्री

51 🔴 नवकार महामन्त्र में ।।।।.।तत्व है
उतर 🔵तीन

🔴52    68 के अंक से ।।।।।।। लब्धि की प्राप्ति होती है
🔵48

🔴53 नवकार के 36 व्यजन में  ।।।।।।। व्यजन है
🔵18

🔴54 नवकार    ।।।।   गुणों का भंडार है
🔵अनंत

55  🔴नवकार के अक्षरों से ।।।।।।। बने हुए है
🔵        14 गुणस्थान

🔴56    नवकार में आचार्य भगवंत  ।।।।।।।।।।कार है
उतर प्रवचन

नमस्कार महामंत्र पर प्रश्नोत्तरी

जैन विद्या प्रश्नोत्तरी

(विषय: नमस्कार महामंत्र)

प्रश्नपत्र-1/1

1. जैनधर्म का सबसे प्रसिद्ध मंत्र कौन सा है?
उ. नमस्कार महामंत्र।
2 नमस्कार महामंत्र को और किस नाम से जाना जाता है।
उ. नवकार मंत्र, णमोकार मंत्र, पंच परमेष्ठी।
3. जैनधर्म का सबसे प्रचीन मंत्र कौन सा है?
उ. नमस्कार महामंत्र। यह मंत्र अनादि काल से चला आ रहा है।
4. नमस्कार महामंत्र का मूल पाठ लिखें।
उ. 
णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं, 
णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं, 
णमो लोए सव्व साहूणं।
5. नमस्कार महामंत्र की महत्ता का पाठ लिखें।
ऐसोपंच णमुक्कारो सव्वपावपणासणो।
मंगलाणं च सव्वेसिं पढमं हवइ मंगलं।।

प्रश्नपत्र-1/2

6. णमो अरहंताणं का क्या अर्थ है?
उ. णमो अरहंताणं का अर्थ है- अरहंतों को नमस्कार है।
7. णमो सिद्धाणं का क्या अर्थ है?
उ. णमो सिद्धाणं का अर्थ है- सिद्धों को नमस्कार है।
8. णमो आयरियाणं का क्या अर्थ है?
उ. णमो आयरियाणं का अर्थ है- आचार्यों को नमस्कार है।
9. णमो उवज्झायाणं का क्या अर्थ है?
उ. णमो उवज्झायाणं का अर्थ है- उपाध्यायों को नमस्कार है।
10. णमो लोए सव्व साहूणं का क्या अर्थ है?
उ. णमो लोए सव्व साहूणं का अर्थ है- लोक के सब संतों को नमस्कार है।

प्रश्नपत्र-2/1

1. ऐसो पंच णमुक्कारो... का क्या अर्थ है?
उ. यह नमस्कार महामंत्र सब पापों का नाश करने वाला है और सब मंगलों में पहला मंगल है।
2. नमस्कार महामंत्र की महत्ता बतलाएं।
उ. यह महामंत्र मंत्राधिराज है। पापों का नाश करने वाला है। मंगलकारी है। श्रद्धापूर्वक स्मरण करें तो मनवांछित फलदायक है। इसमें
चौदह पूर्व का सार समाया है। 
3. नमस्कार महामंत्र में किस व्यक्ति को नमस्कार किया  है?
उ. नमस्कार महामंत्र में किसी व्यक्ति विशेष को नमस्कार नहीं किया गया है वरन् परम पावन सिद्ध आत्माओं और मुक्ति के साधकों को, महान आत्माओं को, नमस्कार किया है। पंच परमेष्ठी को नमस्कार किया है।
4. नमस्कार महामंत्र में किसका समावेश है?
उ. पंच परमेष्टी का।
5. परमेष्ठी की श्रेणी में कौन कौन आते हैं?
उ. अरहंत, सिद्ध, आचार्य उपाध्याय और साधु- इन पांचों को पंच परमेष्ठी कहते हैं।

प्रश्नपत्र-2/2

6. अरहंत कौन से रंग के प्रतीक हैं?
उ. अरहंत श्वेत रंग के प्रतीक हैं।
7. सिद्ध कौन से रंग के प्रतीक हैं?
उ. सिद्ध लाल (अरुण) रंग के प्रतीक हैं।
8. आचार्य कौन से रंग के प्रतीक हैं?
उ. आचार्य पीले रंग के प्रतीक हैं।
9. उपाध्याय कौन से रंग के प्रतीक हैं?
उ. उपाध्याय हरे रंग के प्रतीक हैं।
10. साधु कौन से रंग के प्रतीक हैं?
 उ. साधु नीले रंग के प्रतीक हैं।

प्रश्नपत्र-3/1

1. अरहंत का ध्यान कौन से चैतन्य केन्द्र पर किया जाता है?
उ. अरहंत सिद्ध का ध्यान ज्ञान केन्द्र ( चोटी के स्थान) पर किया जाता है।
2. सिद्ध का ध्यान कौन से चैतन्य केन्द्र पर किया जाता है?
उ. सिद्ध का ध्यान दर्शन केन्द्र (दोनों भृकुटियों के बीच) पर किया जाता है।
3. आचार्य का ध्यान कौन से चैतन्य केन्द्र पर किया जाता है?
उ. आचार्य का ध्यान विशुद्धि केन्द्र ( कंठ के स्थान) पर किया जाता है।
4. उपाध्याय का ध्यान कौन से चैतन्य केन्द्र पर किया जाता है?
उ. उपाध्याय का ध्यान आनन्द केन्द्र ( हृदय के पास) पर किया जाता है।
5. साधु का ध्यान कौन से चैतन्य केन्द्र पर किया जाता है?
उ. साधु का ध्यान  केन्द्र ( नाभि के स्थान) पर किया जाता है।

प्रश्नपत्र-3/2

6. अरहंत के कर्म कितने होते हैं?
उ. चार कर्म (नामकर्म, गौत्रकर्म, वेदनीय कर्म और आयुष्य कर्म)
7. सिद्ध के कर्म कितने होते हैं?
उ. एक भी कर्म नहीं होता। जब सभी आठों कर्मों का क्षय हो जाता है तब सिद्ध बनते हैं।
8. आचार्य के कर्म कितने होते हैं?
उ. आठ।
9. उपाध्याय के कर्म कितने होते हैं?
उ. आठ।
10. साधु के कर्म कितने होते हैं?
उ. आठ।

प्रश्नपत्र-4/1

1. अरहंत की गति कौन सी?
उ. मनुष्य गति।
2. सिद्ध की गति कौन सी?
उ. सिद्धों की पंचम गति (मोक्ष) है।
3. आचार्य की गति कौन सी?
उ. मनुष्य गति।
4. उपाध्याय की गति कौन सी?
उ. मनुष्य गति।
5. साधु की गति कौन सी?
उ. मनुष्य गति।

प्रश्नपत्र-4/2

6. अरहंत की जाति कौन सी?
उ. पंचेन्द्रिय।
7. सिद्ध की जाति कौन सी?
उ. जाति मिलती है- नाम कर्म के उदय से। सिद्धों की जाति नहीं होती क्योंकि उनके कर्म क्षय हो जाते हैं।
8. आचार्य की जाति कौन सी?
उ. पंचेन्द्रिय।
9. उपाध्याय की जाति कौन सी?
उ. पंचेन्द्रिय।
10 साधु की जाति कौन सी?
उ. पंचेन्द्रिय।

प्रश्नपत्र-5/1

1. अरहंत की काया कौन सी?
उ. त्रस काय।
2. सिद्ध की काया कौन सी?
उ. काया मिलती है- नाम कर्म के उदय से। सिद्ध जीव कर्म रहित होते हैं, उनकी काय नहीं होती।
3. आचार्य की काया कौन सी?
उ. त्रस काय।
4. उपाध्याय की काया कौन सी?
उ. त्रस काय।
5. साधु की काया कौन सी?
उ. त्रस काय।

प्रश्नपत्र-5/2

6. अरहंत के इन्द्रियां कितनी होती हैं?
उ. अरिहंत नोइन्द्रिय होते हैं। 
7. सिद्ध के इन्द्रियां कितनी होती हैं?
उ.  सिद्धों के इन्द्रियां नहीं होती। 
8. आचार्य के इन्द्रियां कितनी होती हैं?
उ. पांच।
9. उपाध्याय के इन्द्रियां कितनी होती हैं?
उ. पांच।
10. साधु के इन्द्रियां कितनी होती हैं?
उ. पांच।

विवेचन:
इन्द्रियों की प्राप्ति होती है- शरीर नाम कर्म के उदय और दर्शनावरणीय कर्म के क्षयोपशम से। सिद्ध जीव कर्म रहित होते हैं, इसलिए उनके इन्द्रियां नहीं होती। 
अरिहंत के नाम कर्म का उदय तो रहता है किन्तु दर्शनावरणीय कर्म क्षय हो जाता है। अत: इन्द्रिय ज्ञान अपेक्षित नहीं रहता।  केवलज्ञान प्रत्यक्ष ज्ञान होने के कारण उनके पांचों इन्द्रियां होने के बावजूद उन्हें इन्द्रिय ज्ञान की जरूरत नहीं रहती। वे आंख बंद रहने पर भी देख सकते हैं। कान बंद करने पर भी सुन सकते हैं। इसलिए उनको नोइन्द्रिय कहा जाता है। 
बाकी तीनों पदों में श्रोतेन्द्रिय (कान), चक्षुरिन्द्रिय (आंख), घ्राणेन्द्रिय (नाक), रसनेन्द्रिय (जीभ) और स्पर्शनेन्द्रिय (शरीर) ये पांचों ही इन्द्रियां होती हैं। इन तीन पदों में भी केवली हो जाने पर वे नोइन्द्रिय हो जाते हैं।

प्रश्नपत्र-6/1

1. अरहंत के शरीर कितने?
उ. अरहंत के 3 शरीर- औदारिक, तेजस् और कार्मण।
2. सिद्ध के शरीर कितने?
उ. सिद्ध अशरीरी होते हैं, उनके शरीर नहीं होते।
3. आचार्य के शरीर कितने?
उ. छठे गुणस्थान में 5, आगे के (7 से 14 तक) शरीर तीन पाए जाते हैं।
4. उपाध्याय के शरीर कितने?
उ. छठे गुणस्थान में 5, आगे के (7 से 14 तक) शरीर तीन पाए जाते हैं।
5. साधु के शरीर कितने?
उ. छठे गुणस्थान में साधु के 5, साध्वी के 4 और आगे के (7 से 14 तक) साधु साध्वी के शरीर तीन पाए जाते हैं।

विवेचन: 
शरीर पांच होते हैं- औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तेजस् और कार्मण। साध्वी के आहारक लब्धि प्राप्त नहीं होने से आहारक शरीर नहीं पाया जाता। छठे गुणस्थान में वैक्रिय लब्धि प्राप्त होने पर वैक्रिय शरीर भी हो सकता है। हालांकि एक समय में या तो आहारक शरीर होगा या वैक्रिय शरीर। ये दोनों शरीर एक साथ नहीं होते। 
 7 से 14 गुणस्थान में लब्धि का प्रयोग नहीं किया जाता है अत: शरीर 3 ही पाए जाते हैं क्योंकि वैक्रिय और आहारक दोनों शरीर वैक्रिय और आहारक लब्धि प्राप्त होने से ही पाए जाते हैं।  
एक गति से दूसरी गति में जाते समय अन्तराल गति में केवल दो शरीर साथ रहते हैं - तेजस् और कार्मण। बाकी हर सांसारिक प्राणी के चाहे वह छोटा है या बड़ा, 3 शरीर तो होते ही हैं। 14वें गुणस्थान तक  3 शरीर रहते हैं जो सिद्ध बनते ही प्रथम समय में (बाटे बहते सिद्ध के) छूट जाते हैं।

प्रश्नपत्र-6/2

6. अरिहंतों का गुणस्थान कौनसा है और कौन से गुणस्थान का वे स्पर्श नहीं करते?
उ. अरिहंतों का गुणस्थान 13वां और 14वां होता है। अरिहंत 1. 2, 3, 5,11 इन पांच गुणस्थानों को छूते नहीं।
7. सिद्धों का गुणस्थान कौनसा?
उ. सिद्धों का गुणस्थान नहीं होता।
8. आचार्यों का गुणस्थान कौनसा?
उ. 6 से 14 (अनेक जीवों की अपेक्षा से)
9. उपाध्यायों का गुणस्थान कौनसा?
उ. 6 से 14 (अनेक जीवों की अपेक्षा से)
10. साधु का गुणस्थान कौनसा?
उ. 6 से 14 (अनेक जीवों की अपेक्षा से)

विवेचन: 
गुणस्थान 14 हैं- 
मिथ्या दृष्टि गुणस्थान, सास्वादन सम्यक् दृष्टि गुणस्थान, मिश्र दृष्टि गुणस्थान, सम्यक् दृष्टि गुणस्थान, देशविरति गुणस्थान, प्रमत्त संयत 
गुणस्थान, अप्रमत्त संयत गुणस्थान, निवृत्तिबादर गुणस्थान, अनिवृत्तिबादर गुणस्थान, सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान, उपशांत मोहनीय गुणस्थान, क्षीण मोहनीय गुणस्थान, सयोगी केवली गुणस्थान और अयोगी केवली गुणस्थान।
1 व 2 गुणस्थान में मिथ्यादृष्टि रहती है। तीसरे गुणस्थान में सम्यक् मिथ्या दृष्टि, 4 -
से 14 गुणस्थान तक सम्यक् दृष्टि। 5वां गुणस्थान श्रावक का, 6 प्रमादी साधु का, 7 से 12 तक अप्रमादी साधु का, 11-12 छद्मस्थ वीतराग के  और 13-14 गुणस्थान अरहंत और केवली के होते हैं। सिद्ध 14 गुणस्थान पार करने के बाद होते हैं, सिद्धों का गुणस्थान नहीं होता। 

तीर्थंकर अपने जीवनकाल में कभी भी 1. 2, 3, 5,11 इन पांच गुणस्थानों का स्पर्श नहीं करते। 
तीर्थंकर सदा क्षायिक सम्यक्त्वी होते हैं। पहला गुणस्थान मिथ्यादृष्टि का है और तीसरा गुणस्थान मिश्र (सम्यक् मिथ्या दृष्टि) का है। इसलिए वे कभी इन गुणस्थानों का स्पर्श नहीं करते। इसी प्रकार दूसरा गुणस्थान सास्वादन सम्यक् दृष्टि का सम्यक्त्व से च्युत होकर मिथ्यात्व में प्रवेश करने पर मिलता है। तीर्थंकर क्षायिक सम्यक्त्वी होने से वे सम्यक्त्व च्युत होकर मिथ्यात्व में प्रवेश करते ही नहीं इसलिए वे दूसरे गुणस्थान को भी नहीं छूते।
पांचवां गुणस्थान देशव्रती श्रावक का है। तीर्थंकर कभी देशव्रत स्वीकार कर श्रावक भी नहीं बनते, वे पूर्ण व्रती बनते हैं, साधू ही बनते हैं।
तीर्थंकर सीधा क्षपक श्रेणी लेते हैं और बारहवें गुणस्थान में पहुंच जाते हैं। कभी भी उपशम श्रेणी लेकर ग्यारहवें गुणस्थान उपशम मोह गुणस्थान में नहीं पहुंचते। केवली भी अपने जीवनकाल में 11वां गुणस्थान नहीं लेते। जो जीव अपने जीवनकाल में 11वें गुणस्थान का स्पर्श कर लेता है, वह उस भव में 12 वें गुणस्थान का स्पर्श नहीं कर सकता और बिना 12 वें गुणस्थान को स्पर्श किए आगे बढ़कर उस भव में मोक्ष भी नही प्राप्त कर सकता है।

प्रश्नपत्र-7/1

1. अरहंत के पर्याप्ति कितनी पाई जाती हैं?
उ. 13वें गुणस्थान की दृष्टि से 5 पर्याप्तियां (इन्द्रिय पर्याप्ति को छोड़कर) होती हैं और 14वेंगुणस्थान में मात्र 1 शरीर पर्याप्ति पाई जाती है।
2. सिद्ध के पर्याप्ति कितनी  पाई जाती हैं?
उ. सिद्धों के प्रथम समय में शरीर भी छूट जाता है इसलिए सिद्धों में कोई पर्याप्ति नहीं पाई जाती।
3. आचार्य के पर्याप्ति कितनी पाई जाती हैं?
उ. छहों पर्याप्ति ।
4. उपाध्याय के पर्याप्ति पाई जाती होती हैं?
उ. छहों पर्याप्ति ।
5. साधु के पर्याप्ति कितनी पाई जाती हैं?
उ. छहों पर्याप्ति ।

विवेचन: 
पर्याप्तियां छ: होती हैं जो जन्म के समय ही अन्तर्मुहूर्त्त में प्राप्त हो जाती है। आहार पर्याप्ति, शरीर पर्याप्ति, इन्द्रिय पर्याप्ति, श्वासोच्छवास पर्याप्ति, भाषा पर्याप्ति  और मन:पर्याप्ति। इनसे जीवन के लिए आवश्यक पुद्गल (सामग्री) मिल जाती है। संज्ञी मनुष्य में छहों पर्याप्तियां पाई जाती हैं। अरिहंतों के इन्द्रिय पर्याप्ति की अपेक्षा नहीं होती इसलिए 5 पर्याप्तियां मानी जाती हैं।
आचार्य, उपाध्याय या साधु के केवली हो जाने उनमें भी अरिहंतों की भांति 13वें गुणस्थान की दृष्टि से 5 पर्याप्तियां (इन्द्रिय पर्याप्ति को छोड़कर) होती हैं और 14वेंगुणस्थान में मात्र 1 शरीर पर्याप्ति पाई जाती है। सिद्धों के जीवन नहीं होता इसलिए पर्याप्ति की आवश्यकता ही नहीं होती।

प्रश्नपत्र-7/2

6. अरहंत के प्राण कितने पाए जाते हैं?
उ. 13वें गुणस्थान की दृष्टि से 5 प्राण (5 इन्द्रिय प्राणों को छोड़कर) पाए जाते  हैं और 14वें गुणस्थान में मात्र 1 आयुष्यबल प्राण।
7. सिद्ध के प्राण कितने पाए जाते हैं?
उ. सिद्धों के प्राण नहीं पाए जाते हैं क्योंकि वे अशरीरी हैं।
8. आचार्य के प्राण कितने पाए जाते हैं?
उ. दसों प्राण।
9. उपाध्याय के प्राण कितने पाए जाते हैं?
उ. दसों प्राण।
10. साधु के प्राण कितने पाए जाते हैं?
उ. दसों प्राण।
विवेचन:
प्राण जीवन की शक्ति को कहते हैं। प्राण दस होते हैं- श्रोतेन्द्रिय प्राण, चक्षुरिन्द्रिय प्राण, घ्राणेन्द्रिय प्राण, रसनेन्द्रिय प्राण, स्पर्शनेन्द्रिय प्राण, मनोबल, वचनबल, कायबल, श्वासोच्छवास प्राण, और आयुष्यबल प्राण। आचार्य, उपाध्याय या साधु में ये सभी 10 प्राण पाए जाते हैं। इनके केवली हो जाने उनमें भी अरिहंतों की भांति 13वें गुणस्थान की दृष्टि से 5 प्राण (5 इन्द्रिय प्राणों को छोड़कर) पाए जाते  हैं और 14वें गुणस्थान में मात्र 1 आयुष्यबल प्राण पाया जाता है।

प्रश्नपत्र-8/1

1. अरिहंत में कितने योग पाए जाते हैं?
उ. अरिहंत के दो गुणस्थान होते हैं-13 और 14.  13वें गुणस्थान में 5 योग पाए जाते हैं और 14वें गुणस्थान में एक भी योग नहीं।
2. सिद्ध में कितने योग पाए जाते हैं?
उ. सिद्ध में एक भी योग नहीं।
3. आचार्य में कितने योग पाए जाते हैं?
उ. आचार्य में  7 योग पाए जाते हैं।
4. उपाध्याय में कितने योग पाए जाते हैं?
उ. उपाध्याय में 7 योग पाए जाते हैं।
5. साधु में कितने योग पाए जाते हैं?
उ.  साधु में योग 7 पाए जाते हैं।

नोट: योग कुल 15 होते हैं- 4 मन के- सत्यमनोयोग, असत्यमनोयोग, मिश्रमनोयोग और व्यवहार मनोयोग। 4 वचन के सत्य वचनयोग, असत्य वचनयोग, मिश्र वचनयोग और व्यवहार वचनयोग। 7 काया के औदारिक काययोग, औदारिकमिश्र काययोग, वैक्रिय काययोग, वैक्रियमिश्र काययोग, आहारक काययोग,  आहारकमिश्र काययोग और कार्मण काययोग।

अरिहंत में 13वें गुणस्थान में ये 5 योग पाए जाते हैं- सत्य मनोयोग, सत्यवचनयोग, व्यवहार मनोयोग, व्यवहार वचनयोग, औदारिक काययोग। 
योग की चंचलता 13वें गुणस्थान तक रहती है। 14वां  अयोगी केवली गुणस्थान है। इसमें योग समाप्त हो जाते हैं। सिद्ध अशरीरी और अमन होते हैं अत: योग नहीं होता। 
आचार्य , उपाध्याय और साधु में  वर्तमान में भरत , ऐरावत क्षेत्र में सात योग पाऐ जाते हैं- सत्य मनोयोग, व्यवहार मनोयोग, सत्य वचन योग, व्यवहार वचन योग, औदारिक काय योग, औदारिक मिश्र काययोग एवं कार्मण काय योग ।

महाविदेह क्षेत्र में सदैव और भरत, एरावत क्षेत्र में (चौथे आरे मे) आचार्य  उपाध्याय एवं साधु के कुल 11 योग ( मन के 2, वचन के 2 एवं काया के 7 योग) पाऐ जाते हैं। इनके केवली हो जाने पर मन के 2 , वचन  के 2 एवं काया के 3- औदारिक  काय योग  , औदारिक मिश्र काययोग एवं कार्मण काय योग, कुल  7 योग  पाऐ जाते हैं । इनके 14वें गुणस्थान में पहुंचने पर कोई योग नहीं रहता।

प्रश्नपत्र-8/2

6. अरिहंतों में उपयोग कितने पाए जाते हैं?
उ. अरिहंतों में उपयोग 2 पाए जाते हैं- केवलज्ञान और केवलदर्शन।
7. सिद्ध में उपयोग कितने पाए जाते हैं?
उ. सिद्ध में उपयोग 2 पाए जाते हैं - केवलज्ञान और केवलदर्शन।
8. आचार्य में उपयोग कितने पाए जाते हैं?
उ. आचार्य में उपयोग 7 पाए जाते हैं - 4 ज्ञान मति, श्रुत, मन:पर्यव और अवधि और 3 दर्शन. चक्षु, अचक्षु और अवधि ।
9. उपाध्याय में उपयोग कितने पाए जाते हैं?
उ. उपाध्याय में उपयोग 7 पाए जाते हैं - 4 ज्ञान मति, श्रुत, मन:पर्यव और अवधि और 3 दर्शन. चक्षु, अचक्षु और अवधि।
10. साधु में उपयोग कितने पाए जाते हैं?
उ. साधु में उपयोग 7 पाए जाते हैं - 4 ज्ञान मति, श्रुत, मन:पर्यव और अवधि और 3 दर्शन. चक्षु, अचक्षु और अवधि।

विवेचन: 
उपयोग जीव का लक्षण है और हर जीव में पाए जाते हैं। कुल 12 उपयोग होते हैं-
5 ज्ञान के- मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन:पर्यवज्ञान और केवलज्ञान। 
3 अज्ञान के- मति अज्ञान, श्रुत अज्ञान, विभंग अज्ञान। अज्ञान मिथ्यात्वी के ज्ञान को कहते हैं। सम्यक्त्व प्राप्त होने पर अज्ञान भी ज्ञान बन जाता है।
4 दर्शन के- चक्षु दर्शन, अचक्षु दर्शन, अवधिदर्शन और केवल दर्शन।

पांचों परमेष्ठी के सम्मुचय में 9 उपयोग पाए जाते हैं। सभी परमेष्ठी सम्यक्त्वी होते हैं इसलिए उनमें 3 अज्ञान नहीं पाए जाते। (ज्ञातव्य है कि अज्ञान मिथ्यात्वी के ज्ञान को कहते हैं।)

अरिहंतों और सिद्धों में केवल 2 उपयोग होते हैं- केवलज्ञान और केवल दर्शन। केवलज्ञान और केवल दर्शन प्राप्त हो जाने पर बाकी के ज्ञान और दर्शन की कोई उपयोगिता नहीं रहती उनका उपयोग नहीं किया जाता। 

आचार्य, उपाध्याय और साधु के 6 से 12 गुणस्थान तक उपयोग 7 पाए जाते हैं-        
(3 अज्ञान, केवलज्ञान और केवल दर्शन को छोड़कर)। 
जो केवली हो जाते हैं उनमें अरिहंत की तरह ही 2 उपयोग केवलज्ञान और केवल दर्शन पाए जाते हैं।

कल के उत्तर का विस्तार:
सदस्यों से प्राप्त सुझावों के कारण कल के उत्तर में कुछ विस्तार की अपेक्षा लगती है।

दसवें गुणस्थान में चार उपयोग ही पाए जाते हैं। मतिज्ञान, श्रुतज्ञान- ये दो नियमा और अवधि एवं मन:पर्यव ज्ञान - ये दो भजना। दसवां गुणस्थान साकार उपयोग में आता है और उसी उपयोग में अग्रिम गुणस्थान में चला जाता है अत: दर्शन का उपयोग नहीं होता।

6,7,8,9,11,12 इन 6 गुणस्थानों में उपयोग 4 -मति, श्रुत ज्ञान और चक्षु-अचक्षु दर्शन नियमा और 3 उपयोग- अवधिज्ञान, मन:पर्यवज्ञान और अवधिदर्शन भजना, कुल 7 उपयोग पाए जाते हैं।

13,14 गुणस्थानों में (अरिहंत और केवली में) और सिद्धों में उपयोग दो केवलज्ञान और केवल दर्शन नियमा पाए जाते हैं।

प्रश्नपत्र-9

1. अरहंत के आत्मा कितनी पाई जाती हैं?
उ. अरहंत के आत्मा 6 या 7 पाई जाती हैं।
2. सिद्ध के आत्मा कितनी पाई जाती हैं?
उ. सिद्ध के आत्मा 4 पाई जाती हैं?
3. आचार्य के आत्मा कितनी पाई जाती हैं?
उ. आचार्य के आत्मा 8 पाई जाती हैं?
4. उपाध्याय के आत्मा कितनी पाई जाती हैं?
उ. उपाध्याय के आत्मा 8 पाई जाती हैं?
5. साधु के आत्मा कितनी पाई जाती हैं?
उ. साधु के आत्मा 8 पाई जाती हैं?

विवेचन: 
वैसे तो आत्मा के अनेक भेद हो सकते हैं। जितने आत्मा के भाव, उतने ही उसके भेद। किन्तु मुख्य रूप से आत्मा 8 प्रकार की होती हैं। इसके अतिरिक्त अन्य प्रकार की आत्मा को अनेरी आत्मा कहते हैं। आठ आत्माएं हैं- द्रव्य आत्मा, कषाय आत्मा, योग आत्मा, उपयोग आत्मा, ज्ञान आत्मा, दर्शन आत्मा, चारित्र आत्मा और वीर्य आत्मा। 

द्रव्य आत्मा मूल आत्मा है जो जीव के असंख्य चेतनामय प्रदेश हैं। बाकी सभी भाव आत्माएं हैं या आत्मा के पर्याय हैं जैसे क्रोधमय अवस्था कषाय आत्मा होती है। व्रत स्वीकार करने वाला जीव चारित्र आत्मा है।

अरिहंत के कषाय क्षय हो जाते हैं अत: उनके कषाय आत्मा नहीं रहती। बाकी 7 आत्माएं 13वें गुणस्थान में पाई जाती हैं।
14 वें गुणस्थान में योग समाप्त हो जाने से योग आत्मा भी नहीं होती अत: उनमें आत्मा 6 पाई जाती हैं। 

14वें गुणस्थान मे 6 आत्माएं होती हैं उनमें से प्रथम समय के सिद्ध की चारित्र आत्मा और वीर्य आत्मा छूट जाती है। बाकी चार आत्माएं सिद्धों में पाई जाती हैं। सिद्ध में द्रव्य आत्मा के साथ ही उपयोग आत्मा, ज्ञान आत्मा, दर्शन आत्मा- ये कुल 4 आत्माएं पाई जाती हैं। 

आचार्य, उपाध्याय और साधु में  6 से 10 गुणस्थान तक सभी 8 आत्माएं पाई जाती है।  11 से 13वें गुणस्थान तक कषाय नहीं होने से कषाय आत्मा नहीं होती, बाकी 7 आत्माएं पाई जाती हैं। 14 वें गुणस्थान में उनमें भी  आत्मा 6 पाई जाती हैं। 

हर जीव में कम से कम तीन आत्माएं अवश्य होती हैं- द्रव्य आत्मा, उपयोग आत्मा और दर्शन आत्मा। ऐसा कोई जीव नहीं जिनमें ये तीनों आत्माएं न हों। मिथ्यात्वी के ज्ञान आत्मा नहीं होती।

लेश्या
6. अरहंत में लेश्या कितनी पाई जाती हैं?
उ. अरहंत में 1 शुक्ल लेश्या पाई जाती है। 
7. सिद्ध में लेश्या कितनी पाई जाती हैं?
उ. सिद्ध में लेश्या नहीं पाई जाती हैं, वे अलेश्यी (अलेशी) होते हैं।
8. आचार्य में लेश्या कितनी पाई जाती हैं?
उ. आचार्य में 1 से 6 लेश्या पाई जाती हैं।
9. उपाध्याय में लेश्या कितनी पाई जाती हैं?
उ. उपाध्याय में 1 से 6 लेश्या पाई जाती हैं।
10. साधु में लेश्या कितनी पाई जाती हैं?
उ. साधु में 1 से 6 लेश्या पाई जाती हैं।

विवेचन: 
लेश्या 6 होती हैं। 3 अशुभ और 3 शुभ। अशुभ लेश्या- कृष्ण लेश्या , नील लेश्या और कापोत लेश्या और  
शुभ लेश्या- तेजो लेश्या , पद्म लेश्या और शुक्ल लेश्या। 

अशुभ लेश्या मोहनीय कर्म के उदय से मिलती है और शुभ लेश्या नाम कर्म के उदय से।

अरिहंतों के 13वें गुणस्थान में 1 शुक्ल लेश्या  होती है और14वें गुणस्थान में अलेशी हो जाते हैं। सिद्ध भी अलेशी ही होते हैं।

आचार्य, उपाध्याय और साधु में छठे गुणस्थान में छहों लेश्या पाई जाती है। सातवें गुणस्थान में तीनों शुभ लेश्या पाई जाती है। 8 से 13 गुणस्थान तक 1 शुक्ल लेश्या पाई जाती है और14वें गुणस्थान में अलेशी हो जाते हैं।
इस प्रश्नमाला का सही उत्तर बहुत ही कम लोग दे पाए हैं। जिन्होंने सही उत्तर दिया उन्हें धन्यवाद और जिन लोगों ने उत्तर देने का प्रयास किया वे सभी भी धन्यवाद के पात्र हैं।
उत्तर समझने के बाद भी आपकी कोई जिज्ञासा हो तो अवश्य प्रकट करें।

प्रश्नपत्र-10

1. अरिहंत की आगति, वर्तमानगति और अगली गति कौन कौनसी होती हैं?
उ. देव या नरक गति से जीव मनुष्य गति में आकर अरिहंत बनते हैं और आयुष्य पूर्ण कर पंचम गति (मोक्ष) में पहुंच जाते हैं।
2. सिद्ध की आगति, वर्तमानगति और अगली गति कौन कौनसी होती हैं?
उ. सिद्ध केवल मनुष्य गति से मोक्ष में आते हैं और वहां से कहीं नहीं जाते।
3. आचार्य की आगति, वर्तमानगति और अगली गति कौन कौनसी होती हैं?
उ. आचार्य चारों गति से मनुष्य गति में आते हैं और वैमानिक देव (देवगति) में जाते हैं। केवली  होने पर मोक्ष में जाते हैं।
4. उपाध्याय की आगति, वर्तमानगति और अगली गति कौन कौनसी होती हैं?
उ. उपाध्याय चारों गति से मनुष्य गति में आते हैं और वैमानिक देव (देवगति) में जाते हैं। केवली  होने पर मोक्ष में जाते हैं।
5. साधु की आगति, वर्तमानगति और अगली गति कौन कौनसी होती हैं?
उ. साधु चारों गति से मनुष्य गति में आते हैं और वैमानिक देव (देवगति) में जाते हैं। केवली  होने पर मोक्ष में जाते हैं।

विवेचन:

केवल मनुष्य गति के जीव ही पंच परमेष्ठी बन सकते हैं। 

सिद्ध बनने से पहले चार घाती कर्म क्षयकर अरिहंत या केवली बनते हैं। फिर बाकी के चार अघाती या भवोपग्राही कर्म का क्षय कर सिद्ध बनते हैं। सिद्ध बनने के बाद जीव अनंतकाल तक वहीं रहता है। वे अपुनरावतारी होते हैं।

चारों गति से आकर जीव मनुष्य बन सकते हैं और वे साधु बन सकते हैं। साधु बनकर आचार्य, उपाध्याय बन सकते हैं, केवली भी बन सकते हैं। किन्तु अरिहंत 12 वैमानिक, 9 ग्रेवेयक, 9 लोकान्तिक, 5 अनुत्तर और प्रथम 3 नरक इन 38 स्थानों से पर्याप्त जीव ही बन सकते हैं। सबसे अधिक अरहंत प्रथम स्वर्ग से आकर बनते हैं।
अरिहंत आयुष्य पूर्णकर सिद्ध ही बनते हैं, उनकी और कोइ गति नहीं होती। सिद्ध सादि और अनंत होते हैं। उनकी आदि होती है किन्तु  उनका अंत नहीं होता।

आचार्य, उपाध्याय और साधु इनकी आगति 179 की श्रृंखला के 8 बोल छोड़कर 171, 99 प्रकार के देवता और प्रथम 5 नरक- इन 275 स्थानों से मनुष्य भव में आते हैं और आयुष्य पूर्ण कर वे देव योनि में जाते हैं। यदि वे अंत तक सही रूप से संयम का पालनकर आराधक के रूप में आयुष्य पूरा करे तो वैमानिक देव बनते हैं और यदि विराधक बन जाएं तो भवनपति से पहले देवलोक तक में जाते हैं।

इनमें भी जो केवल ज्ञानी होते हैं- वे  81 प्रकार के देव ( 15 परमाधार्मिक व 3 किल्विषिक को छोड़कर ), 15 कर्मभूमि के मनुष्य, प्रथम 4 नारकी, 5 संज्ञी तिर्यंच, 3 स्थावर (पृथ्वी, पानी और वनस्पति)- इन 108 स्थानों से मनुष्य गति में आकर केवली बनते हैं और आयुष्य पूर्ण कर मोक्ष में जाते हैं।

गतागत के थोकड़ों में 179 की श्रृंखला या लड़ी प्रसिद्ध है। इस श्रृंखला का कई बार प्रयोग हुआ है। वह श्रृंखला इस प्रकार है-
101 असंज्ञी मनुष्य, 48 तिर्यंच, 15 कर्मभूमि के मनुष्य पर्याप्त और अपर्याप्त=30, कुल 179 की श्रृंखला है। इन में से तेजस और वायु काय के सूक्ष्म, बादर, पर्याप्त और अपर्याप्त ये 8 स्थान के जीव संज्ञी मनुष्य  नहीं बन सकते। अत: साधु भी नहीं बन सकते।

असंज्ञी मनुष्य के 101 भेद: 15 कर्मभूमि के, 30 अकर्मभूमि के और  56 अन्तर्द्वीप के अपर्याप्त।

तिर्यंच के 48 भेद ये हैं- पृथ्वी, अप्, तेजस्, वायु और वनस्पति इन पांचों काय के सूक्ष्म, बादर, पर्याप्त और अपर्याप्त चार प्रकार के जीव=20, सूक्ष्म वनस्पति और तीन विकलेन्द्रिय इन चारों के पर्याप्त और अपर्याप्त जीव=8, जलचर, स्थलचर, खेचर, उर परिसर्प और भुज परिसर्प इन पांचों तिर्यंच संज्ञी, असंज्ञी के पर्याप्त और अपर्याप्त=20 कुल तिर्यंच=48 भेद।



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