तीर्थंकर 5
प्रश्न.१. आज के दिन की क्या विशेषता है ?
उत्तर. १. आज वीर प्रभु ने अपना शासन स्थापित किया था |
प्रश्न.२. शाशन स्थापना दिवस क्यू कहा जाता है ?
उत्तर. २. आज ही के दिन २५७३ वर्ष पहले वीर प्रभु ने चतुर्विध संघ को गठित कर अपने धर्म शाशन की स्थापना की थी |
प्रश्न.३. शासन अथापना कर उन्होंने सबसे पहला काम क्या किया ?
उत्तर.३. सर्वप्रथम उन्होंने अपने ११ गणधरों की नियुक्ति की |
प्रश्न. ४. गणधरों की नियुक्ति करके उन्हें क्या दिया ?
उत्तर. ४. नियुक्ति होते ही प्रभु ने उन्हें त्रिपदी सौंपी |
प्रश्न.५ . प्रभु ने त्रिपदी में क्या कहा ?
उत्तर.५. उप्पनेइ वा, विगमेईवा, धुवेइवा |
प्रश्न.६. *उप्पनेइवा* का क्या अर्थ होता है ?
उत्तर.६. अर्थात सब उत्पन्न होता है |
प्रश्न.७. *विगमेईवा* का क्या अर्थ होता है ?
उत्तर.७. अर्थात नष्ट होता है |
प्रश्न.८. *धुवेइवा* का क्या अर्थ होता है ?
उत्तर.८. अर्थात इस संसार की स्थिति निश्चल है |
प्रश्न. ९. त्रिपदी मिलते ही गणधरों ने क्या किया ?
उत्तर. ९. त्रिपदी मिलते ही गणधरों ने द्वादशांगी की रचना की |
प्रश्न. १०. इसकी रचना करने में उन्हें कितना समय लगा ?
उत्तर. १०. एक अंतर्मुहूर्त का समय लगा |
प्रश्न. ११. आज के आगम और शास्त्र किस आधार पर बने है ?
उत्तर. ११. द्वादशांगी के आधार पर |
प्रश्न.१२. आज के दिन की और क्या विशेषता है ?
उत्तर. १२. आज हमारे सभी के प्रिय गुरु गौतम स्वामीजी का दीक्षा दिवस भी है |
प्रश्न.१३. और क्या विशेषता है आज के दिन की ?
उत्तर. १३. आज ही के दिन बाकी १० गणधर भगवंतों का भी दीक्षा दिवस है |
प्रश्न. १४. वीर प्रभु के पास सर्वप्रथम दीक्षित कौन हुए ?
उत्तर. १४. इंद्रभूति गौतम
प्रश्न.१५. वीर प्रभु की प्रथम साध्वीजी का नाम क्या था ?
उत्तर.१५. चंदनबाला
प्रश्न.१६. वीर प्रभु के शासन काल के प्रथम आचार्यजी का नाम ?
उत्तर. १६. सुधर्मा स्वामीजी
प्रश्न. १७. वीर प्रभु ने सभी जीवों के लिए सर्वसामान्य सूत्र कौनसा दिया था ?
उत्तर. १७. " जिओ और जीने दो "
प्रश्न. १८. इंद्रभूति किस बात के लिए पुरे आर्यावर्त में प्रसिद्द थे ?
उत्तर. १८. यज्ञ-क्रियाकांड करवाने में |
प्रश्न. १९. इंद्रभूति के अनुसार सबसे पवित्र अनुष्ठान-धर्म-कर्म कौनसा था ?
उत्तर.१९. यज्ञ सबसे पवित्र है ऐसा उनका मानना था |
प्रश्न.२०. वीर प्रभु के कहे अनुसार यज्ञ करने मैं हिंसा क्यों थी ?
उत्तर.२०. क्योंकि यज्ञ में पशुओं की बलि दी जाती थी |
प्रश्न.२१. क्या वीर प्रभु ने भी यज्ञ किया था ?
उत्तर.२१. हाँ ! वीर प्रभु ने आत्मयज्ञ किया था |
प्रश्न.२२. वीर प्रभु ने अपने यज्ञ में किसका होम किया था ?
उत्तर.२२. प्रभु ने अपने तप-ध्यान के यज्ञकुण्ड में क्रोध, मोह, मद आदि का होम किया था |
प्रश्न.२३. वीर प्रभु के अनुसार ईश्वर कौन है ?
उत्तर.२३. ईश्वर कोई नहीं है | मनुष्य स्वयं ईश्वर है |
प्रश्न.२४. वायुभूति की शंका क्या थी ?
उत्तर.२४. शरीर और आत्मा एक ही है या दोनों भिन्न भिन्न है |
प्रश्न.२५. अनपचे हुए ज्ञान के क्या दोष है ?
उत्तर.२५. अनपचा ज्ञान भ्रम पैदा करता है, अहंकारी बनाता है, दंभ का नशा चढ़ाता है |
प्रश्न.२६. वीर प्रभु के शाशन में अंतिम आचार्य कौन बनेंगे ?
उत्तर.२६. दुप्पहसुरी जी
प्रश्न.२७. प्रभु ने केवलज्ञान के बाद प्रथम देशना कहा दी थी ?
उत्तर.२७. जुम्बिका गाव के बाहर समवशरण में देशना दी |
प्रश्न.२८. जुम्बिका गाव की देशना में क्या हुआ ?
उत्तर.२८. वह देशना निष्फल गई | किसीने व्रत पच्चक्खान नहीं लिया क्योंकि कोई मनुष्य वहा नहीं पहुंचा |
प्रश्न.२९. दूसरी देशना वीर प्रभु ने कहा दी ?
उत्तर.२९. दूसरी देशना वीर प्रभु ने मध्य अपापापुरी के बाहर महासेन उद्यान में दी |
प्रश्न.३०. समवशरण में प्रभु ने कैसे प्रवेश किया ?
उत्तर.३०. पूर्व द्वारसे प्रवेश कर अशोक वृक्ष की ३ प्रदीक्षिणा देकर सिंहासन पर बैठे |
प्रश्न.३१. इंद्रभूति ने समवशरण में प्रभु को देखकर क्या सोचा ?
उत्तर.३१. क्या यह ब्रह्मा है ? क्या विष्णु है ? क्या ब्रह्मज्ञानी है ? क्या मेरु है ? क्या ये तीर्थंकर है ? ये सोचा |
प्रश्न.३२. इंद्रभूति के गर्व भरे विचारों को जानकार भगवान ने क्या कहा ?
उत्तर.३२. भगवान ने कहा - तुम्हारे मन में संदेह है कि जीव है या नहीं | वेदों के पदों का सही अर्थ मैं तुम्हें बताता हूँ |
प्रश्न.३३. गणधरों की दीक्षा के समय इंद्र महाराज ने क्या किया ?
उत्तर.३३. रत्नथाल में वासक्षेप लेकर आये तथा भगवान ने मुट्ठी भरके ११ गणधरों के सिर पर वासक्षेप किया |
प्रश्न.३४. भगवान महावीर को कौनसे नक्षत्र में केवलज्ञान हुआ ?
उत्तर.३४. उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में |
प्रश्न.३५. भगवान के केवल ज्ञान के बाद चौसठ इन्द्रों की क्या दशा हुई ?
उत्तर.३६. चौसठ इन्द्रों के आसन चलायमान हुए |
प्रश्न.३७. केवलज्ञान के बाद भगवान महावीर की कितने देव सेवा करते है ?
उत्तर.३७. जघन्य से एक करोड़ देव सेवा करते है |
प्रश्न.३८. भगवान महावीर के अतिशय देखकर इंद्रभूति ने क्या सोचा ?
उत्तर.३८. ये महापुरुष है ? इनके आगे मैं अवश्य हार जाऊँगा |
प्रश्न.३९. देवों को समवशरण में जाते देख इंद्रभूति ने क्या सोचा?
उत्तर.३९. मनुष्य तो अनजान है परंतु देव ज्ञानवान होकर भी भूल कर रहे है |
प्रश्न.४०. प्रभु के मुख से अपना परिचय सुनकर इंद्रभूति ने क्या सोचा ?
उ.४०. ये मेरा नाम और गौत्र भी जानते है, मैं इनसे पूर्व में नहीं मिला, फिर भी जानते है, मैं तो जग प्रसिद्द हूँ | इन्होनें मुझे भ्रमित करने के लिए ही पुकारा है |
प्रश्न.४१. प्रभु के मुख से अपना संदेह और समाधान सुनकर इंद्रभूति ने क्या किया ?
उत्तर.४१. मद छोड़कर, वैराग्य प्राप्त कर, तीन प्रदीक्षिणा देकर प्रभु को प्रणाम किया तथा 500 शिष्यों सहित दीक्षा ग्रहण की |
प्रश्न.४२. गणधरवाद के रचयिता कौन है ?
उत्तर.४२. आचार्य जिनभद्र गणी क्षमाश्रमण |
प्रश्न.४३. प्रभास का गौत्र क्या था ?
उत्तर.४३. प्रभास कौण्डिन्य ' के नाम गौत्र से बुलाया |
प्रश्न.४४. प्रभास को कौन सा संदेह था ?
उत्तर.४४. निर्वाण है अथवा नहीं ? यह संदेह था |
प्रश्न.४५. मैतार्य का गौत्र क्या था ?
उत्तर.४५. कौण्डिन्य |
प्रश्न.४६. अचलभ्राता का गौत्र क्या था ?
उत्तर.४६. हारीत |
प्रश्न.४७. दीक्षा का ओघा कहा से लाया जाता था ?
उत्तर.४७. कृतिकापन से आते थे
प्रश्न.४८. अकम्पित का गौत्र क्या था ?
उत्तर.४८. गौतम गौत्र |
प्रश्न.४९. मौर्यपुत्र का गौत्र क्या था ?
उत्तर.४९. काश्यप गौत्र
प्रश्न.५०. मण्डिक का गौत्र ?
उत्तर.५०. वसिष्ठ
प्रश्न.५१. व्यक्त का गौत्र ?
उत्तर.५१. भारद्वाज |
प्रश्न.५२. शासन स्थापित करने के बा वीर प्रभु ने कितने समय तक शासन चलाया ?
उत्तर.५२. एक दिन भी नहीं चलाया |
प्रश्न.५३. सवा-स्थापित शासन होते हुए भी वीर प्रभु ने शासन क्यों नहीं चलाया ?
उत्तर.५३. तीर्थंकर परमात्मा शासन स्थापित करते ही उसका कार्यभार गणधर को हस्तांतरण कर देते है | इसीलिए प्रभु ने सवा-स्थापित शासन नहीं चलाया |
प्रश्न.५४. वीर-शासन यानी क्या ?
उत्तर.५४. प्रभु महावीर द्वारा पुनःस्थापित धर्म जब तक उनके नाम से चलेगा तब तक उसे वीर-शासन के नाम से जाना जायेगा |
प्रश्न.५५. यह शासन कितने वर्षो तक चलेगा ?
उत्तर.५५. वीर प्रभु का शासन 21000 वर्ष तक चलेगा |
प्रश्न.५६. जिनशासन कब से है ?
उत्तर.५६. भगवंतों द्वारा स्थापित शासन अनादि-अनंत कालों से चला आ रहा है और अनादि अनंत कालों तक चलेगा | यही शास्वत और एकमेव शासन है |
प्रश्न.५७. इसे शाश्वत क्यों माना जाता है ?
उत्तर.५७. अन्य क्षेत्रों में चाहे काल प्रभाव से जिन-शासन कभी लुप्त भी हो जाये, पर महाविदेह में सदैव जिनशासन ही रहता है | इसीलिए इसे शाश्वत माना जाता है |
प्रश्न.५८. जिन-शासन में धर्म की व्याख्या क्या की गयी है ?
उत्तर.५८. *आणाए धम्मो* आज्ञा ही धर्म है | बाकी सभी व्याख्याएं इसके बाद आती है |
प्रश्न.५९. "आणाजुत्तो संघो " इसका अर्थ बताये ?
उत्तर.५९. जिनके पास आज्ञा है, वही संघ है |
प्रश्न.६०. आज्ञा यानी क्या ?
उत्तर.६०. सर्वज्ञ - वीतराग प्रभु के वचन यही आज्ञा होती है | और ध्यान रहे - यह आज्ञा ही शाशन है |
प्रश्न.६१. शाशन कितने प्रकार का है ?
उत्तर.६१. शाशन को मुख्यतया 4 प्रकार का दिखाया गया है |
१. द्रव्यशासन
२. भावशासन
३. व्यवहार शासन
४. निश्चय शाशन
प्रश्न.६२. यह द्रव्यशासन किसे कहते है ?
उत्तर.६२. प्रभु ने देशना दी, वो शब्द - वो वाक्य.....यानी द्रव्यशासन |
प्रश्न.६३. भावशासन किसे कहते है ?
उत्तर.६३. बोले हुए प्रवचन सुनकर श्रोता के मन में जो शुभ भाव उत्पन्न होते है, उसे भाव-शासन कहते है |
प्रश्न.६४. शासनप्रभावना का मतलब क्या ?
उत्तर.६४. आत्मा में रत्नत्रयी को पैदा करना, उसे टिकाना, बढ़ाना मतलब शासन प्रभावना |
प्रश्न.६५. निश्चय शासन ( आज्ञा ) कितनी है ?
उत्तर.६५. निश्चय आज्ञा ( शासन ) कितनी तो उसका जवाब है ----- सिर्फ एक |
प्रश्न.६६. यह एक निश्चय आज्ञा ( शासन ) कौनसी है ?
उत्तर.६६. जिनेश्वरों की आज्ञा है की जैसे जैसे राग-द्वेष शीघ्र नाश पामे वैसी ही प्रवृत्ति करनी |
राग-द्वेष का शीघ्र विनाश यही जिनाज्ञा |
राग-द्वेष घटाते जाना और आखिर में पूर्णतया खत्म कर देना यही जिनाज्ञा |
शुभभावों को बढ़ाते जाना, और अंत में शुद्धभावोंवाला बनना यही जिनाज्ञा |
यह है निश्चय-शासन ( आज्ञा ) |
प्रश्न.६७. व्यवहार आज्ञा क्या है ? व कितनी है ?
उत्तर.६७. जो निश्चय-आज्ञा है, उसे प्राप्त करने में, टिकाये रखने में, और बढ़ाने में सहायक है वह व्यवहार आज्ञा या शासन | ऐसी आज्ञाओं का हिसाब करना मुश्किल है क्योंकि यह हजारों, लाखों, करोड़ों में है |
प्रश्न.६८.. : निश्चय-शासन ( आज्ञा ) का एक उदाहरण दीजिये ?
उत्तर.६८. उदा. - स्त्री के प्रति राग ना रखना |
प्रश्न.६९. उपरोक्त आज्ञा की सहायक रूप व्यवहार-शासन ( आज्ञा ) के उदा. दीजिये ?
उत्तर.६९. स्त्री की तरफ ना जाना |
स्त्री के साथ बात नहीं करनी |
स्त्री के फ़ोटो नहीं देखने |
स्त्रिसंसक्त बस्ती में नहीं रहना |
स्त्री जहा बैठी हो, उस जगह पर 48 मिनिट तक बैठना नहीं |
ऐसी कई आज्ञाएं उपरोक्त निश्चय आज्ञा के सहायक रूप काम करती है |
प्रश्न.७०. किसका महत्व ज्यादा है ? निश्चय - आज्ञा का या व्यवहार - आज्ञा का ?
उत्तर.७०. दोनों का |
निश्चय आज्ञा अगर राजा है, राजकुमार है |
तो व्यवहार आज्ञा उसके संरक्षक सैनिक है |
राजा का महत्व भले ही हो पर उसकी रक्षा के लिए सैन्य का महत्व भी उतना ही है |
प्रश्न.७१. और कौनसे कौनसे परमात्मा ने शासन की अथापना की थी ?
उत्तर.७१. सभी तीर्थंकर परमात्मा अपने अपने समय में शासन की स्थापना करते ही है |
प्रश्न.७२. तो उनका शासन स्थापना दिवस क्यों नहीं मनाया जाता ?
उत्तर.७२. सभी तीर्थंकर परमात्मा ने जिस दिन केवलज्ञान प्राप्त होता है उसी दिन शासन की स्थापना करते है \ शासन स्थापना से ज्यादा महत्व प्रभु के कल्यानाकों का होता है | इसलिए हम उनका केवलज्ञान कल्याणक मानते है, शासन स्थापना दिवस नहीं |
प्रश्न.७३. तो वीर प्रभु का शासन स्थापना दिवस क्यों मानते है ?
उत्तर.७३. वीर प्रभु का केवलज्ञान कल्याणक वैशाख सूद १० का है और उनके शासन की स्थापना वैशाख सूद ११ कोई हुई थी इसलिए यह दिन मनाया जाता है |
प्रश्न.७४. शासन स्थापना दिवस मानते हुए लगभग कितने वर्ष हुए है ?
उत्तर.७४. करीब ५ सालों से यह दिवस पुरे भारत वर्ष में मनाया जाता है |
*बोनस सवाल*
प्रश्न.७५. ५ दिनों से जो *शासन* के टॉपिक पर आधारारित पोस्ट्स आ रही है उनका सार जिन_शासन में क्या बताया गया है ?
उत्तर.७५. -- *सव्वी जीव करू शासन रसि*
सभी *जैन* बने |
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