1 से 100 तक क्या
1- आत्मा 1 होती है
2 – जीव -2
3 – योग
4 – गतियां
5 – पाप
6 – द्रव्य
7 – तत्त्व
8 – कर्म
9 – पदार्थ
10 – धर्म
11 – प्रतिमा
12 – भावना
13 – चारित्र
14 – गुणस्थान
15 – प्रमाद
16 – कषाय
17 – मरण
18 – दोष
19 – जीव समास
20 – प्ररूपना
21 – ओदायिकभाव
22 – परिषह
23 – वर्गना
24 – तीर्थकर
25 – क्रियाए
26 – प्रथव्या
27 – पंचेंद्रियोंके विषय
28 – साधू के मूलगुण
29 – मनुष्योंकी संख्या
29 अंक प्रमाण
30 – णमोकारमंत्र में 30 व्यंजन होते है
31 – प्रथम पटल में 31 पटल है
32 – अन्तराय
33 – सर्वार्थसिद्धि में 33सागर आयु
34 – अतिशय
35 – णमोकारमंत्र में 35 अक्षर होते है
36- आचार्यों के मूलगुण
37 – पाँचवे गुणस्थान में आश्रवद्वार 37 होते है
38 – भगवान् पार्श्वनाथ के समोवशरं में 38 हजार आर्यिकाए थी
39 – तत्वार्थसूत्र के तीसरे अध्याय के सूत्र
40 – भवनवासी
41 – चार आराधनाओ के 41 प्रभेद
42 – तत्वार्थसूत्र के चौथे अध्याय के सूत्र
43 – तीसरे गुणस्थान में आस्रवद्वार 43
44 – कल्याणमंदिर के श्लोक
45 – मनुष्य लोक का विस्तार 45 लाख योजन
46 – अरिहंतों के मुलगुण
47 – घाति या कर्म
48 – भक्तामर में 48 श्लोक है
49 – नरक पटल
50 – सम्यक्त्व के 50 मल
51 – इष्टोपदेश के श्लोक 51 होते हे
52 – नंदीश्वरद्वीप के चैताल्य 52 होते हे
53 – जीव के भाव 53 होते हे
54 – बडे समाधिमरण के छंद 54 होते है
55 – सोलहवे स्वर्ग की देवियो की आयु 55 पल्य होती है
56 – जम्बूद्वीप में नक्षत्र 56 होते है
57 – आस्रव के कुल भेद 57 होते है
58 – द्रव्यसंग्रह मे गाथा 58 होती है
59 – सातवे गुणस्थान मे बंधने वाले कर्म 59 होते है
60 – श्रावकव्रतो के अतिचार 60 होते है
61 – आचार्य, उपाध्याय के कुल मूलगुण 61 होते है
62 – पुद्गल विपाकी कर्म 62 होते है
63 – शलाका पुरुष 63 होते है
64 – ऋद्धियाँ 64 होती है
65 – दारहवे गुणस्थान मे अनुदय कर्म 65 होते है
66 – भगवान महावीर की वाणी नहि खिरने के दिन 66 थे
67 – पाँचवे गुणस्थान मे बंधने वाले कर्म 67 होते है
68 – पुण्यकर्म 68 होते है
69 – सम्मूर्च्छन तिर्यंचों के 69 भेद होते है
70 – ढाई द्वीप कीमुख्य नदियाँ 70 होती है
71 – अरिहंत, उपाध्याय परमेष्ठी के मूलगुण 71 होते है
72 – भगवान महावीर की आयु 72 वर्ष थी
73 – कषायमार्गणा मे सातवे गुणस्थान मे उदयकर्म 73 होते है
74 – तत्वसार ग्रन्थ की गाथा 74 होती है
75 – गुण संक्रमण के कर्म 75 होते है
76 – द्वीपकुमार के भवन 76 होते है
77 – भगवान श्रेयांसनाथ के गणधर 77 थे
78 – जीव विपाकी कर्म 78 होते है
79 – अरिहंत, उपाध्याय, सिद्धपरमेष्ठी के कुल मूलगुण 79 होते है
80 – पंचमेरू के चैत्यालय 80 होते है
81 – भगवान शान्तिनाथ जी, कुन्थुनाथ जी और पार्श्वनाथ जी के गणधरो की संख्या मिलाकर 81 हो जाति है
82 – अरिहंत और आचार्य परमेष्ठी के कुल मूलगुण 82 होते है
83 – तत्वार्थसूत्र के आठवे, नवें और दसवें अध्याय के सूत्रो की संख्या मिलाकर 83 हो जाति है
84 – णमोकारमन्त्र से 84 लाख मन्त्र निकलते है
85 – चौदह गुणस्थान मे सत्वकर्म 85 होते है
86 – भगवान सुपार्श्वनाथ जी के समवशरण मे वादी मुनीराज 86 सो थे
87 – भगवान शीतलनाथ जी के गणधर 87 थे
88 – भगवान पुष्पदन्त जी के गणधर 88 थे
89 – आचार्य, उपाध्याय और साधु परमेष्ठी के मूलगुण 89 होते है
90 – जम्बूद्वीप की कुल नदियाँ 90 है
91 – अधोग्रैवेयक के चैताल्य 91 है
92 – सामान्य मनुष्य के चौथे गुणस्थान मे कर्म उदय 92 होते है
93 – नामकर्म के भेद 93 होते है
94 – भगवान चन्द्रप्रभ जी के एक कम 94 गणधर थे
95 – भगवान सुपार्श्वनाथ जी के 95 गणधर थे
96 – चक्रवर्ती की 96 हजार रानीयाँ होती है
97 – कुभोगभुमियाँ एक कम 97 होती है
98 – जीव समास के 98 भेद है
99 – सुमेरू पर्वत पृथ्वी से 99 हजार योजन ऊँचा-
100-इंद्रो की कुल संख्या 100 होती है।
ये है जैन धर्म की गिनती।।।।
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1⃣ अपने किए हुए कर्मों को जहां भोगा जाए उसे क्या कहते हैं?
🅰 दंडक
2⃣ कौन सी गति के जीव नियमा संयत ही होते हैं ?
🅰 मनुष्य गति
3⃣ कौन- कोन से जीव अनारंभी होते हैं?
🅰 सिद्ध भगवान, अप्रमादी संयत, प्रमादी शुभयोगी संयत
4⃣ कौनसी लेश्या वाले जीव अप्रमादी नही होते है ?
🅰 कृष्ण,नील, कापोत
5⃣ कौन सा अणगार असातावेदनीय कर्म का बार-बार उपचय नहीं करता है?
🅰 संवृत अणगार
6⃣ कोन से संसार संचिट्ठण काल मे शुन्य काल नहीं होता है ?
🅰 Triyanch संसार संचिट्ठण काल
7⃣ एक मच्छर के रूप में मैंने आयुष्य बंध किया है फिर मैं( स्वयं) बना बताओ मेरी आयुष्य कौन सी होगी ?
🅰 असंज्ञी आयुष्य
8⃣ अगर मैं इस अनादि चर्तुगति संसार में परिभ्रमण करता रहूं तो मेरा बोल है (प्रशस्त /अप्रशस्त) ?
🅰अप्रशस्त
9⃣ मै एक श्नमण निर्ग्रन्थ हुं, और मेरी मेरे गुरु के प्रति अथाह आस्था और श्रद्धा है ममत्व (मुर्च्छा) का भाव है तो मेरा बोल है(प्रशस्त /अप्रशस्त) ?
🅰 अप्रशस्त
1⃣0⃣ निष्क्रियता का फल क्या है ?
🅰 सिद्धी /मोक्ष
1⃣1⃣ ..... की अपेक्षा Gyan Darshan Charitra प्रत्यनीक कहे गए हैं ?
🅰 भाव
1⃣2⃣ कोनसे जीव नियमा मोक्ष प्राप्त करेंगे ?
🅰 भवसिद्धिक जीव
1⃣3⃣ एक रूप का दूसरा रूप में बदल जाना क्या कहलाता है ?
🅰 परिणाम
1⃣4⃣ सत्शास्त्रों को सुनने का क्या फल है?
🅰 ज्ञान
1⃣5⃣ 18 पाप का...... करने से जीव शीघ्र हल्का होता है ।
🅰 त्याग
*अंताक्षरी लिखिए*
1⃣6⃣ मैं नियमा प्रमादी हूं,बताओ मेरी लेश्या कोनसी ?
🅰 नील
1⃣7⃣ मै श्रमण निर्ग्रन्थ के लिए प्रशस्त हुं ?
🅰 लघुता
1⃣8⃣ मेरा फल कर्मों का नाश करना है ?
🅰 तप
1⃣9⃣ मैं अट्ठारह पाप का त्याग करने वाला बोल हूं ,मैं कर्मों को शीघ्र हल्का बना संसार परित कर और हस्व कर संसार सागर से तिराने वाला हूं बताओ मेरा बोल कौन सा ?
🅰 प्रशस्त
2⃣0⃣ मैं अनुकंपा की अपेक्षा एक प्रत्यनीक हुं, बताओ कौन सा?
🅰 तपस्वी
2⃣1⃣ मैं शुक्ल लेश्या में पाया जाने वाला एक दंडक हूं ?
🅰वैमानिक
2⃣2⃣ ज्योतिषी और वेमानिक देवों का दंडक मुझमें नहीं पाया जाता बताओ मेरी लेश्या कौन सी?
🅰 कापोत
2⃣3⃣ श्रुत की अपेक्षा में एक प्रत्यनीक हुं,बताओ कौन सा ?
🅰 तदुभय
*संख्या में उत्तर दीजिए*
2⃣4⃣ तिर्यंच संसार संचिट्ठण काल कितने प्रकार का होता है?
🅰 2
2⃣5⃣ प्रत्यनीक कितने प्रकार के हैं ?
🅰6
2⃣6⃣ कितने पापों का त्याग करने से जीव संसार सागर से तीर जाता है ?
🅰18
2⃣7⃣ कितने दंडक के जीव संयत और असंयत दोनों हो सकते हैं ?
🅰 1(मनुष्य)
2⃣8⃣ कितने दंडक के जीव असंयत होते हैं ?
🅰 23
2⃣9⃣ आकाश की श्रेणी अनादि.... है ?
🅰 अनंत
3⃣0⃣ देव की असंज्ञी आयुष्य की जघन्य स्थिति कितनी है ?
🅰 10,000 वर्ष
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