कर्म के नाश से फायदा







कर्म के नाश से फायदा


मोहनीय कर्म के नाश से - अनंत सुख गुण प्रगट हुआ
२ - दर्शनावरण कर्म के नाश से - अनंत दर्शन गुण प्रगट हुआ
३ - ज्ञानावरण कर्म के नाश से - अनंत ज्ञान गुण प्रगट हुआ
४ - अंतराय कर्म के नाश से - अनंत वीर्य गुण प्रगट हुआ
५ - नाम कर्म के नाश से - सूक्ष्मत्व गुण प्रगट हुआ
६ - गोत्र कर्म के नाश से - अगुरुलघु गुण प्रगट हुआ
७ - आयु कर्म के नाश से - अवगाहन गुण प्रगट हुआ
८ - वेदनीय कर्म के नाश से - अव्याबाध गुण प्रगट हुआ
१ - अनंत सुख गुण -- मोहनीय कर्म के नाश होने से आत्मा में प्रकट होने वाले अनुपम अतीन्द्रिय (इंद्रियों कि सहायता के बिना आत्मा को प्राप्त) सुख, को अनत सुख कहते हैं !
२ - अनंत दर्शन गुण -- दर्शनावरणीय कर्म के नाश होने से आत्मा में यह गुण प्रगट होता है ! तीनो लोकों के तीनो कालों के सभी द्रव्यों का यथार्थ अवलोकन, सो आत्मा का अनंत दर्शन गुण है !
३ - अनंत ज्ञान गुण -- ज्ञानावरणीय कर्म के नाश होने से, भगवान् को तीनो लोकों के तीनो कालों के सभी पदार्थों का यथार्थ ज्ञान हो जाता है, यह आत्मा का अनंत ज्ञान गुण है !
४ - अनंत वीर्य गुण -- अंतराय कर्म के नाश हो जाने पर आत्मा में जो अनंत सामर्थ्य/बल प्रकट होता है, सो अनंत वीर्य गुण है !
५ - सूक्ष्मत्व गुण -- इंद्रियों से दिखायी न देना सूक्ष्मत्व गुण है, नाम कर्म के नाश होने से सूक्ष्मत्व(अमूर्तित्व) गुण प्रगट होता है !
६ - अगुरुलघु गुण -- जिस गुण के कारण छोटे-बड़े का भेद समाप्त हो जाता है, वह "अगुरुलघु गुण" है ! सिद्धशिला पर सभी सिद्ध समान हो जाते हैं,फिर चाहें वे अरहंत केवली रहे हों, सामान्य या फिर मूक केवली आत्मा का यह गुण गोत्र कर्म के नाश से प्रगट होता है !
७ - अवगाहन गुण -- जिस गुण के कारण एक जीव में अनंत जीव समा जाते हैं, सो अवगाहन गुण है ! सिद्धशिला पर विराजमान एक सिद्ध में अनेक सिद्ध रहते हैं क्यूंकि आत्मा(सिद्ध) अमूर्त होने के कारण एक-दूसरे के रुकने में बाधक नहीं होती है ! आयु कर्म के नाश से आत्मा का यह गुण प्रगट होता है !
८ - अव्याबाध गुण -- वेदनीय कर्म के कारण आत्मा में कर्म जनित सुख-दुःख कि अनुभूति होती है, चौदहवें गुणस्थान के अंतिम समय में वेदनीय कर्म के पूर्ण रूप से नाश हो जाने पर, अव्याबाध गुण प्रगट होता है ! अव्याबाध (बाधा रहित) अनंत सुख का होना !

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🅿️1⃣  कर्म किसे कहते हैं ?
🅰 कार्माण वर्गणा के समूह को कर्दम कहते है

🅿️2⃣ कर्म कितने प्रकार के होते हैं ,नाम बताइए ?
🅰 आठ होते हैं ज्ञानावरणीय,दर्शनवरणीय,वेदनीय,मोहनीय,आयु,नाम,गोत्र,अन्तराय

🅿️3⃣ घाती और अघाती कर्म में क्या अंतर है ?
🅰 घातीया कर्म-आत्मा के मौलिक गुणों का घात करते हैं
अघातिया कर्म आत्मगुणों का सीधे घात तो नहीं करते फिर भी भव भ्रमण कराने में पुरा-पुरा हाथ रहता है


🅿️4⃣घाती कर्म कितने प्रकार के होते हैं ,नाम बताइए ?
🅰4-ज्ञानावरण,दर्शनावरण,मोहनीय,अन्तराय

🅿️5⃣ अघाती कर्म कितने प्रकार के होते हैं ,नाम बताइए ?
🅰4-आयु,नाम,गोत्र,वेदनीय

प्रश्न 1743   नाम कर्म कितने प्रकार का है ?
( उत्तर के लिए पचीस बोल में दसवां बोल कर्म आठ को refer करे )

उत्तर   *दो प्रकार  -- शुभ नाम कर्म और अशुभ नाम कर्म।*

प्रश्न 1744  नमस्कार मंत्र के प्रत्येक पद के पहले ॐ ह्री श्रीं भी लगाया जाता है इसका क्या तात्पर्य है ?

उत्तर  *ॐ ह्रीं श्रीं बीजाक्षर है । जैसे बीज मे वृक्ष बनने की शक्ति है वैसे ही इन बीजाक्षरो में असीम शक्ति है । मंत्र के साथ इन बीजाक्षरों का योग होने से मंत्र की शक्ति और अधिक बढ़ जाती है ।*



🅿️1️⃣3️⃣6️⃣ स्पर्श का क्या तात्पर्य है ?
🅰️ऐसी वस्तु का स्पर्श  जिससे शरीर विनष्ट हो

🅿️1️⃣3️⃣7️⃣ आनप्राण का क्या तात्पर्य है ?
🅰️श्वासोच्वास की गति मंद या अवरुद्ध  होना

🅿️1️⃣3️⃣8️⃣ नेरयिक और देव की आयुष्य कोनसी होगी ?
🅰️निरुपक्रमी


🅿️1️⃣3️⃣9️⃣ संख्यात वर्ष वाले मनुष्य और तिर्यंच की आयुष्य कोनसी होगी ?
🅰️सोपक्रमी

🅿️1️⃣4️⃣0️⃣ युगलिक मनुष्य और तिर्यंच की आयुष्य कोनसी होगी ?
🅰️निरुपक्रमी
https://www.facebook.com/groups/parasprashnamanch/
 *Date ~7/05/2020*
╲\╭┓
╭ 🌹  *पारस प्रश्रन मंच*
┗╯\╲☆ ●═════❥ ❥ ❥

   *प्रश्र्न माला क्रमांक 3️⃣2️⃣*

           *✋ आशीर्वाद प्रदाता ✋*
*तपस्वीराज प पु गुरूदेव श्री पारस मुनीजी म*



🅿️1️⃣5️⃣6️⃣ जीव जब सभी कर्मो से मुक्त हो जाता है,तो क्या कहलाता है ?
🅰️सिद्ध  कहलाता है

🅿️1️⃣5️⃣7️⃣ जीव जब सभी कर्मो से मुक्त हो जाता है,तब उसमें कोनसा उपयोग होता है ?
🅰️ज्ञानोपयोग

🅿️1️⃣5️⃣8️⃣ ज्ञानावरणीय के बाद दर्शनावरणीय को क्यों लिया गया है ?
🅰️जीव जब ज्ञानोपयोग से हटता  है तब अवश्य  दर्शनोपयोग मे आता है अतः

🅿️1️⃣5️⃣9️⃣ज्ञानावरणीय और  दर्शनावरणीय के बाद वेदनीय कर्म को क्यों लिया गया है ?
🅰️ज्ञाननावरणीय व दर्शनावरणीय कर्म सुख दुख रूप वेदनीय कर्म मे निमित्त  भुत  है अतः

🅿️1️⃣6️⃣0️⃣ वेदनीय कर्म के उदय से जीव क्या अनुभव करता है ?
🅰️इष्ट विषय  के संयोग से सुख व अनिष्ट विषय के संयोय से दुख



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