विश्रांत पर क्लान्त
इस विश्रांत पर क्लान्त वक़्त में
कैसे मन की शांति
विक्षुब्ध क्षुब्ध मन मे पल रही
बस भ्रान्ति
कैसे थमेगा ?कैसे रुकेगा?
जो कारवां कहर का चल पड़ा
काल के गाल पर झन्नाटेदार,
चांटा है पड़ा
सन्नाटे में है सारी खुदाई
थम गए कदम , कैसी ये रुसवाई
क्या 2 मंजर देखेगी ,ये पथरायी
आँखे
ढो रहे है ,गाड़े में लाशें
मयस्सर नही चार कांधे
रो रही है मातृत्वता ,जब 9 वर्ष
का बच्चा अकेला एम्बुलेंस में
चला
हर मन आशंकित है
आशंकाओं ने घेरा डाला
वर्ष दो वर्ष
यदि ये और चला ,पूरेविश्व का
भुखा भविष्य है दिख रहा
आज त्रासदी में है मानव
तब
एक प्रकृति ही शान्ति की सांस ले रहीहै,
जैसे कह रही हो , बहुत कहर ढाये तुमने अब मेरी बारी है
मैने बरसों सहा
तुम महीनों में चीख़ पड़े
अब भी रहम करो
नही तो दोज़ख जमीं पर
पाओगे
बस आज ,
ये छोटा दृश्य है,
जान लो
है व्यर्थ की भाग दौड़
है व्यर्थ की रिश्ते दारी
प्रकृति की सुरक्षा में निभानी पड़ेगी हमे पूर्ण भागीदारी
लॉक डाउन आगे भी किया जाए
पर उसपे, जो
करे प्रकृति पे
अतिक्रमण।
बस प्रकृति को बचायेगे
ले आज ही ये प्रण
स्वरचित
अंजू गोलछा
कैसे मन की शांति
विक्षुब्ध क्षुब्ध मन मे पल रही
बस भ्रान्ति
कैसे थमेगा ?कैसे रुकेगा?
जो कारवां कहर का चल पड़ा
काल के गाल पर झन्नाटेदार,
चांटा है पड़ा
सन्नाटे में है सारी खुदाई
थम गए कदम , कैसी ये रुसवाई
क्या 2 मंजर देखेगी ,ये पथरायी
आँखे
ढो रहे है ,गाड़े में लाशें
मयस्सर नही चार कांधे
रो रही है मातृत्वता ,जब 9 वर्ष
का बच्चा अकेला एम्बुलेंस में
चला
हर मन आशंकित है
आशंकाओं ने घेरा डाला
वर्ष दो वर्ष
यदि ये और चला ,पूरेविश्व का
भुखा भविष्य है दिख रहा
आज त्रासदी में है मानव
तब
एक प्रकृति ही शान्ति की सांस ले रहीहै,
जैसे कह रही हो , बहुत कहर ढाये तुमने अब मेरी बारी है
मैने बरसों सहा
तुम महीनों में चीख़ पड़े
अब भी रहम करो
नही तो दोज़ख जमीं पर
पाओगे
बस आज ,
ये छोटा दृश्य है,
जान लो
है व्यर्थ की भाग दौड़
है व्यर्थ की रिश्ते दारी
प्रकृति की सुरक्षा में निभानी पड़ेगी हमे पूर्ण भागीदारी
लॉक डाउन आगे भी किया जाए
पर उसपे, जो
करे प्रकृति पे
अतिक्रमण।
बस प्रकृति को बचायेगे
ले आज ही ये प्रण
स्वरचित
अंजू गोलछा
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें